किशोरावस्था में स्वास्थ्य तथा लैंगिक जागरूकता
किशोर यौन स्वास्थ्य: विशेषज्ञों कहते हैं, पैरेंट्स, टीचर्स को सेक्स और सेक्चूऐलिटी पर चुप्पी के चक्र को तोड़ने की जरूरत है
विशेषज्ञों का कहना है कि जब बात कामुकता और यौन स्वास्थ्य की आती है, तो किशोरों को ऐसी जानकारी दी जानी चाहिए, जो उन्हें मानव जीवन के सबसे प्राकृतिक पहलू के बारे में अवगत करा सके.
Highlights
- प्रारंभिक यौन शिक्षा किशोर गर्भधारण को रोक सकती है: एक्स्पर्ट
- बड़ों को किशोरों की सेक्चुअल हेल्थकेयर सुनिश्चित करने की जरूरत है: डॉक्टर
- जेंडर और रजामंदी को बचपन में ही पढ़ाया जाना चाहिए: विशेषज्ञ
नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, कामुकता के संबंध में सेक्सुअल हेल्थ शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की एक स्थिति है. डब्ल्यूएचओ कहता है कि यौन स्वास्थ्य केवल बीमारियों से जुड़ा नहीं है, बल्कि कामुकता और यौन संबंधों के लिए सकारात्मक और सम्मानजनक दृष्टिकोण की जरूरत है, साथ ही साथ आनंददायक और सुरक्षित यौन अनुभव, जबरदस्ती, भेदभाव और हिंसा से मुक्त होने की एक संभावना है. हालांकि, समाज में, यौन स्वास्थ्य अभी भी एक बहुत ही गोपनीय विषय है. जब बच्चों और किशोरों की बात आती है, तो कामुकता और यौन स्वास्थ्य के बारे में बात करना किसी वर्जना से कम नहीं माना जाता.
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Medtalks.in की स्त्री रोग विशेषज्ञ, महिला स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. वीणा अग्रवाल, का कहना है कि बच्चों में कामुकता स्वाभाविक है और उनके लिए सेक्स और उनके यौन अंगों के बारे में उत्सुकता पैदा होना आम बात है. उन्होंने कहा,
भारत में यौन व्यवहार के प्रति अत्यधिक रूढ़िवादी दृष्टिकोण को देखते हुए, किशोर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की अनदेखी की गई है. अधिकांश बच्चों को शरीर के अंगों के लिए सही नाम भी नहीं सिखाया जाता है. लेकिन, सर्वे से पता चला है कि हमारे समाज में भी, ग्रामीण और शहरी दोनों किशोर यौन गतिविधियों में दिलचस्पी ले रहे हैं. ऐसे में हम क्यों अभी भी उन्हें जीवन के सबसे स्वाभाविक पहलू के बारे में गलत जानकारी दे रहे हैं?
उन्होंने आगे कहा कि देश में महिलाओं और लड़कियों की कम सामाजिक और आर्थिक स्थिति और अज्ञनता की उच्च दर और उनमें सेक्स के बारे में अज्ञानता उन्हें विशेष रूप से दुर्व्यवहार, यौन संचारित रोगों (एसटीडी) और रीप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन (आरटीआई) के प्रति संवेदनशील बनाती है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-4 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं की पहली संभोग की औसत उम्र पुरुषों की तुलना में कम है. डेटा बताता है कि, पुरुषों के 20-24 साल की उम्र में पहली बार संभोग करने की सबसे अधिक संभावना होती है, जबकि महिलाओं के लिए, पहली बार सेक्स करने की अधिकतम उम्र 15-19 साल है. 25-49 एज ग्रुप के पुरुषों और महिलाओं की प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि इस आयु वर्ग की 11 प्रतिशत महिलाओं ने 15 वर्ष की आयु से पहले यौन संबंध बनाए थे, जबकि इस आयु वर्ग के केवल 1 प्रतिशत पुरुषों ने 15 साल की उम्र से पहले यौन संबंध बनाए थे. एनएफएचएस-4 रिपोर्ट बताती है कि यह अंतर मुख्य रूप से उस उम्र में अंतर के कारण है जिस पर वे शादी करते हैं. इस प्रकार, NHFS-4 के अनुसार, महिलाएं कम उम्र में यौन संबंध बनाती हैं, क्योंकि उनकी शादी कम उम्र में हो जाती है.
जीवन आश्रम संस्था (जेएएस) की निदेशक राधिका शर्मा, जो पिछले 10 वर्षों से किशोरों में यौन स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं, ने बताया कि कई पुरुषों को वयस्कों के रूप में भी पीरियड्स या महिला स्वच्छता के बारे में बात करने में अजीब-सा लगता है और कई महिलाएं इसको लेकर और अपने शरीर को लेकर जीवनभर शर्म महसूस करती हैं. उन्होंने कहा कि किशोर अवस्था में लड़कियों और लड़कों दोनों को यौन और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और वयस्क होने के कारण इससे जुड़े मुद्दों के कारण वे मदद मांगने से हिचकिचाते हैं. उन्होंने कहा कि यौन शिक्षा एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग लड़कियों और लड़कों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है.
यौन शिक्षा के महत्व के बारे में बात करते हुए, शर्मा ने कहा कि लड़कियों को अभी भी युवावस्था के दौरान और शादी से पहले अपनी मां से जानकारी मिलती है, लेकिन लड़कों के पास उनके सवालों का जवाब पाने के लिए कोई नहीं होता है.
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सेक्स और यौन स्वास्थ्य के बारे में शिक्षा परहेज के बिना होनी चाहिए: विशेषज्ञ
डॉ. अग्रवाल के अनुसार, माता-पिता और बच्चों को सेक्स के बारे में परस्पर सम्मानजनक संवाद करना चाहिए और उन्हें कामुकता के मामलों पर सही निर्णय लेने के लिए ज्ञान देना चाहिए. उन्होंने कहा,
यह पहली बार में एक भावनात्मक रोलरकोस्टर की तरह महसूस कर सकता है, लेकिन बच्चों और किशोरों के साथ सम्मानजनक और स्पष्ट होना आपको उन्हें कम समय अमें अधिक जानकारी देने में मददगार होगा. बच्चों को व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में सिखाना और वे खुद को दुर्व्यवहार और शोषण से कैसे बचा सकते हैं, यह सिखाना विश्वसनीय वयस्कों की जिम्मेदारी है. उन्हें यह बताने के बजाय कि सेक्स खराब है, उन्हें उनकी और उनके साथी की सुरक्षा और उनके कार्यों के परिणामों के बारे में समझने के साथ सशक्त बनाएं. किशोरों को यह सलाह दी जानी चाहिए कि साथियों के प्रभाव को कैसे मैंनेज किया जाए क्योंकि यही वह उम्र होती है जब उनका आत्म-सम्मान कमजोर होता है और उनकी ‘इमेज’ ही उनके लिए सब कुछ होती है.
यौन शिक्षा टीन प्रेगनेंसी को रोक सकती है
डब्ल्यूएचओ द्वारा दिसंबर 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों में हर साल 15-19 साल की करीब 16 मिलियन लड़कियां और 16 साल से कम उम्र की 25 लाख लड़कियां बच्चों को जन्म देती हैं. इसमें यह भी कहा गया है कि सालाना 15-19 साल की लगभग 3.9 मिलियन लड़कियां असुरक्षित गर्भपात से गुजरती हैं जो अंततः उनके जीवन के लिए खतरा होता है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि एक किशोर मां (10-19 वर्ष की आयु) को 20 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाओं की तुलना में विभिन्न प्रकार की मुकिश्लों और इंफेक्श का अधिक सामना करना पड़ता है.
डॉ. अग्रवाल का कहना है कि किशोरों को उनके पहले यौन संबंध बनाने से पूर्व सेक्स के बारे में जानकारी देने से युवा महिलाओं और पुरुषों के यौन स्वास्थ्य को प्रभावित न होने में मदद मिलेगी और किशोर गर्भावस्था को रोका जा सकता है. उन्होंने कहा,
अध्ययनों से पता चला है कि सुरक्षित यौन संबंध के बारे में शुरुआती, स्पष्ट और उम्र-उपयुक्त बातचीत के परिणामस्वरूप गर्भधारण कम हो सकता है. लड़कों और लड़कियों को जल्दी बच्चे पैदा करने, सुरक्षित गर्भपात और किशोर गर्भावस्था कैसे खुद को, अपने परिवार और अपने भविष्य को प्रभावित करती है, के बारे में समझाया जाना चाहिए.
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यौन स्वास्थ्य देखभाल और यौन संचारित रोग तक पहुंच
शर्मा ने इस बात पर जोर डाला कि ग्रामीण क्षेत्रों में और कम आय वाले परिवारों में, किशोंरों में यौन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच की कमी है. उन्होंने कहा कि जानकारी की कमी के कारण, किशोर आमतौर पर यौन संचारित रोगों (एसटीडी) की तुलना में गर्भावस्था के बारे में अधिक चिंतित होते हैं और सुरक्षित सेक्स का अभ्यास नहीं करते हैं. उन्होंने आगे कहा कि अगर उन्हें इंफेक्शन हो जाता है, तो किशोरों में डर और कलंक के परिणामस्वरूप एसटीडी के इलाज में देरी हो सकती है.
पी सेफ की सह-संस्थापक श्रीजाना बगरिया के अनुसार, हाल के वर्षों में किशोर तेजी से एसटीडी और एचआईवी/एड्स के शिकार हो रहे हैं.
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि इस तथ्य के लिए विभिन्न सर्व सामने हैं कि यौन शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों ने किशोरों में एचआईवी के जोखिम को काफी कम कर दिया है. उन्होंने कहा,
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंस डेटा बेस के मुताबिक, भारत में 45 फीसदी महिलाएं 18 साल की उम्र से पहले शादी कर लेती हैं और उनमें से 22 फीसदी महिलाएं शादी के लिए कानूनी उम्र पूरी होने से पहले ही अपने पहले बच्चे को जन्म देती हैं. इसी रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि 15-19 वर्ष के आयु वर्ग में आधुनिक गर्भनिरोधक का उपयोग दिल्ली में मात्र 12 प्रतिशत वहीं, बिहार में 2 प्रतिशत तक है. यह एचआईवी/एड्स के बढ़ते मामलों के कारण और भी जटिल है, जिसमें किशोर और युवा आबादी शामिल है, जो कुल एड्स मामलों का 34 प्रतिशत है. किशोर विशिष्ट प्रजनन स्वास्थ्य मुद्दों से निपटने के लिए खराब बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों की कमी यौन शिक्षा के मुद्दे को न केवल प्रासंगिक बनाती है बल्कि मानवाधिकार के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है.
ऑनलाइन मिले अजनबियों के साथ बातचीत
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि किशोरों के बीच फोटो फॉरवर्ड करना आम बात होती जा रही है. इसलिए, साइबर सुरक्षा पर सबक बहुत महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने आगे कहा कि बच्चों को किसी बड़े की देखरेख में इंटरनेट का इस्तेमाल करना चाहिए और उन्हें यह सिखाया जाना चाहिए कि ऑनलाइन अजनबियों के साथ बातचीत न करें. उन्होंने कहा,
किशोरों को ऑनलाइन जोखिमों और सोशल नेटवर्किंग साइट के खतरों के बारे में जानकारी देनी चाहिए. उन्हें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से निर्णय लेने में दक्ष बनाना चाहिए. आईटी उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है.
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जेंडर और सहमति को बचपन में ही पढ़ाया जाना चाहिए
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि माता-पिता और शिक्षकों को कम उम्र से ही बच्चों से रजामंदी पर चर्चा करनी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि बहुत छोटी उम्र से ही बच्चों को जरूरत पड़ने पर ‘नहीं’ शब्द का सम्मान करना और बिना किसी हिचकिचाहट के इसका इस्तेमाल करना सिखाया जाना चाहिए. उन्होंने आगे कहा,
2 साल की उम्र के बच्चों को सिखाया जाना चाहिए कि उनके शरीर के किन हिस्सों को निजी रखने की जरूरत है और गुड टच और बैड टच के बीच अंतर करना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा कि बच्चों को सीमाओं का सम्मान करने और रजामंदी मांगने के बारे में सिखाया जाना चाहिए.
सुश्री शर्मा ने कहा, लिंग, एक और अवधारणा है जिसे भूलाया नहीं जा सकता है और इसे शुरू से ही युवाओं को समझाया जाना चाहिए. वह कहती हैं,
उन्हें समावेश, शरीर की सकारात्मकता और विविधता का जश्न मनाने के बारे में सिखाया जाना चाहिए. जेंडर आइडेंटिटी, जेंडर सेंसिटिविटी और LGBTQ+ – लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्सुअल, अलैंगिक और अन्य के बारे में भी बताया जाना चाहिए.
सुश्री बगरिया ने कहा कि सभी पैरेंट्स और टीचर्स को लिंग-संवेदनशील ट्रेनिंग और सेक्चूऐलिटी और सेक्चूएल हेल्थ पर ज्ञान दिया जाना चाहिए, ताकि उन्हें सही जानकारी दी जा सके. इससे वे अपने बच्चों और किशोरों को उनकी उम्र के अनुसार सही और सटीक समझ और जानकारी दे सकेंगे. उन्होंने कहा,
स्वीकार करें कि आपके किशोर एक पूरी नई दुनिया की खोज कर रहे हैं. उन्हें सही जानकारी के साथ सशक्त बनाएं और उन्हें बताएं कि जब उन्हें आपकी जरूरत होती है तो आप उनके साथ होते हैं’.
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A teenage
April 13, 2022 at 11:32 am
Good article for knowledge for teenagers.