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मानसिक स्वास्थ्य: दफ्तरों में तनाव से कैसे निपटें? विशेषज्ञों का जवाब
विशेषज्ञों से समझें कार्यस्थल पर तनाव और इससे निपटने के तरीकों के बारे में
Highlights
- तनाव व्यक्ति के स्वास्थ्य को बहुत प्रभावित कर सकता है: विशेषज्ञ
- आत्म-जागरूकता तनाव से निपटने का पहला कदम है: विशेषज्ञ
- तनाव से काम में बड़ी गिरावट आ रही है तो लें मदद: विशेषज्ञ
नई दिल्ली: डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के मुताबिक, कार्यस्थल से संबंधित तनाव शारीरिक और भावनात्मक रूप से नुकसानदायक होता है, यह तब होता है जब नौकरी में हाई डिमांड होती है और मौजूदा स्थितियों पर कंट्रोल कम होता है. अमेरिकी मनोवैज्ञानिक एसोसिएशन के अनुसार, कई लोगों को कार्यस्थल पर तनाव का सामना करना पड़ता है जो न सिर्फ उनके काम के प्रदर्शन को प्रभावित करता है, बल्कि भावनात्मक स्तर पर भी उन्हें प्रभावित करता है. साथ ही कार्यस्थल का तनाव घर, व्यक्तिगत रिश्तों में और उनके स्वास्थ्य पर भी असर डालता है. कार्यस्थल पर तनाव और यह तनाव कब बर्नआउट से पैनिक अटैक में बदल जाता है, इन सभी बातों के बारे में जानने के लिए एनडीटीवी ने आशीष ठाकुर, वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक दिव्या मेहरोत्रा, माइंडफुलनेस मंडला कोच और युवा मीडिया, शोध और प्रभाव संगठन युवा के सह-संस्थापक और सीईओ निखिल तनेजा के साथ बात की.
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तनाव, बर्नआउट और पैनिक अटैक को समझिए
हार्वर्ड हेल्थ पब्लिशिंग, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल (HMS) के स्वास्थ्य शिक्षा प्रभाग और positivepsychology.com, शोधकर्ताओं और मनोविज्ञान के चिकित्सकों द्वारा निर्मित एक मंच है जिसके मुताबिक, ‘तनाव’ एक भावना है जो ‘बहुत ज्यादा’ है और इसका असर तब होता है जब आप इसे कंट्रोल करने की क्षमता खो देते हैं. काम से संबंधित तनाव के कुछ मनोवैज्ञानिक लक्षण चिंता, उत्पादकता की हानि, यहां तक कि अवसाद भी हैं. तनाव के शारीरिक लक्षणों में हृदय गति का तेज़ होना, सांसों का तेज होना, तनावपूर्ण मांसपेशियों, अनिद्रा या नींद की कमी के कारण थकान, चिड़चिड़ापन या गुस्सा आना, मूड का खराब होना, बहुत अधिक कैफीन का सेवन करना, पीठ दर्द, अपच, वजन कम होना या बढ़ना, और नियमित या हल्का जुकाम रहने जैसे लक्षण शामिल हैं. विशेषज्ञों के अनुसार कार्यस्थल पर तनाव के संभावित कारण नौकरी में असुरक्षा, अपर्याप्त आय और ध्यान न देने वाले पर्यवेक्षक हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक तनाव का असर भोजन के सेवन में कमी या वृद्धि करना, उत्पादकता कम होना, काम में अनुपस्थिति रहना, सहकर्मियों के बीच बने रहने के लिए संघर्ष करना है.
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हार्वर्ड हेल्थ एंड postivepsychology.com के अनुसार बर्नआउट वह स्टेज है जब कोई व्यक्ति खुद को ‘पर्याप्त नहीं’ होने की भावना से गुज़रता है. यह अत्यधिक तनाव की वजह से लगातार थकावट से असर डालता है. बर्नआउट की स्टेज में, एक व्यक्ति खुद को अकेला महसूस करता है, उसके पास कोई प्रेरणात्मक चीज़ नहीं होती. विशेषज्ञों के अनुसार वह आत्म-संदेह का अनुभव करता है. शारीरिक लक्षण बताते हैं कि कोई व्यक्ति बर्नआउट स्टेज में खुद को सूखा महसूस करता है, उन्हें सिर दर्द की समस्या, कम इम्यूनिटी और उनकी भूख में बदलाव होता रहता है. बर्नआउट के कुछ संभावित कारणों में काम पर कंट्रोल की कमी, पहचान की कमी, नींद की कमी और पूर्णतावादी प्रवृत्तियां शामिल हैं. बर्नआउट के प्रमुख प्रभाव हैं: शरीर में दीर्घकालिक बदलाव, बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता, घर में स्पिलओवर होना और सामाजिक जीवन.
विशेषज्ञों के अनुसार, पैनिक अटैक भारी डर का एक प्रकरण है जो 10 मिनट के लिए किसी भी समय में आ जाता है. पैनिक अटैक स्टेज पर लोगों के पास ‘फ्लाइट रिस्पॉन्स’ होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि वह भ्रम और कंट्रोल खोने की भावना का अनुभव करते हैं. पैनिक अटैक के कुछ शारीरिक लक्षण हैं- मतली, सीने में दर्द, धुंधली दृष्टि, ठंड लगना और गर्म चमक, हाइपरवेंटिलेशन, और उंगलियों का सुन्न हो जाना. पैनिक अटैक के कुछ संभावित कारण अप्रिय जीवन की घटनाएं, अति सक्रिय थायराइड ग्रंथि, या कई अन्य मनोवैज्ञानिक विकार, नकारात्मक विचार हैं. पैनिक अटैक को उन जगहों पर होने से बचाया जा सकता है जहां बचना मुश्किल है.
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काम से संबंधित तनाव से निपटारा
विशेषज्ञों के अनुसार, तनाव से निपटने के लिए, तनाव को ट्रैक करना चाहिए, तनाव के कारणों को जर्नल करना चाहिए, अपने आप को गलतियां करने की अनुमति दें, व्यायाम करें, ध्यान लगाएं और योग अभ्यास करें. विशेषज्ञों का कहना है कि बर्नआउट स्टेज में तनाव से निपटने की रणनीतियों में से कुछ को पहचान लिया जाए तो आप बर्नआउट से बच सकते हैं, इसके लिए एक सही श्रोता को खोंजें और काम से एक पूरा ब्रेक लें. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने पैनिक अटैक का अनुभव किया है, तनाव से निपटने के लिए और आत्मविश्वास को वापस पाने के लिए आपको डर से फिर से लड़ना होगा, थैरेपी लेनी होगी. विशेषज्ञों के अनुसार, माइंडफुलनेस का अभ्यास एक ऐसे व्यक्ति के लिए मददगार हो सकता है, जिसने पैनिक अटैक का सामना किया हो.
काम से संबंधित तनाव से निपटने के लिए रणनीतियों को साझा करते हुए, श्री तनेजा ने जागरूकता के निर्माण के महत्व पर विचार किया और यह स्वीकार किया कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे हर व्यक्ति के साथ हो सकते हैं. उन्होंने कहा,
तनाव के साथ मुकाबला करने की दिशा में पहला कदम यह समझना है कि यह किसी के साथ भी हो सकता है न कि सिर्फ उन कुछ लोगों के साथ जो शायद अपने जीवन में किसी भयानक स्थिति का सामना कर रहे हैं. जैसे हम शारीरिक बीमारियों से गुजरते हैं, उसी तरह से हम मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से भी गुजरते हैं. मेरा मानना है कि ज्यादातर लोगों को यह समझ में नहीं आता कि मानसिक स्वास्थ्य एक स्पेक्ट्रम है. जब आप काम पर या अपने स्कूल या घर में किसी भयानक स्थिति से जूझ रहे हों तो यह भी मानसिक स्वास्थ्य के दायरे में आता है. दैनिक आधार पर, यह नोटिस करना बहुत ज़रूरी है कि कौन से पल हैं जहां आप तनाव महसूस कर रहे हैं. यह समझने के लिए इस तरह के ट्रिगर को ट्रैक करना बहुत ज़रूरी है कि कोई असहज क्यों महसूस कर रहा है और उन्हें सोचना चाहिए कि वे उन स्थितियों से बचने या बेहतर तरीके से निपटने के लिए अपने जीवन को कैसे बदल सकते हैं. इसलिए जागरूकता पहला कदम है.
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उन्होंने आगे कहा कि लोगों के पास तनाव से निपटने के कई तरीके हैं, ज्यादातर लोगों के लिए स्थितियों पर कंट्रोल खोना कुछ ऐसा है जो तनावपूर्ण हो सकता है. उन्होंने कहा कि तनाव से बचने के लिए ऐसी गतिविधियों को जीवन में शामिल करें जो कंट्रोल हासिल करने में आपकी मदद कर सकें.
हम लगातार वर्क-लाइफ बैलेंस की बात करते हैं लेकिन भारत में बहुत से लोगों के लिए काम जीवन है और ‘बैलेंस’ पूरी तरह से गायब है. हम हमेशा और अधिक करने के लिए तैयार रहते हैं, ज्यादा सोचते हैं, ज्यादा पाने की इच्छा करते है. लेकिन कुछ भी पर्याप्त नहीं है. हमारा लक्ष्य हमेशा बदल जाता है. इसलिए, मुझे लगता है कि हमें इस ‘पर्याप्त’ वाले आइडिया को लेकर आत्ममंथन करने की ज़रूरत है. उस बिंदु के बारे में सोचिए जब सब पर्याप्त होगा साथ ही उस बिंदु पर भी विचार करें जब आप वास्तव में एक कदम वापस पीछे ले सकें. यह किसी एक व्यक्ति की समस्या नहीं है, इस तरह की समस्या को हल करने के लिए कंपनियों को भी आगे बढ़ने की जरूरत है.
अपने सामने आ रहे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर ध्यान देने के महत्व पर जोर देते हुए सुश्री मेहरोत्रा ने कहा,
पहली और सबसे ज़रूरी बात यह है कि ऑब्ज़र्व करें. दिन-प्रतिदिन के जीवन में अपने विचारों और कार्यों का पालन करना चाहिए. इसकी वजह यह है कि पूरे दिन के दौरान हम सिर्फ इधर-उधर के कामों में लगे रहते हैं. हम काम, ऑफिस मीटिंग, कॉल और दूसरों के पीछे दौड़ते हैं लेकिन हम खुद को महत्व नहीं देते. मैंने कला चिकित्सा आधारित कार्यशालाओं में हमेशा अपने आप से बात करने पर जोर दिया. हम बाहरी दुनिया से बात करते हैं, लेकिन खुद से बात करने के बारे में क्या? चाहें 15 मिनट के लिए ही सही लेकिन आपको खुद के लिए कुछ समय निकालना चाहिए.
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डॉ ठाकुर के अनुसार, आत्म-जागरूक होना बेहद ज़रूरी है, यह जानना कि कोई तनाव में है, इस बारे में सतर्क रहना भी उतना ही जरूरी है. उन्होंने कहा,
आप खुद जागरूक हो सकते हैं. हालांकि, आत्म-जागरूक बनने के बाद, क्या आप खुद को संभालते या नहीं संभालते हैं? यह कुछ ऐसा है जिस पर लोगों को चिंतन करना चाहिए. दुर्भाग्य से, हम अपने भीतर खुद के द्वारा लगाए गए अलार्म को अनदेखा करते हैं जैसे कि परेशानी, नींद, चिंता, भूख में वृद्धि, गुस्सा, रोना. ये हमारे शरीर और मन के संकेत हैं जिनसे पता चलता है कि मन के भीतर कुछ चल रहा है. हालांकि, हम अपने आप को धक्का देते हैं जिस कारण हम चिंता से तनाव की ओर कदम बढ़ाने लगते हैं जो दुःख, बर्नआउट और पैनिक अटैक में बदल जाता है. यह लगभग हमारी कार के टायर की तरह है. अगर आप इसमें हद से ज्यादा हवा भर देंगे तो यह फट जाएगा. लेकिन, यदि आप उस समय डिकंप्रेशन, माइंडफुलनेस, शारीरिक व्यायाम और बातचीत के जरिए दबाव जारी करते हैं, तो यह एक बड़े पैमाने पर मदद करेगा. उन्होंने आगे कहा कि जब मानसिक स्वास्थ्य की बात आती है तो यह जिम्मेदारी व्यक्तियों के साथ-साथ कंपनियों पर भी होती है क्योंकि आप अपने सबसे महत्वपूर्ण प्रमुख संसाधन क्षेत्र में हैं.
डॉ ठाकुर कहते हैं, अगर आप अपने लिए जिम्मेदारी नहीं लेते हैं और अपनी लाइनें और सीमाएं तय नहीं करते हैं, और बातचीत नहीं करते हैं, तो कौन करेगा?
प्रोफेशनल मदद लेने का सही समय कब है?
विशेषज्ञों के अनुसार, जब यह लंबे समय तक रहता है, तो तनाव किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य को बहुत प्रभावित कर सकता है और इस तरह से प्रोफेशनल मदद लेना महत्वपूर्ण हो जाता है. विशेषज्ञों ने कहा, मदद तब लेनी चाहिए, अगर आपका तनाव काम में एक बड़ी गिरावट पैदा कर रहा हो, या आप खुद को रोजमर्रा की जिंदगी से निपटने में असमर्थ पाते हों, शारीरिक समस्याओं में विकास होने पर या नींद या खाने की आदतों में बदलाव होने पर या शराब और ड्रग्स का उपयोग शुरू करने पर आपको प्रोफेशनल मदद लेनी चाहिए.
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डिस्क्लेमर: सलाह समेत यह लेख केवल सामान्य जानकारी प्रदान करता है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय के लिए एक विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने डॉक्टर से सलाह लें. एनडीटीवी इस जानकारी की जिम्मेदारी नहीं लेता है.
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