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डॉ. तनाया नरेंद्र ने एचआईवी/एड्स को रोकने के लिए कॉन्डम यूज करने की सलाह दी
डॉ. तनया नरेंद्र ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है, जहां महिलाएं सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं और अपनी सेक्चुअल वेलबीइंग के बारे में खुलकर बात कर रही हैं. हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में विरोधाभासी तस्वीर देखने को मिल रही है
नई दिल्ली: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-21) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एचआईवी/एड्स के व्यापक ज्ञान वाले लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. भारत में 15-49 आयु वर्ग की हर पांच में से एक (22 प्रतिशत) महिलाएं और एक-तिहाई पुरुष (31 प्रतिशत) यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) को रोकने में कॉन्डम के इस्तेमाल के लाभों को जानते हैं. युवाओं में, लगभग 20 प्रतिशत महिलाएं और 15-24 वर्ष की आयु के 29 प्रतिशत पुरुषों को एचआईवी/एड्स की जानकारी है.
वृद्धि के बावजूद, अभी भी ऐसी आबादी बनी हुई है जो कॉन्डम का यूज करने से पीछे हटती है. डॉ. तनया नरेंद्र, जिन्हें सामाजिक रूप से मिलेनियल डॉ. क्यूटरस के नाम से जाना जाता है, ने एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम से प्रोटेक्शन यूज न करने वाले लोगों की स्थिति, पहुंच की कमी और इसके लिंग प्रभावों के बारे में बात की.
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महिलाओं की सेक्चुअल वेलबीइंग
वूमेन हेल्थ के बारे में बात करते हुए डॉ. तनया नरेंद्र ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है, जहां महिलाएं सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं और अपनी सेक्चुअल हेल्थ के बारे में खुलकर बात कर रही हैं. हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में विरोधाभासी तस्वीर देखने को मिल रही है. डॉ. नरेंद्र के अनुसार, दूर-दराज के क्षेत्रों में महिलाएं किसी भी तरह की स्वायत्तता के लिए संघर्ष करती रहती हैं, चाहे वह उनके शरीर, पेशे या किसी और चीज पर हो.
वास्तव में, समाज के कुछ ऐसे वर्ग हैं जहां महिलाएं अपनी पसंद बनाने और आगे बढ़ने में सक्षम हैं. उम्मीद है कि यह अन्य समाजों में भी देखा जाता है. मुझे लगता है कि सेक्चुअल हेल्थ के बारे में एजुकेशन और कम्युनिकेशन इस खाई को कम सकते हैं.
कॉन्डम का यूज करने में झिझक
डॉ. नरेंद्र ने कहा कि जागरूकता में वृद्धि के बावजूद कॉन्डम का यूज कम था और इसे अभी भी एक टैबू माना जाता है. उन्होंने कहा कि देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें असुरक्षित यौन संबंध के कारण एचआईवी हुआ है. डॉ. नरेंद्र ने कहा कि कई मेल पार्टनर्स का मानना है कि कॉन्डम के इस्तेमाल से सेनसेशन कम हो जाएगा, जो कि बिल्कुल गलत है. उन्होंने कहा कि कॉन्डम और अन्य गर्भ निरोधकों तक पहुंच भारत में चिंता का एक और मुद्दा है.
हर पब्लिक बाथरूम में कॉन्डम वेंडिंग मशीन लगाकर इस समस्या को मैनेज किया जा सकता है. दुर्भाग्य से, हमारे देश में स्टैंडर्ड बाथरूम नहीं हैं जिनका इस उद्देश्य के लिए उपयोग किया जा सके.
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कॉन्डम के जरिए यौन संचारित संक्रमणों की 90 प्रतिशत से अधिक संभावना को कम करना
डॉ. नरेंद्र ने कहा कि लोगों को कॉन्डम और इसके यूज के बारे में पर्याप्त शिक्षित नहीं किया गया था. उन्होंने कहा कि इसका उपयोग करने से एचआईवी, गर्भावस्था और अन्य इंफेशन जैसे यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) के जोखिम को लगभग 98 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है.
जब कॉन्डम का उपयोग करने की बात आती है तो कई लेवल पर समस्याएं आती हैं. इसलिए अक्सर, लोग इसे सही ढंग से नहीं पहनते, जबकि कुछ इसे पेनेट्रेशन से ठीक पहले लगाते हैं, बिना यह जाने कि जेनटल कॉन्टैक्ट पहले ही हो चुका है.
एचआईवी/एड्स के बारे में मिथक
एचआईवी/एड्स से जुड़े कुछ मिथकों को दूर करते हुए डॉ. नरेंद्र ने कहा, “रक्षा करें, उपेक्षा न करें”:
- एचआईवी किसी को छूने, किस करने या शारीरिक रूप से पास होने से नहीं फैलता है.
- एचआईवी शारीरिक द्रव्यों के सीधे संपर्क में आने से फैलता है.
- एचआईवी और एड्स समान नहीं हैं. एचआईवी एक ऐसा वायरस है, जिसका इलाज न होने पर एड्स हो सकता है.
- यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) से खुद को बचाने के लिए, हर यौन क्रिया के लिए कॉन्डम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
- एचआईवी किसी के अनचाहे सेक्स के बावजूद फैलता है.
- नए कॉन्डम का यूज करें और पहले से खरीदे गए कॉन्डम की एक्सपायरी डेट जरूर देख लें.
- एचआईवी/एड्स से जुड़े कलंक को तोड़ना और एसटीआई से पीड़ित लोगों को शर्मसार करना बंद करना महत्वपूर्ण है.
एचआईवी/एड्स ट्रीटमेंट
डॉ. नरेंद्र ने एचआईवी/एड्स के लिए फिलहाल मौजूद ट्रीटमेंट के बारे में बताया. यदि कोई एचआईवी से संक्रमित है, तो पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीईपी) नामक एक दवा है, जो डॉक्टरों द्वारा बताई जाती है. यह एचआईवी दवाओं का एक छोटा कोर्स है जिसे वायरस को रोकने के लिए संभावित जोखिम के बाद लिया जा सकता है. डॉ. नरेंद्र ने सुझाव दिया कि लोग इसके बारे में अपने डॉक्टरों से सलाह लें.
उन्होंने कहा कि प्रभावी एंटी-रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट (एआरटी) दवाएं उपलब्ध हैं जो एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति के जीवन को बढ़ा सकती हैं.
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