नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा जारी एक अध्ययन का अनुमान है कि कृषि उत्पादन में गिरावट और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के कारण 2030 तक लगभग 23 प्रतिशत भारतीयों को भूखे रहना पड़ सकता है. इसमें कहा गया है कि 2030 में भूख से पीड़ित भारतीयों की संख्या 2030 में 73.9 मिलियन होने की उम्मीद है और अगर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को शामिल किया जाए, तो यह बढ़कर 90.6 मिलियन हो जाएगा.
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अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा रिपोर्ट की मुख्य बातें:
- जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के खाद्य उत्पादन में 16 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है और 2030 तक भूखे रहने वाले लोगों की संख्या में 23 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है.
- 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन में लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि होगी. हालांकि, लगभग 50 करोड़ लोगों के भूखे रहने का जोखिम अभी भी बना रहेगा. इन 50 करोड़ लोगों में से सात करोड़ को जलवायु परिवर्तन नहीं होता तो, जोखिम भी नहीं होता.
- यदि जलवायु परिवर्तन फैक्टर्ड होता है तो भारत का कुल खाद्य उत्पादन – अनाज, मांस, फल, सब्जियां, तिलहन, दलहन, जड़ और कंद का वजन के आधार पर एक सूचकांक – सामान्य परिस्थितियों में 1.627 से घटकर 1.549 हो सकता है.
- 2030 तक औसत कैलोरी खपत में मामूली गिरावट की संभावना है. यह जलवायु परिवर्तन के कारण सामान्य परिस्थितियों में 2,697 किलो कैलोरी प्रति व्यक्ति/दिन से 2,651 किलो कैलोरी प्रति व्यक्ति/दिन तक रह सकती है.
- जनसंख्या और आय में अनुमानित वृद्धि के कारण, विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में, विशेष रूप से अफ्रीका में, उत्पादन और मांग अधिक तेजी से बढ़ने का अनुमान है.
- भारत के लिए, बिता हुआ अप्रैल 122 वर्षों में सबसे गर्म रहा, जो अब तक सबसे गर्म मार्च दर्ज किया गया था. 2100 तक पूरे भारत में औसत तापमान 2.4 डिग्री सेल्सियस और 4.4 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ने का अनुमान है. इसी तरह, भारत में हीटवेव के 2100 तक तीन गुना होने का अनुमान है. रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2100 तक पूरे भारत में औसत तापमान 2.4 डिग्री सेल्सियस से 4.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा और उस वर्ष तक गर्मियों के दौरान हीटवेव के तीन गुना होने का अनुमान है.
- उच्च तापमान, चेंज होते बारिश के पैटर्न, समुद्र के स्तर में वृद्धि, और अत्यधिक मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता जैसे सूखा, बाढ़, अत्यधिक गर्मी और चक्रवात पहले से ही कृषि उत्पादकता को कम कर रहे हैं, खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर रहे हैं और समुदायों को विस्थापित कर रहे हैं.
- औसत तापमान में वृद्धि से कृषि उत्पादन प्रभावित होने की संभावना है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2041-2060 तक कृषि पैदावार 1.8 से 6.6 प्रतिशत और 2061-2080 तक 7.2 से 23.6 प्रतिशत तक कम हो सकती है. रिपोर्ट में ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम करने के लिए पानी की कमी वाले उत्तर-पश्चिम और प्रायद्वीपीय भारत में चावल से अन्य फसलों पर स्विच करने का सुझाव दिया गया है. खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाले बिना इस क्षेत्र में चावल के रकबे को कम किया जा सकता है.
सीजीआईएआर के सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन, महानिदेशक, आईएफपीआरआई और वैश्विक निदेशक जोहान स्विनन का कहना है कि शोध से पता चलता है कि कैसे हमारी खाद्य प्रणालियां अभूतपूर्व जलवायु संकट से अविभाज्य रूप से जुड़ी हुई हैं, जिससे अरबों लोगों की खाद्य सुरक्षा, पोषण और स्वास्थ्य को खतरा हो रहा है.
खाद्य प्रणालियां न केवल जलवायु परिवर्तन से गंभीर रूप से प्रभावित होती हैं, जिसके लिए अनुकूलन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता होती है, बल्कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी भूमिका निभाती हैं. फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन में निवेश जलवायु परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन हाल के प्रयासों में खाद्य प्रणालियों में निहित जलवायु-सकारात्मक अनुसंधान, विकास, नीतियों और कार्यक्रमों में निवेश की एक विस्तृत श्रृंखला पर कम ध्यान दिया गया है.
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