नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक कैंसर दुनियाभर में होने वाली मौतों का प्रमुख कारण रहा है और साल 2020 में इसकी वजह से लगभग 1 करोड़ लोगों की मौत हुईं थी, यानी दुनियाभर में होने वाली छह में से लगभग एक मौत कैंसर की वजह से हुई. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (ICMR-NCRP) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कैंसर के मामलों की संख्या 2022 में 14.6 लाख थी जो 2025 में बढ़कर 15.7 लाख होने का अनुमान है. दुनियाभर में लाखों लोगों को अपनी चपेट में लेने वाली सबसे घातक बीमारी और हेल्थ केयर सिस्टम में जिन बदलावों की जरूरत है उनके बारे में जानने के लिए बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम ने मूल रूप से चेन्नई के सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट और पद्म श्री से सम्मानित डॉ. रवि कन्नन से बात की, जो पिछले एक दशक में कैंसर के 70,000 से ज्यादा मरीजों का इलाज कर चुके हैं.
कैंसर रोगियों के इलाज के लिए डॉ कन्नन की यह यात्रा अपने मूल स्थान चेन्नई से असम के सिलचर में आकर बसने के साथ शुरू हुई.
किफायती स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की बेहद जरूरत
चेन्नई में एक कैंसर संस्थान में अपने कार्यकाल के दौरान डॉ. कन्नन और उनके विशेषज्ञों की टीम ने हर कैंसर रोगी के इलाज के लिए एक नियम के साथ काम किया, कि भले ही उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो लेकिन उनका इलाज होना चाहिए और उन्होंने अपने इसी नियम को सिलचर के कछार कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में भी लागू किया, जहां वह कैंसर के मरीजों का मुफ्त में इलाज करते हैं. वहां उन्हें पता चला कि ‘कम लागत और बिना लागत’ (low cost and no cost) का इलाज और रहने खाने की व्यवस्था उपलब्ध कराने के बावजूद, लोग अभी भी अपना इलाज कराना नहीं चाहते हैं.
इन लोगों ने इसके पीछे ठोस कारण भी दिए. घाटी के लोग दिहाड़ी मजदूर हैं और उनकी इनकम उनके रोज के काम पर ही निर्भर करती है. हम सभी जानते हैं कि कैंसर का इलाज लंबा होता है और इसके लिए बार-बार अस्पताल आने की जरूरत पड़ती है. मरीज अपना काम छोड़कर बार-बार अस्पताल नहीं आ सकते क्योंकि इससे उनके काम, परिवार, और उनकी माली हालत पर असर पड़ता है.
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डॉ. कन्नन ने कहा कि जहां कुछ मरीज अपने काम की वजह से अस्पताल नहीं आ पाते, वहीं कुछ ऐसे भी है जो अस्पताल जाने से इसलिए डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि बार-बार अस्पताल जाने से उनकी सारी बचत यानी सेविंग खत्म हो जाएगी.
डॉ कन्नन ने कहा, इसलिए, एक ऐसे हेल्थकेयर सर्विस/मॉडल की जरूरत है जो कैंसर के मरीजों को अस्पताल तक पहुंचने में आने वाली रुकावटों का हल निकाल सके.
कैंसर: इस जानलेवा बीमारी के कारण
डॉ कन्नन ने कहा कि भारत संचारी (communicable) से गैर-संचारी (non-communicable) बीमारियों की ओर बढ़ते चलन को देख रहा है और भारत में कैंसर के मामले काफी बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि कैंसर एक लाइफस्टाइल डिजीज यानी जीवनशैली से जुड़ी बीमारी है, जिसे लाइफस्टाइल में बदलाव करके रोका जा सकता है. उन्होंने कैंसर के कारणों के बारे में बताया जिनमें तम्बाकू, सुपारी, शराब, एक खराब लाइफ स्टाइल जिसका मतलब है एक ऐसी लाइफस्टाइल जिसमें फिजिकल एक्टिविटी की कमी हो, खराब डाइट, संक्रमण और शरीर में सूजन शामिल हैं. कैंसर एक्सपर्ट डॉ कन्नन ने कहा,
अगर इन सभी कारणों पर ध्यान दिया जाए, तो भारत में कैंसर के लगभग 70 प्रतिशत मामलों को खत्म किया जा सकता है और फिर इलाज के लिए बहुत कम संख्या में कैंसर के मामले बचेंगे.
WHO के मुताबिक, कैंसर से होने वाली लगभग एक-तिहाई मौतें तंबाकू के सेवन, हाई बॉडी मास इंडेक्स, शराब का सेवन, कम फल और सब्जियों का सेवन और शारीरिक गतिविधि की कमी के कारण होती हैं.
साल 2007 में डॉ. रवि कन्नन ने चेन्नई में प्रतिष्ठित कैंसर इंस्टीट्यूट (Women’s Indian Association) में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड के तौर पर अपना पद छोड़ दिया और फिर अपने परिवार के साथ असम में आकर बस गए, क्योंकि वह आर्थिक रूप से गरीब उन लोगों की मदद करना चाहते थे जिन लोगों को असम के सिलचर में कैंसर अस्पताल की सेवाओं की सख्त जरूरत थी. वह असम के सिलचर की बराक घाटी में कैंसर केयर को और अधिक सुलभ बनाना चाहते थे ताकि ज्यादा से ज्यादा मरीजों का इलाज किया जा सके.
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कछार से पहले लोगों के लिए सबसे नजदीक का अस्पताल 300 किलोमीटर से ज्यादा दूर गुवाहाटी में था. पिछले 13 सालों में डॉ. कन्नन ने अस्पताल की पूरी टीम के साथ मिलकर ग्रामीण कैंसर केंद्र को एक पूर्ण अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में बदल दिया है.
अब तक उन्होंने 70,000 से ज्यादा मरीजों का इलाज किया है. चिकित्सा के क्षेत्र में उनके इस सराहनीय काम के लिए डॉ कन्नन को 2020 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. वह वर्तमान में कछार कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र के निदेशक के तौर पर काम कर रहे हैं, जहां वे कैंसर के मरीजों का मुफ्त में इलाज करते हैं. इस अस्पताल में कैंसर के मरीजों का मुफ्त में इलाज करने के अलावा उनके रहने की व्यवस्था, खाना और रोजगार भी दिया जाता है.
कैंसर से बचाव के उपाय
डॉ कन्नन ने कहा कि कैंसर की रोकथाम के लिए लोगों को अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लाइफस्टाइल के पैटर्न में बदलाव के जरिए व्यक्ति को इस घातक बीमारी से दूर रखा जा सकता है – धूम्रपान छोड़ने से लेकर फलों और सब्जियों का सेवन बढ़ाना, शराब का कम सेवन, खाने में कैलोरी कम करना, फिजिकल एक्सरसाइज बढ़ाना इन सब तरीकों से इस बीमारी को दूर रखा जा सकता है. इसके अलावा, नियमित तौर पर समय पर वैक्सीनेशन और रेगुलर चेकअप कराने से कैंसर और कई गैर-संचारी (non-communicable) बीमारियों को रोकने में भी मदद मिल सकती है. डॉ कन्नन ने कहा,
अगर हम इन सरल स्वास्थ्य उपायों का पालन कर लें तो हम देश में कैंसर के 80 प्रतिशत से अधिक मामलों को कम कर सकते हैं.
डॉ. कन्नन ने आशा वर्कर्स की भूमिका के बारे में बात करते हुए कहा कि लोकल कम्युनिटी के सदस्यों के सपोर्ट और एम्पावरमेंट से बीमारी की रोकथाम और उसका इलाज करना आसान हो जाता है. दूरदराज के इलाकों में डॉ. कन्नन और उनकी टीम गांव के हर आदमी तक पहुंचने के लिए आशा वर्कर्स के साथ मिलकर काम करती है.
एक बार की बात है एक छोटे से गांव में एक महिला के स्तन में एक नली (duct) थी. इसकी पहचान हमारे द्वारा प्रशिक्षित की गई आशा कार्यकर्ताओं द्वारा ही की गई थी. इसके बाद उन्होंने उस महिला को अस्पताल आने के लिए भी मना लिया, जहां जांच करने पर हमें उसके स्तन में कैंसर का पता चला और इस तरह कैंसर के और बढ़ने से पहले ही उसका इलाज हो गया.
डॉ कन्नन ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में सभी को स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें इसे सुनिश्चित करने में आशा कार्यकर्ताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
डॉ कन्नन का ‘मंत्र’ यह है कि डॉक्टर, वार्ड बॉय, नर्स, टेक्नीशियन, डोरमैन से लेकर अस्पताल के निदेशक तक, हेल्थ केयर से जुड़े सभी लोगों को एक ही भावना अपनानी चाहिए कि हर मरीज का कुशलतापूर्वक इलाज करना है और जितना संभव हो सके उतने लोगों को कैंसर के दुष्चक्र से आजाद कराना है.
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