बेहतर भविष्य के लिए रेकिट की प्रतिबद्धता

जानिए डेटॉल के क्लाइमेट रेजिलिएंट स्कूल प्रोजेक्ट के पीछे का एजेंडा, जिसका उद्देश्य भारत में जलवायु परिवर्तन संकट से निपटना है

पर्यावरण के प्रति जागरूक बच्चों का एक कैडर तैयार करने के लिए डेटॉल इंडिया ने भारत में जलवायु अनुकूल स्कूलों (Climate resilient schools) के निर्माण की एक पहल शुरू की है. आइये जानते हैं इन स्कूलों के बारे में

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ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021 के अनुसार, भारत जलवायु परिवर्तन प्रभाव के मामले में सातवां सबसे कमजोर देश है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने एशिया रिपोर्ट 2020 में अपने स्टेट ऑफ द क्लाइमेट में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न 9 खराब मौसम की घटनाओं के कारण भारत में औसतन 87 बिलियन डॉलर के सालाना नुकसान का अनुमान लगाया है. आजीविका को प्रभावित करने के अलावा, ये खराब मौसम की घटनाएं जीवन को उजाड़ रही हैं और विस्थापन की ओर ले जा रही हैं. जिनेवा स्थित इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेन्टर (IDMC) द्वारा आंतरिक विस्थापन पर हाल की वैश्विक रिपोर्ट में पाया गया है कि प्राकृतिक आपदाओं, भारी बाढ़ और चक्रवातों ने 2022 में भारत में 2.5 मिलियन लोगों को आंतरिक रूप से विस्थापित किया है.

यूनिसेफ के प्रकाशन ‘द चैलेंजेस ऑफ क्लाइमेट चेंज’ में कहा गया है कि गर्म होती दुनिया बच्चों को ज्यादा प्रभावित कर रही है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एवं दिल्ली के साइंस एंड टेक्नोलॉजिकल डिपार्टमेंट द्वारा 2017-2020 में वाराणसी के 16 वर्ष से कम उम्र के 461 बच्चों को लेकर एक जांच की गई. इससे पता चला कि तापमान, आर्द्रता, वर्षा, सोलर रेडिएशन, जलवायु पैरामीटर और हवा की गति सभी संक्रामक रोगों के मामलों में 9-18% के लिए जिम्मेदार है. जबकि, श्वास संबंधित ऊपरी संक्रमण (जैसे सर्दी-फ्लू) और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल जैसे रोगों के लिए ये 78% तक संक्रमण जिम्मेदार हैं. जांच में यह भी कहा गया है कि अगर इससे बुद्धिमानी से नहीं निपटा गया, तो बच्चों की वर्तमान के साथ-साथ भावी पीढ़ियां जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर बीमारियों का सामना करती रहेंगी. इतना ही नहीं, एक वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु के प्रति चिंता लगभग आधे युवाओं के दैनिक जीवन को प्रभावित करती है. बाथ विश्वविद्यालय द्वारा की गई रिसर्च 10 देशों के 10,000 युवाओं के सर्वे पर आधारित है, जिनमें से 75% जवाब देने वालों का मानना है कि “आने वाला कल काफी भयानक होगा.”

जलवायु परिवर्तन एक सच्चाई है और इसके संकट को कम और भविष्य की पीढ़ियों को इसके लिए तैयार करने के इरादे से डेटॉल ने अगले कुछ वर्षों में भारत में क्लाइमेट रेजिलिएंट स्कूल बनाने की योजना शुरू की है. इसका मिशन पर्यावरण के प्रति जागरूक बच्चों का एक कैडर बनाना है, जो क्लाइमेट रेजिलिएंट स्कूलों और समुदायों को बनाने में कैटेलिस्ट के रूप में काम करेंगे. प्रोजेक्ट का लक्ष्य 2021 में ग्लासगो में COP26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित मिशन LiFE पहल के उद्देश्यों को भी शामिल करना है.

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क्लाइमेट रेजिलिएंट स्कूल के बारे में

योजना के बुनियादी ढांचे के हिस्से के रूप में क्लाइमेट रेजिलिएंट मॉडल स्कूल जलवायु-अनुकूल टेक्नोलॉजी को पेश करने पर ध्यान केंद्रित करेगा और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Adaptation), शमन (Mitigation) एवं लचीले निर्माण के विभिन्न पहलुओं को सुनिश्चित करने के लिए एक एक्शन बेस्ड जलवायु परिवर्तन पाठ्यक्रम विकसित करेगा.

प्रस्तावित उपाय

1. लाइटिंग एनर्जी एफिशिएंट और पंखे रेट्रोफिटेड होंगे.
2. स्कूल में बिजली के उपकरणों और अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए सोलर पैनल लगाए जाएंगे.
3. बैटरी बैकअप सिस्टम बिजली कटौती के मामले में स्कूल की बिजली की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा का भंडारण करेगा.
4.लो फ्लो वाटर फिक्स्चर में लो फ्लो फ्लश, शौचालय और रसोई के नल शामिल होंगे, जिसके चलते पानी की खपत में महत्वपूर्ण कमी आएगी.
5. पानी के मीटर लगाए जाएंगे ताकि स्कूल निगरानी कर सके और अधिक खपत वाले क्षेत्रों की पहचान कर सके और खपत कम करने के उपायों को लागू कर सके.
6. ऊर्जा मीटर से विद्यालय को हर एक भवन की ऊर्जा खपत के वास्तविक समय के आंकड़ों की निगरानी करने की अनुमति मिलेगी.
7. वेस्ट विभाजन से विद्यालय में गीले कचरे से खाद बनाने में मदद मिलेगी

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लाभ

1. पौधों व वनस्पतियों के एकीकरण से स्थानीय जैव विविधता को मजबूती मिलेगी.
2. कम ऊर्जा की खपत और कम बिजली के बिल.
3. ऊर्जा की जरूरतों के लिए लागत में बचत.
4. स्कूलों के कार्बन फुटप्रिंट को कम करना, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए राज्य के प्रयासों में योगदान देना.
5. प्राकृतिक आपदाओं और खराब मौसम की घटनाओं के लिए स्कूलों को तैयार करना.
6. सस्टेनेबल फ्यूचर के लिए सस्टेनेबल लिविंग के महत्व पर जोर देना

क्लाइमेट रेजिलिएंट स्कूलों की जरूरत

जलवायु परिवर्तन हो रहा है और पृथ्वी का तापमान 2 डिग्री से ज्यादा बढ़ने का खतरा बना हुआ है. स्थिति कितनी भी विकट क्यों न हो, जलवायु परिवर्तन को कम करने और अनुकूल बनाने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है और साथ ही जलवायु परिवर्तन के रोजमर्रा के प्रभावों से ग्रह को बचाने के लिए उपाय किए जा सकते हैं.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (भारत सरकार) स्कूलों को समग्र विकास और सामाजिक परिवर्तन के रूप में विकसित करने की जरूरत पर जोर दे रही है. ये नीति आज के तेजी से बदलते परिवेश में छात्रों के सफल और उत्पादक बनने के लिए पर्यावरण जागरूकता सहित जलवायु परिवर्तन पाठ्यक्रम के एकीकरण पर प्रकाश डालती है. हाल ही में किए गए रिसर्च से पता चलता है कि यदि 16 प्रतिशत हाई स्कूल के छात्रों को जलवायु परिवर्तन शिक्षा प्राप्त होती है तो उच्च और मध्यम आय वाले देशों में 2050 तक कार्बन डाइऑक्साइड में लगभग 19 गीगाटन की कमी हासिल की जा सकती है. यह संकेत पर्यावरण के प्रति जागरूक बनने के महत्व को दर्शाता है.

यह भी लगभग तय हो चुका है कि बच्चे जितना इसके बारे में जानेंगे वह भविष्य में इससे निपटने के लिए उतने सक्षम होंगे.

डेटॉल इंडिया के क्लाइमेट रेजिलिएंट स्कूल प्रोजेक्ट के लिए डिजाइन किया गया मॉडल भावी पीढ़ियों के स्वस्थ जीवन और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए जलवायु परिवर्तन के खतरे को पहचानता है. योजना का उद्देश्य एक स्थायी स्कूली वातावरण विकसित करना है जो कार्बन फुटप्रिंट को कम करे, एनर्जी एफिशिएंसी को बढाये और छात्रों, शिक्षकों एवं समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा देता है. इस योजना से अगली पीढ़ी एक स्थायी और परिवर्तन को संभालने के में सक्षम भविष्य के निर्माण की दिशा में मिल-जुलकर काम करने के लिए प्रेरित होगी.

डेटॉल इंडिया के प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए रेकिट के एक्सटर्नल अफेयर्स एंड पार्टनरशिप्स, एसओए, डायरेक्टर रवि भटनागरने कहा, “युवा लोगों को वार्मिंग जलवायु के कारणों के बारे में एक मजबूत ज्ञान आधार की आवश्यकता है, लेकिन कौशल का एक मजबूत सेट भी है जो उन्हें वास्तविक दुनिया में अपने ज्ञान को लागू करने की अनुमति देगा, जिसमें समस्या-समाधान, महत्वपूर्ण सोच, टीम वर्क, अनिश्चितता से मुकाबला करना, सहानुभूति और बातचीत शामिल हैं.

प्रोजेक्ट को पहले तीन चरणों में लागू किया जाएगा, जो इस साल से शुरू होकर 2025 तक चलेगा. इसमें उत्तराखंड के सभी 13 जिले शामिल होंगे. यहां 13 जिलों का चरणबद्ध कवरेज दिया गया है:

वर्ष 1 –3 जिले: उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली
वर्ष 2 – 4 जिले: चंपावत, उधमसिंह नगर, देहरादून, हरिद्वार
वर्ष 3 – 6 जिले: पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा, नैनीताल, टिहरी और पौर

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डेटॉल के क्लाइमेट रेजिलिएंट स्कूलों के लिए उत्तराखंड को क्यों चुना गया है?

डेटॉल ने उत्तराखंड को चुना है क्योंकि उत्तराखंड विशेष रूप से भौगोलिक कारणों से जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है, जैसे ग्लेशियर पिघलना, जनसंख्या का दबाव बढ़ना, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, विकास के नाम पर अनियंत्रित योजना आदि. ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) द्वारा 2021 में जारी एक एनालिसिस के अनुसार, उत्तराखंड के 85% जिले बाढ़ और ऐसी ही अन्य घटनाओं के लिए हॉटस्पॉट हैं. राज्य ने 2015 के बाद से 7,750 वर्षा की खतरनाक घटनाओं और बादल फटने की घटनाओं को दर्ज किया है, जो 1970 के बाद से चार गुना बढ़ गया है.

हिमालयी राज्य अपनी उच्च भूकंपीय भेद्यता (Seismic vulnerability) के लिए भी जाना जाता है. राज्य के 13 जिले उच्च भूकंप जोखिम वाले क्षेत्र में आते हैं. उत्तराखंड में शैक्षिक बुनियादी ढांचे के भूकंपीय भेद्यता आकलन (2019 में विश्व बैंक की एक योजना का हिस्सा) के अनुसार, एक बड़े भूकंप की घटना की स्थिति में राज्य के स्वामित्व वाले कुल स्कूल भवनों का 50.15% किसी काम का नहीं रह जाएगा. अध्ययन में भूकंपीय सुरक्षा कोड और इंजीनियरिंग मानदंडों के अनुपालन न करने और स्कूल भवनों के रखरखाव की कमी के मुद्दे पर प्रकाश डाला गया है.

इसलिए, जलवायु संबंधी आपदाओं के प्रति उत्तराखंड की उच्च संवेदनशीलता के कारण बच्चों की शिक्षा पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करना और क्लाइमेट रेजिलिएंट स्कूलों जैसे क्लाइमेट रेजिलिएंट पहलों की योजना बनाना महत्वपूर्ण है. यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और कल के लीडर्स को तैयार करने में मदद करेगा, जो ग्रह की रक्षा करने में मदद करेंगे और शांति और समृद्धि सुनिश्चित करेंगे.

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