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मास्टिटिस, स्तनपान कराने वाली मांओं को होने वाली स्वास्थ्य समस्‍या

एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया ने मास्टिटिस, इसके कारणों, उपचार और निवारक उपायों के बारे में सीनियर लैक्टेशन कंसल्टेंट डॉ शची बावेजा और वरिष्ठ सलाहकार नियोनेटोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ तुषार पारिख से बात की

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मास्टिटिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें महिला के स्तन के ऊतकों में असामान्य रूप से सूजन या फुलाव हो जाता है

नई दिल्ली: स्तनपान एक नई मां के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अनुभवों में से एक है. हालांकि, कई महिलाओं को दूध में अनियमितता, स्तनों में दर्द, सूजन और अन्य समस्‍याओं के कारण स्तनपान कराने में दिक्‍कत का सामना करना पड़ता है. इनमें सबसे गंभीर और आम समस्याओं में से एक है मास्टिटिस, जिसका सामना अकसर नई माताओं को करना पड़ता है.

‘एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया’ ने मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में सेंटर फॉर चाइल्ड हेल्थ की सीनियर लैक्टेशन कंसल्टेंट (इंटरनेशनल बोर्ड-सर्टिफाइड लैक्टेशन कंसल्टेंट) डॉ. शची खरे बवेजा से मास्टिटिस, इसके निदान, लक्षण, उपचार और निवारक उपायों के बारे में जाना.

मास्टिटिस (स्तनों में सूजन)

मास्टिटिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें महिला के स्तन के ऊतकों में असामान्य रूप से सूजन या फुलाव हो जाता है. यह आमतौर पर स्तन नलिकाओं के संक्रमण के कारण होता है. डॉ. बवेजा ने बताया कि कोई भी चीज जो स्तन के अंदर सूजन का कारण बनती है, वह मास्टिटिस का कारण बन सकती है. यह आमतौर पर तब होता है जब नवजात शिशु स्तन को ठीक से नहीं चूसता. इस कारण दूध स्तन के अंदर जमा होता रहता है और स्तन ग्रंथियों से आसपास के क्षेत्र में रिसने लगता है.

उन्होंने बताया कि स्तन के दो भाग होते हैं. पहला, ग्रंथि क्षेत्र, जहां दूध जमा होता है, और दूसरा भाग सहायक ऊतकों का होता है. मास्टिटिस में दूध ग्रंथियों से बाहर रिसने लगता है और ऊतकों में फैलने लगता है. ये ऊतक अपने अंदर दूध के रिसाव के कारण सूज जाते हैं.

मदरहुड हॉस्पिटल के वरिष्ठ सलाहकार नियोनेटोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. तुषार पारिख ने अनुचित स्तनपान के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मास्टिटिस के खतरे को भी बढ़ा सकता है.

उन्‍होंने बताया कि नई माताओं के स्‍तनों में स्वाभाविक रूप से दूध बनता है. हालांकि ऐसा सभी मांओं के साथ नहीं होता. इसके साथ ही यदि स्‍तनपान कराने का तरीका ठीक नहीं होता, तो मां को दूध पिलाने के दौरान असहनीय दर्द का अनुभव हो सकता है, जो दूध के प्रवाह को और प्रभावित करता है.

मास्टिटिस के कारण

डॉ. बवेजा ने कहा कि शिशु का स्तन से ठीक से दूध न पीना इसका प्रमुख कारण है. हालांकि मास्टिटिस के कुछ अन्‍य कारण भी होते हैं, जो इस प्रकार हैं :

  • क्षतिग्रस्त स्तन ऊतक
  • नियमित रूप से दूध न पिलाना
  • स्तन के किसी खास हिस्से या पूरे स्तन से दूध ठीक से न निकालना
  • निपल में चोट: जब बच्चा अच्छी तरह से चूसने में सक्षम नहीं होता है तब वह निपल को चबाने लगता जिससे निपल चोटिल हो जाता है और उस क्षेत्र पर रहने वाले बैक्टीरिया निपल के छिद्र के रास्‍ते स्तन में प्रवेश कर जाते हैं
  • निपल शील्ड के गलत इस्‍तेमाल से दूध कम स्थानांतरित होता है. एक मां को मास्टिटिस अधिक आसानी से हो सकता है क्योंकि बच्चा स्तन को पूरी तरह से खाली नहीं कर रहा है
  • स्तन पंपों का गलत उपयोग: पंपिंग के माध्यम से दूध की आपूर्ति को बहुत अधिक बढ़ाने से स्तन में रक्त जमा हो सकता है, दूध नलिकाएं अवरुद्ध हो सकती हैं और मास्टिटिस का खतरा बढ़ सकता है
  • स्तनपान के लिए अनुचित तकनीक

डॉ. बवेजा के मुताबिक,

मास्टिटिस की अगर सही ढंग से रोकथाम न की जाए, तो इससे स्तन में फोड़ा हो सकता है और मवाद बन सकती है, जिसे स्तन फोड़ा (ब्रेस्‍ट एबसेस) कहा जाता है. हालांकि मास्टिटिस हमेशा संक्रामक नहीं होता, लेकिन अगर इसे समय पर (सूजन के दौरान) ठीक करने के उपाय नहीं किए जाते हैं, तो यह संक्रामक हो जाता है.

इसे भी पढ़ें: मां और शिशु दोनों के लिए ब्रेस्टफीडिंग क्यों जरूरी है? 

मास्टिटिस के लक्षण

सूजन के अलावा मास्टिटिस के लक्षणों में स्तन की त्वचा पर लाल धब्बे, ठंड लगना, शरीर में दर्द, जी मिचलाना, बुखार, थकान, स्तन में दर्द, स्तन में जकड़न और स्तनपान करते समय जलन होने जैसी बातें हो सकती हैं.

इलाज

नई माताओं को जो जो पहली बात ध्‍यान में रखनी चाहिए, वह यह है कि सभी लैक्‍टेशन कंसल्‍टेंट मास्टिटिस का इलाज नहीं कर सकते. इसका इलाज केवल रजिस्‍टर्ड और विशेषज्ञ डॉक्‍टरों से ही कराना चाहिए. डॉ. पारिख के अनुसार अगर इसे शुरुआत में ही पहचान लिया जाए, तो अधिकतर मामलों में मास्टिटिस महज़ 24 घंटे में ही ठीक होने लगता है.

मास्टिटिस के इलाज में ये बातें शामिल हैं:

  • सूजनरोधी दवाएं देकर सूजन या जलन को खत्‍म करना
  • स्तनों को आराम देने के लिए ठंडी सिकाई जैसे उपाय करना
  • सूजन संक्रामक तो नहीं हो रही, इसकी जांच प्रसूति विशेषज्ञ से करवा कर जरूरी दवाएं लेना
  • प्रशिक्षित लैक्‍टेशन प्रोफेशनल की मदद से नवजात शिशु के स्तनपान को ठीक करना
  • स्तन के फोड़े के उपचार के लिए जरूरत होने पर अल्ट्रासाउंड निर्देशित सुई एस्पिरेशन (अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के माध्यम से मवाद निकालना) या सर्जरी की जाती है

निवारक उपाय

डॉ. बवेजा ने कुछ निवारक उपाय बताए हैं, जिनका पालन महिलाएं स्तनपान शुरू करने के बाद कर सकती हैं:

  • यह सुनिश्चित करना कि दूध पीते वक्‍त निपल्स पर शिशु की पकड़ सही हो
  • ढीले-ढाले कपड़े पहनना
  • स्‍तन के किसी हिस्‍से में दर्द महसूस होने पर उस जगह अपने स्तन का दूध लगाना
  • पंप का सही ढंग से उपयोग करना और स्तन को अत्यधिक उत्तेजित करने से बचना सीखना
  • दूध नलिकाओं से नियमित रूप से दूध निकालना भी जरूरी है. यह काम या तो दूध पिला कर या पम्पिंग द्वारा दूध निकाल कर किया जा सकता है. इससे स्तन की सूजन को कम करने में मदद मिलेगी

डॉ. बवेजा और डॉ. पारिख दोनों ने कहा कि अगर मां को नींद की कमी और शारीरिक और मानसिक तनाव जैसी समस्‍याओं का सामना करना पड़ रहा है, तो इलाज में थोड़ी मुश्किल हो सकती है, जिसका सामना आमतौर पर नई माताओं को करना पड़ता है. इसके अलावा, मां के पोषण पर भी ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि दूध पिलाने वाली मांओं को अच्‍छा पोषण मिलने पर इस तरह की समस्‍याओं की संभावना कम हो जाती है.

डॉ. पारिख ने कहा कि नई माताओं को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए जैसी बातों में परंपराओं का पालन करने से ज्‍यादा पोषण, उचित देखभाल स्तनपान विशेषज्ञ या सलाहकार की परामर्श पर भरोसा करना चाहिए.

डॉ. बवेजा ने कहा कि स्तनपान कराने वाली मां का आहार प्रोबायोटिक से भरपूर होना चाहिए. आम भारतीय आहार में प्रोबायोटिक्स के कुछ अच्छे स्रोतों में दही, अंकुरित अनाज, फरमेंटेड खाद्य पदार्थ, अचार, चटनी, कोम्बुचा जैसी चीजें शामिल हैं.

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