ताज़ातरीन ख़बरें

सबके लिए पर्याप्त भोजन है, बस उस तक पहुंच जरूरी है: संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शोम्बी शार्प

भारत में संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शोम्बी शार्प ने कहा, खाद्य प्रणालियों पर तेजी से दबाव बढ़ रहा है, क्योंकि दुनिया अतिव्यापी संकट – जलवायु परिवर्तन, महामारी और युद्ध का सामना कर रही है

Published

on

विश्व खाद्य दिवस 2022 ने किसी को पीछे नहीं छोड़ने का विषय निर्धारित किया है

नई दिल्ली: 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाया गया, जिसका विषय था ‘किसी को पीछे न छोड़ें’. यह COVID-19 महामारी, संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, असमानता, बढ़ती कीमतों और अंतर्राष्ट्रीय तनाव सहित कई चुनौतियों की पृष्ठभूमि में मनाया गया. विश्व स्तर पर, लोग इन चुनौतियों के प्रभाव का सामना कर रहे हैं जिनकी कोई सीमा नहीं है. किसी को पीछे नहीं छोड़ने के विचार के साथ, यह वर्ष बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, बेहतर वातावरण और बेहतर जीवन पर ध्यान केंद्रित करने से जुड़ा हुआ है. उसी को चिह्नित करने के लिए, एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया ने विशेष रूप से भारत में संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शोम्बी शार्प से बात की.

इसे भी पढ़ें: मोटापे की चुनौती और डाइट के साथ इसका मुकाबला कैसे करें

‘किसी को पीछे नहीं छोड़ने’ पर बात करते हुए मिस्टर शार्प ने कहा,

हम इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि जैसे-जैसे खाद्य प्रणालियां तेजी से तनावग्रस्त होती जा रही हैं, दुनिया इन अतिव्यापी संकट का सामना कर रही है, जैसा कि हम कहते हैं पॉली संकट – जलवायु परिवर्तन, फिर मूल्य श्रृंखलाओं को प्रभावित करने वाले युद्ध, भोजन, उर्वरक, कीमतें बढ़ रही हैं, इसका सबसे पहले प्रभाव उन लोगों पर पड़ता है जो कमजोर होते हैं. गरीब आबादी, ग्रामीण आबादी, अक्सर कई बार महिलाएं, बच्चे, विभिन्न भूमिहीन मजदूर, छोटे जोत वाले कृषि परिवार, और अन्य इससे सबसे ज्‍यादा प्रभावित होते हैं. यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम सुनिश्चित करें कि हमारे पास डाटा है और हमारे पास उन लोगों तक पहुंचने के लिए सिस्टम हो जो अल्पपोषण से पीड़ित हैं, लेकिन इसकी कमी है क्योंकि फिलहाल, भोजन की उपलब्धता अभी भी मुद्दा नहीं है. दुनिया भर में सबके लिए पर्याप्त भोजन है. यह सिफ पहुंच का सवाल है.

शोम्बी शार्प, भारत में यूएन रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर

शार्प ने आगे साफ किया कि भविष्य में भोजन की उपलब्धता में कमी हो सकती है. इसे चिंता के तौर पर साझा करते हुए उन्होंने कहा,

इस अतिव्यापी संकट का सामना करने के लिए, विशेष रूप से क्‍लाइमेट चेंज और हीट वेव, बाढ़ और इस तरह की घटनाओं का भारत में और दुनिया के हर देश में कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण, हम चिंतित हैं. अगले साल, दो साल या पांच साल आगे उपलब्धता को देखते हुए एक समस्या बन सकती है. इसके लिए हमें तैयारी करनी होगी.

वर्तमान में दुनिया जिस भोजन और भूख संकट का सामना कर रही है, उसकी गंभीर वास्तविकता को साझा करते हुए, शार्प ने कहा,

828 मिलियन लोग इस समय भूखे हैं. इनमें से 100 मिलियन से अधिक को कोविड महामारी के दौरान जोड़ा गया है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है. मैं कहूंगा कि भारत अच्छी स्थिति में है. भारत अभी भी निश्चित रूप से महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी भूखा न रहे और कोई भी कुपोषित न हो, लेकिन सिस्टम मौजूद हैं.

इसे भी पढ़ें: महामारी से सीख: मिलिए मध्य प्रदेश की कृष्णा मवासी से, जिनके किचन गार्डन ने उनके गांव को भुखमरी से बचाया

शार्प ने सरकार के खाद्य सुरक्षा शुद्ध कार्यक्रमों और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस), पोषण 2.0 और मिड डे मील योजना जैसे पोषण कार्यक्रमों की सराहना की. उन्‍होंने कहा,

ये सभी प्रणालियां केवल विकास के परिणामों में सुधार के लिए आधार देती हैं, लेकिन आने वाले झटकों से निपटने के लिए वे वास्तव में महत्वपूर्ण रहे हैं. कई देश COVID, टकराव और इस तरह के कुछ झटके झेलने में सक्षम नहीं हैं. भारत में भारतीय राष्ट्रीय टेक-सैट, आधार कार्ड, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड और डिजिटलीकरण जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियां भी हैं. अब आपके पास बायोमेट्रिक-आधारित क्षमता है कि आप न केवल लोगों को लक्षित कर सकते हैं बल्कि देश भर में घूमते समय उनको फॉलो कर सकते हैं. यह भी गंभीर रूप से महत्वपूर्ण है.

‘किसी को भी पीछे न छोड़ें’ में विश्वास करने का मतलब जीरो हंगर के सतत विकास लक्ष्य 2 की ओर एक कदम उठाना भी है. इनमें से एक लक्ष्य 2030 तक भूख को खत्‍म करना और सभी लोगों, विशेष रूप से गरीबों और शिशुओं सहित कमजोर परिस्थितियों में लोगों को पूरे वर्ष सुरक्षित, पौष्टिक और पर्याप्त भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करना है. उपरोक्त लक्ष्य के महत्व के बारे में बात करते हुए शार्प ने कहा,

यदि बच्चों को उचित पोषण नहीं मिलेगा, तो वे सीखने में सक्षम नहीं होंगे. शायद वे इसे स्कूल नहीं बना पाएंगे. यदि महिलाओं के पास उचित पोषण नहीं है, तो वे ऐसे बच्चों को जन्म नहीं दे पाएंगी जो उचित स्वास्थ्य स्थिति के साथ पैदा हुए हैं और यह सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं हैं कि खाद्य सुरक्षा के मामले में उन्‍हें सिर्फ उतना ही मिल रहा है जिसकी उन्हें आवश्यकता है.

इसे भी पढ़ें: राय: जलवायु परिवर्तन और पोषण संबंधी चुनौतियों से लड़ने में मदद कर सकता है बाजरा

आगे खाद्य सुरक्षा के बारे में बात करते हुए और इसे सभी के लिए सुनिश्चित करने के लिए क्या आवश्यक है, शार्प ने कहा,

सभी एसडीजी के लिए खाद्य सुरक्षा व्यक्तियों, परिवारों, समुदायों और समाज के लिए महत्वपूर्ण है. अब फिर से, यह वास्तव में प्रोडक्टिविटी बढ़ाने से जुड़ा हुआ है. भारत में, उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली बहुत सारे काम में लगी हुई है जो विशेष रूप से छोटे धारकों को उत्पादकता में सुधार करने में मदद करने से जुड़ा हुआ है. फिलहाल, औसतन उत्पादकता अपेक्षाकृत कम है. दूसरा, यह उन लोगों के लिए बाजारों तक पहुंच, भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करने के बारे में है, जो विभिन्न बाधाओं का सामना कर सकते हैं. यह हमारे व्यवहार को मौलिक स्तर पर बदलने के बारे में भी है -जैसे स्थानीय उत्पादन खाने के बारे में, मौसमी उत्पादन के उपभोग पर अधिक ध्यान केंद्रित करना, उन फसलों को समझना जिन्हें हम अक्सर सुपरफूड, अधिक जलवायु लचीला, कम पानी का उपयोग और वास्तव में अधिक पौष्टिक कहते हैं.

जीरो हंगर के लक्ष्य तक पहुंचने के बारे में अधिक पूछे जाने पर, शार्प ने कहा,

यह वास्तव में जरूरी है कि हम बहुत सारे प्रोडक्‍शन को मोनो-फसल और फूड प्रोडक्‍ट से दूर कर दें, खासकर उन्‍हें जिनका पोषण मूल्‍य कम हो, पानी के मामले में हाई खपत और जलवायु के लिए बहुत लचीले नहीं हैं. मार्केट के नेचर को बदलने के लिए, हम जो खाते हैं उसकी प्रकृति को बदलते हैं, इसके लिए हम कृषि-व्यवसाय और कृषि-प्रणाली को एक अलग तरीके से समझते हैं और महत्व देते हैं.

शार्प ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह केवल सरकार, बिजनेस और इंडस्‍ट्री के बारे में नहीं है. यह व्यक्तियों और उपभोक्ताओं के बारे में भी है और जिस तरह से हम मार्केट को चला सकते हैं, हम अपनी खपत को बदल सकते हैं ताकि यह टिकाऊ हो ताकि हम सभी भविष्य में कामयाब हो सकें.

इसे भी पढ़ें: अपने फूड को जानें: अपनी डाइट में बाजरे को शामिल करने के लिए क्या करें और क्या न करें?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version