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डेटॉल स्कूल स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम के तहत लखनऊ के मदरसे में पढ़ाया स्वास्थ्य और स्वच्छता का पाठ

शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए डेटॉल हाइजीन पाठ्यक्रम को उर्दू में लखनऊ के मदरसा शेखुल आलम के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया

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डेटॉल स्कूल स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम के तहत लखनऊ के मदरसे में पढ़ाया स्वास्थ्य और स्वच्छता का पाठ
लखनऊ के मदरसा में, डेटॉल स्कूल स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम उर्दू में पढ़ाया जाता है

नई दिल्ली: “हाथ धोना बहुत जरूरी है क्योंकि बैक्टीरिया ज्यादातर हमारे हाथों से ही शरीर में प्रवेश करते हैं. इसलिए हमें अपने हाथों को रोजाना धोना चाहिए,”ये कक्षा 4 के छात्र मोहम्मद फैसल के शब्द हैं, जिन्होंने स्वच्छता की अच्छी आदतों को अपना लिया है. साबुन से हाथ धोने का एक सरल सा काम डायरिया जैसी उन बीमारियों को हमसे दूर रखता है, जिनके चलते अक्सर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की जान तक चली जाती है. डेटॉल अपने स्कूल हाइजीन एजुकेशन प्रोग्राम के माध्यम से स्वच्छता से जुड़ी इन बातों को पिछले नौ वर्षों में करीब 24 मिलियन बच्चों तक पहुंचा चुका है. इस स्वच्छता पाठ्यक्रम को लखनऊ के मदरसा शेखुल आलम जैसे कई संस्थानों द्वारा अपनाया गया है.

कला, गणित, व्याकरण, इतिहास व अन्य विषयों की कक्षाओं और कुरान पढ़ने के साथ ही अपने पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में मदरसा शेखुल आलम में पढ़ने वाले छात्र स्वास्थ्य और स्वच्छता की एक स्पेशल क्लास में भी भाग लेते हैं. अलग-अलग उम्र और अलग-अलग कक्षाओं के बच्चे एक साथ बैठकर स्वास्थ्य और स्वच्छता के बीच के ताले-चाबी जैसे रिश्ते को समझते हैं.

शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए स्वच्छता पाठ्यक्रम को संस्थान के वृहद पाठ्यक्रम से जोड़ दिया गया है. स्वच्छता से जुड़ी चर्चा को विभिन्न समुदायों के घरों तक ले जाने का प्रयास इस पाठ्यक्रम के जरिये किया जा रहा है, जिसमें स्वच्छता के बारे में जानकारी देने वाली किताबें उर्दू सहित कई भाषाओं में उपलब्ध हैं.

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कक्षा 4 के छात्र मोहम्मद फैसल ने इन्‍हीं किताबों से स्वच्छता के बारे में पढ़ा और सीखा. वह कहता है,

मैंने अपने दोस्तों और परिवार को स्वच्छता बनाए रखना सिखाया. उदाहरण के लिए, हमें शौचालय का उपयोग करने के बाद शौचालय को फ्लश करना चाहिए. अगर फ्लश नहीं है तो बाल्टी में पानी भरकर डालना चाहिए. इसके बाद अपने हाथों को कम से कम 20 सेकंड तक धोना चाहिए.

बच्‍चों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने वाली उर्दू शिक्षिका मरिदा खातून कहती हैं,

नियमित रूप से हाथ धोने के कारण हमारे स्कूल में कोविड का कोई भी मामला नहीं था. ‘डेटॉल : बनेगा स्वस्थ इंडिया’ कार्यक्रम जागरूकता पैदा करने के लिए एक अच्छा कार्यक्रम है. इस अभियान को अन्य मदरसों और स्कूलों में भी चलाया जाना चाहिए.

स्कूलों, मदरसों, गुरुकुलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में स्वच्छता पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाई जाने वाली कुछ सरल सी आदतों के बारे में बच्‍चों को पढ़ाने का निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है. स्कूल स्वच्छता कार्यक्रम के चलते करीब 86 प्रतिशत बच्चों ने अब हाथ धोने की आदत को अपना लिया है, जबकि इस कार्यक्रम के शुरू होने से पहले यह आंकड़ा महज 11 फीसदी था.

कक्षा 9 की छात्रा सानिया जहां कहती हैं,

हम अपने सभी कामों के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल करते हैं और इससे बैक्टीरिया हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम खाना खाने से पहले अपने हाथों को जरूर धोएं.

कक्षा 7 के छात्र मोहम्मद दानिश, स्वास्थ्य और स्वच्छता की क्लास में भी जाते हैं. दानिश का कहना है –

साफ-सफाई को लेकर हम पहले भी जागरूक थे, लेकिन इतने ज्यादा नहीं. मैडम द्वारा डेटॉल कक्षाओं की शुरुआत के बाद से हमने स्वच्छता के बारे में और अधिक सीखना शुरू किया और इससे हमें बहुत मदद मिली, खासकर कोविड के समय में.

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स्वच्छता पाठ्यक्रम के एक हिस्से के रूप में मदरसों में एक स्वच्छता कोने (Hygiene corner) की स्थापना भी की गई है. यह ‘हाइजीन कॉर्नर’ वह स्थान है, जहां ‘डेटॉल : बनेगा स्वस्थ इंडिया’ द्वारा प्रचारित स्वच्छता के अभ्यास से संबंधित सामग्री प्रदर्शित की जाती है. इस सामग्री में छात्रों के लिए वर्कबुक, शिक्षकों के लिए नियमावली, बाल्टी, पानी के मग, तौलिये, पोस्टर, एक प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स, साबुन और कई अन्‍च चीजें शामिल होती हैं.

मदरसे के संस्थापक प्रबंधक आलम सिद्दीकी कहते हैं,

हाइजीन कॉर्नर बेहद मददगार होता है, बच्चे इस कॉर्नर की तरफ आकर्षित होते हैं और हाइजीन के लिए दी गई सामग्री का इस्तेमाल करते हैं. इसका अच्छा परिणाम आया है. वे अपने घर पर भी स्वच्छता की आदतों को अपनाने पर जोर देते हैं.

सदियों पुरानी प्रथाओं को बदलने और व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए नए उपायों की आवश्यकता है और एक इसके गहरे असर के लिए बच्चों के बीच स्वच्छता की संस्कृति को मजबूत करने की जरूरत है. डेटॉल स्कूल हाइजीन एजुकेशन प्रोग्राम ने साबित कर दिया है कि इससे न केवल बदलाव लाया जा सकता है, बल्कि इसे कायम भी रखा जा सकता है.

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