नई दिल्ली: “अधिकतर ट्रांसजेंडर लोग डरावने नजर आते हैं. लेकिन, सच्चाई यह है कि अपने संघर्षों और चुनौतियों के कारण हम लोगों ने अपने आप को इस तरह ढाल लिया है कि सबके सामने हम ऐसे अरुचिकर या भयानक ढंग से आते हैं.” यह कहना है दिल्ली बेस्ड सामाजिक कार्यकर्ता और ट्रांसवुमन 45 वर्षीय रुद्रानी छेत्री का, जो भारत में LBTQIA+ अधिकारों के लिए अपना खून पसीना एक कर रही हैं.
2005 में, रुद्रानी छेत्री ने मित्र ट्रस्ट की स्थापना की, यह समलैंगिक समुदाय के लिए एक संस्था और शेल्टर होम है. इसका मकसद एक ऐसा स्थान बनाना रहा है, जहां LGBTQIA+ समुदाय के लोगों को सम्मान और गरिमापूर्ण व्यवहार एवं अच्छा माहौल मिल सके. बाद में उन्होंने BOLD नाम की एक और पहल में बड़ी भूमिका निभाई — यह संस्था भारत की पहली ट्रांस मॉडलिंग एजेंसी बनी.
प्राइड मन्थ को मार्क करने के लिए, बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम ने एक ट्रांसवुमन के तौर पर रुद्रानी छेत्री के रोजमर्रा के संघर्षों को समझने के लिए उनके साथ एक पूरा दिन बिताया. साथ ही यह भी जाना कि क्यों उन्हें अपने उपक्रमों को शुरू करने और अपने समुदाय के लोगों के उत्थान व सशक्तिकरण की जरूरत महसूस हुई. उनकी कहानी कुछ इस तरह है.
कौन हैं रुद्रानी छेत्री?
चुप्पी तोड़ते हुए, रुद्रानी छेत्री ने एक संक्षिप्त परिचय के साथ अपनी कहानी साझा करना शुरू किया और कहा,
जब भी कोई मुझसे मेरा परिचय पूछता है, मैं हमेशा मित्र की बात से ही अपनी बात शुरू करती हूं. मुझे लगता है, यह मेरी जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा रहा है. आज रुद्रानी छेत्री अगर रुद्रानी छेत्री है तो इसी संस्था की वजह से और उन लोगों की वजह से जिन्होंने उस पर भरोसा किया और सहारा दिया.
ट्रांसजेंडरों के लिए शेल्टर होम बनाये जाने के पीछे दृष्टिकोण के बारे में बात करते हुए रुद्रानी ने कहा कि उन्हें इसमें पूरा विश्वास है कि इस समुदाय के लिए शेल्टर होम जरूर होने चाहिए और उन्हें जारी रखने के लिए हर स्थिति में अनुमति होनी चाहिए. उन्होंने आगे कहा,
यह केवल सरकार की ही नहीं बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी होनी चाहिए. यह जरूरी है कि सबको साथ लेकर चला जाए और समावेशी हुआ जाए. मैं कहना चाहती हूं कि कुछ भी हो जाए मैं अपने इस शेल्टर होम का संचालन करती रहूंगी क्योंकि यह मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण है. मित्र ट्रस्ट ही मेरी जिंदगी है. मैं यही तो हूं. यहां मेरे बच्चे यानी मेरी बेटियां और बेटे हैं; यही वह जगह है, जिसे मैं अपना घर कहती हूं.
पुरुष लिंग बताया गया, लेकिन हमेशा महिला जैसा महसूस हुआ: रुद्रानी छेत्री
पुरुष के तौर पर जन्म लेने से लेकर अपने आप को एक स्त्री के तौर पर उजागर करने की यात्रा साझा करते हुए रुद्रानी छेत्री ने कहा,
बहुत शुरू से मुझे यह बात समझ आ चुकी थी कि मैं लड़का नहीं हूं. कागजों पर, मुझे लड़के के तौर पर दर्ज किया गया था क्योंकि तब के समय में डॉक्टरों ने बाहरी लक्षणों के आधार पर मुझे लड़का ही करार दे दिया था. काफी वक्त तक कागजों पर मैं लड़का ही रही. लेकिन एक समय के बाद मुझे लगा कि अब तो हद पार हो गई. तब मैंने उस समय तमाम सूचनाएं जुटाईं. मैंने लिंग निर्धारण और हॉर्मोन थेरैपी और सर्जरी के बारे में जाना. और जब मुझे आर्थिक रूप से एक स्थिरता मिली, मैंने वो सब किया जिससे मैं सही महसूस कर सकूं और अपनी सच्ची पहचान पा सकूं.
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रुद्रानी छेत्री को लगता है कि हर जगह लिंग को लेकर पक्षपातपूर्ण रवैया कुछ ज्यादा ही है. उनका कहना है कि आज के समय में भी, लोग सिर्फ दो ही जेंडर समझ पाते हैं – पुरुष या स्त्री.
आज भी, कोई बच्चा जन्म लेता है, तो लोग यही जानना चाहते हैं कि वह लड़का है या लड़की. कोई यह नहीं पूछता कि बच्चा कैसा है यानी उसका स्वास्थ्य कैसा है. मुझे लगता है यह गलत है.
रुद्रानी छेत्री के लिए न मुश्किल था जीवन, न आसान
अपनी परवरिश के दौरान, रुद्रानी छेत्री महसूस करती हैं कि जीवन में उन्हें यह सहूलियत तो रही कि उन्हें न घर से निकाला गया और न ही पीटा गया. अपनी मां के साथ बिताए पलों को याद करते हुए उन्होंने कहा,
मेरी मां को पता था, मैं सच में क्या थी. मेरी मां मुझे बताती हैं कि जब भी मैं उनकी गोद में होती थी, तो मुझे चटक मटक चीजें पसंद आती थीं. मैं अक्सर अपनी मां से उनके मंगलसूत्र की लटकन मांगती थी, काजल, गहने और इसी तरह की वो चीजें जो आम तौर से महिलाओं से जुड़ी ही मानी जाती हैं.
अपनी सेक्सुअलिटी के बारे में खुलासा होना कोई रातो-रात की बात नहीं है. अपने आप को समझना एक कठिन और लंबी यात्रा जैसा है, जिसमें आपको यह सच पता चले कि आप उससे अलग हैं, जैसा होने की अपेक्षा समाज आपसे करता है. उन्होंने कहा,
शुरू से ही वास्तविक लैंगिकता के लक्षण आपमें होते हैं. ऐसा होता बाद में है कि आपको पता चलता है कि आप वास्तव में अलग हैं जैसे ट्रांसमैन या ट्रांसवूमन. शुरूआत से ही, अपने कपड़ों की पसंद से लेकर गहनों और मेकअप तक, सब कुछ लड़कियों वाली चीजों की तरफ मेरा झुकाव था. बचपन के दिनों में, मुझे माधुरी दीक्षित की फिल्में देखना और डांस करना काफी पसंद था. ऐसी बहुत सी बातें मुझे बाद में ही समझ में आईं.
हो सकता है कि आप बाद की उम्र में यह समझ और स्वीकार कर पाएं कि आपकी वास्तविक पहचान क्या है लेकिन आपके आसपास कुछ लोग होते हैं जो अक्सर कुछ लक्षण जल्दी पहचान लेते हैं और आपको छेड़ते हैं. जब रुद्रानी छेत्री छोटी थीं, तब उनके पड़ोसी और दोस्त अक्सर इस बात पर उनका मजाक उड़ाते थे कि वह कैसी थीं. वह याद करती हैं,
आस-पड़ोस की आंटियां मेरी मां से कहती थीं कि मेरी आदतें ठीक नहीं हैं; हरकतें लड़कियों जैसी हैं. घर से निकलती थी तो मोहल्ले के बच्चे मेरा मजाक बनाते थे. मैं घर रोते हुए आया करती थी. और समाज का दबाव इस तरह का था कि मेरे परिवार वालों ने भी मुझे ही इस सबके लिए दोष देना शुरू कर दिया था. वह वक्त मेरे लिए बड़ा अजीब था; मैं ज्यादातर उदास रहा करती थी. मुझे अक्सर लगता था कि मैं दुनिया में बिल्कुल अकेली हूं और जैसे मैंने कोई पाप किया है और मुझे मर ही जाना चाहिए. 18 या 19 साल की उम्र में मैं घर से निकल गई थी. एक बार मेरे अंकल ने भी मुझे आहत किया था.
इन तमाम संघर्षों और चुनौतियों के बावजूद,रुद्रानी छेत्री की मां ने उनके जीवन में बड़ी अहम भूमिका निभाई. इसके बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा,
मेरी मां हमेशा मेरे साथ थी. मुझे याद है उन्होंने ही मुझे अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए मजबूर किया क्योंकि उन्हें पता था कि शिक्षा के सहारे ही मैं एक खुशहाल जीवन जी सकती हूं और इस समुदाय के लोगों की मदद कर सकती हूं. जब मेरे जीवन में बहुत कुछ बदल रहा था, उस दौरान भी उन्होंने सिर्फ वित्तीय तौर पर ही नहीं बल्कि भावनात्मक सहारा भी दिया. मेरी सर्जरी के बाद भी वह मेरे साथ थीं.
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भारत की पहली LGBTQIA+ मॉडलिंग एजेंसी का रास्ता
भारत की ऐसी पहली मॉडलिंग एजेंसी BOLD के पीछे की कहानी बताते हुए रुद्रानी छेत्री हमें 2014 के उस लम्हें में ले गईं, जब अपनी बर्थडे पार्टी के लिए एक रेस्तरां में बुकिंग के सिलसिले में वह एक मॉल में गई थीं. लेकिन वहां उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया. उन्होंने बताया,
वहां गार्ड ने मुझसे कहा था, ‘यहां आप जैसों के लिए कुछ नहीं है’. और यही वह लम्हा था जब मैंने अपनी मॉडलिंग एजेंसी बनाना तय किया क्योंकि मुझे लगता है कि हमारे समाज के लोग हमारे बारे में टीवी और पत्रिकाओं में पढ़कर ही सूचनाएं जुटाते हैं.
लेकिन इधर भी रुद्रानी छेत्री को मुश्किल वक्त देखना पड़ा. जल्द ही उन्हें अहसास हुआ कि ट्रांस मॉडलों को मेहनताना कोई नहीं देना चाहता. उन्होंने कहा,
सब चाहते थे कि यह काम हो लेकिन कोई इसके लिए पैसा नहीं देना चाहता था क्योंकि उन्हें लगता था कि काम देकर ही वो हम पर कोई एहसान कर रहे हैं.
अपने समुदाय को रुद्रानी छेत्री ने कैसे किया सशक्त?
अपने समुदाय के लोगों के उत्थान और सशक्तिकरण की कोशिशों के बारे में आगे बात करते हुए उन्होंने कहा,
मॉडलिंग एजेंसी और मित्र ट्रस्ट के जरिये हमने कई तरह के कौशल विकास कार्यक्रम अपने समुदाय के लिए करने की कोशिश की है ताकि ये लोग अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए सेक्स वर्क या भीख मांगने जैसे पुराने ढर्रे के कामों के भरोसे न रहें. मेरे शेल्टर होम में, हम रोज कुछ नया करने की कोशिश करते हैं. इससे किसी को भी यहां से अरुचि नहीं होती और हर समय कुछ न कुछ नयी स्किल सीखने का मौका मिलता है. मोमबत्ती या साबुन बनाने से लेकर प्राकृतिक परफ्यूम बनाने तक हम सब कुछ करते हैं. मैं यहां हर किसी से कहती हूं कि अगर आप कड़ी मेहनत करेंगे और अच्छा पैसा कमाएंगे तो शायद आपके परिवार वाले आपके साथ खड़े होंगे.
टीम बनेगा स्वस्थ इंडिया ने शेल्टर होम के कुछ लोगों से भी बातचीत की और जाना कि मित्र ट्रस्ट से जुड़ने के बाद उनके जीवन में किस तरह बदलाव आए. शेल्टर होम में रहने वाले ट्रांसमैन कृष्णा ने बताया,
मुझे एक दोस्त ने इस जगह के बारे में बताया था, उसने कहा था कि ऐसा एक शेल्टर होम है, जहां ट्रांस समुदाय के लोग एक साथ मिलकर रह सकते हैं. जब मैं यहां आया तो पहले कुछ अजीब सा लगा पर जल्द ही यहां घर जैसा महसूस होने लगा. यहां लोग मुझे बेहतर समझते हैं; ये लोग मुझे ‘अजीब’ या ‘असामान्य व्यक्ति’ नहीं मानते.
कृष्णा का मानना है कि ट्रांसजेंडरों के लिए इस तरह के शेल्टर होम बहुत जरूरी हैं. यह रुद्रानी छेत्री का शेल्टर होम है जिसने कृष्णा को वह बनाया, जो वह हैं. उन्होंने कहा,
इस शेल्टर होम ने मुझे आत्मनिर्भर बनाया. मैंने कंप्यूटर के बारे में सीखा और इंग्लिश बोलना व पढ़ना भी.
मॉडलिंग एजेंसी का एक हिस्सा और मित्र ट्रस्ट के लिए लंबे समय से काम कर रही बेला ने कहा,
मैं यह जरूर कहना चाहती हूं कि मुझमें आत्मविश्वास बहुत है और मैंने बेहतर ढंग से समाज का सामना करना सीखा है. इस सबके लिए उन तमाम अवसरों का शुक्रियादा करती हूं जो मुझे यहां मिले.
भारत के समावेशी बनने का सफर
LGBTQIA+ समुदाय के लिए एक समावेशी समाज बनाने की दिशा में हुई प्रगति को लेकर और भारत में इसके आगे के सफर के बारे में रुद्रानी छेत्री ने कहा,
मुझे लगता है, भारत में, समावेशिता की ओर पहला कदम यह है कि हमारे स्कूलों में बच्चों को ट्रांसजेंडर सहित सभी लिंगों के बारे में उचित शिक्षा देना शुरू करना चाहिए। बच्चों को अलग अलग समुदायों और जेंडरों के बारे में बताए जाने की जरूरत है. अगर बच्चों को सही जानकारी मिलेगी तो वो किसी से नफरत नहीं करेंगे. और तभी, एक समावेशी समाज संभव हो सकेगा.
अपनी उम्र के, समवयस्कों को अपना संदेश देते हुए रुद्रानी छेत्री ने कहा खुद को शिक्षित और जागरूक करें. उन्होंने कहा,
हमें अपने आपको वर्तमान शिक्षा और परिदृश्यों के साथ खुद को अप-टू-डेट रखना है. कानून एक खाका है. सब कुछ सहज और अबाध चले, इसके लिए समाज को अपनी भूमिका निभानी होगी. आज के समय में भी ट्रांसजेंडरों का मजाक बनाया जाता है. लोग पूछते हैं आप एक लड़का होकर कैसे किसी लड़के से प्यार कर सकते हैं. आप एक लड़का थे तो कैसे लड़के से लड़की बन गए? अभी तो कई कई लड़ाइयां हैं. कभी-कभी, जब मैं सड़क पर कहीं जाने के खड़ी होती हूं तो कुछ लोग रुककर मुझे 10 रुपये दे देते हैं, जैसे मैं कोई भिखारी हूं और मेरा काम सिर्फ उन्हें दुआएं देना ही हो. और, अगर मैं शाम के 8 बजे शॉर्ट स्कर्ट पहनकर किसी टैक्सी का इंतजार कर रही हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं वेश्या हूं. मेरा ख्याल है, लोगों को अपनी बनी बनाई धारणाओं पर लगाम लगाकर अब अपनी समझ और जागरूकता बढ़ानी चाहिए.
अपनी बातों को विराम देते हुए रुद्रानी छेत्री स्वीकार्यता का संदेश ही दोहराती हुई कहती हैं,
हम डरावने लोग नहीं हैं. कोशिश करें और हमें वैसे ही स्वीकार करें जैसे हम हैं. हमें सही शिक्षा देने की जरूरत है, तभी हम एक समावेशी समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां सभी के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार किया जाए.
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