जलवायु परिवर्तन

बढ़ती लवणता और समुद्र का स्तर सुंदरबन के लोगों के लिए खड़ी करता है कई स्वास्थ्य चुनौतियां

भारतीय सुंदरबन की नदियों और खाड़ियों में जाल बिछाकर, महिलाएं अपने जीवनयापन के लिए मछलियों, केकड़ों और झींगे को इकट्ठा करने में घंटों बिताती हैं. लेकिन यह उनके स्वास्थ्य और समग्र कल्याण से जुड़े मूल्य को नुकसान पहुंचाता है

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पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय सुंदरबन में मीठे पानी की उपलब्धता में कमी और समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण खारे पानी में वृद्धि हुई है: विशेषज्ञ

नई दिल्ली: आज दोपहर की धूप खिली हुई है. घड़ी साढ़े तीन बजे का समय बता रही है. जैसे ही हमारी नाव दक्षिण 24 परगना जिले के कैनिंग उप-मंडल के गोसाबा में स्थित लाहिरीपुर गांव की ओर बढ़ती है, हमें महिलाएं कमर और गर्दन तक खारे पानी में डूबी हुई दिखाई देती हैं. भारतीय सुंदरबन की नदियों और खाड़ियों में आयताकार जाल खींचकर, ये महिलाएं अपने जीवन यापन के लिए मछली, केकड़े और झींगा इकठ्ठा करती हैं. लेकिन यह जीवन उनके स्वास्थ्य और समग्र कल्याण से जुड़े मूल्यों को नुकसान पहुंचाता है.

आप देखिए उस महिला को नदी में जाते हुए, वह केकड़ा संग्रह में शामिल एक आदिवासी समुदाय से है. यहां का पानी बेहद खारा है लेकिन अपनी सेहत को खतरे में डालकर महिलाएं खाने के लिए नदी में उतर जाती हैं. खारे पानी के नियमित संपर्क से मूत्र संक्रमण, गर्भाशय कैंसर और प्रजनन संबंधी समस्याएं होती हैं. लाहिरीपुर गांव की एक आशा कार्यकर्ता संतवाना मंडल ने कहा कि जब उनमें कोई लक्षण नजर आते हैं और हमें इसकी सूचना दी जाती है, तो बीमारी का निदान किया जाता है.

सुंदरबन में, महिलाएं आजीविका कमाने के लिए खारे पानी में जाने के लिए मजबूर हैं.

मोंडल 2012 से मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या आशा के रूप में काम कर रही हैं, सभी को 4,500 रुपए प्रति माह दिया जाता है. यह पूछे जाने पर कि ये महिलाएं अपनी जान जोखिम में क्यों डालती हैं, मंडल ने कहा,

जिनके पास पैसा है वे दुकान खोल लेते हैं या शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं, लेकिन गरीब लोगों के पास कोई ऑप्‍शन नहीं होता.

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पिछले कुछ वर्षों में, मीठे पानी की अनुपलब्धता के कारण दक्षिण 24 परगना और उत्तर 24 परगना में फैले सुंदरबन के भारतीय समकक्ष में खारे पानी में वृद्धि हुई है. इसकी व्याख्या करते हुए, डॉ. प्रदीप व्यास, आईएफएस (सेवानिवृत्त), पूर्व मुख्य वन्यजीव वार्डन, पश्चिम बंगाल ने कहा,

16वीं शताब्दी में, एक नियो-टेक्टानिक बदलाव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप सुंदरबन के पूर्वी भाग में डेल्टा का नीचे की ओर खिसकना हुआ, जो वर्तमान में बांग्लादेश में है. परिणामस्वरूप, पूर्व की ओर अधिक मीठा पानी बहने लगा और पश्चिम में कम मीठा पानी उपलब्ध था जो अब भारतीय सुंदरवन है. दूसरा, विकास के चरण के दौरान, जब गंगा के पानी को सिंचाई और मानव जाति के अन्य उपयोगों के लिए इस्‍तेमाल करना शुरू किया गया, तो मीठे पानी की उपलब्धता में गिरावट आई. भारतीय सुंदरबन में, केवल हुगली नदी और रायमंगल नदी जो इचामती नदी और बांग्लादेश से ताजा पानी लेती है, में मीठे पानी के कुछ तत्व हैं. मध्य सुंदरवन और कुछ नहीं बल्कि समुद्र का बैकवाटर है.

लवणता में वृद्धि के पीछे एक अन्य कारण समुद्र का बढ़ता स्तर है, जो भूमि को जलमग्न कर देता है, टाइड और तूफान के स्तर में वृद्धि करता है, और खारे पानी को खाइयों में धकेलता है. 28 जून, 2019 को, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने लोकसभा में कहा कि भारत के बड़े बंदरगाहों में से एक, पश्चिम बंगाल में डायमंड हार्बर में समुद्र के स्तर में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है. हाल के अध्ययनों से पता चला है कि पिछले 40-50 वर्षों के दौरान भारतीय तटों के साथ समुद्र के स्तर में वृद्धि की प्रवृत्ति 1.3 मिमी/वर्ष होने का अनुमान है. हालांकि, डायमंड हार्बर में, प्रति वर्ष 5.16 मिमी की वृद्धि लगभग पांच गुना अधिक थी. डायमंड हार्बर के लिए समुद्र के स्तर में औसत वृद्धि 1948 से 2005 की अवधि में रिकॉर्डिंग पर आधारित थी.

संसद में मंत्रालय ने कहा,

समुद्र का बढ़ता स्तर तटीय खतरों के प्रभावों को बढ़ा सकता है जैसे कि स्‍ट्रोम सर्ज, सुनामी, तटीय बाढ़, हाई टाइड और निचले तटीय क्षेत्रों में तटीय कटाव, इसके अलावा समुद्र में तटीय भूमि को क्रमिक नुकसान भी हो सकता है.

जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान अध्ययन के प्रोफेसर डॉ. सुगाता हाजरा के अनुसार, विशेष रूप से सुंदरवन डेल्टा में सेडिमेंटेशन की हाई रेट के कारण पश्चिम बंगाल में समुद्र के स्तर में वृद्धि अधिक है.

जिरियाट्रिशियन और जनरल फिजिशियन और एनजीओ Banchbo के अध्यक्ष डॉ. धीरेस कुमार चौधरी सुंदरबन में दो दशकों से अधिक समय से काम कर रहे हैं. डॉ. चौधरी के अनुसार, खारा पानी त्वचा को प्रमुख रूप से प्रभावित करता है जिससे फंगल और मिक्‍स बैक्टीरिया जख्‍म हो जाते हैं. उन्‍होंने कहा,

यदि समय पर इलाज किया जाता है, तो फंगल घाव ठीक हो जाते हैं, लेकिन यदि नहीं, तो यह पुराना हो सकता है और शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है. जब महिलाएं मछली पकड़ने और केकड़े इकट्ठा करने के लिए जाती हैं, तो उनके शरीर का निचला हिस्सा पानी में डूब जाता है, जिससे उनके जननांग प्रभावित होते हैं और यहां जननांग संक्रमण बहुत आम है. यह सिर्फ खारा पानी नहीं है, चक्रवात या तूफान के बाद मरे हुए जानवर जलाशयों को दूषित कर देते हैं और यहां के लोग हर चीज के लिए उसी पानी का इस्तेमाल करते हैं.

भारतीय सुंदरबन में गोसाबा के सोनारगांव में घर के भीतर तालाब में कपड़े धोती महिला

53 वर्षीय मनुश्री नायक 2017 में लोगों की सेवा करने के लिए सुंदरबन लौटने तक कोलकाता के एक नर्सिंग होम में काम करती थीं. उन्‍होंने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा,

सर्जरी के लिए आने वाले 10 में से 7 मरीज महिलाएं हैं. महिलाओं में, प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएं यूटरिन प्रोलैप्स, ओवेरियन सिस्‍ट और अपेंडिक्स हैं. पुरुषों में, हर्निया हिड्रोसिस और प्रोस्टेट कैंसर के मामले आम हैं. इसके अलावा तालाब में नहाने से लोगों में वर्म और कान में संक्रमण होना आम बात है.

सुंदरबन के गांवों में नियमित रूप से चिकित्सा शिविर आयोजित करने वाले एनजीओ सोल के संस्थापक शुभंकर बनर्जी ने कहा,

सुंदरबन में खारे पानी के कारण ज्यादातर लोग पेट की बीमारियों से परेशान रहते हैं, जो मुख्य रूप से पाचन और एसिडिटी से संबंधित बीमारियां हैं. एनीमिया और कैल्शियम की कमी एक और बड़ी स्वास्थ्य समस्या है जिसका महिला और पुरुष दोनों ही सामना करते हैं.

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सुंदरबन के लोग पहले से ही हाशिये पर रह रहे हैं. चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएं जो अब बार-बार होने लगी हैं, लोगों की परेशानियां को और बढ़ा रही हैं. लोगों के स्वास्थ्य और पोषण पर चक्रवातों के प्रभाव को जानने के लिए क्लिक करें.

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