नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन ने आज के समय में हमारे भविष्य की अनिश्चितता को बढ़ा दिया है. जैसे-जैसे इसका प्रभाव बढ़ रहा है, एक बात निश्चित हो गई है: हम धरती को आने वाली जनरेशन के भरोसे छोड़ देंगे. ऐसे में आज की युवा पीढ़ी के लिए जलवायु परिवर्तन और इसके यूज और एडॉप्शन के बारे में बात करना जरूरी हो जाता है.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि युवा आबादी जलवायु परिवर्तन की पीड़ित होने के बजाय इसमें महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बने, इसलिए उत्तराखंड का एक NGO वेस्ट वारियर्स ‘ग्रीन गुरुकुल’ नाम से एक कम्युनिटी एक्टिवेशन प्रोग्राम चला रहा है.
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ग्रीन गुरुकुल
ग्रीन गुरुकुल की शुरुआत 2017 में की गई थी. शुरू में लगभग 22 स्कूलों के 3,223 स्टूडेंट्स इसका हिस्सा बने थे. 7 सालों में 70 से अधिक स्कूलों के लगभग 39 हजार छात्र इस पहल के साथ जुड़ चुके हैं.
ग्रीन गुरुकुल एक इंटर-स्कूल ओवरऑल स्टूडेंट इंटरेक्शन प्रोग्राम है, जो स्कूली छात्रों को एक्टिविटीज और पहलों के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने के लिए एक प्लेटफार्म प्रदान करता है. इस प्रोग्राम को जलवायु परिवर्तन और वेस्ट मैनेजमेंट सहित कई पर्यावरणीय मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने में मदद करने के लिए और इसमें स्कूलों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया गया है. इसका उद्देश्य उन पर्यावरणीय मुद्दों को उजागर करना है, जिनका एक देश के रूप में हम सामना कर रहे हैं. इन एक्टिविटीज से इनोवेशन, क्रिएटिविटी और लीडरशिप स्किल को बढ़ाने का काम होता है, जो ज्यादातर रिजल्ट ओरिएंटेड होते हैं.
एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम से बात करते हुए वेस्ट वॉरियर्स के CEO विशाल कुमार ने कहा कि इस पहल के पीछे एक निजी कारण था. उन्होंने कहा,
ये काफी पर्सनल था. हमने पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी नौकरियां छोड़ दी थी. हम शुरू से ही बच्चों को पर्यावरण के मुद्दे पर जागरूक करना चाहते थे.
पर्यावरण के प्रति जागरूक करने वाली ये पहल कक्षा 6 से कक्षा 12 तक के स्टूडेंट्स के बीच चलाई जाती है. यह प्रोग्राम हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में चलाया जाता है.
इस पहलके तहत, NGO एक ग्रीन कैंपस प्रोग्राम चलाता है. यह प्रोग्राम आज के समय में हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सोलन, नालागढ़, कांगड़ा जिलों में एक्टिव है. इसका उद्देश्य यहां के स्कूलों को ग्रीन कैंपस में बदलना है. इसके तहत, उन्होंने एक हॉलिस्टिक वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम बनाया है, जो बच्चों के बीच जलवायु परिवर्तन के बारे में जानकारी देता है. इस प्रोजेक्ट का एक इंटीग्रेटेड अप्रोच है, जिसमें वे अलग-अलग माध्यमों से छात्रों को इंटरैक्टिव सेशन में शामिल करते हैं. इसमें मूवी स्क्रीनिंग, गेम और जलवायु परिवर्तन, स्किट और अन्य एक्टिविटी जैसे क्विज शामिल हैं.
इसके अलावा, NGO स्कूल के टीचर्स, सफाई कर्मचारी और मिड-डे मील बनाने वालों के साथ भी सेशन आयोजित कर उन्हें जागरूक करता है, ताकि सभी लोग अपनी जिम्मेदारियों और स्कूल कैंपस में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट में उनका पर्सनल और कलेक्टिव योगदान दें.
इस NGO का एक ‘टीचर ट्रेनिंग मॉड्यूल’ है, जिसमें स्कूल के टीचर्स को वेस्ट मैनेजमेंट, क्लाइमेट चेंज, सस्टेनेबिलिटी और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों के बारे में जानकारी देता है, जिससे वे क्लासरूम में स्टूडेंट्स को इस बारे में सिखा सकें. इसमें टीचर्स को बताया जाता है कि वे स्टूडेंट्स के साथ कैसे इस मुद्दे पर बात करें. इसके लिए उन्हें कई एक्टिविटीज में पार्ट लेने के लिए कहा जाता है. यह प्रोग्राम 6 सेशन और 4 महीने का होता है. इसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से सेशन किए जाते हैं.
NGO ने ग्रीन कैंपस प्रोग्राम के तहत कई इनेवेटिव प्रोडक्ट रखें हैं, जिससे छात्र उन एक्टिविटीज को प्रैक्टिस कर सकें, जो उन्हें क्लासरूम में सिखाई जाती हैं.
गुल्लक: स्कूलों में टिन के डिब्बे रखे गए हैं, जिसमें छात्र सूखा कचरा डालते हैं. वहीं गीले कचरे और सैनिटरी के लिए डस्टबिन है. इसका उद्देश्य छात्रों को गीले और सूखे कचरों को अलग-अलग जमा करना सिखाना है.
वेस्ट थैली– बच्चों को पुराने कपड़ों को रीयूज करके बनाई गई एक थैली रखना सिखाया जाता है, जिसे वे अपने साथ कहीं भी ले जा सकते हैं. इसमें बच्चे कचरों को जमा करते है और डस्टबिन मिलने पर उसमें फेंक देते हैं.
जीरो वेस्ट कलेक्शन सर्विस वाले स्कूलों के लिए सैनिटरी वेस्ट का मैनेजमेंट एक बड़ी चुनौती हो सकती है. इंटरैक्टिव सेशन के माध्यम से NGO ने छात्राओं को सस्टेनेबल मेन्स्ट्रुअल हाइजीन प्रोडक्ट जैसे रीयूजेबल पैड्स और मेंस्ट्रुअल कप के बारे में जानकारी दी है.
ग्रीन कैंपस प्रोग्राम के बारे में अपने अनुभव को शेयर करते हुए नालागढ़ सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल के टीचर हरिओम ने कहा,
वेस्ट वारियर्स टीम ने हमारे स्कूल में ग्रीन कैंपस प्रोग्राम शुरू किया. वेस्ट वॉरियर्स टीम के सभी एक्टिविटी में छात्रों ने बहुत उत्साह से भाग लिया. मैं उन प्रयासों की सराहना करता हूं जो इस संगठन ने युवा पीढ़ी को संवेदनशील बनाने के लिए शुरू किया है.
नालागढ़ के ही एक टीचर अरुण ने कहा,
हमारे स्कूल में कोई वेस्ट कलेक्शन सर्विस नहीं है. ग्रीन कैंपस प्रोग्राम की मदद से सूखे कचरे को अलग करने के लिए स्कूल के अंदर बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया गया है और गीले कचरे के लिए कंपोस्टिंग पिट बनाए गए हैं. वेस्ट वॉरियर्स की टीम की गतिविधियों की मदद से छात्रों ने कचरे को अलग करना सीखा. टीम के साथ काम करके बहुत अच्छा लगा क्योंकि वे बहुत एनर्जेटिक और उत्साही हैं.
गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल परवाणु की प्रिंसिपल किरण शर्मा ने कहा,
ग्रीन कैंपस प्रोग्राम के तहत वेस्ट वॉरियर्स ने स्कूल में कई एक्टिविटीज का आयोजन किया. क्रिएटिव गेम्स और वॉल पेंटिंग की मदद से टीम ने छात्रों को वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में शिक्षित किया. स्कूल को गुल्लक और डस्टबिन भी दिए. हम वेस्ट वॉरियर्स टीम को उनके इस इनिशिएटिव के लिए धन्यवाद देते हैं.
इंटरैक्टिव क्लास सेशन
इस पहल को और अधिक इंटरैक्टिव बनाने के लिए NGO रैप कंपटीशन जैसे कई फन एक्टिविटीज भी कराता है. पिछले साल ही इन्होंने वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में अवेयरनेस बढ़ाने के लिए वेस्ट ऑनलाइन रैप कंपटीशन करवाया था. इस सेशन में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई स्कूल शामिल हुए थे.
इसके साथ ही NGO ने Game of Throws नाम का प्ले करवाया था,जो वेब सीरीज Game of Thrones से इंस्पायर था. इसमें बच्चों को घर और स्कूल में वेस्ट मैनेजमेंट के महत्व और प्रोसेस के बारे में बताया गया था. एक टीचर कुमार ने इस बारे में कहा,
ऐसे कनेक्शन के छात्रों को जुड़ाव होता है, जिससे उन्हें ऊर्जा और प्रोत्साहन मिलता है.
छात्रों ने भी दिखाई दिलचस्पी
गवर्नमेंट गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल, नालागढ़ की कक्षा 11 की छात्रा जेबा रानी ने बताया कि कैसे NGO ने उन्हें अलग-अलग कचरे के बारे में सिखाया है. जेबा ने कहा,
टीम ने हमें चार प्रकार के कचरे- सूखा, गीला, इलेक्ट्रॉनिक और अन्य खतरनाक- वेस्ट दिखाया और हमें हर प्रकार के कचरे को अलग करने के तरीके सिखाए. फिर हमें कई तरीके के प्रोडक्ट दिए गए, जिन्हें हमें निपटाने के लिए कहा गया.
रानी ने बताया कि उसने कई स्लोगन, चार्ट और कचरे के पाउच भी बनाए हैं, जिन्हें वह घर पर भी इस्तेमाल करती हैं.
नालागढ़ स्कूल की 10वीं कक्षा की छात्रा रेणु ने ग्रीन गुरुकुल कार्यक्रम से मिली सीख के बारे में बात करते हुए कहा,
वेस्ट वॉरियर्स ने हमें प्लास्टिक के उपयोग को कम करना सिखाया. इसी तरह के मैसेज को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहिए. मुझे नहीं पता था कि प्लास्टिक को सड़ने में 20 से 500 साल लग सकते हैं और यह मिट्टी को भी प्रभावित कर सकता है. इसलिए इसका सही तरीके से डिपोज करना ज्यादा जरूरी हो जाता है. मैं घर पर भी इन एक्टिविटी को फॉलो करती हूं. मैं अब सारा प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करती हूं, उसमें पौधे लगाती हूं और उसे स्कूल में डालती हूं.
रेणु ने वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर लिखी गई अपनी के कविता भी हमें सुनाई:
“चलो हमें पृथ्वी को प्लास्टिक से बचाना है,
इसीलिये लोगों को बताना है कि
प्लास्टिक को दुनिया से दूर ले जाना है”
छात्रों में आत्मविश्वास और बढ़ती जागरूकता को देखते हुए विशाल कुमार ने कहा कि उन्होंने पिछली पीढ़ियों की तुलना में आज के युवाओं की चेतना में बदलाव देखा है. उन्होंने कहा कि आज के बच्चे कहीं अधिक जागरूक हैं. उनके पास प्लेटफॉर्म है और वे क्रिएटिव हैं. ग्रीन गुरुकुल एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां ये बच्चे अपनी ऊर्जा को चैनलाइज कर सकते हैं, समाधान का हिस्सा बन सकते हैं, बढ़ सकते हैं और जलवायु परिवर्तन के लीडर बन सकते हैं. कुमार ने कहा,
ये स्कूली बच्चे शानदार हैं; थोड़े से गाइडेंस के साथ, उनमें से अधिकांश ने अपने आस-पास को साफ रखने के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों पर चर्चा करने के लिए अपनी टीमें बनाई हैं. वे सुपरमार्केट जाते हैं और मालिकों को अपने स्टोर में सस्टेनेबल प्रोडक्ट रखने और कचरे के निपटान के तरीकों के बारे में गाइडेंस दे रहे हैं. उन्होंने अपने घरों में बेकार भोजन को कंपोस्ट करना शुरू कर दिया है. इसलिए, यह सब छात्रों की ओर से छात्रों के लिए नेतृत्व किया जा रहा है. इसमें केवल बैकएंड सूत्रधार हैं और हम उनका मार्गदर्शन करते हैं, उनकी निगरानी करते हैं. हम जानते हैं कि वो जो कर रहे हैं उसके लिए हम बस उन्हें सपोर्ट कर रहे हैं. अगर उनको कोई परेशानी आती है, तो हम उनके सपोर्ट में खड़े हैं.
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