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चार दशक से वायनाड के आदिवासियों की सेवा कर रहे हैं पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव

महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मे और पले-बढ़े 66 वर्षीय डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव एक हेमेटोलॉजिस्ट हैं, जो वर्तमान में वायनाड में स्वामी विवेकानंद मेडिकल मिशन के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं

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चार दशक से वायनाड के आदिवासियों की सेवा कर रहे हैं पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव
डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव केरल के वायनाड के आदिवासियों में सिकल सेल एनीमिया की खोज करने वाले पहले व्यक्ति थे

नई दिल्ली: ‘मानव सेवा ही माधव सेवा’ यानी इंसानों की सेवा ही ईश्‍वर की सेवा है के सिद्धांत को मानने वाले डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव चार दशकों से भी अधिक समय से केरल के वायनाड में आदिवासियों के लिए काम कर रहे हैं. महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मे और पले-बढ़े 66 वर्षीय डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव एक हेमेटोलॉजिस्ट हैं, जो वर्तमान में वायनाड में स्वामी विवेकानंद मेडिकल मिशन के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं. सन् 1980 में एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद डॉ. सागदेव ने ग्रामीण लोगों की जरूरतों पर विशेष ध्यान देते हुए एक छोटे से क्‍लीनिक के साथ अपने सेवा कार्य की शुरुआत की. उनका यह छोटा सा क्‍लीनिक पिछले कुछ वर्षों में आदिवासियों के लिए मुफ्त भोजन और उपचार के साथ 36 बिस्तरों वाले अस्पताल में बदल गया है. इस अस्पताल में आज एक प्रयोगशाला, मल्टी स्पेशलिटी क्लीनिक, ईसीजी, एम्बुलेंस, मोबाइल डिस्पेंसरी और एक उप-केंद्र जैसी बेहतरीन सुविधाएं भी उपलब्‍ध हैं.

वायनाड में स्वास्थ्य सेवा के बारे में एनडीटीवी से बात करते हुए डॉ सागदेव ने कहा,

50 साल पहले मुख्यधारा से दूर आदिवासियों को आम लोगों को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्‍ध नहीं थीं स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच न होने के कारण आदिवासी आमतौर पर तपेदिक और दस्त जैसी संक्रामक बीमारियों और गैर-संचारी बीमारियों सहित कई तरह की जीवनशैली संबंधी बीमारियों यानी लाइफ स्‍टाइल डिजीज की चपेट में भी आ रहे थे. इन लोगों में पाई जाने वाली प्रमुख स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं में कुपोषण से लेकर शराब और नशीली दवाओं के दुरुपयोग यानी नशाखोरी शामिल थीं. इसके अलावा इनकी सेहत से जुड़ी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्‍या सिकल सेल रोग की आनुवंशिक बीमारी भी थी.

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2021 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ सागदेव वायनाड के आदिवासियों के बीच सिकल सेल एनीमिया की खोज करने वाले पहले व्यक्ति थे. उन्होंने तुरंत सरकार को इसके के बारे में सचेत किया और बाद में, 1997-2001 तक नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने स्‍थानीय स्‍तर पर स्वामी विवेकानंद मेडिकल मिशन के साथ मिलकर इन लोगों की जांच करने और सिकल सेल एनीमिया की रोकथाम के लिए क्षेत्र में एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया.

सिकल सेल रोग (एससीडी) लाल रक्त कोशिका से जुड़ा एक वंशानुगत विकार है, जो एक से दूसरी पीढ़ी में जाता है. एससीडी से पीडि़त व्‍यक्तियों में हीमोग्लोबिन का स्‍तर असामान्य होता है. इस कारण उनकी लाल रक्त कोशिकाएं कठोर और चिपचिपी हो जाती हैं और सी-आकार के फार्म टूल की तरह दिखती हैं, जिसे “सिकल” कहा जाता है, रोग नियंत्रण और इसकी रोकथाम के बारे में बताते हुए डॉ सागदेव ने कहा,

सिकल सेल रोग एक आनुवंशिक रोग है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता है. रोग नियंत्रण और डॉ सागदेव की देखरेख में रोकथाम केंद्र एक सिकल सेल रोग कार्यक्रम चला रहा है, जिसके तहत आदिवासी आबादी की जांच कर रोगियों, वाहकों और गैर-प्रभावित व्यक्तियों को पहचान पत्र जारी किए जा रहे हैं. लोगों को उपचार और विवाह पूर्व परामर्श भी दी जाती है, ताकि उनके जीन स्थानांतरित न हों और बीमारी पर काबू पाया जा सके.

एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया सीजन 9 के फिनाले के सेट पर कैंपेन एंबेसडर अमिताभ बच्चन के साथ डॉ. सागदेव और उनकी पार्टनर

इस साल की शुरुआत में 1 जुलाई को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन 2047 लॉन्च किया था. डॉ सागदेव और उनकी टीम उसी दिशा में काम कर रही है. ‘बनेगा स्वस्थ इंडिया’ के सीज़न 9 के फिनाले में, डॉ सागदेव ने अपने काम के बारे में विस्तार से बात करते हुए बताया कि सभी के लिए स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए और क्या-क्‍या काम करने की आवश्यकता है. उनके साथ अभियान के अंबेसडर अमिताभ बच्चन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया और अन्य पद्म पुरस्कार विजेता भी शामिल हुए.

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शुरुआत में पेश आने वाली चुनौतियों को साझा करते हुए डॉ सागदेव ने कहा,

जनजातीय समाज एक ग्रामीण समुदाय है. आधुनिक चिकित्सा सुविधा इनकी पारंपरिक जीवन शैली के बाहर की चीज थी. 40 साल पहले जब मैं वायनाड गया, तो पता चला कि ये लोग न तो दवा लेने को तैयार थे, न ही अस्पताल जाने को तैयार थे. उन्हें विश्वास ही नहीं था कि कोई बीमारी दवाओं से ठीक हो सकती है. उनका मानना थ कि बीमारी यह उन्हें दिए गए किसी शाप का नतीजा है. इसलिए इससे मुक्ति के लिए वह अपने वैद्य के पास जाते थे या फिर स्थानीय ओझाओं व तात्रिकों से पूजा-पाठ करवाते थे.

इन जनजातीय लोगों का विश्वास जीतने और उनकी सहायता करने के लिए, डॉ सागदेव ने मोबाइल मेडिकल क्लीनिक और स्वास्थ्य मित्र कार्यक्रम की शुरुआत की. इसके लिए स्‍थानीय युवाओं को स्वास्थ्य मित्र कार्यकर्ता के रूप में प्रशिक्षित कर प्राथमिक चिकित्सा और स्वास्थ्य शिक्षा के काम में लगाया गया. आज, वायनाड में इस समुदाय के करीब 125 स्वास्थ्य मित्र हैं, जो अपने समुदाय के लोगों की देखभाल करते हैं, उन्हें परामर्श देने के साथ ही अपने समुदाय के लोगों और डॉक्टरों के बीच एक पुल के रूप में काम करते हैं.

डॉ सागदेव ने बताया,

कोविड-19 महामारी के दौरान भी आदिवासी समुदाय वैक्सीन लेने के लिए उत्सुक नहीं था. चूंकि हम दशकों से उनके साथ मिलकर काम कर रहे हैं, इसलिए हम उन्‍हें राजी करने में कामयाब रहे. वे तभी आगे आए और टीका लिया, जब हमारे अस्पताल में टीकाकरण शिविर आयोजित किया गया.

देश के ग्रामीण इलाकों में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के बढ़ने के बारे में बात करते हुए डॉ. सागदेव ने कहा कि आदिवासी आबादी दशकों से स्वस्थ जीवन शैली, ऑर्गेनिक भोजन और व्यायाम वाली जीवन शैली के साथ जीती रही है. लेकिन, बीते कुछ वर्षों में हमने उनकी जीवनशैली को अव्‍यवस्थित कर दिया है, जिसके चलते अब आदिवासी समाज के लोग भी जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों यानी लाइफ स्‍टाइल डिजीज का शिकार हो रहे हैं और ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया के साथ पैनल में मौजूद डॉ. सागदेव ने सिकल सेल रोग को एक गंभीर बीमारी घोषित करने की अपील की, जिससे कि इस बीमारी के किसी भी नए मामले की सूचना आधिकारिक स्वास्थ्य अधिकारियों को दिए जाने की व्‍यवस्‍था लागू की जाए. उन्‍होंने कहा,

यदि हम सिकल सेल रोग के लिए परीक्षण करते हैं, तो हम इसे फैलने से रोकने के लिए शादी से पहले और बाद में लोगों की काउंसलिंग कर सकते हैं.

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