नई दिल्ली: एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (यूएनएड्स) सतत विकास लक्ष्यों के हिस्से के रूप में 2030 तक जीरो नए एचआईवी इंफेक्शन और एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य के खतरे के रूप में समाप्त करने के अपने साझा दृष्टिकोण को पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है. नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) के अनुसार, भारत के बारे में बात करते हुए, देश ने वर्ष 2000 में महामारी के चरम (0.55 प्रतिशत) के बाद से एचआईवी के प्रसार में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की है और हाल के वर्षों (2021 में 0.21 प्रतिशत) में यह स्थिर रहा है.
पिछले एक दशक में कुछ बड़ी जीतें नेतृत्व से जुड़ी रही हैं. भारत में, पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव, जे.वी.आर.प्रसाद राव, दक्षिण एशियाई क्षेत्र में एड्स फ्री कैपेंन का नेतृत्व कर रहे हैं. राव को जुलाई 2012 में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में एड्स के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष दूत के रूप में नियुक्त किया गया था. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के लिए भारत के स्थायी सचिव के रूप में काम करने से पहले वे पांच साल के लिए भारत के नेशन एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के डायरेक्टर थे.
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विश्व एड्स दिवस 2022 के अवसर पर एनडीटीवी-बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम से बात करते हुए, राव ने एचआईवी/एड्स जागरूकता के बारे में पिछले 20 वर्षों में इंफेक्शन के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि प्रोग्राम के शुरूआती दौर में बड़ी संख्या में ऐसे लोग आते थे जो इस बीमारी के शिकार हो रहे थे और उस समय जिस राजनीतिक समर्थन की जरूरत थी वह गहराई नहीं आ रही थी. उन्होंने कहा,
एचआईवी/एड्स से कई लोगों की जान जाने के बावजूद, देश अभी भी इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था. हालांकि, पिछले 20 सालों में, हम इसे एक ऐसे मुकाम पर ले आए हैं जहां हम दुनिया में सबसे व्यापक और सफल एचआईवी/एड्स प्रोग्राम में से एक को चलाने पर गर्व कर सकते हैं.
राव ने कहा कि भारत पिछले दो दशकों (2000-2020) में नए एचआईवी इंफेक्शन में वृद्धि को कंट्रोल करने में कामयाब रहा है.
महामारी के दौरान पूरी तरह से बदलाव आया है.
राव ने लगातार उन समुदायों के सशक्तिकरण की वकालत की है जो एचआईवी के प्रति संवेदनशील हैं और अक्सर पर्याप्त सेवाओं तक पहुंच नहीं पाते. उन्होंने कहा कि यह 2030 तक जीरो नए एचआईवी इंफेक्शन और एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य के खतरे के रूप में समाप्त करने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है. उन्होंने कहा कि ये कमजोर समुदाय, जिन्हें प्रमुख आबादी के रूप में भी जाना जाता है, महामारी का खामियाजा भुगत रहे हैं.
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राव ने UNAIDS के हाल के अनुमानों का हवाला दिया, जिसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र को आर्थिक और सामाजिक सीढ़ी के निचले पायदान पर लोगों के बीच होने वाले नए इंफेशन का लगभग 95 प्रतिशत दिखाया गया है. इनमें यौनकर्मी और उनके कस्टमर, समलैंगिक पुरुष, ट्रांसजेंडर व्यक्ति, ड्रग उपयोगकर्ता, कैदी आदि शामिल हैं. उन्होंने आगे कहा,
जब तक हम इन प्रमुख समुदायों को जागरूकता, रोकथाम, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट प्रोग्राम के साथ लक्षित नहीं करते हैं, तब तक एसडीजी लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है. हमें उन कानूनी वातावरण को भी देखने की जरूरत है जो इन समुदायों को घेरते हैं ताकि बिहेवियर को कम किया जा सके. इससे वे किसी भी अन्य नागरिक की तरह व्यवहार कर सकें और उपलब्ध एचआईवी/एड्स के सभी लाभों तक पहुंच सकें.
एचआईवी/एड्स के खिलाफ लड़ाई में भारत की वित्तीय क्षमता के संदर्भ में, राव ने कहा,
भारत में पैसे की दिक्कत नहीं होगी, लेकिन प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन एक मुद्दा है- कि हम उद्देश्य के लिए समर्पित पैसे का यूज कैसे करेंगे?
राव ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में, 10 -18 वर्ष की आयु के लोगों की नई पीढ़ी एचआईवी या एड्स के बारे में किसी भी तरह जानकारी नहीं रखती है. उन्होंने कहा कि यह एक बड़ा जोखिम कारक है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है.
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