नई दिल्ली : मनुष्य का स्वास्थ्य उस ग्रह के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है जिस पर वह रहते हैं – यह एक स्थापित तथ्य है. ‘वन हेल्थ’ का कॉन्सेप्ट पृथ्वी ग्रह पर सभी लोगों, जानवरों, पौधों और उनके साझा पर्यावरण के बीच इस इंटरकनेक्टेडनेस यानी अंतर्संबंध को रिकॉग्नाइज करता है. हर साल 5 जून को मनाए जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस 2023 से पहले, एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने इंडिया सैनिटेशन कोएलिशन और रॉथ्सचाइल्ड एंड कंपनी इंडिया की चेयर नैना लाल किदवई से बात की. उनसे हेल्थ फॉर ऑल थीम और कैसे यदि हमारे आसपास का वातावरण स्वस्थ नहीं है तो इस लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव है, इसे लेकर बात की गई. हमने हेल्थ, हाइजीन, सैनिटेशन और सतत विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान के तहत हुई प्रगति पर भी चर्चा की. आगे की राह पर भी चर्चा की गई.
किदवई ने “सर्वाइव ऑर सिंक: एन एक्शन एजेंडा फॉर सैनिटेशन, वाटर, पॉल्यूशन एंड ग्रीन फाइनेंस” लिखी है, जो कोविड-19 महामारी से पहले की है. अब जब महामारी को हम पीछे छोड़ चुके हैं, तो भारत इस एजेंडे पर कितना आगे बढ़ चुका है और महामारी का हमारे लक्ष्यों पर क्या प्रभाव पड़ा है? किदवई ने खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) भारत बनाने के लिए 2014 में भारत सरकार के शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान की सराहना की. उन्होंने कहा,
शौचालयों तक पहुंच 40 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 99 प्रतिशत हो गई है. बेशक, चुनौती यह सुनिश्चित करने की बनी हुई है कि लोग शौचालयों का उपयोग करें.
किदवई ने कहा कि पूर्व-कोविड समय में, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में साबुन से हाथ धोने के लिए अभियान और सत्र होते थे. अच्छे स्वास्थ्य के बारे में कॉन्सटेंट रिमाइंडर (बार-बार याद दिलाना) के रूप में, संदेशों को गांवों में दीवारों के चारों ओर चिपका दिया गया था. उन्होंने कहा,
अच्छा स्वास्थ्य यानी ओडीएफ-फ्री एनवायरनमेंट. बच्चों को डायरिया न हो यह सुनिश्चित करने के लिए एक स्वच्छ वातावरण की जरूरत होती है. आप सोचे कि जब एक विमान क्रैश होता है और लोग लापता होते हैं तो हम कितने घबरा और चिंतित हो जाते हैं; वास्तव में, हमारे पास हर दिन बच्चों से भरे ऐसे तीन विमान है जिनकी डायरिया के कारण मौत हो जाती है. हमने निश्चित रूप से पोषण पर प्रभाव डाला है.
वॉश (वाटर, सैनिटेशन एंड हाइजीन) विशेषज्ञ का मानना है कि स्वच्छ भारत अभियान की वजह से महामारी के दौरान स्वच्छता की आदतों को विकसित करना बहुत आसान हो गया.
किदवई ने आगे स्वच्छ पर्यावरण और स्वास्थ्य के बीच क्या लिंक है, उस बारे में भी बात की. उन्होंने कहा, स्वच्छ भारत मिशन के तहत मिले फायदों को बनाए रखने के लिए लोगों को शौचालयों की मरम्मत के लिए पैसा खर्च करने की जरूरत है. उन्होंने कहा,
ग्रामीण परिवेश में हमारे 30 प्रतिशत शौचालय अभी भी सिंगल पिट हैं. उन्हें ट्विन पिट में बदलने की जरूरत है, जो कि गोल्ड स्टैंडर्ड है. इंडिया सैनिटेशन कोएलिशन में हम जिस महत्वपूर्ण क्षेत्र पर काम कर रहे हैं, वह यह है कि आप शौचालय में जाने वाली वेस्ट को कैसे ट्रीट करते हैं. इसलिए फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट (FSTPs) स्थापित किए जा रहे हैं.
2014 में, भारत सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण, संरक्षण और कायाकल्प के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम शुरू किया था. कार्यक्रम के तहत, गंगा नदी के किनारे एफएसटीपी स्थापित किए गए हैं. किदवई ने कहा,
नमामि गंगे कार्यक्रम के डायरेक्टर को इस बारे में बात करते हुए सुनना अद्भुत था कि कैसे रिवर डॉल्फिन वापस आ गई थी और वे उन्हें गिन रहे थे. और, नेचुरल हैबिटेट की वापसी से बेहतर क्या होगा क्योंकि हम चीजों को फिर से साफ करने में सक्षम हैं. हमें सरकार, कॉर्पोरेट और नागरिकों से हर स्तर पर धन की आवश्यकता होती है, जब ये तीनों एक साथ मिलकर काम करते हैं तो ये काफी अच्छा होता है.
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भारत अब दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है. एक बड़ी आबादी के साथ पौष्टिक भोजन और स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है. इससे अच्छे स्वास्थ्य और स्वच्छता को बनाए रखने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. किदवई ने कहा,
हम जिस जनसांख्यिकीय लाभांश की बात करते हैं (युवा लोगों के पक्ष में युवा लोगों से वृद्धों का अनुपात) वह सब बहुत अच्छा है. लेकिन अगर हमारे पास बहुत सारे बीमार लोग हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके पास कितने लोग हैं, क्योंकि दिन के अंत में, वे प्रोडक्टिव नहीं होते हैं. इसलिए स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है. और अच्छे स्वास्थ्य के लिए, मुझे लगता है कि उस संदेश में सबसे ऊपर पानी तक पहुंच है. हमें नहाने, साफ करने, शौचालय का उपयोग करने और पीने के लिए पानी की जरूरत होती है.
एक बड़ी आबादी का मतलब यह भी है कि ठोस और तरल दोनों प्रकार के कचरे की मात्रा एक बढ़ती हुई चिंता होगी. क्या भारत अपशिष्ट संकट और इसके स्वास्थ्य और पर्यावरणीय परिणामों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास कर रहा है? किदवई ने कहा,
यह वाकई शर्म की बात है कि हमारा पर्यावरण कितना गंदा है. एक स्तर पर मल को टैकल करने का प्रयास उचित सफलता के साथ चल रहा है. दूसरा प्लास्टिक है. हर जगह कचरा है. अब इस कचरे का मूल्य है.
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किदवई ने कहा कि जो हमारे लिए व्यर्थ है वही दूसरों के लिए मूल्यवान है. उदाहरण के लिए, सड़क बनाने के लिए प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन चुनौती सेग्रीगेशन और एक चेन की कमी है, जो कचरे को हर स्तर पर अलग करें. उन्होंने कहा,
घरेलू स्तर पर सेग्रीगेशन यानी अलग-अलग करना कम महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारे पास कोई नगरपालिका या ऐसी व्यवस्था नहीं है जो यह जानती हो कि उस सेग्रीगेशन से कैसे निपटा जाए. आपके और मेरे इसे सेग्रिगेट करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि आगे जाकर तो यह सब मिक्स हो ही जाएगा. जिस तरह से आप और मैं अपने कचरे को अलग करते हैं, ठीक उसी तरह से रोड-बिल्डिंग एक्टिविटी तक पहुंचने तक इसे सेग्रिगेट करना होगा. हमारे पास कॉरपोरेट्स हैं जो इस (अपशिष्ट) का उपयोग करने के लिए पेमेंट करेंगे. उदाहरण के लिए हमारे पास पीईटी बोतलों की रीसाइक्लिंग की क्षमता है. लेकिन इसके लिए चेन स्थापित नहीं की गई हैं. इसके कारण हमें हर जगह कचरा मिलता है.
क्या जनसंख्या में वृद्धि से पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ेगा? कौन से नीतिगत हस्तक्षेप आवश्यक हैं? किदवई ने एक बार फिर अपने कार्यक्षेत्र जल पर जोर दिया. उन्होंने जल निकायों के संरक्षण की बात की। उन्होंने कहा,
ग्रे वाटर को ट्रीट करना आसान है. बहुत लाइट होमग्रोन ट्रीटमेंट सिस्टम्स के साथ ऐसा किया जा सकता है. हम कॉरपोरेट्स को दिखाते हैं कि वे बागवानी, स्थानीय खेती और अन्य उद्देश्यों के लिए पानी का दोबारा उपयोग कैसे कर सकते हैं. इसलिए, अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग एक बड़ा संदेश है. जल निकायों का संरक्षण एक और बड़ा क्षेत्र है. और तीसरा यह सुनिश्चित करना है कि काला पानी और सीवेज, अच्छे पानी को खराब न करें. और फिर बेशक, वर्षा जल संचयन, बांधों की जांच करना और यह सुनिश्चित करना कि आप पानी को रोक सकते हैं.
आगे महिलाओं के बारे में बात करते हुए किदवई ने कहा, महिलाएं ही पानी लेने के लिए लाइन में लगती हैं; दुख की बात है कि लड़कियों को पानी लेने के लिए अपना स्कूल छोड़ना पड़ता है. उन्होंने कहा,
तथ्य यह है कि हर एक घर में नल से पानी पहुंचाने के लिए हमारे पास अभी एक प्रोग्राम है. हमें ऐसे सिस्टम और इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है, जो महिलाओं को पानी भरने की ड्यूटी से मुक्त कर सके.
सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एजेंडा निर्धारित करते हुए, किदवई ने पांच प्रमुख बातें साझा कीं:
1. पानी: हर स्तर पर पानी एक कॉरपोरेट के लिए स्टीवार्डशिप (रिसोर्सेज का मैनेजमेंट) है. जब एक कॉर्पोरेट अपने पानी को संभालने के तरीके के मामले में नेट जीरो होने की ओर देखता है तो इससे अधिक प्रवाह में कमी आती है. पानी भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी आगे बढ़ने का जरिया है.
2. स्वच्छता: इसके तहत शौचालय और वेस्ट ट्रीटमेंट सहित संपूर्ण स्वच्छ भारत अभियान आता है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि समुदाय इसका ठीक से पालन कर रहे हैं.
3. उस इन्फास्ट्रक्चर की डिलीवरी, जो इसे पॉसिबल बनाता है. मैं कचरे से कैसे निपटूं? मुझे अपनी भूमिका पता होनी चाहिए. लेकिन किसी को वह इंफ्रास्ट्रक्चर भी उपलब्ध कराना होगा जो उस डिस्ट्रीब्यूशन को सक्षम बनाता है, चाहे वह सीवेज ट्रीटमेंट हो या शौचालय की मरम्मत और प्लास्टिक कचरे का संग्रह.
4. स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) को बढ़ाना: हमारे पास शहरी परिवेश में बहुत अधिक सफल एसएचजी नहीं हैं. आइए हम उन ग्रामीण सफलताओं को रेप्लिकेट करें. शहरी परिवेश में यह कठिन है क्योंकि वे अधिक प्रवासी हैं, आपको वह मजबूत समुदाय नहीं मिलता है. लेकिन इसे कम करने के कई तरीके हैं.
5. प्रकृति, हमारी जैव विविधता और हमारे जंगलों का हम कैसे रखरखाव करते हैं, यह सिर्फ अवसर और तात्कालिकता है. लोगों का जीवन जंगल से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है. तो, हम सुनिश्चित करें कि हर जंगल में एक वाटर बॉडी यानी जल निकाय हो.
किदवई ने कहा, ‘‘जब हम एक समुदाय, सरकार, कॉर्पोरेट, एनजीओ के रूप में सहयोग करते हैं तो सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है और इनमें से भी वो टिकाऊ रहते हैं ये सभी एक साथ मिलकर काम करते हैं. यह सब करने का दूसरा तरीका ट्रांजीशन भी है .’’
समापन करते हुए किदवई ने कहा,
‘‘यह सुनिश्चित करने के बारे में है कि हम इस यात्रा में लोगों को पीछे न छोड़ें. और हम सोचते हैं कि इससे सभी को लाभ होगा.’’
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