नई दिल्ली: रेकिट के पोषण कार्यक्रम ‘रीच एवरी चाइल्ड’ का संचालन गुलाबी दीदियां बहुत अच्छे ढंग से कर रही हैं, जो जीवन के पहले 1,000 दिनों के भीतर बच्चों के लिए पर्याप्त पोषण को प्राथमिकता देता है (वह अवधि जो गर्भावस्था से शुरू होती है और बच्चे के दूसरे जन्मदिन तक जाती है). गुलाबी दीदियां सामुदायिक पोषण वॉरियर्स हैं जो यह सुनिश्चित करने में मदद करती हैं कि कुपोषण के कारण किसी भी बच्चे की मृत्यु न हो और उनके स्थानीय समुदाय की हर एक महिला को गर्भावस्था के दौरान किसी परेशानी का सामना न करना पड़े.
10,000 से ज्यादा सदस्यों के साथ गुलाबी दीदियों ने मां के स्वास्थ्य और शिशु मृत्यु दर के खिलाफ भारत की लड़ाई को मजबूत करने में मदद की है. इन वॉरियर्स ने अपने समुदाय के लोगों की जिम्मेदारी ली है और रीच एवरी चाइल्ड कार्यक्रम के विकास के दौरान अनगिनत लोगों की जान बचाई है.
इसके अलावा, बनेगा स्वस्थ इंडिया पहल के तहत रीच एवरी चाइल्ड कार्यक्रम के माध्यम से रेकिट का कार्यक्रम यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है कि निर्धारित जिलों में महिलाओं को अधिक नौकरियां मिलें.
पिछले कुछ सालों में भारत के कार्यबल के अनुपात (प्रतिशत नहीं) में महिलाओं की संख्या में मामूली वृद्धि देखी गई है. रेकिट अपनी पहल के जरिए महिलाओं को और अधिक रोजगार प्रदान करने के अपने उद्देश्य को आगे बढ़ाना चाहता है, क्योंकि एक कार्यरत महिला पूरे समाज की मदद करती है.
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रीच एवरी चाइल्ड प्रोग्राम, जो महाराष्ट्र और राजस्थान राज्य में काम कर रहा है, वह कुपोषण के कारण होने वाली मौतों को शून्य करने के लिए स्थानीय नेतृत्व वाली पहल पर ध्यान केंद्रित करता है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सामुदायिक पोषण कार्यकर्ता के रूप में गुलाबी दीदियां सूचना और सेवाओं की प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं. इन महिलाओं को पद्मश्री डॉ. इंदिरा चक्रवर्ती और पूर्व आईएमए अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र सैनी सहित कई अन्य वैश्विक विशेषज्ञों द्वारा पोषण पर प्रशिक्षित किया जाता है. पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् डॉ. इंदिरा चक्रवर्ती ने कहा,
एक महिला होने के नाते, मैंने समुदाय के स्वास्थ्य के निर्धारकों में सुधार करने का संकल्प लिया है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो इससे वंचित हैं. मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि गुलाबी दीदीयां स्वास्थ्य में समानता हासिल करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में भारत के सबसे अनोखे कदमों में से एक है. मैंने अपना समय दिया है और ऐसा करना जारी रखूंगी ताकि स्वदेशी महिला स्वास्थ्य योद्धाओं की एक सेना तैयार की जा सके और कोई भी पीछे न छूटे.
डॉ चक्रवर्ती रीच एवरी चाइल्ड कार्यक्रम के तहत 1 मार्च को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के ग्रामीण अस्पताल, चुरनी में पोषण पुनर्वास केंद्र (NRC) के शुभारंभ के अवसर पर बोल रही थी. इस पहल का उद्घाटन अमरावती की जिलाधिकारी पवनीत कौर (आईएएस), रवि भटनागर, निदेशक, विदेश मामले और भागीदारी SOA, रेकिट और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्तिथि में हुआ. इस पहल का उद्देश्य 20 मिलियन लड़कियों तक पहुंचना है.
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इस मौके पर रेकिट के निदेशक रवि भटनागर ने अपने संबोधन में कहा,
मां और बच्चे स्वस्थ जीवन व्यतीत करें और कोई भी बच्चा कुपोषण से न मरे, इसी उद्देश्य को सामने रखते हुए सरकार, प्रशासन और समाज के साथ हमारा प्रयास और सहयोग हमेशा से है. हम अपनी गुलाबी दीदियों के माध्यम से भारत को भारत की कहानी सुनाना चाहते हैं, जो अपने समुदायों के लिए बिना थके अथक परिश्रम करती हैं और अच्छी सुविधाओं की मदद से स्वास्थ्य और स्वच्छता की सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रचार करती हैं. हम समाज में स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक स्थायी बदलाव लाने के लिए गुलाबी दीदियों का समर्थन करते हैं. रेकिट में हम स्वदेशी महिला नेटवर्क का समर्थन करने के लिए निवेश करते हैं, जो बच्चे के जीवन के पहले 1000 दिनों की चुनौतियों पर जीत हासिल करने का प्रयास करती है.
कार्यक्रम के बारे में
समय तक होने मिलने वाले कम पोषण को 40 प्रतिशत (स्टंटिंग) और कम अवधि में मिलने वाले अपर्याप्त पोषण (वेस्टिंग) को 5 प्रतिशत से कम रखने के लिए शुरू किया गया था. जब लम्बे समय तक पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है तो उसे स्टंटिंग कहा जाता है, जबकि कम अवधि में मिलने वाले अपर्याप्त पोषण को वेस्टिंग कहते हैं. इसके बाद इस प्रोग्राम को राजस्थान में भी शुरू किया गया. रेकिट की सामाजिक प्रभाव निवेश रिपोर्ट 2021 के अनुसार, यह कार्यक्रम पांच वर्ष से कम उम्र के 72,700 बच्चों तक पहुंच गया है. साथ ही इसके माध्यम से 161 परिवारों को कुपोषण के इलाज के लिए नकद सहायता भी प्रदान की गई है. इसके अलावा, रेकिट ने कई तरीकों के माध्यम से 8,000 गर्भवती महिलाओं का समर्थन किया है और 91 प्रतिशत नई माताओं को स्तनपान कराने में मदद की है. कार्यक्रम के दो वर्षों में, महाराष्ट्र के अमरावती और नंदुरबार जिलों में समर्थित बच्चों के बीच कुपोषण से मृत्यु नहीं होने वाले परिवारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है. इतना ही नहीं, इस कार्यक्रम के कारण स्थानीय जनजातियों से आने वाली महिलाओं का उत्थान भी हुआ है.
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नीति आयोग के पोषण और स्वास्थ्य के राष्ट्रीय तकनीकी बोर्ड के सदस्य डॉ. राज भंडारी ने कहा,
स्वास्थ्य क्षेत्र में मेरे दशकों के काम के दौरान मैंने देखा है कि भारत ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 और 5 के बीच शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कमी लाने में अच्छी प्रगति की है. इसमें निजी क्षेत्र और परोपकार की भावना ने बड़ी भूमिका निभाई है. मुझे यकीन है कि ऐसे भागीदारों की मदद से हम विशेष रूप से सबसे वंचित समूहों के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने के लिए सरकारी कार्रवाइयों को मजबूत करेंगे.
आईएएस पवनीत कौर, कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी, अमरावती ने कहा,
मैं मेलघाट के सुदूर आदिवासी गांवों में से एक आरएच चुरनी में एनआरसी के नवीनीकरण में योगदान करने के लिए हर बच्चे की तरफ से रेकिट को धन्यवाद देती हूं. मुझे उम्मीद है कि यह क्षेत्र में कुपोषित बच्चों को बेहतर सेवाएं प्रदान करने में मदद करेगा और माता-पिता में विश्वास पैदा करेगा. इसने पहले ही चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टरों के लिए एक नैतिक प्रोत्साहन पैदा कर दिया है. उस क्षेत्र में काम करने के लिए धन्यवाद जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है.
कार्यक्रम के माध्यम से अब तक महाराष्ट्र में कई सुविधाओं का नवीनीकरण किया गया है, जिसमें एनआरसी अमरावती, एनआरसी धरनी, एनआरसी अक्कलकुवा, लवाडा में दो आंगनवाड़ी शामिल हैं. अगले चरण में कार्यक्रम की मदद से कई सुविधाओं के नवीनीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिसमें महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले में एनआरसी धड़गांव और राजस्थान के राजसमंद जिले में एनआरसी शामिल हैं.
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पोषण पुनर्वास केंद्र (NRC) का उद्देश्य
एनआरसी केंद्र का उद्देश्य उन गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पर्याप्त देखभाल प्रदान करना है, जिनका जीवन के लिए घातक साबित होने वाली समस्याओं का इलाज पहले से ही अस्पताल या आवासीय देखभाल सुविधा में किया जा चुका है. इस तरह के केंद्र बनाने का उद्देश्य बीमारी का इलाज हो जाने के बाद बच्चों को प्रारंभिक देखभाल प्रदान करना है. इस सुविधा का लक्ष्य अस्पताल और घर की देखभाल के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना है. इसमें कार्य करने वाले स्वास्थ्य कर्मी बच्चों को स्वस्थ बनाने में सहायता करते हैं. बच्चों को यहां घर जैसा माहौल मिलता है, जहां थोड़े समय के लिए उनका इलाज किया जाता है.
वर्तमान में, एनआरसी के रूप में निर्मित सभी सुविधाएं राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) द्वारा निर्धारित राज्य के दिशानिर्देशों का पालन करती हैं. सभी नवीनीकरण जिला मजिस्ट्रेट की देखरेख में किए जाते हैं ताकि गुणवत्ता की जांच में कोई भी समझौता न हो.