नई दिल्ली: ‘डेटॉल-बनेगा का स्वस्थ इंडिया’ उन लोगों और समुदायों से मिलता है जो पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं और अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए “कम ज्यादा है” (Less is More) के नारे पर चल रहे हैं. दिल्ली के सर्वप्रिय विहार में कुछ ऐसे ही लोग रहते हैं, जिन्हें उनके वेस्ट मैनेजमेंट और कंपोस्टिंग के काम ने एक नई पहचान दिलाई है.
सर्वप्रिय विहार के निवासियों ने एक जमीनी संगठन ‘ग्रीन टीम’ बनाई है. करीब 12 साल से सर्वप्रिय विहार निवासी फैबियन पंथाकी ‘ग्रीन टीम’ के सह-संस्थापक और सर्वप्रिय विहार रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं. उन्होंने कॉलोनी के कुछ अन्य स्वयंसेवकों के साथ मिलकर 2018 में ग्रीन टीम का गठन किया. अपनी इस पहल के बारे में पंथाकी ने ने कहा,
हम कॉलोनी के लिए कुछ ऐसा करना चाहते थे, जो दूसरी जगहों पर रहने वाले लोगों के लिए भी एक मिसाल बने.
यहां हर दिन कचरा इकट्ठा कर, गीला और सूखा कचरा और अन्य कचरा – प्लास्टिक, कागज और छिलके अलग किए जाते हैं. सर्वप्रिय विहार कॉलोनी ने पिछले पांच वर्षों में 100 फीसदी कचरे की छंटाई कर साइट पर ही उसका जैविक खाद बनाने का लक्ष्य हासिल किया है. इस उपलब्धि ने एक मॉडल ग्रीन कॉलोनी के रूप में दक्षिण दिल्ली में सामुदायिक कंपोस्टिंग का एक अनूठा मॉडल पेश किया है. इसके साथ ही ये लोग ऐसा ही काम करने में अन्य कॉलोनियों के लोगों का मार्गदर्शन और सहायता भी कर रहे हैं. उनकी इस पर्यावरण हितैषी पहल के चलते मीडिया संगठन द बेटर इंडिया द्वारा आयोजित बेस्ट हाउसिंग सोसाइटी अवार्ड्स में कम्युनिटी बिल्डिंग कैटेगरी में पुरस्कार भी मिल चुका है.
ग्रीन टीम और उसके काम के बारे में 45 वर्षीय ओम प्रकाश ने कहा,
हमारी इस पहल का फायदा यह होता है कि गीले कचरे को अलग कर खाद बनाई जाती है और सूखे कचरे को कबाड़ में बेच दिया जाता है। इस तरह हम कचरे से पैसा भी कमा रहे हैं.
ग्रीन टीम में सदस्यों में कई तरह के लोग शामिल हैं. इससे इन्हें जहां अनुभवी सीनियर सिटीजन के तजुर्बे का लाभ मिल रहा है, वहीं घर-घर जाकर जागरूकता फैलाने और कामकाज का फॉलो-अप वाले उत्साही युवा प्रोफेशनल्स भी टीम में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. टीम के सबसे पुराने सदस्यों में से एक ने ग्रीन टीम के साथ अपने अनुभव के बारे में बताया,
मैं 80 साल का हूं, और एक टीम के रूप में हमने जो पहला काम किया, वह था घर-घर जाकर लोगों से प्लास्टिक को कचरे से अलग करने के लिए कहना.’
पंथकी ने कहा,
कॉलोनी में अलग-अलग तरह का भोजन करने वाले लोग रहते हैं. कुछ लोग पत्तेदार सब्जियां खाते हैं, तो कुछ केवल प्रोसेस्ड फूड लेते हैं. इसलिए एक साल तक कई प्रयोगों के बाद ही हमें इसके कचरे से खाद बनाने की सही विधि मिल सकी. हमें इस बात को लेकर कई बार सोच-विचार करना पड़ा कि खाद बनाने के लिए किस तरह और कौन-कौन सी चीजों का मिश्रण किया जाए.
टीम ने एक हाइब्रिड पिट मॉडल बनाया, जो लगभग डेढ़ फुट का भूमिगत गड्ढा है. इसकी गहराई कचरा इकट्ठा करने वाली गाड़ी की ऊंचाई के अनुरूप है, इसलिए कचरे का निस्तारण करना आसान हो जाता है. यहीं से वे गीले कचरे को अलग करने और खाद में बदलने की प्रक्रिया शुरू करते हैं.
सर्वप्रिय विहार को दिल्ली नगर निगम द्वारा ‘सहभागिता कॉलोनी’ (अन्य कॉलोनियों का मित्र) के रूप में भी मान्यता दी गई है.
प्रतिदिन 250 किलो गीले कचरे को खाद में बदलने की प्रक्रिया न केवल मिट्टी को पोषण दे रही है, बल्कि यह कचरे से फैलने वाले प्रदूषण को भी रोक रही है, अपने इस काम के जरिये इन लोगों ने मिलकर अपने घरों, कॉलोनी के अपने इको सिस्टम में एक सार्थक बदलाव लाया है, जो कहीं न कहीं धरती को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाने में योगदान दे रहा है. इनकी इस मिसाल से अन्य लोगों को भी ऐसा ही पर्यावरण के लिए सार्थक काम करने की प्रेरणा मिल रही है.
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