जलवायु परिवर्तन

वर्ल्ड फूड डे 2023: कृषि और खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की प्रतिनिधि और कंट्री डायरेक्टर एलिजाबेथ फॉरे (Elisabeth Faure) ने वर्ल्ड फूड डे के मौके पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों पर चर्चा करते हुए कहा, “जलवायु परिवर्तन मिट्टी, फसलों और जीवनशैली को प्रभावित करता है, ये सभी आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.”

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डब्ल्यूएफपी (World Food Programme) की डायरेक्टर ने कहा कि भारत में 60 प्रतिशत कृषि बारिश पर निर्भर करती है, इसलिए बारिश के पैटर्न में बदलाव का सीधा असर कृषि क्षेत्र (Agriculture sector) पर पड़ रहा है

नई दिल्ली: ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस (Global Report on Food Crises) के मुताबिक, दुनिया भर में लगभग 258 मिलियन यानी करीब 25.8 करोड़ लोगों को 2022 में गंभीर रूप से खाद्य संकट का सामना करना पड़ा और इसके लिए कोरोना वायरस महामारी और युद्ध संघर्षों के अलावा जलवायु परिवर्तन प्रमुख तौर पर जिम्मेदार था. इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन से मौसम के चरम पर पहुंचने की आशंका है, जिससे खाद्य असुरक्षा (Food insecurity) और भी बदतर होने की संभावनाएं पैदा हो गई हैं. वर्ल्ड फूड डे 2023 (विश्व खाद्य दिवस 2023) के अवसर पर वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की प्रतिनिधि और कंट्री डायरेक्टर एलिजाबेथ फॉरे (Elisabeth Faure) ने कृषि, खाद्य सुरक्षा और स्वच्छ पानी तक पहुंच पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों के बारे में बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम के साथ बात की.

खाद्य सुरक्षा और कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

एलिजाबेथ फॉरे ने कहा कि जलवायु परिवर्तन खाद्य असुरक्षा (Food insecurity) और कृषि को दो तरह से प्रभावित करता है:

  • अप्रत्याशित मौसम जैसे चक्रवात, सूखा या भूकंप बड़े पैमाने पर भोजन की कमी और भोजन के खराब यानी डैमेज होने का कारण बनते हैं. बारिश के पैटर्न में बदलाव और ज्यादा तापमान से फसल की उत्पादकता प्रभावित होती है और इस वजह से भोजन की उपलब्धता कम हो जाती है. एलिजाबेथ फॉरे ने कहा, दुनिया भर में जलवायु संकट यानी क्लाइमेट क्राइसिस की वजह से मौसम संबंधी तेज बदलाव देखा जा रहा है. सूखे से लेकर तूफान और बाढ़ तक, इस तरह के क्लाइमेट एक्सट्रीम ज्यादा लोगों को भूख और गरीबी की ओर ले जाते हैं.
  • जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज का कृषि और खाद्य प्रणालियों (Food systems) पर गहरा असर पड़ता है जो जमीन के क्षरण (Degradation), मरुस्थलीकरण (Desertification) और मिट्टी और भूजल में लवणता (Salinity) के तौर पर नजर आता है, जिसका खाद्य उत्पादन यानी फूड प्रोडक्शन पर लंबे समय तक खराब प्रभाव पड़ता है. UN के मुताबिक इस ग्रह के कुल भूमि क्षेत्र का 40 प्रतिशत तक क्षरण (Degradation) हो चुका है, जिससे किसानों को अपने खेत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है या उनके पास सूखी जमीन रह जाती है जिस पर मुश्किल से ही भोजन पैदा किया जा सकता है. लगभग दो अरब लोग मरुस्थलीकरण की चपेट में आने वाली जमीन पर रहते हैं, जो 2030 तक करीब 50 मिलियन (5 करोड़) लोगों को विस्थापित (Displace) करने का कारण बन सकती है. उन्होंने आगे कहा,

जलवायु परिवर्तन मिट्टी, फसलों और जीवनशैली को प्रभावित करता है, जो सभी एक दूसरे से आपस में जुड़े हुए हैं.

पर्याप्त पानी न होने की वजह से खराब फसल उत्पादन स्थिति को और गंभीर कर सकता है और पहले से ही परेशानी का सामना कर रहे समुदायों में सामाजिक तनाव पैदा कर सकता है.

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पानी और स्वच्छता पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

WFP की कंट्री डायरेक्टर ने साफ पानी और स्वच्छता तक पहुंच पर जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभावों पर भी चर्चा की. जिसकी वजह से कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के मामले और बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा,

खाद्य उत्पादन के लिए पानी आवश्यक है, लेकिन कई दशकों से खराब जल प्रबंधन, पानी का दुरुपयोग और प्रदूषण ने मीठे पानी की सप्लाई और इकोसिस्टम को खराब कर दिया है. कुपोषण के लिए जो कारण जिम्मेदार है उनमें से एक कारण खराब पीने का पानी है.

स्वच्छता की कमी के साथ, खराब पेयजल स्रोत लोगों के भोजन तैयार करने और उनके खाने के तरीके को प्रभावित कर वॉटर बोर्न डिजीज यानी पानी की वजह से होने वाली बीमारियों के मामले बढ़ा सकते हैं, जो कुपोषण की एक बड़ी वजह है.

कृषि के लिए पानी की कम उपलब्धता का लैंगिक समानता, शिक्षा और शांति पर प्रभाव पड़ता है, जिसके चलते वैश्विक खाद्य संकट यानी ग्लोबल फूड क्राइसिस से निपटने के सभी प्रयास परेशानी का सामना कर रहे हैं. पानी की पहुंच कम होने से पानी को स्टोर करके रखने का बोझ बढ़ जाता है, जिसका असर उन महिलाओं और लड़कियों पर पड़ता है जो हर दिन 20 करोड़ घंटे पानी इकट्ठा करने में बिताती हैं, जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित होती है और उनके लिए काम के जरिए पैसे कमाने के अवसर भी सीमित हो जाते हैं. अपर्याप्त पानी और स्वच्छता सुविधाओं की कमी का भी स्कूली छात्रों, खास तौर से लड़कियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, जो इस वजह से कक्षा में ज्यादा समय नहीं बिता पाती या फिर पढ़ाई छोड़ देती हैं.

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राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा

भारत के संबंध में देखा जाए तो 60 प्रतिशत कृषि बारिश के पानी पर निर्भर करती है. फॉरे ने कहा कि बारिश के पैटर्न में बदलाव का सीधा असर कृषि क्षेत्र पर पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि खराब मॉनसून, मॉनसून में देरी और मॉनसून की बारिश के पैटर्न में बदलाव सूखे का कारण बन सकता है.

उन राज्यों की ओर इशारा करते हुए जो जलवायु संबंधी घटनाओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं, फॉरे ने कहा,

हम तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों को लेकर काफी चिंतित हैं जहां आदिवासी समुदाय रहते हैं, जो केवल प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर हैं. इन समुदायों को कम पैदावार और कम खाद्य उत्पादन का सामना करना पड़ रहा है.

फॉरे ने आगे कृषि पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले अनुमानित प्रभाव के बारे में कहा,

जलवायु परिवर्तन से 2050 तक बारिश पर आधारित चावल की पैदावार में 20 प्रतिशत, सिंचित (Irrigated) चावल की पैदावार में 3.5 प्रतिशत, गेहूं की पैदावार में 19 प्रतिशत और खरीफ मक्का की पैदावार में 18 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है. ये बहुत ठोस अनुमान हैं. भारत में लगभग 80 प्रतिशत छोटे किसान हैं और उन्हें फसल उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन से होने के प्रभावों को अपनाने और उनसे निपटने के लिए मदद की जरूरत है.

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जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए आवश्यक उपाय

WFP की कंट्री डायरेक्टर फॉरे ने कुछ उपायों के बारे में बताया जिन्हें देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए अपना सकते हैं.

  • जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मजबूत मानवीय प्रणाली की जरूरत है. इसमें जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों की पहचान करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की कार्यशालाएं आयोजित करना, जलवायु परिवर्तन के कार्यक्रमों को सपोर्ट करने के लिए क्षमता निर्माण करना और भी कई तरीके शामिल है.
  • जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रत्याशित कार्रवाइयों (Anticipatory actions) की आवश्यकता है, न कि आपातकालीन स्थिति आने पर केवल उससे निपटने की. प्रत्याशित कार्रवाई का मतलब पहले से अनुमानित खतरे के पैदा होने से पहले उसके प्रभावों को कम करने की दिशा में कदम उठाना है. इसमें जलवायु जोखिम बीमा (Climate risk insurance) और मानवीय निधि (Humanitarian funds) बढ़ाना शामिल है.
  • बेहतर सेफ्टी नेट प्रोग्राम की जरूरत है. भारत इस संबंध में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसी पहलों के माध्यम से आगे बढ़ रहा है, जो अंत्योदय अन्न योजना (Antyodaya Anna Yojana) के तहत 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 50 प्रतिशत शहरी आबादी को कवर करता है.
  • कम पानी में ज्यादा पौष्टिक भोजन का उत्पादन करने के लिए नई टेक्नोलॉजी की जरूरत है. फसल की पैदावार में सुधार, कुशल सिंचाई रणनीतियों को लागू करने, ड्रेनेज के पानी का दोबारा इस्तेमाल और मार्जिनल क्वालिटी के जल संसाधनों का इस्तेमाल, फसल सुरक्षा में सुधार, फसल के बाद के नुकसान को कम करने और ज्यादा टिकाऊ पशुधन और समुद्री उत्पादन की जरूरत है.

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