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मानव विकास सूचकांक 2022: भारत में यूएनडीपी की रेजिडेंट प्रतिनिधि शोको नोडा ने कहा, पब्लिक हेल्‍थ में अधिक इन्‍वेस्‍टमेंट है जरूरी

मानव विकास सूचकांक 2022: भारत की एचडीआई वैल्‍यू 0.633, देश को मीडियम ह्यूमन डेवलपमेंट कैटेगरी में रखता है, जो 2020 की रिपोर्ट में इसके 0.645 के मूल्य से कम है

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मानव विकास रिपोर्ट 2021/2022 में भारत 191 देशों और क्षेत्रों में से 132वें स्थान पर है

नई दिल्ली: गुरुवार (8 सितंबर) को जारी मानव विकास रिपोर्ट 2021/2022 में भारत 191 देशों और क्षेत्रों में से 132वें स्थान पर है. नवीनतम मानव विकास रिपोर्ट, अनसर्टेन टाइम्स, अनसेटल्ड लाइव्स: शेपिंग अवर फ्यूचर इन ए ट्रांसफॉर्मिंग वर्ल्ड के अनुसार, भारत की एचडीआई वैल्‍यू 0.633 है जो देश को मीडियम ह्यूमन डेवलपमेंट कैटेगरी में रखती है, जो 2020 की रिपोर्ट में 0.645 के मूल्य से कम है. मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत 189 देशों में 131वें स्थान पर है.

भारत के पड़ोसी देशों में श्रीलंका (73), चीन (79), बांग्लादेश (129) और भूटान (127) ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है. केवल पाकिस्तान (161), म्यांमार (149) और नेपाल (143) की स्थिति बदतर थी.

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मानव विकास सूचकांक 2021/2022 पर भारत की स्थिति को समझने के लिए, NDTV ने विशेष रूप से भारत में UNDP की रेजिडेंट प्रतिनिधि, शोको नोडा से बात की. भारत की गिरती रैंक के बारे में बात करते हुए, नोडा ने कहा,

रैंकों की तुलना करना हमेशा सटीक नहीं होता है. उदाहरण के लिए, देशों की संख्या 189 से 191 हो गई है. इसलिए, यह वास्तव में रैंकिंग के बारे में नहीं है बल्कि मानव विकास मूल्यों को स्वयं और उनकी प्रवृत्तियों को देखना बहुत महत्वपूर्ण है. ये मूल्य बहुत अधिक सटीक कहानियां बताएंगे.

एचडीआई मानव विकास के तीन प्रमुख आयामों पर प्रगति को मापता है – एक लंबा और स्वस्थ जीवन, शिक्षा तक पहुंच और एक सभ्य जीवन स्तर. एचडीआई की गणना चार संकेतकों – जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) का उपयोग करके की जाती है. चार मापदंडों में से प्रत्येक पर भारत की स्थिति के बारे में बात करते हुए, नोडा ने कहा,

भारत ने तीन मापदंडों पर गिरावट की है और एक पर सुधार किया है. सबसे पहले, स्वास्थ्य में, जीवन प्रत्याशा 69.7 से गिरकर 67.2 वर्ष हो गई है एजुकेशनल साइड के लिए, दो इंडिकेटर हैं, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों में गिरावट है, लेकिन स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में वृद्धि देखी गई है. यह गिरावट महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के कारण है. अंत में, जीवन स्तर; यहीं पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) आती है और भारत के लिए यह $6,681 से गिरकर $6,590 हो गई है.

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नोडा ने कहा कि भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जो गिरावट का सामना कर रहा है. उन्‍होंने कहा,

महामारी, क्‍लामेट चेंज और युद्ध जैसे संकटों के कारण दुनिया भर के 90 प्रतिशत देश इस गिरावट का सामना कर रहे हैं. निश्चित रूप से, महामारी एक कारण है और उन संकटों में से एक है जिसका हम अभी सामना कर रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन को देखें और पाकिस्तान में क्या हो रहा है जहां एक तिहाई आबादी विस्थापित है, इन पर भी ध्‍यान देना जरूरी है. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है. संकट की गति अभूतपूर्व है और हम, मनुष्य के रूप में, एक के बाद एक संकट को हल करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि यह ज्‍यादा हो रहा है.

उन क्षेत्रों के बारे में पूछे जाने पर जहां भारत को मानव विकास में सुधार के लिए काम करने की आवश्यकता है, नोडा ने जेंडर पर जोर दिया. मेल और फीमेल के बीच की खाई को पाटने के लिए भारत सरकार की तारीफ करते हुए, नोडा ने कहा,

सबसे पहले, खाई को कम किया जा रहा है और दूसरी बात यह है कि दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में इसे तेजी से कम किया जा रहा है. ये अच्छी खबर है. लेकिन निश्चित रूप से चुनौतियां बनी हुई हैं, और इस देश में दुनिया में सबसे कम महिला श्रम शक्ति भागीदारी है. जेंडर-रेस्पोंसिव पॉलिसी और समस्याएं पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन मुझे लगता है कि महिला सशक्तिकरण से परे और अधिक किए जाने की आवश्यकता है. असमानता को कम करने के लिए सामाजिक सुरक्षा भी विस्तार और मजबूती के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और मौजूदा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के मजबूत कार्यान्वयन के लिए न केवल महिलाओं को बल्कि अन्य कमजोर समूहों को भी शामिल करना महत्वपूर्ण है. तीसरा, शिक्षा और आय जैसे अन्य मानव विकास संकेतकों में सुधार के लिए हमारे पास स्वस्थ आबादी होनी चाहिए. पब्लिब हेल्‍थ में अधिक निवेश महत्वपूर्ण है.

COVID-19 महामारी ने दुनिया को दिखा दिया है कि पब्लिक हेल्‍थ में इन्वेस्टमेंट क्यों जरूरी है.

अपनी बात खत्‍म करते समय, नोडा ने भारत के विकास के बारे में भी बात की और कहा कि देश ने 2005 और 2016 के बीच बहुआयामी गरीबी से 270 मिलियन लोगों को निकाला है. हालांकि, यह ऊपर की प्रवृत्ति भी प्रभावित हुई है.

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