1960 के दशक में चीन में एक छोटे से चावल के खेत में पले-बढ़े, मेरे परिवार को अच्छी तरह पता था कि मौसम से जुड़ी कोई प्रतिकूल घटना साल की मेहनत को एक झटके में बर्बाद कर सकती है. जलवायु और मौसम का पैटर्न कुछ ऐसा है, जिसे किसान दिल की गहराइयों तक महसूस कर रहा है. इन पैटर्न में बदलाव के चरम पर पहुंचने से सामने आ रहे प्रतिकूल प्रभावों और मौसमी कहर ने हाल के वर्षों में खेती पर निर्भर ग्रामीण समुदायों को झकझोर कर रख दिया है. हमने कभी नहीं सोचा था कि मौसम इतनी तेजी से और इतने बड़े पैमाने पर बदल जाएगा, जैसा कि हम आज होता देख रहे हैं. यह नुकसान वर्षों की कड़ी मेहनत से हासिल किए गए ग्रामीण विकास को कमजोर कर रहा है.
बदलती जलवायु खाद्य सुरक्षा एवं कृषि के लिए संकट बन गई है. छोटे किसान जलवायु से जुड़ी इन आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. अच्छी खेती और पैदावार के लिए पूरी तरह से मौसम के मिजाज और प्राकृतिक संसाधनों पर इनकी निर्भरता के कारण यह जलवायु परिवर्तन के कृषि और खाद्य क्षेत्र पर पड़ रहे असर को झेलने की कतार में सबसे आगे खड़े हैं.
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जलवायु परिवर्तन हमारी भोजन उत्पादन की क्षमता को प्रभावित कर रहा है. यह भोजन की उपलब्धता, पहुंच और सामर्थ्य के साथ-साथ पानी, मिट्टी और जैव विविधता की गुणवत्ता को बदल रहा है. चरम मौसम (एक्सट्रीम वेदर) की घटनाओं की संख्या और तीव्रता दोनों ही बढ़ती जा रही है. इससे फसलों में लगने वाले कीटों और रोगों के पैटर्न में भी बदलाव हो रहा है. इन प्रतिकूल प्रभावों के चलते खाद्य असुरक्षा बढ़ती जा रही है. इससे फसलों की पैदावार, पशुधन उत्पादकता और खाद्य उत्पादन में योगदान देने वाले मत्स्य पालन और जलीय कृषि की क्षमता भी कम हो रही है.
पिछले 30 वर्षों में जलवायु और अन्य आपदा घटनाओं के कारण करीब 3.8 ट्रिलियन डॉलर की फसल और पशुधन उत्पादन का नुकसान होने का अनुमान है. यह प्रति वर्ष औसतन 123 बिलियन डॉलर है, जो कि दुनिया भर में कृषि के सालाना उत्पादन का 5 फीसदी है. मौसम संबंधी आपदा घटनाएं तेजी ये बढ़कर 1970 के दशक में लगभग एक सौ प्रति वर्ष के मुकाबले आज चार सौ प्रति वर्ष के औसत तक पहुंच गई हैं. चूंकि कृषि, फसल और पशुधन उत्पादन, वानिकी, मत्स्य पालन और जलीय कृषि सहित, विकासशील देशों में मुख्य आर्थिक गतिविधियों में से एक है, इसलिए इन देशों के लिए यह बहुत बात मायने रखती है.
हालात को लेकर किसानों का रवैया लचीला होता है और सदियों से वह खुद को पर्यावरण में आने वाले बदलावों के मुताबिक ढालते आ रहे हैं. वे लचीलेपन को अपनाने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलने में सबसे आगे रहते हैं. लेकिन, आज वे जो अनुभव कर रहे हैं वह उनकी अनुकूलन की क्षमता से परे है. मौसम संबंधी चरम स्थितियों और धीमे-धीमे बढ़ते जा रहे जलवायु परिवर्तन के आर्थिक और गैर-आर्थिक नुकसानों से निपटने में सहायता कृषक समुदाय और कृषि पर निर्भर देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण होती जा रही है.
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नुकसानों से उबरने के लिए धन जुटाना, चीजों को आगे बढ़ाना और सबसे महत्वपूर्ण बात हानि के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराना करना संयुक्त राष्ट्र के COP28 जलवायु शिखर सम्मेलन की सफलता के लिए एक लिटमस टेस्ट होगा. कृषि खाद्य प्रणालियों में हानि और क्षति पर हमारी नवीनतम रिपोर्ट, जिसे COP28 में लॉन्च किया जाएगा, से पता चलता है कि एक तिहाई से अधिक देशों की जलवायु प्रतिबद्धताएं या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में हानि या क्षति का स्पष्ट उल्लेख मिलता है. इस हानि ने इन देशों में कृषि को सबसे अधिक प्रभावित किया है.
एफएओ कृषि खाद्य क्षेत्रों पर जलवायु संकट के प्रभावों के कारण होने वाले नुकसान की सीमा और मात्रा का आकलन करने में देशों की मदद करता है. एफएओ के अनुसार मौसमी नुकसान से बचने के लिए की जाने वाली कार्रवाइयों के कार्यान्वयन का समर्थन करने में सुधार लाकर और इसके लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन मुहैया करा कर प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सकता है. इसके अलावा जलवायु से जुड़े जोखिमों का समय से आकलन करना कृषि को होने वाली हानि में कमी ला सकता है. खेती की नई तकनीकों और पद्धतियों का विकास करने से भी खाद्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले जलवायु के जोखिमों को कम किया जा सकता है. सूखे को झेल सकने वाली फसलें उगाने, जल-कुशल सिंचाई प्रणाली, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, फसल बीमा और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से इसमें मदद मिल सकती है.
जलवायु और खाद्य संकट एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. इसलिए जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए कृषि व खाद्य प्रणालियों में निवेश करने से लोगों और हमारी धरती को बड़ा लाभ मिलेगा. हालांकि सबसे लचीली प्रणाली को अपनाने वाले किसान भी जलवायु संकट के सभी प्रभावों से खुद को मुक्त नहीं रख सकते. इसलिए छोटे किसानों और कृषि पर निर्भर विकासशील देशों को मौसमी नुकसान और क्षति से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों में सबसे आगे रहना चाहिए.
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(यह लेख संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के महानिदेशक क्यू डोंग्यू द्वारा लिखा गया है)
अस्वीकरण: ये लेखकों के निजी विचार हैं.