नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन की वजह से जहां सूखे, तूफान, हीट वेव, समुद्र के बढ़ते स्तर, ग्लेशियरों के पिघलने और महासागरों के गर्म होने जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है वहीं इससे लोगों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है. यह समझना जरूरी है कि मौजूदा स्थितियों का युवा पीढ़ी पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है. इसलिए युवाओं के लिए यह जरूरी हो गया है कि वो इस समस्या से निपटने में अपना योगदान दें और कई युवा ऐसा कर भी रहे हैं.
उन्हीं लोगों में से एक हैं दिल्ली के 21 साल के युवा एनवायरमेंटलिस्ट और सस्टेनेबिलिटी कंसल्टेंट अभीर भल्ला. आठ सालों से भी अधिक समय से पर्यावरण संरक्षण (Environmental conservation) और सस्टेनेबिलिटी के क्षेत्र में काम करते हुए भल्ला क्लाइमेट एक्शन में युवाओं की भूमिका की वकालत करते हैं.
वह बच्चों के स्वास्थ्य पर्यावरण गठबंधन (CHEC – Children’s Health Environmental Coalition) के गवर्निंग बोर्ड में युवा सलाहकार भी हैं. भल्ला वर्तमान में क्लाइमेट चेंज पर पॉडकास्ट बनाते हैं, जिसे ‘कैंडिड क्लाइमेट कन्वर्सेशन’ के नाम से जाना जाता है. अपने पॉडकास्ट में वो वायु प्रदूषण से लेकर ग्लोबल वार्मिंग तक जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर कई वैज्ञानिकों, कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों और अन्य विशेषज्ञों से बात करते हैं.
जलवायु परिवर्तन के बारे में लोग कितने जागरूक हैं, इस बारे में बात करते हुए भल्ला ने कहा,
अपनी टेड टॉक्स के दौरान, जब मैं युवाओं या वरिष्ठ नागरिकों (सीनियर सिटीजन) से पूछता हूं कि उनके लिए जलवायु परिवर्तन का क्या मतलब है, तो या तो वो मुझे ग्रेटा थाननबर्ग या अल गोर जैसे एनवायरमेंटलिस्ट के नाम या चिपको आंदोलन जैसे कुछ एनवायरमेंटल प्रोटेस्ट के बारे में बताने लगते हैं. कई लोग उस इमेज का भी जिक्र करते हैं जो नैट जियो (NetGeo) ने कई साल पहले पिघलते ग्लेशियरों को दिखाने के लिए पब्लिश की थी, जिसमें एक पोलर बियर (ध्रुवीय भालू) बर्फ के टुकड़े पर चढ़ने के लिए संघर्ष कर रहा है. यह एक ऐसी इमेज है जो तुरंत हमारे दिमाग में आती है जब हम जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करते हैं. लेकिन इसके अलावा इसका क्या मतलब है?
पर्यावरण के अलावा जलवायु परिवर्तन का असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी देखने को मिल रहा है, जिसकी चर्चा वह अक्सर अपनी टेड टॉक के दौरान करते हैं.
चाहे अमीर हो या गरीब, स्वास्थ्य एक ऐसी चीज है जिसपर जलवायु परिवर्तन का असर बिना किसी भेदभाव के पड़ता है. जबकि कई लोग एयर प्यूरीफायर जैसे प्रोडक्ट में निवेश करके इस समस्या को कम कर सकते हैं, लेकिन यह विकल्प आम जनता के लिए नहीं है.
भल्ला ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हमारे चारों ओर हीट वेव, बाढ़, सूखे आदि के तौर पर साफ नजर आता हैं. उदाहरण के लिए दिल्ली में मानसून के दौरान हीट वेट और फिर बाढ़ जैसी स्थिति नजर आई. समय के साथ मानसून और ज्यादा अनियमित होता जा रहा है.”
जलवायु संकट (Climate crisis) को कम करने के लिए पॉलिसी बनाने की आवश्यकता है और युवाओं को भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखने की जरूरत है. भल्ला ने कहा,
नीति-निर्माता और राजनेता जो आज संसदों में बैठे हैं, चाहे वह स्थानीय स्तर पर हों, राष्ट्रीय स्तर पर हों, या संयुक्त राष्ट्र में हों, वो आज से 20 साल बाद वहां नहीं होंगे जब हम वास्तव में उन नीतियों की बुराइयों को देख रहे होंगे जो वे आज बना रहे हैं. और यही वजह है कि युवाओं को इसमें न केवल शामिल होने की बल्कि अपनी बात रखने की भी जरूरत है.
सस्टेनेबिलिटी कंसल्टेंट ने कहा, युवाओं को यह महसूस करने की जरूरत है कि उनके पास अपना वोट इस्तेमाल करने की ताकत है. उन्होंने आगे कहा,
यूनिवर्सल एडल्ट फ्रेंचाइजी हमारे पास मौजूद सबसे जरूरी टूल है, और मुझे लगता है कि जलवायु परिवर्तन जैसे बड़े मुद्दे पर आने वाले सालों में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण टूल साबित होने जा रहा है. क्योंकि यह इस बात को पहचानने में मदद कर सकता है कि कौन सी पार्टियां या राजनेता हैं, जलवायु परिवर्तन पर बात करेंगे और हमें उसके मुताबिक ही उन्हें वोट करेंगे.
यदि जलवायु परिवर्तन के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए गए, तो वह समय दूर नहीं जब लोग ऐसी दुनिया में रह रहे होंगे जहां अंटार्कटिका में वायु प्रदूषण होगा और उत्तर भारत अंटार्कटिका की तरह जमा हुआ होगा. अभीर भल्ला ने कहा, इसलिए क्लाइमेट चेंज से होने वाले इन बदलावों को रोकने के लिए, लोगों को सही नीतियों और सही राजनेताओं को वोट देकर सही विकल्प चुनने की जरूरत है.
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