नई दिल्ली: आनंद, एकांत, प्रेम या विद्रोह की भावनाओं को व्यक्त करना हो, तो कविता हमेशा से ही एक सशक्त माध्यम रही है. इसके अलावा यह राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के लिए लड़ने से लेकर जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने और उन्हें किसी मकसद के लिए एकजुट करने का जरिया भी बनती रही है. कविताएं हमेशा से ही अपने समय का प्रतिबिंब रही हैं और आगे भी ये हमें आईना दिखाती रहेंगी.
कविताओं की इस ताकत को देखते हुए ही ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW), को इसके जरिये लोगों को जलवायु परिवर्तन से बचने और पर्यावरण में एक स्थिरता लाने के लिए जागरूक करने का विचार आया. सीईईडब्ल्यू ने मुंबई स्थित UnErase Poetry, कविताओं को मंच प्रदान करने वाला एक ग्रुप के साथ मिलकर अपने इस विचार को हकीकत की जमीं पर उतारा.
दोनों संस्थाओं ने मिलकर ‘लव इन द टाइम्स ऑफ क्लाइमेट चेंज’ नाम से एक अनूठे कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें सात कवियों ने इन विषयों पर सात सप्ताह में सात कविताएं लिखी और सुनाईं.
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इस अनूठे अभियान के पीछे सीईईवी का मकसद 18 से 25 वर्ष के बीच के युवाओं को जलवायु परिवर्तन के बारे में सचेत कर जागरूक करना था. कविताओं की मदद से समाज की इस ऊर्जावान आबादी को जलवायु परिवर्तन की चर्चाओं में शामिल करने का इरादे से यह कलात्मक व साहित्यिक पहल की गई.
‘लव इन द टाइम्स ऑफ क्लाइमेट चेंज’ के तहत हिन्दी और अंग्रेजी के सात प्रमुख भारतीय कवियों की रचनाओं को पेश किया गया. जलवायु परिवर्तन की समस्या को एक समकालीन यथार्थ के रूप में स्वीकार करते हुए कवियों ने साहित्य के नज़रिये से इसपर एक नए दृष्टिकोण को बड़े ही दमदार तरीके से पेश किया.
इस अनूठी पहल का विचार कैसे आया और कैसे इसे आगे बढ़ाया गया, इस बारे में जानने के लिए ‘एनडीटीवी -बनेगा स्वस्थ इंडिया’ की टीम ने सीईईडब्ल्यू की वरिष्ठ संचार विशेषज्ञ और पुरालेखपाल अलीना सेन से बातचीत की. सुश्री सेन ने कहा कि यह सारा सिलसिला 168 पन्नों की एक साइंटिफिक रिपोर्ट देखने के बाद शुरू हुआ. इस रिपोर्ट को सीईईडब्ल्यू ने पिछले साल जून में स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय बैठक में एक स्वतंत्र वैज्ञानिक रिपोर्ट के रूप में पेश करने के लिए तैयार किया था. यह रिपोर्ट ‘स्टॉकहोम+50: सभी की समृद्धि के लिए एक स्वस्थ ग्रह- हमारी जिम्मेदारी, हमारा अवसर’ शीर्षक से तैयार की गई थी.
”पिछले साल स्टॉकहोम में हुए सम्मेलन में पूरी दुनिया भर के देशों ने शिरकत की थी. हमने 168 पन्नों की इस रिपोर्ट का सह-लेखन किया था जो ‘बेहतर भविष्य को अनलॉक करने’ के बारे में थी. हम अपनी इस रिपोर्ट में लिखी बातों को दुनिया तक पहुंचाना चाहते थे, पर हम यह भी चाहते थे कि यह पीडीएफ फाइल में पेश की गई महज़ साइंटिफिक रिपोर्ट बनकर न रह जाए. हम अपनी बातों को सरलता के साथ एक अलग अंदाज़ में वैज्ञानिकों और नीति-नियंताओं के साथ-साथ आम जनता तक भी पहुंचाना चाहते थे. ”
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लोकप्रिय कला माध्यमों की खोज में हमारे मन में कविता पाठ के जरिये इसे लोगों के सामने रखने का विचार आया, क्योंकि कविता विचारों को पेश करने का एक ऐसा लोकप्रिय और सशक्त जरिया रही है, जिससे युवाओं को सहज ही जोड़ा जा सकता है. इसके बाद हमारी टीम ने अनइरेस पोएट्री के संस्थापक सिमर सिंह से संपर्क किया. उन्होंने शोध पत्र के सारांश से ही ‘पोर्ट्रेट ऑफ ए सिल्वर लाइनिंग’ शीर्षक से एक बेहतरीन कविता तैयार कर दी. जिसने इस पहल को नए पंख दे दिए.
”कलात्मक अंदाज़ में किसी वैज्ञानिक रिपोर्ट को कितने असरदार तरीके से पेश किया जा सकता है ‘पोर्ट्रेट ऑफ़ ए सिल्वर लाइनिंग’ इसकी एक बेहतरीन मिसाल है. इस कविता में, बड़ी ही खूबसूरती से बताया गया है कि किस तरह पृथ्वी हमारा घर है और इसकी देखभाल करना हम सभी की जिम्मेदारी है.”
सीईईडब्ल्यू टीम और श्री सिंह ने शोध पत्र को कलात्मक तरीके से प्रस्तुत करने और युवा पीढ़ी से जुड़ने के लिए कविता के मंच से अपने विचारों को पेश करने की कवायद पर चर्चा जारी रखी.
”हमने कई कविताओं पर चर्चा की, जो कई सामाजिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए लिखी गई हैं, जैसे कि स्पेनिश कोलम्बियाई लेखक गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ द्वारा ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’. मार्केज़ की इसी कविता से प्रेरित होकर हमारे एक सहयोगी ने इस पहल को ‘लव इन द टाइम्स ऑफ़ क्लाइमेट चेंज’ का शीर्षक दिया और इस तरह हमारी यह यात्रा शुरू हुई.”
टीम ने इस पहल को सात सप्ताह तक जारी रखने का निर्णय लिया. यह अभियान समकालीन संदर्भों में लिखने वाले भारत के सात प्रमुख कवियों को यानी जलवायु परिवर्तन के युग में प्रेम के अनुभवों ‘लव इन द टाइम्स ऑफ़ क्लाइमेट चेंज’ पर लिखने के लिए एक साथ लाया. आज की दुनिया में प्यार, सहचर्य, इच्छा, पुरानी यादों और अन्य भावनाओं के हमारे अनुभवों को बदलती जलवायु कैसे प्रभावित कर रही है या बदल रही है, इस बात को इन कवियों की रचनाएं बड़े ही खूबसूरत और कलात्मक ढंग से पेश करती हैं.
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इस अभियान में प्रिया मलिक, हेली शाह, शुभम श्याम, अमनदीप सिंह, सिमर सिंह, सैनी राज और प्रियांशी बंसल जैसे कवि व कवयित्रियां शामिल हुए.
भारत की सबसे लोकप्रिय और चहेती कवयित्री और कहानीकारों में गिनी जाने वाली प्रिया मलिक ने इस मकसद के लिए सीईईडब्ल्यू के साथ सहयोग करने की अपनी यात्रा के बारे में बताया
”यह विचार मुझे जब मुझे बताया गया, तभी मुझे लगा था कि काफी अच्छी बात है और इसका शीर्षक काफी काबिल ए गौर था. जलवायु परिवर्तन के संदेश को प्यार के रूप में व्यक्त करने की अवधारणा ही मुझे इस अभियान से जुड़ने के लिए राज़ी करने के लिए पर्याप्त थी. इस तरह अपनी धरती के प्रति प्रेम के साथ लोगों के प्रति प्रेम प्रदर्शित करना मेरे लिए प्रेरणा का मकसद बन गया.”
सुश्री मलिक ने कहा कि जब कोई कवि अपने शब्दों के माध्यम से लोगों और धरती के प्यार को जोड़ता है, तो यह कहीं न कहीं लोगों की भावनाओं को उत्तेजित करने वाला होता है, जो आखिरकार काम की शक्ल में फलीभूत होता नज़र आता है. सुश्री मलिक ने बताया कि सीईईडब्ल्यू टीम ने कवियों के साथ बैठ कर उस वैज्ञानिक रिपोर्ट की व्याख्या की, जिसे उन्होंने मिलकर लिखा था. इससे उन्हें इन बातों को अपनी कविता में आत्मसात करने में मदद मिली.
”मुझे काफी खुशी हुई, जब हमें इसका ब्रीफ मिला और साथ ही इस सबके लिए हमें जिस तरह की रचनात्मक स्वतंत्रता मिली. एक और अहम कारण यह था कि चीजों को कलात्मक रूप में पेश करने का विचार हमेशा मेरे दिल के बहुत करीब रहा है, मैं यह करने की कोशिश करती हूं कि मेरी प्रेम कविताओं में भी हमेशा कोई न कोई सामाजिक पहलू जुड़ा हो. इसी वजह से मैं इसमें एक पर्यावरण का पहलू ला सकी, मुझे सीईईडब्ल्यू और अनइरेस पोइट्री से जुड़कर बहुत खुशी हुई.”
प्रिया मलिक की कविता ‘अगर तुम साथ हो’ एक व्यक्ति के अपने प्रिय के लिए प्यार के बारे में है और अपनी अपनी धरती के लिए भी ऐसा ही प्यार उसके भीतर रहता है, वह भी अपने इर्द-गिर्द वातावरण में हो रहे तमाम बदलावों के बावजूद (यहां वातावरण के बदलाव का अर्थ जलवायु परिवर्तन से है).
“तेज तूफान आ सकता है
और नदियां सूख सकती हैं,
कुछ भी हो सकता है।
सबकुछ बदल सकता है.
लेकिन, तुम्हारे लिए मेरा प्यार ठीक वैसा ही रहेगा.
जैसा पृथ्वी को रहना चाहिए…”
लोकप्रिय कवि और देश की कहानीकार हेली शाह भी इस पहल का हिस्सा रहीं. सुश्री शाह ने अपनी कविता के विषय को तय करने की प्रक्रिया के बारे में बताया कि वह अपनी कविता में किस चीज पर बात करना चाहती हैं।
”मेरे लिए विषय तय करने से पहले, इसके बारे में लिखते समय ईमानदार होना महत्वपूर्ण है. और मुझे लगता है कि जब जलवायु परिवर्तन की बात आती है, तो यह एक ऐसी बात है, जिसे हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं. यह कुछ ऐसा है, जिसके बारे में स्कूल और कक्षाओं में बताया जाता है और हम सभी इस बारे में जानते भी हैं, लेकिन जब तक हम इसे अपनी निजी जिंदगी से जोड़कर नही देखते, तब तक इससे जुड़ पाना मुश्किल है. इसलिए मुझे लगता है कि मेरे लेखन मेरा उद्देश्य इसे ‘व्यक्तिगत’ बनाना था, क्योंकि अकसर हम सोचते हैं कि यह कोई दूर की कौड़ी है, जो दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में हो रही है, जबकि, यह दरअसल ऐक ऐसी चीज है जो हमें सीधे तौर पर हमें प्रभावित कर रही है.”
सुश्री शाह की कविताएँ ज्यादातर प्रेम, लालसा और नुकसान की बात कहती हैं, और उन्होंने इस कविता के लिए इसे ही आत्मसात किया. उनकी कविता ‘घर कब आओगे?’ 2030 में सेट है। यह एक शहर में अचानक आई बाढ़ की पड़ताल करती है जो एक रिश्ते में बढ़ती दूरी को जोड़ती है. यह जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 तक वातावरण में आने वाले फर्क को लेकर सरकारी पैनल (IPCC) के अनुमानों पर आधारित थी.
“…इससे पहले कि कुछ ऐसा हो, जिसे हम बदल नहीं सकते
अब भी वक्त है, तो क्या हम संभल नहीं सकते !
हम, जो अपने दिलबर की कसमें खाते हैं, किधर जाएंगे?
जब ठौर-ठिकाने इश्क से पहले बिखर जाएंगे.
आखिर प्यार की हर जीत आबोहवा से ही पूरी है.
ज़माना वही है, पर अब कहानी को बदलना ज़रूरी है.”
भारत के प्रमुख कवि और कहानीकार अमनदीप सिंह भी अपनी काव्य प्रस्तुति के साथ इस पहल में शामिल हुए. उन्होंने बताया कि जो लेखन वे सामान्य रूप से करते हैं, जलवायु परिवर्तन का संदेश देने के लिए उससे हटकर दृष्टिकोण उन्होंने अपनाया। इसके बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा,
”ईमानदारी से कहूं तो, मैंने उसी तरह से शुरुआत की, इस विषय पर पूरी तरह से शोध किया जैसे मैं अपनी बाकी कविताओं के लिए करता हूं और एक मसौदा तैयार किया. एक बार जब हम अपने पहले मसौदे पर काम कर चुके थे, तो हमने सीईईवी टीम के साथ हुई बैठकों और कार्यशालाओं में, हमने जो लिखा था उस पर चर्चा की. इन बैठकों ने हमें जलवायु परिवर्तन के विभिन्न विषयों को गहराई से समझने और इसके बारे में बोलचाल की भाषा में लिखने में हमारी काफी मदद की, ताकि लोगों तक इसे सबसे सुंदर और सहज तरीके से पहुंचाया जा सके और वे इसे गहराई से महसूस कर सकें.”
श्री सिंह की कविता “वो लौट आई” एक सूखती हुई झील, सोलर पैनल और उस लड़की के बारे में बताती है जिसके साथ वह एक इलेक्ट्रिक स्कूटर की सवारी करना पसंद करते हैं.
“… ये रास्ते जो एक वक्त तक आम के पेड़ों से भरे पड़े थे
भरे मौसम में भी फल उनपर सूखे पड़े थे
उन्हें देखते ही हम दोनों का दिल मुरझा गया
लगा, किसी ने हमारे बचपन से स्वाद निकाल लिया
अब तो, वो ठंडी पड़ी सड़क भी गर्म हो चली थी
न जाने दुनिया को बदलने की क्यूं इतनी हड़बड़ी थी?”
शुरू-शुरू में तो कवियों को जलवायु परिवर्तन की बारीकियों को समझने और इसे स्थानीय पर्यावरणीय प्रभाव समझने के भ्रम से निकलने में वक्त लगा.
हेली शाह ने कहा। एक कलाकर्मी के रूप में हमें इन चीजों को समझने में कुछ समय जरूर लगा.
कवियों के साथ सीईईवी के सहयोग के बारे में बात करते हुए अलीना सेन ने कहा कि यह एक सपने के सच होने जैसा था.उन्होंने कहा कि
”युवा कवि अपनी भाषा में जलवायु के बारे में बात करने के लिए उत्साहित हैं और हम जैसे चिंतनशील लोगों के लिए, हमारे कानों के लिए यह किसी संगीत जैसा है.”
सुश्री मलिक ने कहा कि कई कार्यशालाओं में भाग लेने के बाद, उन्हें यकीन था कि अपनी कविता में वह वैज्ञानिक रूप से सटीक बातें कहना चाहती हैं.
”यह काफी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब आप जलवायु परिवर्तन जैसी महत्वपूर्ण चीज से जुड़ा काम कर रहे हों. मैं केवल हवा- हवाई बातों को जोड़कर एक प्रेम कविता नहीं बनाना चाहती थी और सीईईवी ने इसमें काफी अहम भूमिका निभाई. मैं यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि मेरी सारी बातें वैज्ञानिक रूप से दुरुस्त हों और यदि आप अधिकांश कविताओं को देखें, तो उनमें वैज्ञानिकों द्वारा की गई वास्तविक भविष्यवाणियों की ही बातें कही गई हैं और बताया गया है कि अगर चीजों का ध्यान नहीं रखा गया, तो अगले 100 वर्षों में क्या हो सकता है. मैं बस उस भावना को ही थोड़ी-बहुत अतिशयोक्ति के साथ थोड़ा बढा-चढ़ा कर सामने लाना चाहती थी और इस सबको प्यार, रिश्तों और लालसा के दायरे में ले जाकर पेश करना चाहती थी.”
सुश्री मलिक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन जैसी चीजों के बारे में सिर्फ कॉन्फ्रेंस टेबल पर ही बात नहीं की जानी चाहिए, हमें इसे डिनर टेबल पर लाने की जरूरत है.
कविताओं के मकसद और प्रभाव के बारे में बात करते हुए अमनदीप सिंह ने कहा कि इस पहल का हिस्सा बनने के पीछे उनका मकसद ‘जलवायु परिवर्तन’ शब्द को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना भी था.
”मेरे लिए, इसका सबसे बड़ा असर यह होगा, कि कोई इन इन पंक्तियों को सुनकर एक पल के लिए रुक कर जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचे और पर्यावरण के प्रति सहानुभूति महसूस करे. बस यही सोचकर हम इसके बारे में लिख रहे थे. मुझे लगता है कि इसका सबसे गहरा असर यही हो सकता है.”