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भारत में WHO के प्रतिनिधि डॉ रोडेरिको एच. ऑफ्रिन ने कहा टीके – बीमारी, विकलांगता और मौत से हमारा बचाव करते हैं
NDTV-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया सीजन 10 के लॉन्च पर, WHO के डॉ. रोडेरिको एच. ऑफ्रिन (Dr Roderico H. Ofrin) ने सेल्फ-केयर, डायरिया से होने वाली मौतों से बचाव और वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण के बारे में बात की
नई दिल्ली: पिछले चार सालों से, NDTV-डेटॉल बनेगा स्वस्थ भारत अभियान देश के किसी भी नागरिक को पीछे न छोड़ते हुए स्वस्थ भारत के निर्माण की दिशा में लगातार काम कर रहा है. इससे पहले स्वच्छ भारत के लिए पांच साल की लंबी वकालत की गई थी. सभी के लिए स्वास्थ्य इस महत्वपूर्ण लक्ष्य पर बातचीत जारी रखते हुए, 2 अक्टूबर को इस अभियान के राजदूत यानी एम्बेसडर आयुष्मान खुराना की मौजूदगी में बनेगा स्वस्थ भारत अभियान का सीजन 10 लॉन्च किया गया. भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि डॉ. रोडेरिको एच. ऑफ्रिन ने इस अभियान को अपना समर्थन दिया और स्वास्थ्य के अधिकार (Right to Health) को हासिल करने में सेल्फ-केयर की अहम भूमिका के बारे में बात की.
सेल्फ-केयर यानी खुद की देखभाल की WHO की परिभाषा को समझाते हुए डॉ. ऑफ्रिन ने कहा,
यह व्यक्तियों, उनके परिवारों, समुदायों की अपने स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, बीमारियों को रोकने, स्वास्थ्य बनाए रखने, स्वास्थ्य सेवा तक पहुंचने और स्वास्थ्य कार्यकर्ता के समर्थन के साथ या उसके बिना बीमारियों या विकलांगताओं से निपटने की क्षमता है. यह काफी हद तक लोगों की स्वास्थ्य साक्षरता यानी हेल्थ लिटरेसी से जुड़ा हुआ है.
अब स्वास्थ्य साक्षरता (Health literacy) का क्या मतलब है? डॉ. ऑफ्रिन ने समझाया,
इसका मतलब यह है कि आप स्वास्थ्य (Health) और लक्षणों (Symptoms) को कैसे समझते हैं और आप स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने की कितनी इच्छा रखते हैं. यह व्यक्तियों को अपनी खुद की स्वास्थ्य देखभाल करने के लिए एक्टिव एजेंटों के तौर पर मान्यता देता है और यह अपने आप में स्वास्थ्य का अधिकार (Right to health) है. एक बार जब कोई व्यक्ति यह मान लेता है कि स्वास्थ्य उसका अधिकार है तो फिर उसके बाद सेल्फ-केयर की बारी आती है. यह स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बीमारी की रोकथाम के लिए एक खुद को प्रेरित यानी सेल्फ मोटिवेट करने का तरीका है, न कि केवल बीमारी का इलाज करना, कभी-कभी आसान होने पर सेल्फ-मेडिकेशन करना, लेकिन उसके साथ यह भी सीखना कि कब स्वास्थ्य सेवाओं की मदद लेनी है, यानी जब स्थिति थोड़ी गंभीर लगे. हालांकि यह हेल्थ केयर सिस्टम को रिप्लेस नहीं करता है या कहें उसकी जगह नहीं लेता है.
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डायरिया की रोकथाम और शीघ्र उपचार के लिए WHO की 7-सूत्रीय योजना
पांच साल से कम उम्र के बच्चों में डायरिया बीमारी, मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है. WHO की फैक्ट शीट में कहा गया है कि हर साल डायरिया से पांच साल से कम उम्र के लगभग 5.25 लाख बच्चों की मौत हो जाती है. लेकिन डायरिया को रोका जा सकता है और इसका इलाज भी किया जा सकता है. डॉ. ऑफ्रिन ने कहा, “डायरिया कई अलग-अलग तरह की बीमारियों की वजह से होता है और WHO की 7-सूत्रीय योजना एक बहुत ही बेसिक डिजीज सिम्प्टन यानी लक्षण को एड्रेस करने पर फोकस है.
इसके पांच प्रमुख हस्तक्षेपों (Key interventions) में शामिल हैं:
- रोटावायरस (Rotavirus) और खसरा (Measles) से बचाव के लिए वैक्सीनेशन, जो अस्पताल में भर्ती होने के 40 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं, खासकर पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए.
- शुरुआती स्तनपान और विटामिन A सप्लीमेंटेशन को बढ़ावा देना
- साबुन से हाथ धोने को बढ़ावा देना
- सुरक्षित पानी की बेहतर सप्लाई, स्टोरेज और ट्रीटमेंट
- कम्युनिटी-वाइड सैनिटाइजेशन यानी स्वच्छता को बढ़ावा देना
इसके ट्रीटमेंट पैकेज में शामिल हैं:
- डायरिया के मामले में ORS या ओरल रिहाइड्रेशन साल्ट थेरेपी. यह शरीर के अंदर हुई पानी की कमी को पूरा करने के लिए है क्योंकि डायरिया के दौरान मरीज के शरीर में पानी की काफी कमी हो जाती है.
- जिंक ट्रीटमेंट – यह एक प्रमुख सूक्ष्म पोषक तत्व (Key micronutrient) है जिसे सप्लीमेंट यानी पूरा करने की जरूरत है और यह साबित भी हुआ है कि इससे दस्त की गंभीरता और अवधि को कम करने में मदद मिली है.
साफ-सुरक्षित पेयजल सेवाओं तक पहुंच में वृद्धि से स्वास्थ्य पर होने वाले बेहतर असर के बारे में बात करते हुए, डॉ. ओफ्रिन ने जल जीवन मिशन की सराहना की, जिसका लक्ष्य 2024 तक ग्रामीण भारत के सभी घरों में व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है. उन्होंने कहा,
हमारे मॉडलिंग और आर्थिक अनुमानों में, जल जीवन मिशन के माध्यम से प्रदान किए गए पानी तक पहुंच के जरिए 400 हजार लोगों की जान पहले ही बचाई जा चुकी है. यह एक बहुत बड़ी कामयाबी है. इससे 100 मिलियन यानी 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर की बचत होती है. ऐसे कई गांव हैं जहां घर में मां या कोई महिला सुबह 3 बजे उठकर पानी भरने के लिए लाइन में लगती हैं. और अब यह सब खत्म हो रहा है. कल्पना कीजिए एक महिला लाइन में घंटों खड़े रहकर इंतजार करने के बजाय अब उस समय का इस्तेमाल अपने परिवार की देखभाल या आर्थिक रूप से मजबूत होने में कर सकती है. और पानी के लिए इतने घंटे लाइन में लगने के बाद यह भी पता नहीं होता कि वो पानी सुरक्षित है भी या नहीं.
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मिशन इंद्रधनुष: भारत के टीकाकरण का प्रयास
भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 1978 में ‘विस्तृत टीकाकरण कार्यक्रम’ (Expanded Programme of Immunisation – EPI) के रूप में भारत में टीकाकरण कार्यक्रम (वैक्सीनेशन प्रोग्राम) की शुरुआत की. 1985 में इस प्रोग्राम का नाम बदलकर ‘यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम’ (UIP) कर दिया गया था, क्योंकि इसकी पहुंच शहरी इलाकों तक ही सीमित नहीं थी. यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है जो सालाना करीब 2.67 करोड़ नवजात शिशुओं और 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं को टारगेट करता है. यह सबसे कोस्ट इफेक्टिव तरीकों में से एक है और 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कमी लाने के लिए काफी हद तक इसे ही श्रेय जाता है. यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत 12 ऐसी बीमारियों जिनकी रोकथाम वैक्सीन से की जा सकती है, उनके खिलाफ वैक्सीनेशन मुफ्त प्रदान किया जाता है. वैक्सीनेशन को लेकर आज भारत की स्थिति क्या हैं? डॉ ऑफ्रिन ने कहा,
भारत में WHO के कार्यालय में 2,600 कर्मचारी हैं, और उनमें से ज्यादातर कर्मचारी देश के टीकाकरण प्रयासों का समर्थन कर रहे हैं. COVID के दौरान, हमने बच्चों के लिए वैक्सीनेशन कवरेज के मामले में लगभग 15 प्रतिशत की गिरावट देखी है. WHO और यूनिसेफ के हालिया अनुमानों से पता चला है कि भारत वैक्सीनेशन कवरेज के मामले में महामारी के पहले जो स्तर था उससे भी आगे बढ़ गया है. खसरा (Measles), कण्ठमाला (Mumps) और रूबेला (Rubella) वैक्सीन की दूसरी खुराक में 93 प्रतिशत कवरेज है.
DPT वैक्सीन जो बच्चों और वयस्कों को डिप्थीरिया (D), पर्टुसिस (P, जिसे काली खांसी भी कहा जाता है) और टेटनस (T) से बचाता है, उसके कवरेज में सुधार देखा गया है. DPT वैक्सीन की तीसरी खुराक का कवरेज 90 प्रतिशत की रेंज में है. डॉ. ऑफ्रिन ने आगे कहा,
HPV वैक्सीन को पेश करने के लिए भी नई पॉलिसी है, लेकिन फिलहाल ज्यादा जरूरी खसरे को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए मिशन इंद्रधनुष का लाभ उठाना है, और नियमित सेवाओं की एक पूरी प्रणाली बनाना है जो हर जगह, कहीं भी, कभी भी सभी बच्चों की टीके की जरूरत को कवर कर सके क्योंकि टीके जीवन बचाते हैं. बीमारी, विकलांगता और मौतों को रोकने के लिए टीके यानी वैक्सीन इस समय आर्थिक रूप से सबसे बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय है.