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मिलिए ओडिशा की उस आशा वर्कर से, जो अपने गांव में स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार लाने की वजह से फोर्ब्स की लिस्ट में शामिल हुईं

ओडिशा की मटिल्डा कुल्लू ने प्रसिद्ध पत्रिका फोर्ब्स में सबसे शक्तिशाली भारतीय महिलाओं की सूची में जगह कैसे बनाई, आईए इस बात पर एक नज़र डालते हैं

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During COVID, I think ASHA workers were the most affected: Matilda Kullu

नई दिल्ली: ओडिशा के गांव गरगड़बहल की 15 साल से आशा कार्यकर्ता 45 वर्षीय मटिल्डा मतिल्दा कुल्लू 2021 में प्रसिद्ध पत्रिका फोर्ब्स की सबसे शक्तिशाली भारतीय महिलाओं की सूची में शामिल नामों में से एक थीं. उनका नाम अमेज़न की प्रमुख अपर्णा पुरोहित और बैंकर अरुंधति भट्टाचार्य के साथ शामिल था. यह पहली बार है जब किसी आशा कार्यकर्ता ने प्रतिष्ठित सूची में जगह बनाई है. मटिल्डा मतिल्दा, जो न तो बिजनेस लीडर हैं और न ही उच्च शिक्षित हैं, उन्हें आशा दी के रूप में अपने काम के प्रति समर्पण के लिए पहचान मिली थी. 2006 के बाद से उनके निरंतर प्रयास की बदौलत, आज उनके गांव में संस्थागत प्रसव की दर 100 प्रतिशत है, लोगों और बच्चों के समग्र स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ है, और उनका गांव भारत के उन कुछ गांवों में से एक है, जहां शुरुआती चरण में 100 प्रतिशत कोविड-19 टीकाकरण पूरा किया गया.

आशा कार्यकर्ता के रूप में मटिल्डा का सफर

मटिल्डा ने अपने परिवार की वित्तीय स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से एक आशा कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू किया था, जिसमें उनके पति और दो बच्चे शामिल थे. लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह काम न केवल उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगा, बल्कि ‘आशा दी’ होने की उनकी स्थिति को भी ऊपर उठाएगा, जिन्हें लोग देखते हैं और भरोसा करते हैं. आज, वह गर्व से कहती हैं.

अपने गांव के लोगों के लिए कुछ करते हुए अच्छा लगता है. उनकी जान बचाना बेहद खास लगता है.

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अपने दैनिक कार्य और आशा कार्यकर्ता होने के सफर के बारे में बताते हुए मटिल्डा ने कहा,

मैं वर्कलोड के आधार पर अपना दिन 5:30-7 बजे के बीच शुरू करती हूं. अपना वर्क डे शुरू करने से पहले मुझे अपने घर के सारे काम भी खत्म करने होते हैं. एक बार सारे काम हो जाने के बाद, मैं अपना टिफिन पैक करती हूं और फील्ड के लिए निकल जाती हूं. मेरे काम में घर-घर जाना, गर्भवती और नई माताओं की जांच करना, मलेरिया, कुपोषण के लिए परीक्षण, महिलाओं को स्वच्छता और गर्भनिरोधक पर सलाह देना, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करना और कोविड के लक्षणों और टीकों के लिए घरों के साथ तालमेल बनाए रखना शामिल है.

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अपनी दैनिक चुनौतियों और अंधविश्वास, जातिवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई पर प्रकाश डालते हुए मटिल्डा ने कहा,

जब मैं एक आशा कार्यकर्ता के रूप में शामिल हुई, तो गाँव में हालात बहुत खराब थे. कोई भी गर्भवती महिला प्रसव के लिए अस्पताल नहीं जाना चाहती थी. प्रसव के दौरान मां या नवजात की मौत होना आम बात थी. लोग गंभीर बीमारियों के लिए भूत भगाने या जादू-टोने में विश्वास करते थे और अस्पतालों और डॉक्टरों की अवधारणा को नहीं जानते थे. इसलिए, जब मैंने कार्यभार संभाला, तो मैंने इसे बदलने का फैसला किया. मैं अपने गाँव के हर घर में गई, उन्हें अस्पताल में बच्चों को जन्म देने के लाभों के बारे में बताया, उन्हें उचित आहार, दवाएँ लेने के लिए राज़ी किया और विश्वास बनाने की कोशिश की.

कुछ घटनाओं को याद करते हुए और वह उनसे कैसे निपटीं, इस बारे में बताते हुए, मटिल्डा ने कहा,

कभी-कभी लोग सोचते थे कि उनके बीमार होने का कारण मैं हूं.. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उनसे दोबारा न मिलूं. अगर वे मुझे एक गिलास पानी देते, तो वे बाद में उसे छूने से मना कर देते. लेकिन, यह सब, मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं करता था. मैं अपने दिमाग में स्पष्ट थी, मैं इस मानसिकता को बदलने की पूरी कोशिश करूंगी.

मटिल्डा को भले ही कुछ समय लगा, लेकिन धीरे-धीरे चीजें अच्छी होने लगीं. ग्रामीणों ने मटिल्डा पर विश्वास करना शुरू कर दिया, वे उनकी बात समझ गए और जो कुछ भी मटिल्डा ने उन्हें बताया उन्होंने वह करना शुरू कर दिया और यही कारण है कि आज उनके गांव में संस्थागत प्रसव में 100 प्रतिशत की दर है.

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कोविड-19 महामारी के दौरान मटिल्डा की कोशिशें

मटिल्डा का कहना है कि COVID-19 ने उनके गांव में अंधविश्वास को वापस ला दिया था और इससे निपटना एक चुनौतीपूर्ण काम था. उन्होंने कहा कि कई ग्रामीणों ने शुरू में सोचा था कि कोविड एक “छलावा” है, और उन्हें डर था कि अगर वे टीका लगवाएंगे तो उनकी मृत्यु हो जाएगी. मटिल्डा ने एक बार फिर वही किया जिसके लिए वह अपने गाँव में जानी जाती हैं – उन्होंने घर-घर जाकर ग्रामीणों को COVID-19 और इसके टीकाकरण के बारे में शिक्षित किया. बहुत कड़ी मेहनत और रोज़ाना की कई यात्राओं के बाद, वह अपने गाँव के लोगों को टेस्ट कराने, आइसोलेट (यदि कोविड सकारात्मक है) और टीका लगवाने के लिए मनाने में सक्षम हुईं. उनके निरंतर कोशिशों के कारण, आज उनका गाँव 100 प्रतिशत COVID-19 टीकाकरण होने का दावा करता है.

मटिल्डा ने आखिर में कहा कि

मुझे लोगों की मदद करना अच्छा लगता है. मुझे इस तथ्य से प्यार है कि आज मेरे प्रयासों के कारण मैं कई लोगों की जान बचाने में सक्षम हूं और मेरे गांव में कई लोग स्वस्थ जीवन जी रहे हैं. आशा कार्यकर्ता होना कोई आसान काम नहीं है, हमें ग्रामीणों की बात को समझना होगा और फिर उन्हें इस तरह से समझाना होगा कि वे हमारी बात को समझें. लेकिन समर्पण और निरंतर प्रयासों से कुछ भी संभव है.

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