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सुंदरबन के दूरस्थ और दुर्गम द्वीपों में स्वास्थ्य सेवा दे रहे हैं बोट क्लीनिक

SHIS फाउंडेशन के बोट क्लीनिक पश्चिम बंगाल में सुंदरबन के सुदूर और दुर्गम द्वीपों में मुफ्त मोबाइल हेल्‍थ केयर दे रहे हैं

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सुंदरबन में, नाव क्लीनिक एक आवश्यक और, कई मामलों में, एकमात्र हेल्‍थ केयर सर्विस है
Highlights
  • SHIS फाउंडेशन ने 1997 में सुंदरबन में मोबाइल बोट क्लीनिक शुरू किया
  • सुंदरवन से होते हुए चार नावें एक सप्ताह में 24 गांवों तक पहुंचती है
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा देने के लिए बोट क्लीनिकों का प्रावधान किया गया है

नई दिल्ली: सुबह के 10 बजे हैं. दक्षिण 24 परगना जिले के कैनिंग सब-डिवीजन में गोसाबा में स्थित लाहिरीपुर गांव के पास, सफेद और हरे रंग में रंगी हुई डीजल से चलने वाली एक नाव दिखाई दे रही है. राइडर आता है और गांव की ओर जाने वाली सीढ़ियों और नाव के बीच एक अस्थायी पुल बनाने के लिए एक संकीर्ण लकड़ी के तख़्ते का इस्‍तेमाल करता है. जैसे ही बोट अपने दैनिक कार्यों के लिए तैयार होती है, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, लोगों का एक झुंड उस नाव तक जाता है जो वास्तव में एक क्लिनिक के रूप में काम करती है. भूरे रंग की साड़ी पहने चार माह की गर्भवती 18 वर्षीय काकोली गाये अपने पति के साथ एक-दो ब्‍लड टेस्‍ट कराने आई है. वह कहती है,

डॉक्टर ने मुझे कुछ ब्‍लड टेस्‍ट और अल्ट्रासाउंड कराने के लिए कहा. मेरी हालत को देखते हुए कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि मुझे पास के क्लिनिक से ब्‍लड टेस्‍ट करवाना चाहिए, क्योंकि वे रोगियों को अच्छी सुविधा देते हैं और यह भरोसेमंद है.

जब सरिता गाइन को चर्म रोग हो गया, जिसके परिणामस्वरूप हाथ और पैर में सूजन आ गई, तो वह चिकित्सा सलाह के लिए उसी बोट क्लिनिक में आई. वह काफी समय से यहां इलाज के लिए आ रही हैं. वह कहती है,

मच्छर के काटने से भी मेरे पूरे शरीर पर धब्बे पड़ जाते हैं. मेरे परिवार में ऐसा कोई नहीं है जो मुझे शहर के सरकारी या निजी क्लीनिक में ले जाए, इसलिए मैं इस बोट पर इलाज कराने आती हूं. यहां के डॉक्टर अच्छे हैं.

काकोली और सरिता जैसे लोगों के लिए बोट पश्चिम बंगाल में सुंदरबन के सुदूर और दुर्गम द्वीपों में मुफ्त मोबाइल स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करती है. बोट 1997 से SHIS (दक्षिणी स्वास्थ्य सुधार समिति) फाउंडेशन के तत्वावधान में मोबाइल बोट डिस्पेंसरी सेवा के रूप में काम कर रही है.

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SHIS फाउंडेशन की कहानी सितंबर 1978 की है, इस समय पश्चिम बंगाल में हफ्तों की मूसलाधार बारिश हुई थी और कोलकाता और हावड़ा में दशकों में सबसे खराब बाढ़ आई थी. उस दौरान गांव स्तर की शासी निकाय के सचिव के पद पर कार्यरत मोहम्मद अब्दुल वोहाब नाम के युवक ने बाढ़ प्रभावित लोगों को बचाने के लिए कदम बढ़ाए. उस समय को याद करते हुए कहते हैं,

मुझे याद है मैंने एक विदेशी को तैरते और नाव को धक्का देते हुए देखा, वह भोजन लेकर लोगों तक पहुंचा रहा था. मैंने सोचा, ‘वह व्यक्ति कौन है?’ तब क्षय रोग प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक था और जिसके कारण मैंने अपने कई दोस्तों को खो दिया था. मैंने स्विट्जरलैंड के विदेशी ग्रैंडजीन गैस्टन से संपर्क किया, जिसे नर्स के रूप में प्रशिक्षित किया गया था और वह भारत में सबसे गरीब लोगों की सेवा कर रहा था. उन्होंने कहा, ‘अगर आप लोगों की मदद करना चाहते हैं, तो अपने घर जाएं और वहां से शुरुआत करें.’

गैस्टन की प्रतिक्रिया ने वोहाब को अपने गृहनगर भांगर वापस जाने के लिए प्रेरित किया, जहां उन्होंने अपनी मित्र साबित्री पाल के साथ अपने पड़ोस के दलितों के लिए एक सामाजिक सेवा शुरू करने की कसम खाई. दोनों ने मिलकर एक चाय की दुकान के मालिक के छोटे से कमरे से शुरुआत की और टीबी रोगियों को मुफ्त दवाएं दीं. जल्द ही उन्‍हें एम.एस. आलम ने ज्‍वाइन किया, जो बाद में एसएचआईएस में पहले पूर्णकालिक डॉक्टर बने. मरीजों की संख्या बढ़ी और दान भी किया. दिलचस्प बात यह है कि कुछ दान ईंटों के रूप में आए जिनका उपयोग एसएचआईएस फाउंडेशन के लिए एक बड़ा स्थान बनाने के लिए किया गया था. वोहाब ने कहा,

लोगों को पता चला कि कोई डॉक्टर है जो हमें दवा दे रहा है. शुरुआत में मैं और साबित्री डॉक्टरों से सैंपल दवाएं लेने और टीबी, खांसी और जुकाम से पीड़ित लोगों को बांटने के लिए कोलकाता जाते थे. उस समय अच्छी सड़कें नहीं थीं इसलिए हमें कोलकाता पहुंचने में आधा दिन लग जाता था. धीरे-धीरे, रोगियों की संख्या 200 से बढ़कर 300 से 400 हो गई. लोगों के पास जांच करने और दवाएं खरीदने के लिए कोई अन्य स्रोत नहीं था.

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उसी समय, फ्रांसीसी लेखक, डोमिनिक लैपिएरे, कोलकाता में मिस्टर गैस्टन के जीवन का दस्तावेजीकरण कर रहे थे, जिसने उनके उपन्यास “सिटी ऑफ जॉय” को जन्म दिया. गैस्टन के सुझाव पर, डोमिनिक लैपियरे ने अपनी किताब के मुनाफे को एसएचआईएस फाउंडेशन को दान करने का फैसला किया. उन्होंने मोबाइल आपातकालीन एम्बुलेंस के रूप में दो स्पीड बोट के साथ पूरी तरह से सुसज्जित चार नावें दान में दीं. बोट को चिकित्सा और नैदानिक सेवाएं दोनों देने के लिए डिज़ाइन किया गया है. और इसी तरह 1997 में, बोट क्लीनिक ने अपना संचालन शुरू किया और एक आवश्यक और, कई मामलों में, एकमात्र स्वास्थ्य देखभाल सेवा बन गई. वोहाब ने कहा,

एक एक्स-रे मशीन, एक नैरो वुडन प्रैंक, एक छोटी पैथोलॉजिकल लैब, योग्य डॉक्टरों, नर्सों और प्रशिक्षित श्रमिकों से सुसज्जित चार बोट हफ्ते में छह दिन अपनी सेवा देती हैं. हर समय, आपको एक डॉक्टर, एक नर्स, एक एक्स-रे तकनीशियन, एक लैब तकनीशियन, एक फार्मासिस्ट और एक नाविक और एक प्रभारी सहित चालक दल के पांच अन्य सदस्य मिलेंगे. साथ में, वे हफ्ते दर हफ्ते द्वीपों पर जाते हैं और प्रत्येक नाव एक दिन में एक गांव को कवर करती है और 100 रोगियों को देखती है. मुख्य रूप से 30 द्वीपों को बोट द्वारा सेवा देने की जरूरत है.

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बोट क्लिनिक में प्राथमिक उपचार, मामूली सर्जरी और टेस्‍ट कराने का प्रावधान है. चूंकि बोट पर बड़ों को लाना मुश्किल होता है, इसलिए डॉक्टर अक्सर स्कूल की इमारत या किसी क्‍लास में शिविर लगाने की कोशिश करते हैं.

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लाहिरीपुर में एक नाव क्लिनिक में एक नर्स अनिमा सरकार ने कहा कि विभिन्न बीमारियों वाले लोग – हाई बीपी, मधुमेह और त्वचा रोगों से लेकर पुरानी बीमारी तक – इलाज की तलाश में आते हैं.

डॉ. वोहाब बताते हैं कि एक बोट क्लिनिक का मासिक बजट 4-5 लाख है. शुरुआत में फंडिंग डॉमिनिक लैपिएरे से आती थी लेकिन उनकी मृत्यु के बाद, विदेशी फंडिंग बंद हो गई है और वर्तमान में, सरकार के समर्थन से क्लीनिक चल रहे हैं. वोहाब ने कहा

15 साल पहले, सरकार ने सुंदरबन में काम करने के लिए एक टेंडर जारी किया था और हम भाग्यशाली थे कि हमें वह टेंडर मिला, लेकिन जल्द ही, यह समाप्त हो जाएगा और हमें ऑपरेशन बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. हम इस नेक काम जारी रखने के लिए लोगों और संगठनों के साथ सहयोग चाहते हैं. उदाहरण के लिए, डेटॉल ने मास्क, साबुन, हैंड सैनिटाइज़र, बेड, एक ऑक्सीजन सिलेंडर और एक सौर प्रणाली देकर हमार साथ दिया. इस स्तर पर, बड़े पैमाने पर समर्थन की आवश्यकता है.

बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने लाहिरीपुर में बोट क्लिनिक का दौरा किया और सभी प्रकार के रोगियों को कतार में पाया. एक युवा लड़का, जो पेड़ से गिरने के बाद एक्स-रे करवाने आया था, से लेकर गर्भवती महिला तक, सभी अपने स्वास्थ्य के अधिकार तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे, जो अभी भी भारत में मौलिक अधिकार नहीं है. सुंदरबन के लोगों के लिए, जो चक्रवातों के हमले का सामना करते हैं, स्वास्थ्य सेवा की तलाश आमतौर पर लिस्‍ट में सबसे नीचे होती है और ये उनके लिए दूर का सपना होता है, जैसे अंतर को बोट क्लिनिक जैसी पहलों को कम करना है.

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