किशोरावस्था में स्वास्थ्य तथा लैंगिक जागरूकता

राजस्थान में, स्‍कूल से अलग यंग लोगों को दी जा रही है सेक्सुअल एजुकेशन

अक्टूबर 2018 से, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया राजस्थान के चार जिलों – बूंदी, करौली, डूंगरपुर और टोंक में FAYA प्रोग्राम चला रहा है – जिसके तहत यह किशोरों के लिए व्यापक सेक्सुअल एजुकेशन पर स्कूल से बाहर सेशन आयोजित करता है

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In Rajasthan, Adolescents Are Getting Out-Of-School Lessons On Comprehensive Sexuality Education
एनजीओ पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया का फेमिनिस्ट एडोलसेंट एंड यूथ-लेड एक्शन (एफएवाईए) प्रोग्राम यंग गर्ल्‍स को पीरियड्स से जुड़े संघर्षों को दूर करने में मदद कर रहा है

नई दिल्ली: राजस्थान के टोंक जिले की 18 वर्षीय अंजलि वैष्णव 13 साल की थीं, जब उन्हें स्कूल में लंच ब्रेक के दौरान पहली बार पीरियड्स हुए. अनजाने में, अंजलि की स्कर्ट पर दाग लगा गया और जिसके बाद उसे घर वापस जाने के लिए कहा गया. घर पहुंचने पर, अंजलि की मां ने उसे पीरियड्स के बारे में डिटेल में बताया और उसे एक सैनिटरी पैड दिया. लेकिन, न तो स्कूल में और न ही घर पर अंजलि को पीरियड्स कैसे और क्यों होता है और किसी की बॉडी में होने वाले चेंज से कैसे निपटना चाहिए, इस बारे में कोई जानकारी दी की गई थी.

इसी तरह, राजस्थान के टोंक जिले के दरदा हिंद गांव की 17 वर्षीय निशा चौधरी को जब पहली बार पीरियड आए, तो उन्हें बताया गया कि हर लड़की को ये हो जाता है और इसमें डरने की कोई बात नहीं है. निशा की मां ने उन्हें एक कपड़ा दिया, जो कि पीरियड्स को मैनेज करने का हाइजीनिक तरीका नहीं था.

12वीं क्‍लास की स्‍टूडेंट निशा अपने पैरेंट्स और एक छोटे भाई के साथ रहती है. कपड़े के इस्तेमाल के अपने एक्‍सपीरियंस के बारे में बात करते हुए निशा ने कहा,

मेरी मां ने अपने पीरियड्स के दौरान हमेशा कपड़े के टुकड़े का इस्तेमाल किया था लेकिन मुझे वह कपड़ा बहुत अजीब लगा. और मुझे इसका एहसास तब हुआ जब मैंने सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करना शुरू किया.

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यहां तक कि पीरियड्स को लेकर अंजलि का रिस्पॉन्स भी बदल गया है. अब वह जानती है कि पीरियड्स के दौरान क्यों और कैसे हाइजीन बनाए रखना है और अब वह गांव की अन्य लड़कियों को भी शिक्षित करती है. यह चेंज द यंग पीपल फाउंडेशन के समर्थन से पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के नेतृत्व में नारीवादी किशोर और युवा-नेतृत्व वाले (एफएवाईए) प्रोग्राम के कारण संभव हुआ है.

अक्टूबर 2018 से, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया राजस्थान के चार जिलों – बूंदी, करौली, डूंगरपुर और टोंक में FAYA प्रोग्राम चला रहा है – जिसके तहत यह किशोरों के लिए सेक्शूऐलिटी एजुकेशन पर स्कूल से बाहर सेशन आयोजित करता है. FAYA भी युवा लोगों को साथियों और परिवार के सदस्यों, समुदायों और राज्य और राष्ट्रीय स्तर के नीति निर्माताओं और कार्यान्वयनकर्ताओं के साथ सेवाओं और अधिकारों तक पहुंच की वकालत करने के लिए ट्रेंड करता है.

FAYA प्रोजेक्ट के तहत, लोकल काउंसलर हैं जो यंग लोगों को व्यापक सेक्सुअल एजुकेशन देते हैं. 24 वर्षीय यमुना शर्मा टोंक जिले में काम करने वाली ऐसी ही एक सूत्रधार हैं. यमुना 2019 से पीएफआई से जुड़ी हुई है. अपने काम के किस्से सुनाते हुए यमुना ने कहा,

शुरू में लड़कियां बहाने बनाती थीं, जैसे हमारे पास काम है या हमारे पैरेंट्स बाहर जाने की इजाजत नहीं देते हैं और हमसे बात करने से मना कर देती हैं. फिर भी, हम उनसे मिलने जाते रहे और एक समय ऐसा भी आया जब किशोरों ने मुझे किसी न किसी सब्‍जेक्‍ट पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित करना शुरू कर दिया. जब हम ग्राउंड पर काम करते हैं, तो हम 15-20 लड़कियों का एक ग्रुप बनाते हैं और हर उस चीज़ के बारे में बात करते हैं जिससे वे कतराती हैं जैसे- रिप्रोडक्‍शन, इंटरल ऑर्गन और सेक्स.

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यह पूछे जाने पर कि यंग गर्ल्‍स के बिहेव में इस बदलाव का क्या कारण है, यमुना ने कहा कि यह उनकी बॉडी के बारे में जानने की रुचि और जिज्ञासा थी. हालांकि, सेक्स के इर्द-गिर्द बातचीत ग्रामीणों के साथ अच्छी नहीं रही. एक घटना को याद करते हुए यमुना ने कहा,

एक बार मैं सेक्स पर एक सेशन आयोजित करने गई थी. गांव के एक प्राइवेट स्‍कूल के टीचर ने एक बार हमारी चर्चा सुनी और कहा, ‘आप इन बातों के बारे में खुलकर बात नहीं कर सकते, क्योंकि इससे बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा’. तब मैंने उन्हें बताया कि स्कूल की किताबों में भी रिप्रोडक्‍शन पर एक चैप्टर होता है, लेकिन दुर्भाग्य से, इसे अक्सर छोड़ दिया जाता है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के पांचवें दौर के अनुसार, राजस्थान में 84.1 प्रतिशत महिलाएं (15-24 वर्ष) पीरियड के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का उपयोग करती हैं. राज्य ने 2015-16 (एनएफएचएस-4) के बाद से स्वच्छता के तरीकों के उपयोग में भारी वृद्धि देखी है, 55.2 प्रतिशत महिलाओं ने हाइजीन पीरियड प्रोटेक्‍शन का इस्तेमाल किया था. जबकि राज्य में बदलाव आया है, पर जानकारी तक पहुंचने के संबंध में कलंक और वर्जनाएं अभी भी मौजूद हैं.

एक और मुद्दा जो यमुना जैसे सूत्रधार उठाते हैं, वह है पीरियड्स के आसपास के मिथक. इसमें पीरियड्स के दौरान अचार को न छूना या मंदिर में प्रवेश नहीं करना शामिल है. यमुना ने कहा,

जब तक मैं पीएफआई में शामिल नहीं हुई थी मैं भी इन बातों पर विश्वास करती थी. हम अचार का जार पकड़ने या पवित्र तुलसी के पौधे को छूने से बचते थे. हम लड़कियों को शिक्षित करने के लिए प्रैक्टिकल करते हैं और पेंटिंग और पोस्टर का उपयोग करते हैं.

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निशा के पिता का एक मेडिकल स्टोर है और तब भी, उन्हें पहले पीरियड प्रोडक्‍ट के रूप में कपड़ा दिया गया था. हालांकि, चीजें बदल गईं क्योंकि उनकी यमुना दीदी (बहन) ने उनसे स्वच्छता के बारे में बात की.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने इस तरह की परियोजना की आवश्यकता के बारे में बात करते हुए कहा,

किशोरावस्था एक ट्रांज़िशनल पीरियड के दौरान युवा अपने शरीर, मन और भावनाओं में परिवर्तन का अनुभव करते हैं. किशोरावस्था में पीरियड, कंसेप्‍शन, कॉन्‍ट्रासेप्‍शन और अन्य मुद्दों के बारे में सवाल मन में उठते रहते हैं जो सेक्शूऐलिटी के आसपास के कलंक के कारण आते हैं. FAYA प्रोग्राम का उद्देश्य युवाओं को खुद को व्यक्त करने और जज किए जाने के डर के बिना सवाल पूछने के लिए एक सुरक्षित जगह देता है.

अंजलि और निशा की कहानियां साबित करती हैं कि टारगेटिड एडवोकेसी और शिक्षा लाइव को बेहतर कर सकती है और भविष्य में बदलाव लाने वाला बना सकती है.

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