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वायु प्रदूषण

वॉरियर मॉम्स: अपने बच्चों के साफ हवा में सांस लेने के अधिकार के लिए लड़ रहीं मांएं

वॉरियर मॉम्स अपने बच्चों के लिए स्वच्छ हवा के लिए लड़ने वाली माताओं का एक समूह है, जो अब एक अखिल भारतीय आंदोलन में बदल गया है, जिसमें देश के अलग-अलग क्षेत्रों में 1,400 से अधिक मांएं वायु प्रदूषण को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त कर रही हैं

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Warrior Moms, Mothers For Clean Air Are Fighting For Their Children's Right To Breathe
वॉरियर मॉम्स ने दिल्ली, ओडिशा, झारखंड, पंजाब, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, कोच्चि, पुणे और हैदराबाद सहित अन्य कई जगहों पर अपनी टीमें गठित की हैं

नई दिल्ली: “मुझे अच्छी तरह से याद है कि वह 16 नवंबर 2016 का दिन था, पूरा दिल्ली-एनसीआर वायु प्रदूषण के कारण त्राहिमाम कर रहा था. मुझे सूरज की रोशनी नहीं दिख रही थी, शहर भर में धुंध की की मोटी परत सी छाई हुई थी. ऐसा पहली बार हुआ, जब शहर में स्कूल तुरंत बंद कर दिए गए,” दिल्ली निवासी भावरीन कंधीर याद करती हैं. भवरीन के 3 से 5 साल की उम्र के बच्चों को हर साल सर्दियों की शुरुआत के साथ लगातार खांसी सताने लगती थी.उनके कई दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों की भी ऐसी ही शिकायत थी.

वॉरियर मॉम भवरीन कंधीर

ऐसे में एक मां की कहानी भारत के 13 से अधिक राज्यों के 75 गांवों की 1,400 से अधिक महिलाओं की कहानी बन गई, जो ‘वॉरियर मॉम्स’ नामक एक समूह बनाकर वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ने के लिए एक साथ आईं. यह उन माताओं का आंदोलन बन गया, जो अपने बच्चों के लिए स्वच्छ हवा और हरियाली भरे वातावरण के लिए लड़ रही हैं. वॉरियर मॉम्स के कुछ बुनियादी काम हैं – वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की वजहों के बारे में जागरूकता पैदा करना, नागरिकों को इसके खिलाफ कदम उठाने की शिक्षा देकर सशक्त बनाना और नियमों को लागू करने के लिए निर्णय लेने के जिम्मेदार लोगों (डिसीजन मेकर्स) के साथ जुड़ना.

Warrior Moms, Mothers For Clean Air Are Fighting For Their Children’s Right To Breathe

दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करती वॉरियर मॉम्स.

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वॉरियर मॉम्स का मिशन पूरे भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वायु गुणवत्ता मानकों को लागू किए जाने को सुनिश्चित करना है. WHO के अनुसार PM 2.5 का वार्षिक औसत 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) होना चाहिए, जबकि भारत में वायु गुणवत्ता मानक PM 2.5 का सुरक्षित वार्षिक औसत 40 प्रति घन मीटर (µg/m3) होना वांछित है.

13 से अधिक राज्यों में हमारी अलग-अलग टीमें हैं और हमारा मुख्य काम यह है कि हम विभिन्न स्थानों पर, आमतौर पर शहरी इलाकों में अभियान चलाते हैं और प्रदूषण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हैं. साथ ही हम संबंधित अधिकारियों और सरकार से वायु प्रदूषण से निपटने के लिए नीतियां और ठोस उपाय लाने के लिए भी कहते हैं. इसके अलावा, हम सेमिनारों के जरिये वायु प्रदूषण के स्रोतों और बच्चों के स्वास्थ्य पर इसके अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित और जागरूक करते हैं. सेमिनार कॉलोनियों और वार्ड-स्तर पर आयोजित किए जाते हैं. हम वायु प्रदूषण मानकों के उल्लंघन, जैसे कचरा जलाना, गाड़ियों का धुआं, निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल, पेड़ों की कटाई आदि के बारे में लोगों को पर्चे (ब्रोशर) बांट कर इसके नियंत्रण के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) की जानकारी भी देते हैं.

वॉरियर मॉम्स ने दिल्ली, ओडिशा, झारखंड, पंजाब, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, कोच्चि, पुणे और हैदराबाद सहित अन्य शहरों में टीमें बनाई हैं.

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देश के विभिन्न हिस्सों से वॉरियर मॉम्स स्वच्छ हवा के साझा उद्देश्य लिए संघर्ष करने के लिए एकजुट हुई हैं

शहरों से ग्रामीण भारत की यात्रा, वायु प्रदूषण से लड़ाई

टीम ने महसूस किया कि वायु प्रदूषण की समस्या न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी पांव पसार रही है.

वॉरियर मॉम्स की छोटी टीमें ग्रामीण इलाकों में उन महिलाओं तक पहुंचती हैं, जो स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से जागरूकता बढ़ाने के लिए पहले से ही अपने समुदायों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं. टीमें इन प्रतिनिधियों को वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य पर इसके अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभावों, खुले में कचरा जलाने से सेहत को होने वाले नुकसानों, लकड़ी और गोबर के कंडे जैसे ठोस ईंधन के बजाय बायोगैस जैसे स्वच्छ विकल्पों को अपना कर और स्टोव, सोलर स्टोव, एलपीजी (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस), धुआं रहित चूल्हे के इस्तेमाल से घरों के भीतर वायु प्रदूषण को रोकने के बारे में शिक्षित करती हैं. उन्हें प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) जैसी सरकारी योजनाओं के फायदे बता कर इसका लाभ उठाने के लिए भी प्रेरित किया जाता है.

अलग-अलग गांवों की इन महिला प्रतिनिधियों को विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में जरूरी जानकारी वाले ब्रोशर प्रदान किए जाते हैं, जो इनके हाथों गांवों की अन्य महिलाओं तक पहुंचाए जाते हैं. वे चेंजमेकर बनकर डोमिनो प्रभाव की तर्ज पर अपने समाज के भीतर अन्य लोगों को ज्ञान प्रदान करते हैं.

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पंजाब के श्री फतेहगढ़ साहिब जिले के गांव जटाना उचा की मूल निवासी नवदीप कौर भारत भर में योद्धा माताओं में से एक हैं, जो करीब दो साल से इस मुहिम से जुड़ी हुई हैं.

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पंजाब के गांव जटाना उचा में महिलाओं को जानकारी देती नवदीप कौर

41 वर्षीय नवदीप पहले से ही अपने गांव में स्वच्छ भारत मिशन के लिए एक कम्युनिटी लीडर के रूप में काम कर रही हैं. इन्‍होंने अपने गांव और आसपास के क्षेत्रों में लगभग 150 महिलाओं और उनके परिवारों को वायु प्रदूषण, उनके बच्चों के स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव और इस पर नियंत्रण के तरीकों के बारे में शिक्षित किया है. खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन के स्थान पर स्वच्छ ईंधन विकल्पों को अपना कर घरेलू स्तर पर प्रदूषण से निपटने, आसपास के इलाकों में खुले में कचरा न जलाने के बारे में भी वह लोगों को बताती हैं. इसके साथ ही अभियान के चलते होने वाले बदलावों की निगरानी करने के लिए, वह हर महीने क्षेत्र का दौरा भी करती हैं.

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खुले में कचरा जलाए जाने से रोकने के लिए कचरे को एकत्र करते नवदीप और ग्रामीण.

इस अभियान को ग्रामीण इलाकों तक ले जाने के कारण बताते हुए, कोर टीम की सदस्य समिता कौर ने कहा,

हमारे जैसे शहरों में रह रहे लोग, वायु प्रदूषण से निपटने के लिए मास्क पहनने से लेकर एयर प्यूरीफायर खरीदने तक कई साधनों को अपना सकते हैं. इसके अलावा, प्रदूषण के स्तर में वृद्धि होने पर हमारे पास घर के अंदर रहने का विकल्प है, दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगों की स्थिति इसके विपरीत है, जबकि ये भी हमारी ही तरह वायु प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं.

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वॉरियर मॉम्स कोर टीम की ओर से वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव पर आयोजित सत्र में भाग लेती ग्रामीण महिलाएं.

वॉरियर मॉम्स के प्रयासों का सबसे बड़ा असर ग्रामीण क्षेत्रों में 1,000 से अधिक घरों में ठोस ईंधन का इस्तेमाल छोड़कर ईंधन के स्वच्छ विकल्पों को अपनाए जाने के रूप में देखने को मिला. वॉरियर मॉम्स ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का लाभ उठाने में ग्रामीण परिवारों की मदद की, ताकि खाना पकाने के लिए उन्हें रियायती दर पर एलपीजी जैसा स्वच्छ ईंधन प्राप्त हो सके. उनके प्रयासों से अबतक कई राज्यों में करीब 500 परिवारों को इस योजना का लाभ मिल चुका है.

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वॉरियर मॉम्स के प्रयासों की सफलता की कहानियों में से एक ओडिशा की मूल निवासी आशा किरण की है, जिनकी दिनचर्या खाना पकाने के लिए लकड़ी और कोयले से चलने वाले पारंपरिक ‘चूल्हे’ से शुरू होती थी. इससे घर के भीतर हवा में घने धुएं की शक्ल में बायोमास भर जाता था, जो उनके और बच्चों की सेहत पर काफी बुरा असर डाल रहा था. आशा ने 2022 में अपने गांव में वॉरियर मॉम्स द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भाग लिया, जहां उन्होंने लकड़ी और कोयले जैसे ठोस ईंधन की जगह रसोई गैस पर स्विच करने के फायदे और पीएमयूवाई योजना के बारे में जाना. रियायती दर पर एलपीजी मिलने से उन्हें पारंपरिक से स्वच्छ खाना पकाने वाले ईंधन विकल्पों पर आसानी से स्विच करने में मदद मिली.

हाल ही में वॉरियर मॉम्स ने एशिया-पैसिफिक रीजनल नेटवर्क फॉर अर्ली चाइल्डहुड (ARNEC) के साथ इनडोर वायु प्रदूषण पर एक शोध अध्ययन भी किया है. अध्ययन में ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले ठोस ईंधन के प्रकार, खाना पकाने वाले विभिन्न ईंधनों के प्रदूषण स्तरों में अंतर, स्वच्छ खाना पकाने वाले ईंधन पर स्विच करने के लाभ और इनडोर वायु प्रदूषण का समाधान करने की पहल को मजबूत करने के प्रभावी उपायों का पता लगाया गया है.

भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए, भावरीन और समिता ने कहा कि टीम मुख्य रूप से लोगों को वायु प्रदूषण के प्रति जागरूक करने वाली अपनी कार्यशालाओं के लिए छोटे और असरदार प्रेजेंटेशन तैयार करने पर फोकस कर रही है. इसके अलावा, टीम स्कूलों और श्मशान घाटों के बाहर वायु प्रदूषण पर भी शोध और काम करेगी.

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