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जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक बैन: जानिए किन चीजों पर लगा है बैन, क्‍या हुए हैं बदलाव और क्‍या होगी जुर्माना राशि?

जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक बैन: जानिए किन चीजों पर लगा है बैन, क्‍या हुए हैं बदलाव और क्‍या होगी जुर्माना राशि?

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नई दिल्ली: पर्यावरण को प्लास्टिक प्रदूषण के खतरे से बचाने के लिए, केंद्र ने दिशा-निर्देश जारी कर राज्यों से 1 जुलाई, 2022 से ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ के उपयोग पर बैन लगाने को कहा है. सिंगल-यूज प्लास्टिक उन वस्तुओं को संदर्भित करता है जिनका आप यूज करते है. केवल एक बार और जिन्‍हें इस्‍तेमाल के बाद त्याग दिया जाता है. वस्तुओं की पैकेजिंग से लेकर बोतलों, पॉलीथिन बैग, फेस मास्क, कॉफी कप, कचरा बैग, खाद्य पैकेजिंग आदि तक निर्मित और उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक में सिंगल-यूज प्लास्टिक का सबसे अधिक हिस्सा होता है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) कहता है कि दुनिया भर में , हर मिनट दस लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं, जबकि दुनिया भर में हर साल पांच ट्रिलियन प्लास्टिक बैग का उपयोग किया जाता है. कुल मिलाकर, उत्पादित सभी प्लास्टिक का आधा सिंगल-यूज के उद्देश्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिन्‍हें केवल एक बार उपयोग करने के लिए, फेंक दिया जाता है.

सिंगल यूज प्लास्टिक से उत्पन्न कचरे के बढ़ते संकट से निपटने के लिए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पिछले साल अगस्त में अधिसूचना जारी कर जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी. मंत्रालय ने साथ में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के साथ अब विस्तृत दिशा-निर्देश लेकर आया है कि 1 जुलाई से बाजार में किन चीजों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा और इससे जुड़े जुर्माने क्‍या होंगे. अधिसूचना में कहा गया है, “पॉलीस्टायरीन और विस्तारित पॉलीस्टाइनिन सहित सिंगल यूज प्लास्टिक का निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग, प्लेट, कप, ग्लास सहित कटलरी आइटम जैसी वस्तुओं को कुछ नामों के प्रभाव से 1 जुलाई, 2022 को बैन किया जाएगा.”

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जुलाई 2022 से बैन होने वाली वस्तुओं की लिस्‍ट

अधिसूचना के अनुसार निम्नलिखित आइट्म पर बैन लगाया जाएगा:

– बैलून स्टिक्‍स
– सिगरेट पैक
– प्लेट, कप, गिलास, कांटे, चम्मच, चाकू, ट्रे सहित कटलरी आइटम – ईयरबड्स
– स्‍वीट बॉक्‍स
– कैंडी और आइसक्रीम स्टिक
– इनविटेशन कार्ड
– सजावट के लिए पॉलीस्टाइनिन
– 100 माइक्रोन से कम माप वाले पीवीसी बैनर

प्लास्टिक बैन: क्या बदलेगा और 1 जुलाई 2022 से कैसे लागू होगा बैन?

सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) ने एक अधिसूचना जारी कर सिंगल यूज प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माताओं, आपूर्तिकर्ताओं और उपभोक्ताओं से इन प्रोडक्‍ट के यूज को खत्म करने और सिंगल यूज प्लास्टिक वाली वस्तुओं के यूज को चरणबद्ध तरीके से हरित और टिकाऊ ऑप्‍शन के जरिए बंद करने के लिए कहा है. राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर निर्देश जारी किए गए हैं, उदाहरण के लिए सभी पेट्रोकेमिकल उद्योगों को बैन की गई वस्तुओं में लगे उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति नहीं करने का निर्देश दिया गया है. स्थानीय अधिकारियों को भी इस शर्त के साथ नए वाणिज्यिक लाइसेंस जारी करने का निर्देश दिया गया है कि उनके परिसर में सिंगल यूज प्लास्टिक की वस्तुओं की बिक्री नहीं की जाएगी, और यदि वे इन वस्तुओं की खुदरा बिक्री करते पाए गए तो व्यावसायिक वाणिज्यिक लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे.

जुलाई से प्रभावी दिशा-निर्देशों के अनुसार, अधिसूचना में कहा गया है कि प्रतिबंध का उल्लंघन करने वाले लोगों पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत जुर्माना लगाया जा सकता है, जो पांच साल तक की जेल या 1 लाख रुपये तक के जुर्माने या दोनों की अनुमति देता है.

केंद्र से सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) द्वारा प्रतिबंध की निगरानी की जाएगी जो नियमित रूप से केंद्र को रिपोर्ट करेंगे.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने बैन को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कहा कि केंद्र राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कंट्रोल रूम स्थापित करेगा. इन कंट्रोल रूम की निगरानी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और विशेष प्रवर्तन दल करेंगे. इसके साथ ही ये विशेष प्रवर्तन दल 12 प्रतिबंधित सिंगल यूज प्लास्टिक वस्तुओं के अवैध निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर भी नजर रखेंगे. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को किसी भी प्रतिबंधित सिंगल यूज वाली प्लास्टिक की वस्तु के अंतर-राज्य मूवमेंट को रोकने के लिए सीमा चौकियां स्थापित करने के लिए भी कहा गया है.

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जमीन पर उद्योग बैन के लिए कितने तैयार हैं?

फ्रूटी और एपी निर्माता पारले एग्रो की सीईओ शौना चौहान ने पीटीआई से बात करते हुए कहा कि सरकार को समय सीमा छह महीने बढ़ाने पर विचार करना चाहिए और कहा,

स्थानीय विनिर्माण क्षमता विकसित करने के लिए समय सीमा बढ़ाना महत्वपूर्ण है.

उसने यह भी कहा कि भले ही कंपनी ने अभी के लिए पेपर स्ट्रॉ का आयात करना शुरू कर दिया है, लेकिन यह एक अस्थिर विकल्प है और “इस कारण यह 10 रुपये के प्रोडक्‍ट के साथ फिट नहीं होता”.

चौहान ने यह भी कहा कि इन्टग्रेटिड स्ट्रॉ का 80% रीसाइकल्ड किया जाता है, और चीन और थाईलैंड जैसे देशों ने उनके उपयोग की अनुमति दी है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि यह स्पष्ट नहीं है कि 1 जुलाई को बैन लागू होने पर मौजूदा शेयरों का क्या होगा.

डेयरी कंपनी अमूल ने पीटीआई से बात करते हुए सरकार से प्रतिबंध में एक साल की देरी करने का आग्रह करते हुए कहा कि इस कदम से किसानों और दूध की खपत पर “नकारात्मक प्रभाव” पड़ेगा.

वैश्विक क्षमता की कमी और लॉजिस्टिक कमियों का हवाला देते हुए, पारले एग्रो ने यह भी चेतावनी दी कि अगर समय सीमा नहीं बढ़ाई गई तो उद्योग को कारखाना संचालन बंद करना पड़ सकता है. कंपनी ने कहा कि पेपर स्ट्रॉ की वैश्विक कमी है, केवल चीन, इंडोनेशिया और कुछ यूरोपीय देश पेपर स्ट्रॉ बनाते हैं और भारत उनकी प्राथमिकता सूची में नीचे आता है. कंपनी ने यह भी कहा कि जो लोग स्थानीय स्तर पर पेपर स्ट्रॉ बनाने के लिए मशीनों का आयात करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्‍हें एक साल इंतजार करना होगा.

दूसरी ओर, ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एआईपीएमए) ने चेतावनी दी है कि इस कदम से करीब 88,000 इकाइयां दिवालिया हो सकती हैं. समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए, एआईपीएमए की पर्यावरण समिति के सह-अध्यक्ष जयेश खिमजी रंभिया ने कहा,

सरकारी आंकड़ों के आधार पर देश में सिंगल यूज प्लास्टिक के निर्माण में करीब 88,000 इकाइयां लगी हुई हैं. ये इकाइयां लगभग 10 लाख लोगों को रोजगार देती हैं और 25,000 करोड़ रुपये के निर्यात में योगदान करती हैं. इन 19 उत्पादों का विभिन्न उद्योगों द्वारा उपयोग किया जा रहा है और जबकि उनके रिप्‍लेसमेंट बाजार में हैं, कंपनियों को भारी लागत वहन करने जा रही है जो अंततः उपभोक्ता को दी जाएगी.

प्लास्टिक प्रतिबंध के बारे में लोगों और स्थानीय विक्रेताओं को कितनी जानकारी है?

टीम बनेगा स्वस्थ इंडिया ने 1 जुलाई से हो रहे प्लास्टिक बैन के बारे में स्थानीय विक्रेताओं और लोगों से भी बात की.

नोएडा के सेक्टर 50 में एक छोटे से फास्ट फूड विक्रेता ने कहा,

मैं कई सालों से प्लास्टिक बैन के बारे में सुन रहा हूं. शुरुआत में यह प्लास्टिक की थैलियों पर था – लेकिन यह अभी भी हमारे छोटे विक्रेताओं द्वारा उपयोग किए जा रहे हैं. क्यों क्योंकि इसके लिए कोई उपयुक्त लागत प्रभावी विकल्प नहीं है.

उसी बाजार के एक डोसा वैन विक्रेता ने कहा,

अब प्लेट, कप, गिलास, कांटे, चम्मच, चाकू, ट्रे सहित अन्य वस्तुओं पर बैन बढ़ा दिया गया है. मैं पिछले 30 सालों से इस बाजार में डोसा, उत्तपम, इडली बेच रहा हूं. मैं इन सिंगल-यूज-प्लास्टिक कटलरी वस्तुओं का उपयोग कर रहा हूं क्योंकि वे सस्ते हैं. अब अगर वे बंद हो गए तो मैं इन प्रोडक्‍ट को कैसे बेचूंगा? मैं ग्रीन ऑप्‍शन नहीं खरीद सकता क्योंकि वे महंगे हैं. जब तक हमारे पास इन वस्तुओं के समान कीमत पर कुछ समाधान नहीं होंगे, मुझे नहीं लगता कि ये बैन प्रभावी होंगे.

दूसरी ओर, हमने उपभोक्ताओं से प्लास्टिक प्रतिबंध के बारे में भी पूछा और उन्होंने कहा:

एमिटी यूनिवर्सिटी के 25 वर्षीय एमबीए छात्र अपूर्वा ने कहा,

हमारे कॉलेज में नगर पालिका द्वारा या जिस क्षेत्र में मैं रहता हूं वहां कोई संचार या जागरूकता अभियान नहीं चलाया गया है, इसलिए मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि यह प्रतिबंध कैसे लगेगा. सिर्फ कंपनियों को गाइडलाइंस भेजने से यह बैन प्रभावी नहीं हो जाएगा. अधिकारियों के पास एक ठोस योजना होनी चाहिए. मैं अभी भी इन वस्तुओं का उपयोग कर रहा हूं और मैं अभी भी इन वस्तुओं को बाजार में देख सकता हूं, इसलिए मुझे यकीन नहीं है कि जमीन पर क्या हो रहा है.

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सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन क्यों जरूरी है?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम कहता है कि 1970 के दशक से प्लास्टिक प्रोडक्‍शन की दर किसी भी अन्य सामग्री की तुलना में तेजी से बढ़ी है. इसमें कहा गया है कि यदि ऐतिहासिक विकास की प्रवृत्ति जारी रहती है, तो 2050 तक प्राथमिक प्लास्टिक का वैश्विक उत्पादन 1,100 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है. इसमें कहा गया है कि उत्पादित सभी प्लास्टिक का लगभग 36 प्रतिशत पैकेजिंग में उपयोग किया जाता है, जिसमें खाद्य और पेय पदार्थों के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पाद शामिल हैं. कंटेनर, जिनमें से लगभग 85 प्रतिशत लैंडफिल में या अनियंत्रित कचरे के रूप में समाप्त हो जाते हैं. इसके अतिरिक्त, लगभग 98 प्रतिशत सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों का उत्पादन जीवाश्म ईंधन से किया जाता है. पारंपरिक जीवाश्म ईंधन आधारित प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और निपटान से जुड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का स्तर 2040 तक वैश्विक कार्बन बजट के 19 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है.

पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा है क्योंकि यह लंबे समय तक पर्यावरण में रहता है और सड़ता नहीं है, अंततः माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है, जो पहले हमारे खाद्य स्रोतों और फिर मानव शरीर में प्रवेश करता है. प्लास्टिक सूप फाउंडेशन जिसे 2011 में प्लास्टिक सूप की घटना से सभी को परिचित कराने के लक्ष्य के साथ स्थापित किया गया था, का कहना है कि प्लास्टिक पहले ही हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर चुका है. इसमें यह भी कहा गया है कि जानवर अपने शरीर में माइक्रोप्लास्टिक ले जाते हैं, जब वे खुद खाए जाते हैं, तो वे माइक्रोप्लास्टिक भी निगल जाते हैं. इस प्रक्रिया को माइक्रोप्लास्टिक्स का ‘ट्रॉफिक ट्रांसफर’ कहा जाता है. चूंकि एक जानवर दूसरे को खाता है, माइक्रोप्लास्टिक फूड सीरीज के माध्यम से आगे बढ़ सकता है.

इसके अलावा, प्लास्टिक न तो विघटित होता है और न ही जलाया जा सकता है क्योंकि यह प्रक्रिया के दौरान हानिकारक धुएं और खतरनाक गैसों को छोड़ता है. इस प्रकार, रीसाइक्लिंग के अलावा प्लास्टिक की वस्तुओं का भंडारण एकमात्र संभव समाधान है. पर्यावरण मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों में कहा गया है कि भारत में 2018-19 में 30.59 लाख टन से 2019-20 में 34 लाख टन से अधिक प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ था.

आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने ऐसी प्लास्टिक की वस्तुओं पर बैन लगाने का कदम उठाया है, इससे सरकार को अपने प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन को कम करने में भी मदद मिलेगी, लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से कैसे लागू किया जाएगा.

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विशेषज्ञ की राय

अपने हाल के ब्लॉगों में से एक में बैन के बारे में बात करते हुए, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण कहती हैं,

सिंगल यूज प्लास्टिक पर मौजूदा बैन बहुत सीमित है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कैरी बैग पर प्रतिबंध लागू कर दिया गया है. लेकिन हम जानते हैं कि प्रवर्तन अपर्याप्त है. प्रतिबंधित वस्तुओं की वर्तमान सूची व्यापक नहीं है, सूची में मल्‍टी-लेयर पैकेजिंग शामिल होनी चाहिए.

बेंगलुरु में कचरा बीनने वालों के जीवन को बेहतर बनाने और कचरा संग्रह को बेहतर बनाने का प्रयास करने वाला संगठन हसीरू डाला की सह-संस्थापक और कार्यकारी निदेशक नलिनी शेखर का कहना है,

कर्नाटक राज्य ने 2016 में 40 माइक्रोन से कम मोटाई के सभी प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. मुझे लगता है, हमारे पक्ष में जो काम किया वह लोगों की भागीदारी है. यहां लोग अपने स्टील के कंटेनरों को अपने टेकअवे पैक करने या रेस्तरां में खाने के लिए ले जाते हैं. प्लास्टिक के खतरे के प्रति नागरिक जागरूक हैं. मुझे लगता है, हमें अन्य राज्यों में भी बिहेवियर चेंज कम्युनिकेशन का लक्ष्य रखना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार हाल के अनुमानों में, प्लास्टिक खाने के चलने हर साल लगभग 100,000 समुद्री स्तनधारी की मौत हो जाती है. इसमें यह भी कहा गया है कि वैज्ञानिकों ने समुद्री और मीठे पानी की मछलियों, फ्रैग्मन्ट और खेती दोनों में प्लास्टिक के रेशे, टुकड़े और सूक्ष्म मनके पाए हैं. और जिन 114 प्रजातियों के पेट में प्लास्टिक सबसे ज्‍यादा पाया जाता है, उनमें से आधे से अधिक प्रजातियों को हम खा जाते हैं. यूएनईपी में यह भी कहा गया है कि प्लवक, बिवाल्व, मछली और व्हेल जैसी प्रजातियां नियमित रूप से माइक्रोप्लास्टिक खाती हैं क्योंकि वे इन्‍हें अपना भोजन समझती हैं. नतीजतन, वे पाचन तंत्र बंद होने, भूख कम लगने और डाइट बिहेव में बदलाव से पीड़ित होते हैं, जो बाद में उनकी वृद्धि और प्रजनन क्षमता को प्रभावित करते हैं.

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