कुपोषण

बचपन के शुरुआती चरण में कुपोषण के चलते नहीं हो पाता बच्चों का सही विकास : स्टडी

एक स्टडी के मुताबिक, दुनिया भर में हर पांच में से एक से ज्यादा – करीब 150 मिलियन यानी 15 करोड़ बच्चों को 2022 में सामान्य रूप से बढ़ने के लिए पर्याप्त कैलोरी नहीं मिली, और 45 मिलियन (4.5 करोड़) से ज्यादा बच्चों में कमजोर होने या उनकी लंबाई के हिसाब से वजन बहुत ज्यादा कम होने के लक्षण नजर आए

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एक्यूट मालन्यूट्रिशन की वजह से बच्चे बेहद कमजोर हो जाते हैं जिससे उनकी मौत का खतरा बढ़ जाता है

वाशिंगटन: रिसर्चर्स (शोधकर्ताओं) ने पाया कि जीवन के पहले दो सालों में होने वाला कुपोषण बच्चों के विकास को काफी प्रभावित करता है. ग्लोबल साउथ में खासतौर से एशिया में लाखों बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं, जो एक दुखद वास्तविकता को उजागर करता है. यह स्टडी नेचर में पब्लिश हुई थी. दुनिया भर में हर पांच बच्चों में से एक से ज्यादा करीब 150 मिलियन यानी 15 करोड़ बच्चों को 2022 में सामान्य रूप से बढ़ने के लिए जितनी कैलोरी की जरूरत होती है उतनी कैलोरी उन्हें नहीं मिली, और 45 मिलियन (4.5 करोड़) से ज्यादा बच्चों में कमजोर होने या कहें उनकी ऊंचाई के हिसाब से वजन बहुत कम होने के लक्षण नजर आए. इस स्थिति की गंभीरता इस बात से समझी जा सकती है कि हर साल दस लाख से ज्यादा बच्चे बहुत दुबले (Wasting) होने और 250,000 से ज्यादा बच्चे स्टंटिंग (Stunting) की वजह से मर जाते हैं. स्टंटिंग का मतलब होता है उम्र के हिसाब से बच्चे की ऊंचाई न बढ़ना और वास्टिंग (wasting) का मतलब होता है ऊंचाई के हिसाब से बच्चे का वजन कम होना.

जो लोग अपने बचपन में अविकसित और कमजोर रहे हैं, उनका संज्ञानात्मक विकास (Cognitive development) खराब हो सकता है, जिसका असर वयस्क होने पर खराब आर्थिक परिणाम के तौर पर नजर आता है. संज्ञानात्मक विकास यानी कॉग्निटिव डेवलपमेंट वह प्रक्रिया है जिसके जरिए मनुष्य ज्ञान हासिल करता है और उसका इस्तेमाल करना सीखता है.

क्रोनिक मालन्यूट्रिशन (Chronic malnutrition) का असर स्टंटिंग (Stunting) या कहें बच्चों की उम्र के हिसाब से उनकी लंबाई बहुत कम होने के तौर पर दिखाई देता है, जबकि तीव्र कुपोषण (Acute malnutrition) के लक्षण कमजोरी के तौर पर बच्चों में नजर आते हैं, ऐसे बच्चों का उनकी लंबाई के हिसाब से वजन बहुत कम होता है. इन दोनों इंडीकेटर्स का इस्तेमाल ग्लोबल हेल्थ कम्युनिटी द्वारा कुपोषण को खत्म करने की दिशा में हो रही प्रोग्रेस को ट्रैक करने के लिए किया जाता है. इस स्टडी के सीनियर ऑथर बेंजामिन अर्नोल्ड (PhD, MPH ) जो UCSF Francis I. Procto फाउंडेशन में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ने कहा,

जिन बच्चों का विकास छह महीने का होने से पहले ही लड़खड़ाना शुरू हो जाता है, उनके मरने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और 18 से 24 महीने की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उनमें विकास रुकने की संभावना बहुत ज्यादा दिखाई देने लगती है. इससे पता चलता है कि एक बहुत ही छोटा टाइम फ्रेम होता है जिसमें हम इसे सुधारने की कोशिश कर सकते हैं या कहें कि हस्तक्षेप कर सकते हैं, और वो आदर्श रूप से प्रसवपूर्व अवधि (Prenatal period) है. यह स्टडी यह भी कहती है कि प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के पोषण में सुधार करने के लिए व्यापक हस्तक्षेप किए जाने की बेहद जरूरत है.

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संक्रामक रोग महामारी विज्ञानी (Infectious disease epidemiologist) और बायोस्टैटिस्टिशियन (Biostatistician) बेंजामिन अर्नोल्ड ने (CTML) के साथ मिलकर UC बर्कले में इस अनुसंधान (रिसर्च) का नेतृत्व किया.

UC बर्कले के एक संक्रामक रोग महामारी विशेषज्ञ (Infectious disease epidemiologist) और बायोस्टैटिस्टिशियन (biostatistician) अर्नोल्ड ने (CTML) के साथ इस अनुसंधान पर सहयोग किया.

UC बर्कले के नेतृत्व में 100 से अधिक शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने 1987 और 2014 के बीच किए गए 33 मेजर स्टडीज से दो साल से कम उम्र के लगभग 84,000 बच्चों के डेटा को जांचा. इसके लिए दक्षिण एशिया, उप-सहारा अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और पूर्वी यूरोप के 15 अलग-अलग देशों से ग्रुप तैयार किए गए थे.

इस स्टडी के मुताबिक कुपोषण के मामले कम संसाधन वाले क्षेत्रों में ज्यादा नजर आते हैं, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर दक्षिण एशिया में दिखाई देता है, जहां 20 प्रतिशत बच्चे जन्म के समय अविकसित थे और 52% से ज्यादा बच्चे अपने दूसरे जन्मदिन तक आते-आते काफी कमजोर हो गए थे.

शोधकर्ताओं ने वास्टिंग (Wasting) पर मौसमी बदलाव से पड़ने वाले असर की भी खोज की जो बारिश के मुताबिक थे. यह उन क्षेत्रों में मौसमी खाद्य असुरक्षा यानी सीजनल फूड इनसिक्योरिटी को दर्शाता है जहां फसलें पोषण का प्राथमिक स्रोत (primary source) हैं.

मुख्य रूप से मौसमी भोजन की उपलब्धता और गर्भावस्था के दौरान मां की पोषण संबंधी स्थिति की वजह से, दक्षिण एशियाई समूहों में जनवरी के महीने में पैदा हुए बच्चे की तुलना में मई महीने में पैदा हुए बच्चे के कमजोर होने की संभावना कहीं ज्यादा थी. उन्होंने कहा कि अभी मौजूद कोई भी हेल्थ इंटरवेंशन यानी स्वास्थ्य हस्तक्षेप इस एनालिसिस में सामने आए मौसम से पड़ने वाले असर को ठीक करने में सक्षम नहीं है. अर्नोल्ड ने कहा,

जब एक बच्चे का जन्म होता है, उस आधार पर उसके विकास को पूरी तरह से अलग ट्राजेक्टोरी (Trajectory) पर स्थापित किया जा सकता है.

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कुछ बच्चों को जन्म के बाद बेहतर स्वास्थ्य और पोषण भी मिल सकता है. इस स्टडी में बच्चों के शुरुआती विकास में आने वाली बाधाओं से पता चलता है कि पब्लिक हेल्थ इंटरवेंशन यानी सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप में 6 महीने से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती माताओं को शामिल करने पर खास फोकस किया जाना चाहिए.

ज्यादातर बचपन के पोषण संबंधी हस्तक्षेप यानी चाइल्डहुड न्यूट्रीशनल इंटरवेंशन मौजूदा समय में छह महीने की उम्र के बाद शुरू होते हैं क्योंकि उनमें अक्सर न्यूट्रीशनल सप्लीमेंटेशन और पब्लिक हेल्थ प्रोग्राम शामिल होते हैं, जो स्तनपान (ब्रेस्टफीडिंग) में रुकावट नहीं डालना चाहते हैं. इस सीरीज में एक पेपर की पहली ऑथर और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर PhD, MPH,जेड बेंजामिन-चुंग ने कहा,

हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि यदि छह महीने की उम्र से पहले स्वास्थ्य हस्तक्षेप (Health interventions) नहीं किए जाते हैं, तो इस स्टडी में रिप्रेजेंट की गई आबादी में से लगभग एक तिहाई बच्चों और दक्षिण एशिया में आधे से ज्यादा बच्चों की स्टंटेड ग्रोथ (Stunted growth) यानी उनके विकास में आने वाली रुकावट को दूर के लिए बहुत देर हो चुकी होगी.

जब वह UC बर्कले में थीं तब बेंजामिन-चुंग ने महामारी विज्ञान और बायोस्टैटिस्टिक्स डिपार्टमेंट के हिस्से के तौर पर इस रिसर्च का नेतृत्व किया था.

इस स्टडी में गर्भधारण से पहले महिलाओं को न्यूट्रीशनल और हेल्थ सपोर्ट प्रोवाइड करने के साथ ही साथ गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद में भी उस सपोर्ट को जारी रखने की अहमियत पर जोर दिया गया है. स्टडीज के निष्कर्षों के मुताबिक कुपोषण के एक चक्र में ऐसे बच्चे होने की संभावना ज्यादा होती है जो अपनी अगली पीढ़ी में भी कुपोषण के चक्र को जारी रखेंगे. CTML में एक रिसर्च डेटा एनालिस्ट और UC बर्कले में लेक्चरर, और स्टडी के पहले ऑथर्स में से एक PhD, एंड्रयू मर्टेंस ने कहा,

प्रारंभिक जीवन में कुपोषण एक चिंताजनक स्थिति है जो पीढ़ियों तक जारी रह सकता है. इसलिए इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप जरूरी है, लेकिन हमें इस चक्र को तोड़ने के लिए विकास (Development) और सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public health) और पोषण कार्यक्रमों (Nutrition programs) में निरंतर निवेश किए जाने की भी जरूरत है. पैदा होने के शुरुआती 1,000 दिनों के दौरान सपोर्ट बहुत मायने रखता है व्यक्तिगत तौर पर भी और एक समाज के तौर पर भी.

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(यह स्टोरी एनडीटीवी स्टाफ की तरफ से संपादित नहीं की गई है और एक सिंडिकेटेड फीड से प्रकाशित हुई है.)

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