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आत्महत्या के मामलों में वृद्धि का चलन: आप विपरित परिस्थितियों में खतरे को कैसे पहचान सकते हैं?

अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में 15 से 29 साल के लोगों की मौत का मुख्य कारण आत्महत्या है. आखिर ऐसा क्या होता है, जो युवाओं को अपनी ज़िंदगी खत्म करने के लिए मजबूर होना पड़ता है- और आप किस तरह से यह जान सकते हैं कि किसी को आपकी मदद की ज़रूरत है? विशेषज्ञ इस बारे में क्या कहते हैं, आइए जानते हैं.

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आत्महत्या के मामलों में वृद्धि का चलन: आप विपरित परिस्थितियों में खतरे को कैसे पहचान सकते हैं?

नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि हर 40 सेकंड में दुनिया में कोई न कोई व्यक्ति अपनी ज़िंदगी को ख़त्म कर लेता है. संगठन का कहना है कि आत्महत्या करने वाले 75% मामले कम या मध्यम आय वाले देशों से आते हैं. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत में आत्महत्या दर सबसे ज्यादा है. साल 2019 में देश में रोजाना आत्महत्या के औसत 381 मामले सामने आए थे. साथ ही उन्होंने बताया कि साल 2018 की तुलना में 2019 में यह दर 3.4% बढ़ गई थी. डब्ल्यूएचओ ने बताया कि इनमें से 50% मामले पांच राज्यों- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक से थे. लिंग के आधार पर आत्महत्या पर डब्ल्यूएचओ ने कहा कि हर 100 आत्महत्या से होने वाली मौतों में 70.2 फीसदी पुरुष शामिल थे जबकि 29.8 फीसदी महिलाएं थीं. वहीं कई अध्ययनों द्वारा बार-बार यह बताया गया है कि भारत में 15-29 वर्ष के युवाओं की मौत का मुख्य कारण आत्महत्या है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, भारत में आत्महत्या के कारण होने वाली मौतों में वृद्धि का चलन-सा हो गया है. आंकड़ों के अनुसार, 2016 में आत्महत्या से सालाना 1,31,008 लोगों की मौत हुई थी. 2018 में यह आंकड़ा 2.68% तक बढ़ गया था जिसके तहत 1,34,516 लोगों की मौत हुई थी, वहीं साल 2019 में यह दर 3.42% तक बढ़ गई थी और इस साल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या कर अपनी जान दे दी थी.

विशेषज्ञों का मानना है कि लोगों को आत्महत्या करने से रोका जा सकता है अगर समय पर ऐसे लोगों की मदद की जाए. 10 सितंबर को ‘विश्व आत्महत्या निवारण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, यह दुनिया भर में आत्महत्याओं के कारण होने वाली मौतों को कम करने के सभी उद्देश्य के साथ आत्महत्या के बारे में जागरूकता फैलाना और इससे समाधान के उपायों को बढ़ावा देने का दिन माना जाता है. इस बार इस दिन का विषय ‘एक्शन के ज़रिए उम्मीद पैदा करना’ है.

एनडीटीवी ने आत्महत्या को रोकने के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए विशेषज्ञों से बात की, आखिर कैसे कोई समय रहते आत्महत्या के चेतावनी संकेतों की पहचान कर सकता है और व्यक्ति को आत्महत्या करने से रोक सकता है.

युवाओं में आत्महत्या की दर आखिरकार ज़्यादा क्यों है, इस विषय के बारे में ‘योर दोस्त (YourDOST)’ के मुख्य मनोविज्ञान अधिकारी डॉ. गिनी के. गोपीनाथ ने कहा,

सामान्य तौर पर, आज के समय में युवा अन्य आयु वर्गों से बहुत अलग हैं, उनका सोचने का तरीका, किसी बात को समझने का तरीका- ये सब बहुत अलग है. इतना ही नहीं ये भी देखा गया है कि आजकल के युवाओं में सहिष्णुता बहुत कम है ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि उन्हें जो कुछ चाहिए होता है वो बेहद आसानी से उन्हें मिल जाता है. पारिवारिक स्तर पर हमने देखा है कि युवा आबादी मोबाइल पर ज़्यादा निर्भर है. इसलिए, कई बार, परिवार भी आत्महत्या होने के सकेंतों को पहचानने से चूक जाते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि आत्महत्याओं को रोकने के लिए ज़रूरी है कि हम व्यक्ति विशेष के व्यवहार पर नज़र रखें, क्योंकि उसके व्यवहार में बदलाव आना भी एक संकेत हैं. उन्होंने कहा,

उनके दिन-प्रतिदिन के व्यवहार को देखें, यदि आप उनके व्यवहार में बदलाव महसूस करते हैं, तो बारीकी से उनको समझिए और इस पर बात करें, कोशिश करें और पता लगाएं कि व्यक्ति के साथ क्या चल रहा है.

वहीं दूसरी ओर, पिछले वर्षों की तुलना में अब आत्महत्या के मामलों में वृद्धि होने के बारे में बात करते हुए, योर दोस्त की वरिष्ठ क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक, पुरोइत्री मजूमदार ने कहा,

ऐसा नहीं लगता कि यह एक पीढ़ी में बदलाव का मुद्दा है. मुझे लगता है, यह Z पीढ़ी के अस्तित्व में आने से पहले भी मानसिक बीमारी थी, लेकिन तब इसके बारे में जागरूकता की कमी थी. हालांकि, अब इस मुद्दे पर ज़्यादा बात हो रही है, अब ज्यादा मामलों की पहचान भी की जा रही है और ज्यादा से ज्यादा लोग इसके लिए थेरेपी का सहारा भी ले रहे हैं. यह कहने के बाद, मुझे लगता है कि व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन में और बेहतर होना, या किसी विशेष प्रकार की बनने का दबाव, पिछले कुछ वर्षों में युवाओं के प्रति बढ़ा है. इसका असर काफी हद तक युवाओं पर पड़ता है, नतीजतन वो कभी-कभार सोचते हैं कि आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प है. मुझे यह भी लगता है कि कहीं न कहीं बातचीत का न होना एक बहुत बड़ा अंतर पैदा करता है साथ ही आजकल बहुत ज्य़ादा सही क्या है और गलत क्या है इस बात को भी बहुत गलत ढंग से जज किया जाता है.

आत्महत्यों को किस तरह से रोका जाए इसे रोकने के समाधानों पर जोर देते हुए डॉ गिन्नी के. गोपीनाथ ने कहा,

हमें मानसिक स्वास्थ्य के साथ जुड़े मिथ को तोड़ने की ज़रूरत है, हमें इस बारे में सोचने की ज़रूरत है कि आखिर हम आसानी से इस पर कैसे बात कर सकते हैं, ख़ासकर अपने परिवारों के साथ इसके बारे में हमें बात करने की ज़रूरत है. हमें अपने अंदर चल रही सोच को किस तरह से व्‍यक्‍त करना हैं, ये भी सीखना चाहिए. साथ ही अगर हमें इस परिस्थिति में मदद की ज़रूरत है तो हमें बेझिझक मदद के लिए आवाज़ लगानी चाहिए, क्योंकि मदद मांगना अधिकार है और हमें इस दिशा में विश्वास करने की जरूरत है, हमें ज़रूरत है कि हम खुले मन के साथ अपने दोस्तों और परिवार से बात करें.

आत्महत्या से रोकथाम के लिए किस तरह से समाज औऱ आसपास के लोग मदद कर सकते हैं, इस बारे में बात करते हुए, पुरोइत्री ने कहा,

सबसे पहली बात आपको यह समझ होनी चाहिए कि आप विशेष व्यक्ति को समझते हैं और आपको उसे ये भी सुनिश्चित कराना चाहिए कि आप उसे सुनने के लिए पूरी तरह से वहां मौजूद हैं. ज्यादातर लोगों में देखा गया है कि वो आत्महत्या को अंतिम विकल्प मानते हैं जिसके बारे में वह लंबे समय से योजना बना रहे होते हैं. तो, मुझे लगता है, उनके आसपास के लोगों के लिए, यह सबसे बड़ा क्‍लू है, अगर आप देखते हैं कि किसी व्यक्ति का व्यवहार पहले की तरह नहीं है, तो आपको उससे बात करने की कोशिश करनी चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप केवल उनसे एक ही बार बात कर रहे हैं, उनसे लगातार बातचीत बनाए रखिए और उन्हें यह महसूस कराएं कि आपको उनकी परवाह है.

यदि आपको मदद की ज़रूरत है या फिर आप किसी ऐसे शख़्स को जानते हैं जिसे मदद चाहिए, तो कृपया आप अपने निकटतम मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करें.

हेल्पलाइन

वंद्रेवाला फाउंडेशन: 9999666555 or help@vandrevalafoundation.com

TISS iCall: 022-25521111 (Monday-Saturday: 8 am to 10 pm) 

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