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जानिए स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत हुई प्रगति और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका असर

‘स्वच्छ भारत मिशन 2.0’ के तहत देश ने क्या प्रोग्रेस की है और सार्वजनिक स्वास्थ्य मापदंडों यानी पब्लिक हेल्थ पैरामीटर पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है? वॉटर, सैनिटेशन एंड हाइजीन इंस्टीट्यूट के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. अरुमुगम कलीमुथु (Dr. Arumugam Kalimuthu) ने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ‘स्वच्छ भारत मिशन 2.0’ के प्रभाव के बारे में विस्तार से बताया और सस्टेनेबल प्रैक्टिस की जरूरत पर जोर दिया

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जानिए स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत हुई प्रगति और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका असर
जल, स्वच्छता और हाइजीन इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक डॉ. अरुमुगम कलिमुथु, स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत और उसके SBM 2.0 में परिवर्तित होने की प्रगति का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करते हैं

नई दिल्ली: स्वच्छ भारत मिशन दुनिया की सबसे बड़ी स्वच्छता पहल (Sanitation initiative) है, जिसे 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू किया था और इसका मकसद 2 अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच मुक्त (Open Defecation Free – ODF) भारत के जरिए महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देना था. इस कार्यक्रम के तहत 10 करोड़ से ज्यादा व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण हुआ, जिससे सेनिटेशन कवरेज 2014 में 39% से 2019 में बढ़कर 100% हो गया, जब लगभग 6 लाख गांवों ने खुद को खुले में शौच मुक्त (ODF) घोषित कर दिया. इसके बाद 2021 में, भारत सरकार ने वेस्ट मैनेजमेंट (Waste management) पर फोकस करने के लिए स्वच्छ भारत मिशन (SBM) 2.0 लॉन्च किया.

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स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत अब तक क्या हासिल हुआ है और सार्वजनिक स्वास्थ्य मापदंडों यानी पब्लिक हेल्थ पैरामीटर्स पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है? टीम बनेगा स्वस्थ इंडिया ने ‘स्वच्छ भारत मिशन 2.0’ (SBM 2.0) की अब तक की प्रोग्रेस पर चर्चा करने के लिए वॉटर, सैनिटेशन एंड हाइजीन (WASH) इंस्टीट्यूट के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. अरुमुगम कलीमुथु (Dr. Arumugam Kalimuthu) से बात की. उनकी बातचीत के मुख्य अंश:

NDTV: लॉन्च के बाद से भारत ने SBM 2.0 के तहत अब तक क्या प्रोग्रेस की है? क्या आप इसे आंकड़ों में बता सकते हैं?

डॉ. अरुमुगम कलीमुथु: स्वच्छ भारत मिशन (SBM) ने 2014 में अपनी शुरुआत के बाद से महत्वपूर्ण प्रगति देखी है. 1981 में, देश में स्वच्छता कवरेज केवल 1 प्रतिशत था, जो 1994 में बढ़कर करीब 35% हुआ. लेकिन 2 अक्टूबर, 2019 तक, हमने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में 100 प्रतिशत सेनिटेशन कवरेज हासिल कर लिया.
व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (Individual household toilet) के कवरेज के बाद, SBM 2.0 की शुरुआत की गई क्योंकि हमने शौचालयों का निर्माण किया है, तो एक बार गड्ढे या सेप्टिक टैंक भर जाने के बाद क्या होगा? इसलिए, हमें इसके सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर ध्यान देने की जरूरत थी. SBM 2.0 के तहत, ग्रेवाटर और ब्लैकवाटर मैनेजमेंट के साथ-साथ कम्युनिटी और पब्लिक टॉयलेट्स पर जोर दिया गया. सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो करीब 4,355 कस्बे (towns) ODF का दर्जा हासिल कर चुके हैं.

अब तक, शहरी क्षेत्रों में लगभग 81 प्रतिशत कस्बों ने ODF + का दर्जा हासिल कर लिया है, जो दर्शाता है कि लोगों के पास घरेलू या सार्वजनिक शौचालयों के साथ-साथ इसकी वेस्ट के सस्टेनेबल मेंटेनेंस और ट्रीटमेंट की व्यवस्था भी है.

शहरी क्षेत्रों में ODF ++ दर्जे का मतलब मल के कीचड़ (faecal sludge) के प्रॉपर तरीके से एक्सट्रैक्शन, ट्रांसपोर्टेशन और ट्रीटमेंट सहित स्वच्छता के सुरक्षित प्रबंधन को सुनिश्चित करना है. ग्रामीण क्षेत्रों में, SBM 1.0 ने पांच कम्पोनेंट पर फोकस किया: सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, ग्रेवाटर मैनेजमेंट, ब्लैक वाटर मैनेजमेंट, प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट, और बायोगैस को बढ़ावा देने वाला कैटल वेस्ट मैनेजमेंट (cattle waste management). ग्रामीण क्षेत्रों में ODF + की परिभाषा में ये पांच कॉम्पोनेंट शामिल होते हैं. अगर हम ग्रामीण क्षेत्रों की उपलब्धियों पर नजर डालें तो तीन से चार साल के अंदर लगभग 5,17,000 गांवों ने ODF + का दर्जा हासिल कर लिया है, जो एक बड़ी उपलब्धि है.

NDTV: ODF + और ODF ++ के तहत निर्धारित पैरामीटर्स को हासिल करने से नागरिकों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में कैसे मदद मिलती है?

डॉ. अरुमुगम कलीमुथु: सेफ सेनिटेशन तक पहुंच और शौचालय की उपलब्धता वॉटर-बॉर्न डिजीज (water-borne diseases) यानी दूषित पानी से होने वाली बीमारियों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जैसे डायरिया होने की मुख्य वजह मल संदूषण (faecal contamination) होता है. डायरिया, पेचिश, हैजा, टाइफाइड और पीलिया वॉटर-बोर्न डिजीज में आती हैं. सेफ सेनिटेशन और शौचालय तक पहुंच के माध्यम से मल-मुंह संचरण (faecal-oral transmission) को नियंत्रित करने से इन बीमारियों को होने से रोका जा सकता है.

2015-16 से 2019-21 तक राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण डेटा देश भर में डायरिया के मामलों में लगभग 1.9 प्रतिशत की कमी का संकेत देता है. उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बेहतर स्वच्छता कवरेज के कारण और भी ज्यादा प्रभाव देखने को मिल रहा हैं, जिससे जल-जनित बीमारियों (water-borne diseases) को कम करने में काफी मदद मिली है.

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NDTV: WASH facilities की कमी से पैदा होने वाली कुछ सामान्य बीमारियां क्या हैं?

डॉ. अरुमुगम कलीमुथु: वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) WASH से संबंधित बीमारियों को पांच श्रेणियों में वर्गीकृत करता है: वॉटर-बोर्न डिजीज (water-borne diseases), वॉटर-वॉश डिजीज (water-washed diseases), वॉटर-बेस्ड डिजीज (water-based diseases), वॉटर-रिलेटेड वेक्टर-बॉर्न डिजीज (water-related vector-borne diseases) और सॉइल-बेस्ड डिजीज (soil-based diseases). जल जनित रोगों में मल संदूषण (faecal contamination) के कारण दस्त, पेचिश, हैजा, पीलिया और टाइफाइड जैसी बीमारियां शामिल हैं. हमने शौचालय बनाकर इन बीमारियों को रोका है. यह एक बड़ी उपलब्धि है.

दूसरी है water-washed diseases, जो पर्सनल हाइजीन के लिए पर्याप्त पानी न होने की वजह से होती हैं, जिससे खुजली और त्वचा रोग जैसी समस्याएं पैदा होती हैं. Water-based diseases तीसरी कैटेगरी है, ये बीमारियां प्रदूषित पानी से नहाने से पैदा होती हैं, जैसे सिस्टोसोमियासिस (Schistosomiasis) और गिनी वॉर्म्स (Guinea worms). भारत में Guinea worms बहुत पहले ही खत्म हो चुके हैं; हालांकि, अभी भी देश में सिस्टोसोमियासिस (Schistosomiasis) के मामले अभी भी देखे जाते हैं.

चौथी कैटेगरी है पानी से संबंधित वेक्टर जनित बीमारियां (water-related vector-borne diseases) है, जो मीठे पानी के साथ-साथ काले पानी और गंदे पानी और रुके हुए पानी में पनपने वाले मच्छरों के कारण होते हैं. मच्छर पानी में पनपते हैं और मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां फैलाते हैं. SBM 2.0 के तहत ग्रेवाटर और ब्लैकवाटर मैनेजमेंट के जरिए हम इन बीमारियों से निपटने की कोशिश कर रहे हैं.

पांचवी कैटेगरी है मिट्टी से होने वाली बीमारियां (soil-based diseases). खुले में शौच करने से हुकवर्म (Hookworm) और पिनवॉर्म (Pinworm) जैसी मिट्टी से होने वाली बीमारियां होती हैं, क्योंकि यह मिट्टी में मौजूद होते हैं, और जब आप बिना चप्पल के मिट्टी में चल रहे होते हैं, तो आपको ये बीमारियां हो जाती हैं.

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NDTV: किस राज्य या शहर में बेहतर WASH facilities के चलते बीमारियों में कमी देखी गई है?

डॉ. अरुमुगम कलीमुथु: देशभर में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण डायरिया रोगों में आई भारी कमी का संकेत देता है. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में इन बीमारियों का प्रतिशत 15 से गिरकर 5.5 रह गया है, जो 9.4 प्रतिशत की भारी कमी को दर्शाता है. तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में भी ये प्रतिशत गिरकर क्रमशः करीब 4.5 प्रतिशत और 5.5 प्रतिशत रह गया है. WHO, UNICEF और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसी ऑर्गनाइजेशन की ग्लोबल स्टडीज देश भर में पानी से होने वाली बीमारियों में आई भारी कमी की पुष्टि करती हैं.

NDTV: हम SBM2.0 के तहत किए जा रहे प्रयासों को कैसे बनाए रख सकते हैं और इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभों को हासिल करना जारी रख सकते हैं?

डॉ. अरुमुगम कलीमुथु: मुझे लगता है कि भारत एक ऐसा देश है जिसने पिछले 10 सालों में सेनिटेशन में काफी निवेश किया है. 2014 से, सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर, इन्फॉर्मेशन, एजुकेशन एंड कम्युनिकेशन (IEC) एक्टिविटी, बिहेवियर चेंज कम्युनिकेशन और दूसरी सर्विसेज भी उपलब्ध करा रही है. आखिर में ये लोगों पर निर्भर करता है कि वो सफाई से जुड़ी आदतों को अपने जीवन में शामिल करके अपने स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदार बनें. लोगों को सोर्स सेग्रीगेशन, प्रॉपर वेस्ट डिस्पोजल जैसे उपायों को अपनाना चाहिए और सिंगल-यूज प्लास्टिक से बचना चाहिए. नए घरों का निर्माण करते समय, लोगों को सेप्टिक टैंक या ट्विन-पिट टॉयलेट (twin-pit toilets) वाले शौचालयों के निर्माण के लिए उचित मानदंडों का पालन करना चाहिए.

यह सुनिश्चित करना नागरिक की जिम्मेदारी है कि सेप्टिक टैंक डिजाइन के मुताबिक हों और उन्हें हर तीन से पांच साल में खाली किया जाना चाहिए.

इंफ्रास्ट्रक्चर का रेगुलर मेंटेनेंस, सेनिटेशन प्रैक्टिस को फॉलो करना और व्यक्तिगत जिम्मेदारी SBM 2.0 के माध्यम से होने वाले स्वास्थ्य लाभों को बनाए रखने में मदद करेगी.

NDTV: कहां कमी रह गई है और एक वर्ल्ड हाइजीन और एक स्वस्थ कल सुनिश्चित करने के लिए और क्या किया जाना चाहिए?

डॉ. अरुमुगम कलीमुथु: Faecal-oral ट्रांसमिशन की रोकथाम दो बातों पर निर्भर करती है: शौचालय का इस्तेमाल और हाथ धोना. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक, डायरिया के लगभग 42 प्रतिशत मामलों को साबुन से हाथ धोने से आसानी से टाला जा सकता है.

डायरिया से बचने के लिए हाथ धोना, खास तौर से साबुन से हाथ धोना जरूरी है. डायरिया की बीमारी को रोकने और ओवरऑल हेल्थ को बढ़ावा देने के लिए हाथ धोने सहित व्यक्तिगत स्वच्छता पर ध्यान देना भी जरूरी है.

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