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पोषण माह

माताओं के स्वास्थ्य की देखभाल में मोबाइल टेक्नोलॉजी कैसे भारत के स्वास्थ्य लक्ष्यों में क्रांति ला रही है, इस पर एक नजर

किलकारी कॉल्स, एमएमआईटीआर, मोबाइल अकादमी जैसे मोबाइल हेल्थ केयर प्रोग्राम कर रहे हैं स्वस्थ भारत के निर्माण में मदद

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माताओं के स्वास्थ्य की देखभाल में मोबाइल टेक्नोलॉजी कैसे भारत के स्वास्थ्य लक्ष्यों में क्रांति ला रही है, इस पर एक नजर
किलकारी और एममित्र मुफ्त मोबाइल वॉयस कॉल सेवा हैं, जिनके जरिये गर्भवती माताओं को हेल्‍थ केयर यानी स्वास्थ्य देखभाल की जानकारी साप्ताहिक या दो सप्ताह भेजी जाती है

नई दिल्ली: “गर्भावस्था और शैशवावस्था के दौरान सेहत की निगरानी करने वाले किलकारी कॉल्स कार्यक्रम ने पत्नी और बच्चे की देखभाल करने में मेरा मार्गदर्शन किया. इससे हमने टीकाकरण, स्तनपान और अच्छे पोषण के महत्व के बारे में सीखा.” यह उद्गार हैं बिहार के 25 वर्षीय डेजी कुमारी के पति मुकेश कुमार के. मुकेश अपनी गर्भवती पत्नी के साथ किलकारी कॉल्स का साप्ताहिक प्रसारण सुनते थे. इसी तरह महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में रहने वाली 42 वर्षीय सुषमा प्राणेश आर्यमाने स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में मोबाइल तकनीक के महत्व को बताते हुए कहती हैं “3 बार गर्भपात के बाद मैं 41 साल की उम्र में फिर से गर्भवती हुई और एम-मित्र(mMitra) कार्यक्रम की बदौलत मैंने आखिरकार सुरक्षित रूप से एक बच्चे को जन्म दिया.”

मोबाइल से मिल रही हेल्‍थ केयर कार्यक्रमों में उपयोगी जानकारी

किलकारी और एममित्र मुफ्त मोबाइल वॉयस कॉल सेवा हैं, जिनके जरिये गर्भवती माताओं को हेल्‍थ केयर यानी स्वास्थ्य देखभाल की जानकारी साप्ताहिक या दो सप्ताह भेजी जाती है. किलकारी कॉल जच्‍चा-बच्‍चा की सेहत को उस अवधि में कवर करती है, जिस दौरान मातृ एवं शिशु मृत्यु दर हमारे देश में सबसे अधिक देखने को मिलती है. यह महत्‍वपूर्ण समय है, गर्भावस्था की दूसरे तिमाही से लेकर बच्चे के एक वर्ष (72 सप्ताह) का होने तक एममित्र कॉल गर्भावस्था से लेकर बच्चे के एक वर्ष का होने तक मां और बच्चे दोनों की ही सेहत की देखभाल से जुड़ी महत्‍वपूर्ण जानकारियां प्रदान करती है. भारत में ये कार्यक्रम दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल-आधारित मातृ संदेश कार्यक्रम का हिस्सा हैं. इन्‍हें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ ARMMAN’s (एडवांसिंग रिडक्शन इन मोर्टेलिटी एंड मोरबिडिटी ऑफ मदर्स, चिल्ड्रन एंड नियोनेट्स), भारत की साझेदारी में चलाया जा रहा है. इन मोबाइल प्रोग्रामों के संचालन में गैर-लाभकारी संगठनों (NGOs) की भूमिका काफी अहम है.

मोबाइल अकादमी ऐसी एक और पहल है जो मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) के जीवन-रक्षक निवारक स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी जानकारियों को अपडेट रखने और जच्‍चा-बच्‍चा की स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम प्रदान करती है. इसका उद्देश्य नई और गर्भवती माताओं एवं उनके परिवारों के साथ आशा कार्यकर्ताओं के सहयोग व समन्वय को बेहतर बनाना है. मोबाइल अकादमी को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के साथ साझेदारी में लागू किया गया है.

भारत में मोबाइल हेल्थ केयर- धीरे-धीरे बन रहा है गेम चेंजर

ऊपर बताए गए डेजी और सुषमा के उदाहरण ऐसे कार्यक्रमों की सफलता की हजारों कहानियों में से महज दो मिसालें हैं. वास्‍तव में देश भर में ऐसे कई लोग हैं, जो सेहत की देखभाल में मोबाइल तकनीक का लाभ उठा रहे हैं. ऐसे में आज मोबाइल हेल्थ केयर सेवा धीरे-धीरे देश के स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में एक गेम चेंजर बनती जा रही है. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के अनुसार 2021 से, देश में 1.17 मिलियन से अधिक मोबाइल धारक हैं और भारत में शौचालय युक्त घरों से ज्यादा मोबाइल फोन वाले घर मौजूद हैं.

भारत में मोबाइल हेल्थकेयर यह सुनिश्चित करता है कि स्वास्थ्य सेवा अंतिम मील तक पहुंचे

एक स्विस-आधारित फाउंडेशन और मानवीय पोषण थिंक टैंक साइट एंड लाइफ की हाल ही में “द प्रॉमिस एण्ड प्रोग्रेस ऑफ मेंटल न्यूट्रीशन इन इंडिया” शीर्षक से प्रकाशित एक रिपोर्ट में स्वास्थ्य सेवाओं को अंतिम छोर तक पहुंचाने में मोबाइल हेल्थ केयर की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया है. सभी प्रकार के कुपोषण को खत्म करने की दिशा में काम कर रही संस्था की यह रिपोर्ट सितंबर में भारत के पोषण माह समारोह के दौरान प्रकाशित की गई है.

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भारत में मोबाइल हेल्थकेयर के लाभों के बारे में बात करते हुए मुंबई की आर्ममान संस्‍था की डॉ. अपर्णा हेगड़े कहती हैं,

भारत में मोबाइल हेल्थकेयर कार्यक्रम सीधे महिलाओं के घर तक पहुंचने और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने का एक प्रभावी माध्‍यम बनकर उभर रहे हैं.

मोबाइल हेल्थ केयर के तेजी से बढ़ते दायरे को समझाते हुए उन्होंने आगे कहा,

भारत जैसे अधिक आबादी वाले, भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से विविधता वाले देश में, जहां लगभग 60% महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं, यह जरूरी है कि गर्भवती महिलाओं और पहली बार मां बन रही महिलाओं को पोषण के बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिए. मोबाइल हेल्‍थकेयर कार्यक्रम हर महिला तक सीधे उसके घर तक पहुंच कर महिलाओं को यह जानकारियां प्रदान करने और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने का एक कारगर जरिया बनकर उभरा है. एमएमआईटीआरए जैसी पहल देश में सेल्फ केयर और व्यवहार परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. हमारे कंप्यूटर-सहायता प्राप्त टेलीफोनिक सर्वेक्षण के दौरान ऐसी महिलाओं को शामिल किया गया जो गर्भावस्था के अंतिम चरण में थीं. इसके बाद देखा गया कि इस सर्वे में शामिल 26% महिलाओं ने भोजन में सब्जियां और फल लेना बढ़ा दिया, जबकि 25% ने एममित्र सुनने के बाद दिन में कई बार थोड़ा-थोड़ा भोजन लेना शुरू कर दिया.

भारत में मातृ पोषण का वादा और प्रगति‘ शीर्षक वाली रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश में टेली-संचार कार्यक्रम के सकारात्मक प्रभावों का भी उल्लेख किया गया है, जहां उत्तर प्रदेश के छह जिलों में फोन-आधारित परामर्श और सूचना सेवा ‘हैलो दीदी’ को शुरू किया गया था. इन जिलों में गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) बच्चों के घर पर पुनर्वास और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं की मांग और उपयोग में वृद्धि दर्ज की गई. सितंबर से दिसंबर 2021 तक लागू की गई इस परियोजना में 843 गर्भवती महिलाओं को शामिल किया गया था, जो गर्भावस्था की पहली या दूसरी तिमाही में थीं. इसमें गर्भवती महिलाओं के साथ कुल 3,075 टेली-परामर्श सत्र किए गए और चार महीने (चार परामर्श कॉल) की अवधि में यह परियोजना एएनसी (प्रसवपूर्व देखभाल) और मातृ पोषण ज्ञान और प्रथाओं में सुधार करने में कारगर दिखी.

मोबाइल हेल्थ केयर कार्यक्रमों की भविष्य में भूमिका

देश में मजबूत और व्‍यापक मोबाइल नेटवर्क का हवाला देते हुए रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में इस समय 1.17 बिलियन मोबाइल धारक हैं, जिनमें से 354 मिलियन लोगों के पास स्मार्टफोन हैं. करीब 294 मिलियन लोग अपने मोबाइल के जरिये सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं. ऐसे में भारत में मोबाइल हेल्थकेयर प्‍लेटफार्मों के लिए व्‍यापक संभावनाएं मौजूद हैं. आने वाले दिनों में मोबाइल की पहुंच, मोबाइल साक्षरता और मोबाइल फोन के माध्यम से इंटरनेट की पहुंच और भी बढ़ेगी, तब इन मोबाइल हेल्थकेयर कार्यक्रमों की उपयोगिता और प्रभावशीलता और भी बढ़ती जाएगी. रिपोर्ट में कहा गया है,

जैसे-जैसे मोबाइल की पहुंच, मोबाइल साक्षरता और मोबाइल फोन के माध्यम से इंटरनेट तक लोगों पहुंच बढ़ेगी, एमहेल्थ कार्यक्रमों की वित्तीय व्यवहार्यता और प्रभाव बढ़ता जाएगा. हालांकि, जबकि तकनीक पर आधारित यह विकास लोगों के लिए काफी मददगार है, पर यह कहीं न कहीं समाज में उन असमानताओं को बढ़ा भी सकता है, जिनसे निपटने के लिए इसे अपनाया जा रहा है. इसलिए उपकरणों और तकनीक को तैयार करते समय इस बात पर ध्‍यान देना बहुत जरूरी है कि डिजिटल प्रोग्राम सभी लोगों तक समान रूप से पहुंचें और इनसे हर किसी का बराबर सशक्‍तीकरण हो सके. तकनीक और उपकरणों के परीक्षण के दौरान उससे हो रही प्रगति के आकलन पर ध्‍यान दिया जाना चाहिए.

डिजिटल तकनीक के कारण होने वाले विभाजन (डिजिटल डिवाइड) और आशा कार्यकर्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बात करते हुए, साइट एंड लाइफ रिपोर्ट की संपादक कल्याणी प्रशर ने कहा,

भारत में 500 मिलियन सक्रिय व्हाट्सएप उपयोगकर्ताओं और 1 बिलियन सक्रिय मोबाइल कनेक्शन के साथ मोबाइल हेल्थकेयर कार्यक्रमों का उपयोग लोगों को सेहत और पोषण से जुड़ी जानकारियां देने का एक प्रभावी समाधान है. हालांकि, इसके साथ ही ऑफलाइन और ऑनलाइन सेवाओं के बीच एक संतुलन बनाए रखने की भी सख्त जरूरत होगी. देश में मोबाइल स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों में घर पर कॉल करने वाले फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की भूमिका भी बहुत महत्‍वपूर्ण होगी.

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रिपोर्ट में भारत में मोबाइल हेल्थ केयर के लिए दो प्रमुख चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला गया है. इसमें कहा गया है कि इन कार्यक्रमों को शत-प्रतिशत प्रभावी बनाने के लिए भारत को सबसे पहले असमानताओं को दूर करने की जरूरत है,

देश में मोबाइल और नेटवर्क तक पहुंच के मामले में वर्तमान में लिंग, भूगोल और आर्थिक स्थिति के आधार पर काफी असमानता है. महिलाओं और पुरुषों के पास मोबाइल फोन की उपलब्‍धता में 23% का बड़ा अंतर है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि मोबाइल और इंटरनेट तक महिलाओं की पुरुषों के बराबर पहुंच नहीं है. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में डिजिटल साक्षरता अपेक्षाकृत खराब है. मोबाइल हेल्थकेयर कार्यक्रमों के लिए दूसरी बड़ी चुनौती साक्षरता में कमी की है, जिसके चलते एसएमएस या वाट्सअप टेक्‍स्‍ट मैसेजों के जरिये जानकारियां पहुंचाने का विकल्‍प नाकाफी होगा, क्‍योंकि देश में बड़ी संख्‍या में ऐसे लोग हैं, जो इन्‍हें पढ़ ही नहीं सकते. खासकर, 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 34.5% भारतीय महिलाएं निरक्षर हैं. अत: इन्‍हें सूचनाएं देने के लिए वॉयस कॉल या ऑडियो-विजुअल सामग्री का ही सहारा लेना होगा.

भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत की कुल आबादी का लगभग 69 फीसदी हिस्सा ग्रामीण इलाकों में रहता है, लेकिन नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, कुल अस्पताल के बिस्तरों का केवल 26% और कुल हेल्‍थ केयर प्रोफेशनल्‍स का 33% हिस्सा इन इलाकों में उपलब्ध है. हेल्‍थ केयर के संसाधनों के इस असमानता के कारण भारत में ग्रामीण हेल्‍थ केयर सिस्टम कमजोर बना हुआ है. इस अंतर को पाटने के लिए भारत सरकार इन सभी कार्यक्रमों के साथ मोबाइल हेल्थकेयर को अधिक से अधिक बढ़ावा देने और दूरदराज और कम सेवा वाले क्षेत्रों में रहने वाली आबादी को उनके घरों के करीब बुनियादी प्राथमिक देखभाल सेवाएं प्रदान करने का प्रयास कर रही है.

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