दुबई: बुधवार (13 दिसंबर) को दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में दुनिया को जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को रोकने समझौते को एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में सराहा गया, लेकिन इस बात की प्रबल आशंका है कि यह अपने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के दायरे में रोके रखने के अपने अंतिम लक्ष्स को हासिल नहीं कर पाएगा. COP28 के अध्यक्ष सुल्तान अल-जबर ने 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को अपने लिए ध्रुव तारे जैसा और शिखर सम्मेलन के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बताया, जिसका जिक्र पहली बार 2015 पेरिस समझौते में किया गया था. वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया के तापमान में औद्योगिक दौर के पहले के मुकाबले से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि बर्फ की चादरों के पिघलने से लेकर समुद्री धाराओं के तहस-नहस होने तक विनाशकारी और अपरिवर्तनीय प्रभावों को जन्म देगी.
लेकिन साल-दर-साल, यह लक्ष्य और भी दूर होता जा रहा है – दुनिया भर में ग्लोबल-वार्मिंग उत्सर्जन अभी भी बढ़ रहा है, जिससे तापमान लगातार नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है.
यह वर्ष रिकॉर्ड रूप में अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा, क्योंकि 2023 में औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.46C अधिक होगा.
ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में, जिसे दशकों के संदर्भ में मापा जाता है, दुनिया ने लगभग 1.2C (2.2F) वार्मिंग का अनुभव किया है.
दुबई में किया गया समझौता, जिसे यूएई सहमति कहा गया है, दुनिया को “ऊर्जा प्रणालियों में जीवाश्म ईंधन से दूर होने की दिशा में व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से बदलाव करने के लिए प्रतिबद्ध करेगा … ताकि, विज्ञान के अनुसार 2050 तक नेट ज़ीरो के स्तर को हासिल किया जा सके.”
हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि, यह समझौता अपने आप में अभूतपूर्व होने के बावजूद उस परिणाम को साकार करने के लिए पर्याप्त होगा.
ब्रिटेन में एक्सेटर विश्वविद्यालय के अर्थ सिस्टम साइंटिस्ट जेम्स डाइक ने कहा,
यह एक ऐतिहासिक नतीजा है, क्योंकि इस बात की सहमति पहली बार है, जब हमने कहा है कि हम जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने जा रहे हैं. बशर्ते कि 1.5C के लक्ष्य पर तवज्जो न दी जाए.
देर से उठाया गया एक छोटा सा कदम
यू.एन. फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज को सूचित करने वाले संयुक्त राष्ट्र के मुख्य वैज्ञानिक निकाय यू.एन. इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने कहा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5C के दायरे के भीतर सीमित करने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में तेजी से कटौती किए जाने की आवश्यकता है.
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दुनिया को ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों के अपने उत्सर्जन में 2019 के स्तर से अगले छह वर्षों में 43%, 2035 तक 60% तक की कटौती करने और 2050 तक नेट जीरो के स्तर तक पहुंचने की आवश्यकता है, ताकि लंबे समय से फंसे हुए पर्माफ्रॉस्ट के पिघलाने जैसे प्रतिकूल प्रभावों को रोका जा सके, क्योंकि ग्रीन हाउस गैसें गर्मी पैदा कर रही हैं.
आईपीसीसी ने COP28 के नतीजे पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार किया है.
2023 संयुक्त राष्ट्र उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया ने 2022 में रिकॉर्ड ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन दर्ज किया, जो 2021 से 1.2% अधिक रहा.
संयुक्त अरब अमीरात में बनी आम सहमति दुनिया को तेल और गैस को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं करती है, न ही इसमें जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल खत्म करने के लिए निकट अवधि की समय सीमा तय की गई है. पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक माइकल मान ने कहा,
यह अपने डॉक्टर से कुछ इस तरह का वादा करने जैसा है कि डायबिटीज का पता चलने पर आप ‘डोनट्स खाना बंद कर देंगे.
यदि दुनिया देशों के पास तापमान वृद्धि को 1.5C तक सीमित करने का 50-50 मौका भी है, तो वे केवल 250 बिलियन मीट्रिक टन या इसके आसपास ही कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कर सकते हैं. नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल के अक्टूबर 2023 के अंक में प्रकाशि एक अध्ययन के अनुसार मौजूदा उत्सर्जन स्तर को केवल छह वर्षों में पूरा किया जाएगा. टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक कैथरीन हेहो ने कहा,
यह सहमति अभी भी उन लक्ष्यों के करीब भी नहीं है, जिन पर हम 2015 में पेरिस में सहमत हुए थे.
उन्होंने कहा, यह बात उच्च उत्सर्जन वाले विकसित देशों के लिए सच है, जो ऊर्जा परिवर्तन में विकासशील देशों के लिए अधिक समर्थन के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं.
यूएई-सहमति देशों से नई तकनीकों के इस्तेमाल में तेजी लाने का भी आह्वान करती है, जिसमें “कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS) जैसी निवारक तकनीकें शामिल हो सकती हैं.
इसका मतलब है कि दुनिया कोयला, तेल और गैस का उपयोग जारी रख सकती है, बशर्ते वे उन उत्सर्जन पर लगाम रख सकें. आलोचकों का कहना है कि तकनीक अबतक महंगी और पड़े पैमाने पर प्रयोग के मामले में अप्रमाणित बनी हुई है और चिंता की बात यह है कि अब इसका उपयोग ड्रिलिंग (जीवाश्म ईंधन की) को उचित ठहराने के लिए किया जाएगा. श्री डाइक ने कहा,
सुल्तान अल-जबर और बाकी सभी… वे एक व्यापक परिदृश्य के लिए प्रतिबद्ध हैं. योजना यह है कि हम 1.5C को काफी हद तक पार करने जा रहे हैं, और फिर तापमान को वापस नीचे लाने के लिए सदी के बाकी हिस्सों में CCUS को लागू किया जाएगा.
वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा नहीं है कि यह अकेले COP28 की कमी है. उन्होंने कहा कि 1.5C लक्ष्य तो 2015 के पेरिस सम्मेलन में ही समाप्त हो गया था, क्योंकि इस शिखर सम्मेलन में जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर तुरंत तेजी से लगाम लगाने के लिए कोई स्पष्ट योजना तैयार नहीं की गई थी.
गड़बड़ी कहां है?
खाद्य सुरक्षा को एक गंभीर खतरे के रूप में उजागर करने के COP28 प्रेसीडेंसी के प्रयासों के बावजूद, संयुक्त अरब अमीरात की आम सहमति कृषि और कचरे के निपटान से बड़े पैमाने पर होने वाले उत्सर्जन से निपटने का प्रयास नहीं करती दिखती.
खेत, पशुधन और लैंडफिल से होने वाला यह उत्सर्जन वास्तव में ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार उत्सर्जन का करीब का एक तिहाई हिस्सा पैदा करता है.
हालांकि, प्रस्ताव के सीमित समाधानों के जरिये इसे कम करना मुश्किल है. सस्टेनेबल फूड सिस्टम संबंधी विशेषज्ञों के अंतरराष्ट्रीय पैनल के कृषि वैज्ञानिक एमिल फ्रिसन ने कहा,
भले ही जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाए, पर अगर आप खाद्य प्रणालियों को सुधार नहीं सकते, तो 1.5C के लक्ष्य तक पहुंचना असंभव है.
COP28 वार्ता में कई नई स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएं भी देखने को मिलीं, जिनमें नवीकरणीय ऊर्जा को तीन गुना करने से लेकर तेल और गैस के इस्तेमाल से होने वाले मीथेन के उत्सर्जन पर लगाम लगाना शामिल है.
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के एक मूल्यांकन में पाया गया कि तापमान वृद्धि को 1.5C के दायरे में सीमित कर लेने के लक्ष्य को पूरा कर लेने पर भी यह वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार उत्सर्जन को केवल एक तिहाई ही कम कर पाएगा.
(यह स्टोरी एनडीटीवी के स्टाफ द्वारा संपादित नहीं की गई है और एक सिंडिकेटेड फीड के आधार पर प्रकाशित की गई है.)