नई दिल्ली: सिद्दी पूर्वी अफ्रीका के वंशज हैं और सदियों पहले औपनिवेशिक शक्तियों (colonial powers) के द्वारा उन्हें गुलाम के तौर पर भारत लाया गया था. वे मुख्य रूप से गिर सोमनाथ जिले में गिर जंगल के करीब रहते हैं. भारत में उनकी पहली बस्ती के जो चिन्ह मिलते हैं वो लगभग 500 साल पहले के हैं. इस समुदाय को कलंकित समझा जाता है और इन्हें हब्शी कहा जाता है, जो एक अपमानजनक शब्द है. इस समुदाय को कभी भी समाज द्वारा पूरी तरह से अपनाया नहीं गया है.
रेकिट (Reckitt) के Reach Each Child Programme के तहत इस समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने के लिए गुजरात के गिर सोमनाथ और भावनगर जिलों में एक एथनोग्राफिक स्टडी (Ethnographic study) आयोजित की गई थी.
आइए इस स्टडी की टॉप हाइलाइट पर एक नजर डालते हैं:
शरीर में माइक्रोन्यूट्रीएंट्स (सूक्ष्म पोषक तत्वों) की कमी
एक मुस्लिम उप-संप्रदाय होने के नाते सिद्दी समुदाय के रोजमर्रा के भोजन में मीट – पोल्ट्री या सीफूड (seafood) शामिल होता है. इसलिए इस समुदाय की माताओं का आहार भी विविध तरह का और संतुलित होता है. हालांकि धार्मिक मान्यताओं की वजह से गर्भवती माताओं को तीसरी तिमाही से मांसाहारी भोजन नहीं दिया जाता है, जिससे उनके शरीर में पर्याप्त माइक्रोन्यूट्रिएंट्स यानी सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाती है.
परिवार की देखभाल और उनके भरण-पोषण का भार
स्टडी में इस बात को भी हाइलाइट किया गया है कि चूंकि अपने परिवार की निरंतर देखभाल और उनके भरण-पोषण का बोझ इस समुदाय की महिलाओं पर है, इसलिए गर्भधारण के दौरान इन सब जिम्मेदारियों को निभाने के चलते उन्हें पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता जिससे उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए डिलीवरी के बाद भी उन्हें काम पर जल्दी लौटना पड़ता है जिससे उन्हें रिकवरी के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता.
एनीमिया और आयरन का अवशोषण न हो पाना
सिद्दी समुदाय की माताओं में एनीमिया, लीडिंग माइक्रोन्यूट्रिएंट डिफिशिएंसी में से एक है और अक्सर गर्भावस्था के दौरान ही इसकी पहचान की जाती है.इसका तब पता चलता है जब महिलाएं स्वास्थ्य सुविधाओं (health facilities) पर जाती हैं और अपने बच्चे के स्वास्थ्य पर नजर रखने के लिए अपने हीमोग्लोबिन ( (Haemoglobin) की जांच कराती हैं. हीमोग्लोबिन की जांच केवल उन माताओं के लिए संभव हो पाती है जो स्वास्थ्य सुविधाओं पर जाती हैं, न कि उनके लिए जो घरेलू देखभाल पर निर्भर हैं. कई बार महिलाओं में शारीरिक रूप से एनीमिया के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए इसे आमतौर पर फ्रंटलाइन वर्कर्स द्वारा पहचाना जाना मुश्किल हो जाता है जिसकी वजह से उन्हें सही परामर्श नहीं मिल पाता जो एक बड़ी समस्या है. एक और समस्या तम्बाकू का अनियंत्रित इस्तेमाल है, जो आयरन की खुराक लेने वाली माताओं के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों (micronutrients) के अवशोषण (absorption) में रुकावट डालता है.
माइक्रोन्यूट्रिएंट की डिफिशिएंसी और डेवलपमेंट में देरी
हालांकि फ्रंटलाइन वर्कर्स का मानना है कि सिद्दी समुदाय के बच्चे स्वस्थ होते हैं, लेकिन उनमें सीवियर यानी गंभीर और मॉडरेट मालन्यूट्रिशन (कुपोषण) का प्रसार बहुत ज्यादा होता है. इन बच्चों में कुपोषण के सामान्य लक्षण जैसे फूला हुआ पेट, पतले अंग आदि दिखाई नहीं देते हैं, बल्कि उनके शरीर में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, विकास लक्ष्यों को हासिल करने में देरी और जन्मजात समस्याएं नजर आती हैं. इनमें शामिल हैं – मोटर फंक्शन की देरी से शुरुआत, जैसे बच्चे चलना, सीधे बैठना और बोलना देरी से शुरू करते हैं. कुपोषण की वजह से बच्चों में हल्के बाल, त्वचा पर सफेद धब्बे और खुरदरी त्वचा, पीली आंखें और बेजान नाखून भी नजर आते हैं. वहीं कुछ बच्चे हार्ट डिजीज और स्पीच डिफेक्ट के साथ पैदा होते हैं.
सामाजिक और पर्यावरणीय कारण
असुरक्षित और खतरनाक पर्यावरणीय कारक जैसे कूड़े के नजदीक रहना और खराब सीवेज सिस्टम, घर के आसपास खुले में शौच करना, कम हाथ धोना, मौखिक मल संदूषण (oral fecal contamination), घर के अंदर खरगोश जैसे जानवरों के करीब रहना. हाइजीन और साफ-सफाई की कमी के चलते बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित होता जिससे बच्चों में पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है.
डिलीवरी के बाद माताओं द्वारा समुदाय की परंपराओं का पालन करना
सिद्दी समुदाय की महिलाएं बच्चे के जन्म के तुरंत बाद “कन्न” नाम की एक परंपरा का पालन करती हैं. जिसमें अजवाइन, हल्दी और अश्वगंधा जैसी वस्तुओं को कपड़े के फनल के आकार के टुकड़े में लपेटा जाता है और उसके स्तनपान में सुधार करने, अशुद्ध रक्त को हटाने, पेट दर्द और पीठ दर्द को रोकने के लिए महिला की योनि के अंदर डाला जाता है. हालांकि इस प्रथा को लेकर डॉक्टरों ने सख्त एतराज जताया है क्योंकि यह प्रसव के बाद गंभीर संक्रमण का कारण बनती है. इस प्रथा के अलावा गर्भावस्था के पेट (pregnancy belly) से छुटकारा पाने के लिए इस समुदाय की माताएं एक गर्म पत्थर या ईंट को कपड़े के टुकड़े में लपेटकर अपने पेट पर रखती हैं और अपने पैरों को क्रॉस की स्थिति में रखती हैं.
स्तनपान की आदतें – चिंता का एक और विषय
माताओं का कोलोस्ट्रम मिल्क अक्सर बह जाता है और उन्हें कोलोस्ट्रम दूध के फायदों के बारे में पता ही नहीं होता है. जन्म के तुरंत बाद बच्चे को पानी में गुड़ मिलाकर पिलाया जाता है. होम डिलीवरी होने पर बच्चे को पहले 2-3 दिनों तक पानी में गुड़ मिलाकर दिया जाता है. माताएं अपने बच्चे को केवल 3-4 महीनों के लिए ही स्तनपान कराती हैं, जिसके दौरान बच्चे को दिन में केवल 4-5 बार ही दूध पिलाया जाता है. कामकाजी माताएं प्रसव के 3 महीने बाद ही घर पर बच्चे के लिए बकरी का दूध छोड़कर काम पर वापस लौट जाती हैं. एक बार पूरक आहार (complementary feeding) शुरू करने के बाद बच्चे को स्तनपान कराने की संख्या दिन में दो बार तक सीमित हो जाती है.
स्वस्थ भविष्य के लिए सलाह
साफ-सफाई का खास ध्यान
निम्नलिखित पहलों के माध्यम से इस समुदाय में साफ-सफाई का महत्व समझाने के लिए जागरूकता पैदा करना बहुत जरूरी है:
- कचरे की समस्या से निपटने के लिए पड़ोस में डंपयार्ड बनाना, कचरे का डिब्बा रखना, जिन्हें बार-बार साफ किया जाना चाहिए
- महिला समूहों के माध्यम से कचरे से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को लेकर समुदाय के लोगों में जागरूकता पैदा करना
- परिवारों को समझाना कि ह्यूमन एक्सक्रिटा (मानव मल) डिस्पोज करने के लिए पूर्व- निर्धारित कूड़े के ढेर का ही इस्तेमाल करें
- समुदाय के लोगों को पीने और नहाने के पानी को सुरक्षित तरीके से संग्रह करने के लिए प्रेरित करना
- बच्चों को अच्छी तरह से हाथ धोने और हाइजीन प्रैक्टिस के फायदों के बारे में समझाना, खासकर उन परिवारों में जहां मां बड़े बच्चों को नवजात शिशु की देखभाल और उसे दूध पिलाने की जिम्मेदारी छोड़कर काम पर चली जाती है
- दरगाह, स्कूलों और आस पड़ोस को साफ करने के लिए समुदाय के सदस्यों को भी इस अभियान में मदद करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए स्वच्छता अभियान चलाना. हाइजीन एजुकेशन से इस समुदाय के लोगों को गंदगी की समस्या से निपटने और एक साथ मिलकर कैसे समुदाय की बेहतरी के लिए काम किया जा सकता है समझने में मदद मिलेगी
हाई रिस्क प्रेगनेंसी से बचने के उपाय
- गर्भधारण से पहले नवविवाहित महिलाओं की नियमित जांच कराएं और कुपोषण, एनीमिया जैसी समस्याओं से निपटने के लिए पहले से ही उन पर ध्यान देना शुरू करें
- फैमिली प्लानिंग से पहले शराब, तंबाकू और धूम्रपान का सेवन बंद करने के लिए युवा और विवाहित जोड़ों के बीच जागरूकता पैदा करना
- गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं से बचने के लिए गर्भनिरोधक के तरीके, दो बच्चों के जन्म के समय में अंतर रखना और गर्भपात के बारे में जागरूकता पैदा करना
लेखक: एक्सटर्नल अफेयर्स और पार्टनरशिप, रेकिट – दक्षिण एशिया के डायरेक्टर रवि भटनागर और प्लान इंडिया की पार्टी चीफ डॉ. कोमल गोस्वामी हैं.