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मिलिए यूपी के बहराइच की आशा कार्यकर्ता से, जिसने सात वर्षों में बनाया ज़ीरो गर्भपात का रिकॉर्ड

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में सरसा ग्राम सभा में जन्म में सहायता करने के लिए, आशा संगिनी (सुविधाकर्ता) सरस्वती शुक्ला ने अपने सात साल के करियर में ज़ीरो गर्भपात का रिकॉर्ड बनाया है

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आशा कार्यकर्ता सरस्वती शुक्ला शिशु एवं मातृ स्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्ध हैं

नई दिल्ली: भारत के सबसे अविकसित क्षेत्रों में से एक, उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में सरसा ग्राम सभा में जन्म में सहायता करने के लिए, आशा संगिनी (सुविधाकर्ता) सरस्वती शुक्ला ने अपने सात साल के करियर में ज़ीरो गर्भपात का रिकॉर्ड बनाया है. हालांकि, सरस्वती का ज़ीरो गर्भपात रिकॉर्ड तीन साल पहले एक प्रवासी श्रमिक प्रेम नारायण और गृहिणी खुशबू कुमारी के बेटे आयुष्मान के जन्म के दौरान खतरे में आ गया था. आशा संगिनी के सहयोग से, बहुत खून बहने के बाद, खुशबू की ठीक समय पर सिजेरियन डिलीवरी हुई.

आयुष्मान अब एक स्वस्थ है और तीन साल का हो गया है, जिसका श्रेय सरस्वती शुक्ला को जाता है, जिन्होंने उसके जन्म में अहम भूमिका निभाई. इस दौरान सामने आईं चुनौतियों को याद करते हुए सरस्वती शुक्ला ने कहा,

सब-सेंटर ने खून की कमी बताकर खुशबू की डिलीवरी कराने से इनकार कर दिया. हम दूसरे अस्पताल में गए, उसने भी मरीज को देखने से मना कर दिया. इसके बाद हम उसे जिला अस्पताल ले गए, जहां ब्‍लड डोनर की जरूरत थी. मैं पूरी प्रक्रिया में खुशबू के साथ थी

खुशबू ने एक बच्चे को जन्म दिया, लेकिन वह नीला पैदा हुआ था, उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. बच्चे को बेहतर इलाज के लिए तुरंत एक निजी अस्पताल ले जाया गया. नई मां के लिए दुख यहीं खत्म नहीं हुआ, उसके पास बस दो दिन की दवा के पैसे थे.

सरस्वती शुक्ला ने कहा,

खुशबू की सास ने बच्चे के इलाज के लिए पैसों की व्यवस्था करने के लिए अपने गहने बेचने की बात कही, लेकिन यह सही नहीं लगा. इसलिए, मैंने खुशबू को सरकारी योजनाओं से जोड़ा और बच्चे को न्‍यू-बॉर्न इंसेंटिव केयर यूनिट (NICU) में भर्ती कराया, जहां उसने 25 दिन बिताए.

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आशा संगिनी को उनके लगातार सपोर्ट के लिए धन्यवाद देते हुए, खुशबू ने कहा,

डिलीवरी के समय मेरे पति जालंधर में थे जबकि मैं और मेरी सास घर पर थे. सरस्वती जी मेरे साथ सभी अस्पतालों में गईं और सुनिश्चित किया कि मेरी देखभाल की जाए. उनकी सहायता के बिना, यह मेरे लिए कठिन होता.

आशा संगिनी, आशा फैसिलिटेटर या सपोर्टिव सुपरविजन, साइट पर सहायता या निगरानी रखने के लिए मुख्य माध्यम हैं. सुविधाकर्ता सामुदायिक कार्यक्रमों के लिए ब्लॉक स्तर पर आशा और उसके सपोर्टर्स के बीच कड़ी के रूप में काम करती हैं. आशा संगिनी के रूप में, सरस्वती शुक्ला स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों और सेवाओं को ग्रामीण भारत में ले जाती हैं और सुनिश्चित करती हैं कि सभी की स्वास्थ्य तक उनकी पहुंच हो. COVID-19 महामारी के दौरान, आशा कार्यकर्ता और फैसिलिटेटर फ्रंटलाइन ब्रिगेड का हिस्सा थीं और घर लौटने वाले पैसेंजर्स की पहचान करने के लिए सरकार द्वारा सर्वे किया गया. लेकिन COVID के दौरान काम भेदभाव से जुड़ा था.

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यह याद करते हुए कि कैसे उन्हें बहिष्कृत किया गया था, सरस्वती शुक्ला ने कहा,

लोग मुझसे इस डर से दूर रहते थे कि कहीं उन्हें COVID न हो जाए. मुझे न केवल समाज से बल्कि अपने परिवार से भी बहुत कुछ झेलना पड़ा. जब मैं घर लौटती, तो नाराज परिवार के सदस्य मेरी खाट हटा देते. वे मुझे बैठने या दरवाजे से गुजरने नहीं देते थे. मुझे लगा कि अगर मेरे पास 10 ग्रामीणों का समर्थन है, तो मुझे अपने परिवार का समर्थन खोने से अफ़सोस नहीं होना चाहिए, क्योंकि गांव वाले मेरे अपने हो गए थे. मैंने COVID के दौरान घरों का दौरा किया, गर्भवती महिलाओं को लेबर रूम में ले जाकर, समय पर उनकी डिलीवरी सुनिश्चित की

सरस्वती शुक्ला की तरह, अनगिनत आशा कार्यकर्ता हैं, जो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए दिन-रात काम करते हैं.

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