किशोरावस्था में स्वास्थ्य तथा लैंगिक जागरूकता

Opinion: Yearender 2022 – भारत को किशोरों में इंवेस्‍ट करना जारी रखना चाहिए

Yearender 2022: पूनम मुत्तरेजा लिखती हैं, किशोरों को सेक्‍चुअल और प्रजनन स्वास्थ्य की जानकारी देने की कोशिश के बावजूद, किशोरों के रिप्रोडक्टिव हेल्‍थ और सेक्‍चुअल एजुकेशन पर भारत का असहज संबंध बना हुआ है

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Yearender 2022: यह साबित करने के लिए ग्‍लोबल सबूत हैं कि व्यापक रिप्रोडक्टिव हेल्‍थ और सेक्‍स एजुकेशन किशोरों को सशक्त बनाती है

नई दिल्ली: यह एक निर्विवाद तथ्य है कि भारत का भविष्य युवाओं के हाथ में है. किशोर – जिनकी आयु 14 से 19 वर्ष के बीच है – देश की जनसंख्या का महत्वपूर्ण 20 प्रतिशत हिस्‍सा हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 253 मिलियन की संख्या के साथ ये भविष्य में गणना करने के लिए एक बल हैं और रहेंगे. उनमें इंवेस्‍ट करना जरूरी है ताकि भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठा सके.

किशोरों की जरूरतें बड़ी युवा आबादी (जो 10-24 साल की हैं) से अलग हैं. उनकी अत्यधिक विशिष्ट जरूरतें हैं, जिनमें क्‍वालिटी एजुकेशन , हेल्‍थ केयर, पोषण, मेंटल हेल्‍थ और शारीरिक मुद्दों की एक सीरीज शामिल है. कौशल हासिल करने, अपनी क्षमता का पता लगाने, अपने सपनों को पाने और समाज में योगदान करने के लिए उन्हें, विशेष रूप से लड़कियों को सक्षम और सहायक वातावरण की आवश्यकता है. किशोरों में इंवेस्‍ट में उनकी सेक्‍स और रिप्रोडक्टिव हेल्‍थ की जरूरतों के साथ-साथ सेक्‍स और रिप्रोडक्टिव हेल्‍थ पर जानकारी और सेवाएं शामिल होनी चाहिए. उन्हें समझना और उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना दोनों ही महत्वपूर्ण है क्योंकि वे फास्‍ट चेंज से गुजरते हैं.

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एडोलसेंट एजुकेशन प्रोग्राम (एईपी) और राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) जैसे सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से व्यापक रिप्रोडक्टिव और सेक्‍स एजुकेशन की जरूरते को “लाइफ स्किल” एजुकेशन के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी गई है. हालांकि नीतियां और कार्यक्रम औपचारिक शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ सीमांत जनसंख्या समूहों के लिए किशोर स्वास्थ्य और कल्याणकारी शिक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं, लेकिन इस विषय से जुड़े सामाजिक कलंक के कारण उनका कार्यान्वयन एक चुनौती बना हुआ है. अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के बावजूद, किशोरों में अक्सर जानकारी की कमी होती है और उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है क्योंकि किशोरों के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य पर चर्चा न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में परिवारों और समाज में वर्जित है. सूचना की खोज में वे अक्सर अविश्वसनीय स्रोतों से गलत सूचना लेते हैं, एक समस्या जो हाल के दिनों में डिजिटल उछाल और इंटरनेट तक असीमित पहुंच के साथ बढ़ गई है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा AEP के मूल्यांकन के अनुसार, केवल 15 प्रतिशत युवा पुरुषों और महिलाओं (15-24

वर्ष की आयु) को रिप्रोडक्टिव हेल्‍थ और सेक्‍स एजुकेशन मिली है. जानकारी के अभाव के इसके गंभीर परिणाम होते हैं. एक अध्ययन के अनुसार, (शादी से पहले सेक्स का समय और इसके सहसंबंध: भारत से साक्ष्य) भारत में अधिकांश युवा लोगों के बीच फर्स्‍ट सेक्‍स एक्टिविटी असुरक्षित है. जानकारी का अभाव भी युवाओं को यौन शोषण का शिकार बनाता है. महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 13 राज्यों में सर्वेक्षण किए गए 53 प्रतिशत से अधिक युवा यौन शोषण के एक या अधिक रूपों से गुजरे हैं. अगर इन मुद्दों पर खुलापन और उपयुक्त शिक्षा तक पहुंच होती तो इसे रोका जा सकता था.

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भारत में दुनिया में एचआईवी से पीड़ित लोगों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या भी है, जिसका अर्थ है कि एचआईवी से संक्रमित होने वालों में से कई लोगों को यह नहीं पता था कि वायरस से खुद को कैसे बचाया जाए. यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में चुप्पी इतनी गगनभेदी है कि भारत में अधिकांश लड़कियों को पीरियड के बारे में तब पता चलता है जब उन्हें पहला मासिक धर्म होता है.

इस संदर्भ में, 2022 एक ऐसा वर्ष था जो पिछले दो वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से अलग था. लगभग दो वर्षों तक, COVID-19 महामारी ने समाज के हर वर्ग के लिए नई चुनौतियां पेश कीं. अपेक्षाकृत स्वस्थ और सुरक्षित किशोर आबादी ने हेल्‍थ सिस्‍टम पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता नहीं जताई. हालांकि, महामारी के बाद के वातावरण ने इस प्रतीत होने वाले हेल्‍दी लेकिन कमजोर जनसंख्या समूह के सामने आने वाली चुनौतियों का पता लगाया है, जिनमें से कई ने इस अवधि के दौरान मेंटल हेल्‍थ के मुद्दों के बारे में बताया है. स्कूलों के बंद होने और शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी-आधारित प्लेटफार्मों में बदलाव से उत्पन्न चुनौतियों ने नई कठिनाइयां खड़ी कर दीं और समाज के हाशिए के वर्गों के कई किशोरों को पीछे छोड़ दिया, यहां तक कि उनके परिवारों को भी बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ा. स्कूल बंद होने के साथ, किशोर लड़कियों ने बाल विवाह, डिजिटल विभाजन, घर पर अतिरिक्त काम और घरेलू हिंसा के जोखिम में वृद्धि का सामना किया. सामान्य स्थिति में वापसी में स्कूलों, स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक समर्थन प्रणालियों को फिर से शुरू करना शामिल है, जिस पर किशोर फलते-फूलते हैं.

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किशोरों को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की जानकारी प्रदान करने के प्रयासों के बावजूद, किशोरों के प्रजनन स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के साथ भारत का असहज संबंध बना हुआ है. 2020 में महिलाओं के खिलाफ कई जघन्य अपराध सामने आए. महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ अपराध किशोरों की स्वतंत्रता को और प्रतिबंधित करता है और उनके विकास को रोकता है. दिल्ली एनसीआर, ऑनलाइन सुरक्षा और इंटरनेट की लत में किशोरों पर किए गए 2020 के एक अध्ययन में पाया गया कि ऑनलाइन हिंसा के 50 प्रतिशत मामले कभी रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं.

यह साबित करने के लिए वैश्विक साक्ष्य हैं कि व्यापक प्रजनन स्वास्थ्य और सेक्‍स एजुकेशन किशोरों को सशक्त बनाती है. टीचर्स और माता-पिता की भागीदारी के साथ इस शिक्षा को एक प्रभावी, सहानुभूतिपूर्ण और

सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील तरीके से वितरित करने की आवश्यकता है. यह महत्वपूर्ण है कि माता-पिता और शिक्षक दोनों स्वयं को सूचना के विश्वसनीय स्रोत के रूप में स्थापित करें.

एक सुरक्षित, निजी और गुमनाम वातावरण में सटीक जानकारी प्रदान करने के प्रयास में, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने SnehAI विकसित किया है – एक आर्टिफिशियल एंटेलिजेंस पावर्ड चैटबॉट जिसे किशोर सेक्‍स और रिप्रोडक्टिव हेल्‍थ के बारे में जानकारी देने के लिए एक डिजिटल पार्टनर के रूप में डिज़ाइन किया गया है. संगठन ने एक एड-टेक प्लेटफॉर्म, Educately.org भी विकसित किया है, जो किशोर स्वास्थ्य और कल्याण के बुनियादी सिद्धांतों पर एक फ्री शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम होस्‍ट करता है.

आगे चलकर किशोरों के लिए ऐसे प्रोग्राम को मजबूत करने की तत्काल आवश्यकता है जो एजुकेशन के साथ-साथ सर्विस पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं. बिहेवियर चेंज प्रोग्राम के जरिए से सामाजिक मानदंडों को बदलना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.सोशल चेंज धीमा हो सकता है लेकिन यह संभव है अगर प्रगतिशील नीतियां और कार्यक्रम इसका साथ देते हैं. जैसा कि हम महामारी के दीर्घकालिक परिणामों का भी मूल्यांकन कर रहे हैं, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि किशोरावस्था के दौरान महसूस की गई प्रतिकूलताओं का न केवल वर्तमान बल्कि अगली पीढ़ी के कल्याण पर भी प्रभाव पड़ता है.

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(लेखक के बारे में: पूनम मुत्तरेजा एक पब्लिक हेल्‍थ एक्‍सपर्ट और पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक हैं.)

Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं. 

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