नई दिल्ली: चाय के शौकीनों के बीच लगभग 200 साल पुराने असम वैरिएंट की एक खास जगह है जिसका मुकाबला बहुत कम वैरिएंट कर सकते हैं. एंटीऑक्सीडेंट और खनिजों से भरपूर होने के चलते ये फैट से लड़ने, इम्यून और पाचन तंत्र को मजबूत करने के साथ-साथ दिल को स्वस्थ रखने में मदद करती है, जो लोग इस चाय को एन्जॉय करते हैं, उनका कभी भी असम चाय के स्वाद से मन नहीं भरता. इसका अनोखा स्वाद इस जगह और यहां की जलवायु की वजह से है. यहां की मिट्टी की क्वालिटी से लेकर तापमान, बारिश और खेती की तकनीकों के सही मिश्रण से बनती है यह चाय. यह प्राकृतिक और मानव निर्मित कारणों का एक नाजुक संतुलन है, जो असम चाय को इसकी खास सुगंध और स्वाद देता है. अब यही संतुलन खतरे में नजर आ रहा है.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा चाय पीने वाला देश है और असम देश का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है. यहां देश के चाय उत्पादन का लगभग 52 प्रतिशत और विश्व के चाय उत्पादन के करीब 13 प्रतिशत का उत्पादन होता है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस राज्य में लगभग 800 संगठित चाय बागान हैं, जो सामूहिक रूप से 630-700 मिलियन किलोग्राम चाय का उत्पादन करते हैं. हालांकि बढ़ते तापमान और मौसम में भारी उतार-चढ़ाव की वजह से असम चाय की क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों प्रभावित हो रही हैं.
असम की चाय और प्रकृति की अनियमितताएं
असम चाय का रंग गहरा एम्बर (deep amber) होता है और यह अपने खास स्वाद के लिए जानी जाती है. टी बोर्ड इंडिया (Tea Board India) का कहना है,
कहते हैं कि ‘अगर आपने असम की चाय नहीं पी है तो आप पूरी तरह से नींद से जागे ही नहीं हैं.’ यहां ऑर्थोडॉक्स और CTC (Crush/Tear/Curl) दोनों तरह की चाय का उत्पादन यहां किया जाता है. असम ऑर्थोडॉक्स टी एक रजिस्टर्ड ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) है. जबकि फ्लश ऑर्थोडॉक्स असम टी (flush orthodox Assam teas) को उनके रिच टेस्ट की वजह से महत्व दिया जाता है और इसे दुनिया की सबसे बेहतरीन चायों में से एक माना जाता है.
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यह कड़क चाय (strong tea) काफी हद तक मौसम पर निर्भर करती है और अब तेजी से बदलते मौसम की वजह से इसका अस्तित्व खतरे में है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट रिपोर्ट, “Climate India 2023: An assessment of extreme weather events” के मुताबिक, 1 जनवरी से 30 सितंबर, 2023 के बीच, असम में 48,029 हेक्टेयर एरिया की फसल का नुकसान हुआ. अकेले जून महीने में असम में 10,592 हेक्टेयर एरिया की फसल प्रभावित हुई. अगस्त में, जब भारत को भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन का सामना करना पड़ा, तो असम मौसम में भारी उतार-चढ़ाव की घटनाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ.
मौसम में भारी उतार-चढ़ाव के चलते चाय उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है. टी बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक असम में, अगस्त 2023 में उत्पादन घटकर 99.78 मिलियन किलोग्राम (mkgs) हो गया, जबकि अगस्त 2022 में यह 109.81मिलियन किलोग्राम था. यानी चाय के उत्पादन में नौ प्रतिशत की गिरावट आई.
2021 में, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) ने क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी इंडेक्स रिपोर्ट “Mapping India’s Climate Vulnerability – A District Level Assessment” में असम को नंबर एक पर रखा. बाढ़ की घटनाओं से प्रभावित असम का ओवरऑल वल्नरेबिलिटी इंडेक्स स्कोर 0.616 है – इसका मतलब है कि यह बाढ़, सूखा, चक्रवात, हिमस्खलन और हीटवेव जैसी आपदाओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील है.
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असम में चाय की फसल का चक्र
असम में चाय नौ महीने की फसल होती है; इसकी कटाई मार्च से नवंबर तक होती है. सर्दियों के दौरान, दिसंबर से फरवरी के बीच, चाय के पौधे सुप्त अवधि (dormancy period) में प्रवेश करते हैं. ढेकियाजुली टी एस्टेट (Dhekiajuli Tea Estate) के मैनेजर भूपेन्द्र सिंह ने चाय उगाने के पूरे चक्र और इसे तोड़ने के मौसम के बारे में बताते हुए कहा,
पूर्वी क्षेत्र में, दिसंबर के दौरान दिन छोटा होता है और रात लंबी होती है. शाम 4 बजे तक अंधेरा हो जाता है. धूप की कमी और कम तापमान के कारण 15 दिसंबर तक चाय की खेती बंद हो जाती है. सभी प्लांट बंद हो जाते हैं.
पहला फ्लश यानी साल की पहली फसल मार्च के मध्य में शुरू होती है, जो 30-35 दिनों तक चलती है. यह तब होता है जब राज्य में अच्छी धूप और कम बारिश होती है, जिससे चाय की पत्तियों तेजी से बढ़ती हैं. असम के तेजपुर की रहने वाली शिबानी कृष्णात्रय ने कहा,
असम में वसंत या प्री-मॉनसून सीजन में तूफान आते हैं, जो सर्दियों के शुष्क दौर को खत्म कर देते हैं. सुहाने मौसम से ऑर्किड और फूलों का विकास होता है. इस समय के दौरान बारिश ज्यादातर ठंडी होती है.
दूसरा फ्लश या समर फ्लश पहले फ्लश के तुरंत बाद शुरू होता है, उसके बाद मानसून फ्लश (अक्टूबर के अंत-नवंबर के पहले सप्ताह तक जारी रहता है) और उसके बाद ऑटम फ्लश आता है.
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बदलती जलवायु परिस्थितियां और असम की चाय पर इसका असर
भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि चाय की अच्छी पैदावार के लिए जरूरत होती है – 25-32 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान, लगभग 200 सेंटीमीटर की अच्छी सालाना बारिश, दिन की लंबाई कम से कम नौ से 10 घंटे, और न्यूनतम तापमान 10-12 डिग्री से नीचे नहीं जाना चाहिए. उन्होंने कहा,
यह चाय की खेती के लिए आदर्श स्थिति है, लेकिन असम में तापमान अब लगभग 40 डिग्री तक पहुंच रहा है. इस साल जून में हमने लगभग 42 डिग्री तापमान दर्ज किया है.
भूपेन्द्र सिंह, जो 15 साल पहले ढेकियाजुली टी एस्टेट से जुड़े थे, पिछले कुछ सालों में उन्होंने बारिश में 30-35 प्रतिशत की कमी देखी है, जिससे फसल की उपज में 20-25 प्रतिशत की गिरावट आई है. उन्होंने कहा,
असम में, कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, सिंचाई कभी भी हमारी जरूरत नहीं थी. लेकिन, बढ़ते तापमान और बारिश में गिरावट के चलते सिंचाई अब यहां कोई लग्जरी नहीं रह गई है. बदलते मौसम से चाय की क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों पर बुरा असर पड़ रहा है.
हीलीका टी एस्टेट (Heeleakah Tea Estate) के जनरल मैनेजर के एन सिंह (K N Singh) ने कहा,
अगर आप फरवरी या मार्च में पहले फ्लश यानी पहली फसल की चाय पीते हैं, तो आपको चाय में मिठास नहीं मिलेगी, क्योंकि तब बारिश नहीं होती है. जब बारिश होती है, तो चाय में एक मिठास होती है. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं, पिछले कुछ दशकों से हम पहले फ्लश और दूसरे फ्लश के बीच अंतर नहीं कर पा रहे हैं.
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नॉर्थ ईस्टर्न टी एसोसिएशन (NETA) के एडवाइजर, टी बोर्ड इंडिया के पूर्व वाइस प्रेसिडेंट और टी रिसर्च एसोसिएशन (TRA) के काउंसिल मेंबर बिद्यानंद बरकाकोटी (Bidyananda Barkakoty) ने कहा,
जलवायु परिवर्तन के चलते या तो हम ऐसे हालातों का सामना करते हैं जब लंबे समय तक बारिश नहीं होती, या फिर काफी तेज बारिश का सामना करना पड़ता है. इसके चलते जल जमाव और मिट्टी का कटाव होता है. इसके अलावा इस वजह से दिन का तापमान चाय के अनुकूल होने की तुलना में बहुत ज्यादा होता है. यहां तक की टी एस्टेट में काम करने वाले लोग भी ज्यादा गर्मी होने पर काम नहीं कर पाते हैं.
असम में जन्मे और पले-बढ़े 55 साल के बिद्यानंद बरकाकोटी ने पिछले पांच दशकों में धीरे-धीरे तापमान में हो रही वृद्धि देखी है.
पहले हम अक्टूबर में पड़ने वाली दुर्गा पूजा के बाद पंखे बंद कर देते थे और अप्रैल में बोहाग बिहू के दौरान ही उनका नियमित इस्तेमाल शुरू करते थे. लेकिन आज दिसंबर में भी हमें स्वेटर या कोट पहनने की जरूरत नहीं महसूस होती है.
असम के गोलाघाट जिले के बोकाखाट टी एस्टेट (Bokakhat Tea Estate) से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल, बोकाखाट में पिछले 15 सालों में सबसे कम बारिश हुई है. 2008 (जनवरी-अगस्त) में बोकाखाट में 64.63 इंच बारिश हुई थी. जबकि 2023 में यह 33 फीसदी गिरकर 43.05 इंच रह गई.
असम कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. मृणाल सैकिया ने कहा,
2009-2019 के बीच जहां बारिश में 10.6 मिलीमीटर की गिरावट आई है, वहीं तापमान में 0.49 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी देखी गई है. जिसकी वजह से मौसम में बदलाव आ रहा है.
बिद्यानंद बरकाकोटी ने आगे कहा,
चाय की क्वालिटी सुधारने के लिए हम साल में दो बार फर्टिलाइजर डालते हैं. इसके लिए पहली शर्त नमी वाली मिट्टी होती है. लेकिन अब या तो भारी बारिश होती है या अत्यधिक धूप रहती है, जिससे हमें समय पर फर्टिलाइजर इस्तेमाल करने का मौका नहीं मिलता.
इसके अलावा, तापमान में वृद्धि के साथ कीटों के संक्रमण की संभावना भी बढ़ जाती है.
नीलामी में बेची जाने वाली चाय की कीमत में भी पिछले एक दशक के दौरान इसकी अलग-अलग कैटेगरी में 15 से 20 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. चाय उद्योग का दावा है कि मौसम और जलवायु ही इसकी प्रमुख वजह है.
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18 दिसंबर को न्यूज एजेंसी ANI के साथ एक इंटरव्यू में, गुवाहाटी टी ऑक्शन बायर्स एसोसिएशन (Guwahati Tea Auction Buyer’s Association – GTABA) के सेक्रेटरी दिनेश बिहानी ने कहा कि जहां तापमान बढ़ने की वजह से चाय की क्वालिटी पर असर पड़ा है वहीं अचानक और असमान बारिश के कारण इसकी पैदावार भी घटी है. उन्होंने कहा,
इसका असर चाय के निर्यात पर भी पड़ा है. जलवायु परिवर्तन और रूस-यूक्रेन वॉर के कारण यह साल चाय उद्योग के लिए अच्छा नहीं रहा है. हमें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है और चाय की कीमत भी गिरी है.
क्या असम का चाय उद्योग जलवायु परिवर्तन को अपना सकता है और इस समस्या से उबर सकता है?
बरकाकोटी ने कहा, “असम के लिए जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है, और हम इसका खामियाजा भुगत रहे हैं.” उन्होंने बदलती जलवायु के अनुकूल ढलने के लिए चार स्टेप बताए:
- सिंचाई: हमें सिंचाई सुविधाएं, खासतौर से स्प्रिंकलर सिंचाई के बजाय ड्रिप सिंचाई मुहैया कराने में सरकार के सहयोग की जरूरत है.
- रेन वॉटर हार्वेस्टिंग: 30-40 साल पहले तक, चाय बागानों के परिसर में तालाब हुआ करते थे. यह विपरीत परिस्थितियों के दौरान मदद करने के लिए होते थे. धीरे-धीरे यह कॉन्सेप्ट गायब हो गया. हमें तालाबों के इस कॉन्सेप्ट को फिर से शुरू करना होगा.
- छायादार पेड़: चाय के बागानों को छांव की जरूरत होती है जिसके लिए चाय की झाड़ियों के बीच छायादार पेड़ लगाए जाते हैं. चाय की झाड़ियों को गर्मी से बचाने के लिए हमें छायादार पेड़ों की संख्या बढ़ानी होगी.
- फसल सुधार: लंबे समय में अनुकूलन के लिए हमें चाय के पौधों की नई किस्मों की जरूरत होगी, जो जलवायु परिवर्तन का सामना कर सकें.
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