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मां और शिशु दोनों के लिए ब्रेस्टफीडिंग क्यों जरूरी है?

भारत में 2019-21 के दौरान आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के मुताबिक, ब्रेस्टफीडिंग यानी स्तनपान करने वाले छह महीने से कम उम्र के बच्चों का प्रतिशत साल 2015-16 के दौरान 54.9 प्रतिशत था, जो साल 2019-21 में बढ़कर 63.7 प्रतिशत हो गया

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विश्व स्तनपान सप्ताह 2023 को "लेट्स मेक ब्रेस्टफीडिंग एट वर्क, वर्क" की थीम के साथ मनाया जा रहा है

नई दिल्ली: 1-7 अगस्त तक मनाए जाने वाले वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक का मकसद है स्तनपान से जुड़े फायदों के बारे में लोगों को जागरूक करना और मां एवं बच्चे दोनों की भलाई के लिए स्तनपान को बढ़ावा देना. भारत में 2019-21 के दौरान आयोजित नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के मुताबिक, केवल स्तनपान करने वाले छह महीने से कम उम्र के बच्चों का प्रतिशत जो 2015-16 के दौरान 54.9 प्रतिशत था, वह साल 2019-21 में बढ़कर 63.7 प्रतिशत हो गया है. 6-23 महीने की उम्र के स्तनपान करने वाले बच्चे जिन्हें पर्याप्त मात्रा में आहार मिलता है उनके प्रतिशत में भी इजाफा हुआ है, साल 2015-16 में ये 8.7 प्रतिशत था, जो साल 2019-21 में बढ़कर 11.1 प्रतिशत हो गया, लेकिन इतना काफी नहीं है.

इस बार वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के मौके पर हमने ब्रेस्टफीडिंग क्यों जरूरी है और इसे बढ़ावा क्यों दिया जाना चाहिए ये समझने के लिए पुणे के मदरहुड हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजिस्ट और पीडियाट्रिशन डॉ. तुषार पारिख से बात की. उन्होंने ब्रेस्टफीडिंग से शिशु और मां दोनों को होने वाले फायदों के बारे में विस्तार से समझाया.

स्तनपान से शिशुओं को होने वाले फायदे

मां का दूध पोषण प्रदान करता है: मां का दूध बच्चे के लिए संपूर्ण आहार होता है – यह बच्चे के भोजन और पानी की आवश्यकता को पूरा करता है. जो नवजात बच्चा केवल स्तनपान करता है उसे पहले छह महीनों तक पानी देने की भी जरूरत नहीं होती है और 6 महीने के बाद बच्चे को दूध के साथ-साथ उसकी उम्र के हिसाब से ठोस आहार देने की शुरुआत की जाती है.

तेज दिमाग: जिन शिशुओं को स्तनपान कराया जाता है उनकी इंटेलिजेंस (दिमाग) उन शिशुओं की तुलना में बेहतर होती है जिन्हें फीड करने के लिए दूसरे तरीके अपनाए जाते हैं क्योंकि मां के दूध में मस्तिष्क के विकास को बढ़ावा देने वाले फैक्टर यानी कारक मौजूद होते हैं. शिशु के मस्तिष्क का 90 प्रतिशत विकास पहले 1,000 दिनों (गर्भाधान के समय से उसके दूसरे जन्मदिन तक) में हो जाता है. इस समय के दौरान मां का दूध शिशु के मस्तिष्क विकास में काफी मदद करता है.

इम्युनिटी बढ़ाता है: मां का दूध बच्चे की इम्युनिटी यानी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है इसलिए स्तनपान करने वाला बच्चा बार-बार बीमार नहीं पड़ता. और इसलिए उनमें कान में इन्फेक्शन, रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इन्फेक्शन जैसे मामले कम होते हैं.

एलर्जी को करता है कम: स्तनपान करने वाले शिशुओं को एलर्जी कम होती है क्योंकि वे अपने शुरुआती दौर में गाय के दूध जैसे फॉरन प्रोटीन (foreign proteins) के संपर्क में नहीं आते हैं. पहले कुछ महीनों में फॉरन प्रोटीन के संपर्क में आने से एलर्जी विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए जो बच्चे स्तनपान करते हैं उन्हें एक्जिमा, अस्थमा और एलर्जी डिसऑर्डर कम होते हैं.

लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों से सुरक्षा: स्तनपान करने वाले शिशुओं में बचपन में मोटापे और इससे संबंधित बीमारियों जैसे इंसुलिन रजिस्टेंस, डायबिटीज और हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया का खतरा कम हो जाता है. स्तनपान करने वाला बच्चा फॉर्मूला दूध पीने वाले बच्चे की तुलना में थोड़ा दुबला होता है और यह कोई बुरी बात नहीं बल्कि अच्छी बात है.

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मां के लिए स्तनपान कराने के फायदे

  • स्तनपान मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग को बढ़ाने में मदद करता है.
  • गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का वजन बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. लेकिन डिलीवरी के बाद ब्रेस्टफीडिंग उनके बढ़े हुए फैट और वजन से छुटकारा दिलाने में मदद करती है.
  • बच्चे के जन्म के तुरंत बाद स्तनपान शुरू करने से मां के शरीर में खून की कमी और यूट्रस इन्वॉल्यूशन को कम करने में मदद मिलती है. दरअसल डिलीवरी के बाद भी यूट्रस का साइज बढ़ा हुआ रहता है लेकिन ब्रेस्टफीडिंग से इसे कम करने में मदद मिलती है और इसे कम करने के प्रोसेस को इन्वॉल्यूशन कहते हैं.
  • स्तनपान कराने से मां में ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर जैसी घातक बीमारियों की संभावना कम हो जाती है.

स्तनपान से जुड़ी कुछ जरूरी बातें

प्री-लैक्टियल (Pre-lacteal) फीड से बचें: ब्रेस्टफीडिंग की शुरुआत करने से पहले कुछ समुदायों में लोग बच्चे को शहद या कोई अन्य पदार्थ खिलाते हैं. लेकिन इसके बजाय बच्चे को कोलोस्ट्रम दिया जाना चाहिए. कोलोस्ट्रम वह दूध होता है, जो मां डिलीवरी के बाद पहले तीन दिनों में प्रदान करती है; यह थोड़ा गाढ़ा और पीले रंग का होता है और इसमें कई सारी इम्यून-प्रोटेक्टिव प्रॉपर्टीज होती हैं. इस दूध को पीने से बच्चे की इम्युनिटी बढ़ती है, जिससे ये दूध बच्चे को कई तरह के संक्रमणों से बचाता है. शिशु के जन्म के 30 मिनट के भीतर उसे कोलोस्ट्रम पिलाना चाहिए.

पहले छह महीनों में शिशु को पानी पिलाने से बचें: कुछ माता-पिता और परिवारों का मानना है कि शिशु को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए खास तौर से गर्मी के महीनों के दौरान स्तनपान के साथ – साथ पानी भी देना चाहिए. लेकिन मां का दूध पहले छह महीनों तक शिशु की भोजन और पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. मां के दूध में पानी की पर्याप्त मात्रा होती है और मां के दूध में वह सारा पोषण होता है, जो 6 महीने की उम्र तक शिशु के विकास के लिए आवश्यक है.

एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग और कॉम्पलीमेंट्री फीडिंग: जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि पहले छह महीनों तक शिशु को केवल मां का दूध देना जरूरी है, लेकिन जब शिशु छह महीने का हो जाए तो उसे मां के दूध के साथ-साथ ठोस आहार देना भी शुरू करना चाहिए. अन्नप्राशन (पहली बार चावल खाने की रस्म) और ठोस आहार की शुरुआत से जुड़े समारोह शिशु के छह महीने का होने के बाद शुरू किए जा सकते हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्तनपान दो साल तक जारी रखना चाहिए.

समय से पहले जन्मे बच्चों को दूध पिलाना: preterm बेबी यानी जो बच्चे समय से पहले जन्म ले लेते हैं उन्हें भी शुरुआत के महीनों में केवल मां का दूध ही दिया जाना चाहिए क्योंकि उनके लिए भी मां का दूध पर्याप्त होता है. यदि बच्चा किसी वजह से नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में है, तो मां का दूध निकालकर बच्चे को पिलाया जाना चाहिए.

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क्या वजह हैं जो महिलाओं को स्तनपान कराने से रोकती है?

स्तनपान या ब्रेस्टफीडिंग शुरू करने और उसे जारी रखने के बारे में समाज में बहुत सी गलतफहमियां फैली हुई हैं और ये एक खास वजह है जो महिलाओं को स्तनपान कराने से रोकती है.

अक्सर माता-पिता को लगता है कि उनके बच्चे का वजन कम है और वो बच्चे का वजन बढ़ाने के लिए मिल्क सप्लीमेंट या फॉर्मूला फीड का ऑप्शन चुनते हैं. उदाहरण के लिए एक साल के बच्चे का औसत वजन लगभग नौ किलोग्राम होता है. लेकिन अगर किसी बच्चे का वजन 11 किलोग्राम है और माता-पिता को तब भी लगता है कि उनके बच्चे का वजन कम है, तो वे मिल्क सप्लीमेंट और दूसरे खाद्य पदार्थों का सहारा लेने लगते हैं. लेकिन उन्हें समझना चाहिए इससे बच्चे को आगे चलकर मोटापा, इंसुलिन रजिस्टेंस और हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

मां और हेल्थ केयर प्रोफेशनल दोनों को ब्रेस्टफीडिंग कराने के सही तरीके की जानकारी होनी बहुत जरूरी है. शिशु को कैसे पकड़ना है और उसके मुंह में कैसे निप्पल डालना है जैसी बातें पता होनी आवश्यक हैं.

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