नई दिल्ली: दिल्ली लगातार छठे दिन भी जहरीले धुंध में लिपटी हुई है, जिससे बड़े पैमाने पर पब्लिक हेल्थ क्राइसिस यानी सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट पैदा हो गया है. 9 नवंबर को हवा की क्वालिटी ‘गंभीर’ श्रेणी में बनी रही. न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) आज 420 रहा, जबकि एक दिन पहले यह 426 था. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तैयार किए गए AQI मैप में Indo-Gangetic के मैदानी इलाकों में लाल बिंदुओं के समूह को दिखाया गया है जो खतरनाक वायु गुणवत्ता यानी एयर क्वालिटी को दर्शाते हैं.
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दिल्ली से सटे गाजियाबाद (369), गुरुग्राम (396), नोएडा (394), ग्रेटर नोएडा (450), और फरीदाबाद (413) में भी एयर क्वालिटी बहुत खराब बताई गई.
हालिया अपडेट के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण की लगातार बिगड़ती स्थिति को देखते हुए स्कूलों में शीतकालीन अवकाश को 9-18 नवंबर तक रीशेड्यूल करने का निर्णय लिया है. इससे पहले विंटर ब्रेक यानी सर्दी की छुट्टियां 3-10 नवंबर तक करने का फैसला लिया गया था.
एयर क्वालिटी के मामले में दिल्ली दुनिया में सबसे खराब शहरों में से एक है. शिकागो यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण से जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) लगभग 12 साल कम हो जाती है.
दिल्ली में वायु प्रदूषण पिछले कुछ सालों में संकट के स्तर तक पहुंच गया है और स्वास्थ्य पर इसका कितना बुरा प्रभाव पड़ता है ये किसी से छिपा नहीं है. वायु प्रदूषण के प्रभाव को एलर्जी, श्वसन संबंधी समस्याओं, जन्म संबंधी विकृतियों, कैंसर की बढ़ती घटनाओं और बहुत सी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा गया है.
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NDTV से बात करते हुए, मेदांता में इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट सर्जरी के चेयरमैन डॉ. अरविंद कुमार ने वायु प्रदूषण के संपर्क में लंबे समय तक रहने के प्रभाव के बारे में बात की. उन्होंने बताया कि इससे सबसे ज्यादा खतरा किसे है और किन उपायों को अपनाकर लोग अपनी सुरक्षा कर सकते हैं.
शहर में देखी जा रही ‘गंभीर’ एयर क्वालिटी के बारे में बात करते हुए, डॉ. कुमार ने कहा,
AQI हवा में पाए जाने वाले छह कणों और गैसीय पदार्थों की वैल्यू से निकाला जाता है. इसका मेन फैक्टर PM2.5 है. यह सभी कणों में सबसे ज्यादा हानिकारक है. PM2.5 नाक और गले से होते हुए फेफड़ों में पहुंच जाता है, वहां जमा हो जाता है और खून में अवशोषित यानी एब्जॉर्ब हो जाता है. PM2.5 और छोटे कण फेफड़ों और शरीर के बाकी हिस्सों को नुकसान पहुंचाने में खास भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा, गैसें भी नुकसान पहुंचाती हैं.
किस आयु वर्ग के लोग वायु प्रदूषण के प्रति होते हैं ज्यादा संवेदनशील
डॉ. कुमार ने कहा कि जो कोई भी इस जहरीली हवा में सांस ले रहा है वह असुरक्षित है. हालांकि, नवजात शिशु और बच्चों को इससे सबसे ज्यादा खतरा है. डॉ. कुमार ने कहा कि शिशुओं को वयस्कों की तुलना में कहीं ज्यादा खतरा होता है. उन्होंने अपनी बात में जोड़ा,
एक वयस्क जो एक मिनट में लगभग 12-14 बार सांस लेता है उसकी तुलना में एक शिशु जो एक मिनट में 40 बार सांस लेता है उसे ज्यादा खतरा है. ज्यादा बार सांस लेने का मतलब है ज्यादा जहरीली हवा का शरीर के अंदर जाना.
डॉ. कुमार ने कहा कि शिशुओं में टिश्यू बन रहे होते हैं, और जब कोई केमिकल ग्रो करते टिश्यू पर हमला करता है, तो नुकसान वयस्कों के टिश्यू की तुलना में कहीं ज्यादा होता है.
स्कूलों को बंद करने से बच्चों को कुछ हद तक वायु प्रदूषण से कैसे बचाया जा सकता है इस बारे में बात करते हुए डॉ. कुमार ने कहा,
घर के अंदर की हवा भी बाहर की तरह ही होती है. हालांकि, जब आप हाईवे, सड़कों या किसी इंडस्ट्रियल एरिया के करीब होते हैं, तो हवा में प्रदूषकों का स्तर घर के अंदर के स्तर से बहुत ज्यादा होता है. स्कूल सुबह शुरू होता है, और वायु प्रदूषण का उच्च स्तर सुबह 6:00 बजे से 8:00 बजे के बीच होता है. इसलिए बच्चे उच्च स्तर के विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आते हैं. दूसरा बच्चे खेलते हैं, दौड़ते हैं. जब वे दौड़ते हैं, तो वो ज्यादा बार सांस लेते है. यही वजह है कि स्कूल इस अवधि के दौरान बंद हैं.
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डॉ. कुमार ने कहा, बढ़ते वायु प्रदूषण के प्रति बच्चों के बाद जो आयु वर्ग सबसे ज्यादा संवेदनशील है उसमें आते हैं बुजुर्ग, क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और इसलिए वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से लड़ना उनके लिए मुश्किल होता है. उनमें निमोनिया और अन्य समस्याएं होने की संभावना ज्यादा होती है.
वायु प्रदूषण से बचाव के उपाय
डॉ. कुमार ने कहा कि हवा में प्रदूषकों का स्तर अमानवीय है यानी इंसान के सांस लेने लायक नहीं है और फिलहाल इस समस्या का कोई ठोस समाधान नहीं है. हालांकि इससे बचने के लिए आप ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र से दूर रहने की कोशिश कर सकते हैं. डॉ. कुमार ने कहा, ऐसी स्थिति में मास्क पहनना, खासकर N95, कुछ हद तक फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि यह पार्टिकुलेट मैटर से बचाता है, लेकिन गैसीय पदार्थ फिर भी उनमें प्रवेश कर जाता है. मास्क उन लोगों के लिए बहुत जरूरी है जो अस्थमा से पीड़ित हैं या क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) से पीड़ित हैं.
एयर प्यूरीफायर अप्लायंस के बारे में बात करते हुए डॉ. कुमार ने कहा कि ये पॉल्यूशन का सॉल्यूशन नहीं हैं. उन्होंने कहा, एयर प्यूरीफायर के इफेक्टिव होने के लिए, कमरे को सील करना और बंद करना होगा, और खिड़कियां और दरवाजे भी बंद करने होंगे. डॉ. कुमार ने यह भी सलाह दी कि जब तक एयर क्वालिटी बेहतर नहीं हो जाती तब तक घर के अंदर भी एक्सरसाइज करने बचें.