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‘नॉलेज इज़ पावर’, के भरोसे के साथ 44 वर्षीय आशा वर्कर बेंगलुरु में लोगों को स्वास्थ्य के बारे में जागरुक कर रही हैं

आशा कार्यकर्ता के रूप में, बेंगलुरु की अमीना बेगम मुख्य रूप से माताओं के स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, गर्भनिरोधक के उपयोग और नियमित टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित करने का काम करती हैं

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‘Knowledge Is Power’, With This Belief, 44-Year-Old ASHA Worker Is Educating People On Health In Bengaluru
Image caption: 44 वर्षीय अमीना बेगम पिछले 12 वर्षों से बेंगलुरु की शहरी मलिन बस्तियों में आशा कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं

नई दिल्ली: 44 वर्षीय अमीना बेगम मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं, जिन्हें पिछले 12 वर्षों से बेंगलुरु की शहरी मलिन बस्तियों में आशा के नाम से जाना जाता है. उनका मानना है कि ज्ञान शक्ति है और इसलिए ज्ञान लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने और अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए शिक्षित करने की दिशा में काम करता है. एक आशा कार्यकर्ता के रूप में, वह मुख्य रूप से माताओं के स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, गर्भनिरोधक के उपयोग और नियमित टीकाकरण की देखरेख करने का काम करती हैं.

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अमीना बेगम की स्वास्थ्य सेवा का सफर 2000 के दशक की शुरुआत में एक संविदा कर्मचारी के रूप में उनके कार्यकाल के साथ शुरू हुआ था. उन्होंने एक एएनएम (सहायक नर्स मिडवाइफरी) की शरण में काम करना शुरू किया था. अपने सफर के बारे में साझा करते हुए बेगम ने कहा,

मैंने 50 रुपये के वेतन के साथ शुरुआत की और मैं सर्वेक्षण करने में शामिल हुआ करती थी. मैंने बेंगलुरु में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) के लिए काम किया. मैंने महिलाओं को प्रसव के लिए अस्पतालों में ले जाने और एएनएम का समर्थन करने में भी सहायता की. इन वर्षों में, मैंने आशा बनने के लिए प्रशिक्षण लिया और 2010 में, मैंने ग्रामीण क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया.

कुछ वर्षों तक, बेगम ने बेंगलुरु के ग्रामीण क्षेत्रों में काम किया. इसके बाद, उन्होंने प्रशिक्षण का एक और राउंड लिया और अपनी सेवाएं प्रदान करने के लिए शहरी मलिन बस्तियों में चली गईं. अपने काम के बारे में विस्तार से बताते हुए, उन्होंने कहा,

मैं अपनी वर्दी यानी गुलाबी साड़ी पहनती हूं और घर-घर जाकर सर्वेक्षण करती हूं और प्रत्येक घर में लोगों की संख्या, पांच साल से कम उम्र के बच्चों, दो साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं का रिकॉर्ड तैयार करती हूं. आशा के रूप में, हम गर्भवती महिलाओं को ‘मदर कार्ड’ जारी करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वे गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद भी नियमित जांच के लिए अस्पताल आएं. गर्भावस्था के बाद, हम महिलाओं को सलाह देते हैं कि कैसे स्तनपान कराएं, बच्चे को कब खिलाएं और कैसे एक मां को अपना और अपने आहार का ध्यान रखना चाहिए. अगर कम वजन वाले बच्चे का जन्म होता है, तो उन्हें अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है. हमारा उद्देश्य मातृ-शिशु मृत्यु को कम करना है और यह निश्चित रूप से पिछले कुछ वर्षों में कम हुआ है.

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बेगम परिवार नियोजन पर भी ध्यान देती हैं. उनके पास 18 से 45 वर्ष के बीच के युगलों का डेटा है और वह उन्हें दो बच्चों के जन्म और गर्भनिरोधक के उपयोग के बीच कम से कम तीन साल का अंतर बनाए रखने जैसे विषयों पर शिक्षित करती हैं. इसके साथ-साथ वह बाल टीकाकरण पर भी ध्यान देती हैं.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत, आशा समुदाय और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक इंटरफेस के रूप में काम करती हैं. वे हर पहलू में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का समर्थन करते हैं. COVID-19 महामारी के दौरान, उन्होंने सर्वेक्षण करने और महामारी और COVID प्रोटोकॉल के बारे में सही जानकारी देने के लिए लोगों को घर-घर जाकर जागरुक करने में अहम भूमिका निभाई. इस काम के लिए बेगम भी फ्रंटलाइन में थीं.

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कोविड-19 महामारी के दौरान, लोग अपना पूरा विवरण नहीं देते थे जैसे कि कोई शहर से आया है या परिवार में बीमार है. ऐसे में हम उन्हें समझाते थे कि यह उनके फायदे के लिए है. लोगों को वैक्सीन लेने के लिए प्रेरित करना मुश्किल था. वैक्सीन को लेकर एक गलतफहमी थी कि टीकाकरण से किसी की मृत्यु हो सकती है. लोग मेरे पास आते और कहते, क्या आप हमारे जीवन की गारंटी लेंगे? मैंने उनकी आशंकाओं पर चर्चा की और मिथकों से बाहर उनसे बात की. जिसके बाद आखिरकार, लोगों ने कोविड डोज़ खुराक और बूस्टर डोज़ दोनों को लगवा लिया.

यह पूछे जाने पर कि उन्हें हर दिन फील्ड में आकर बिना रूके काम करने के लिए किससे प्रेरणा मिलती है, बेगम ने कहा, यह लोगों के जीवन पर उनके काम का असर है. उन्होंने कहा,

पैसे से कोई फर्क नहीं पड़ता. यह सम्मान है जो मुझे अपने काम के लिए लोगों से मिलता है.

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आशा कार्यकर्ताओं के बारे में

आशा (जिसका अर्थ हिंदी में उम्‍मीद है) मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के लिए एक संक्षिप्त शब्द है. आशा, 2005 से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) की सहायता करने वाली जमीनी स्तर की स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं. देश में 10 लाख से अधिक आशा वर्कर हैं. मई 2022 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस ने आशा कार्यकर्ताओं को समुदाय को स्वास्थ्य प्रणाली से जोड़ने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए सम्मानित किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रूरल पॉवर्टी में रहने वाले लोग प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच सकें, जैसा कि पूरे COVID-19 महामारी के दौरान दिखाई दिया. भारत की आशा डब्ल्यूएचओ महानिदेशक के ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड के छह प्राप्तकर्ताओं में से हैं. अवॉर्ड सेरेमनी 75वें वर्ल्ड हेल्थ असेंबली के लाइव-स्ट्रीम्ड हाई लेवल ओपनिंग सेशन का हिस्सा था.

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