नई दिल्ली: एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए ग्लोबल फंड के प्रमुख ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन और संघर्ष दुनिया की तीन सबसे घातक संक्रामक बीमारियों को खत्म करने की कोशिशों को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं. सोमवार (18 सितंबर) को जारी फंड की 2023 की रिपोर्ट में बताया गया है कि इन बीमारियों से लड़ने की अंतरराष्ट्रीय पहल कोविड -19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित होने के बाद काफी हद तक पटरी पर आ गई है. पर जलवायु परिवर्तन और संघर्ष की बढ़ती चुनौती के चलते अब “असाधारण कदमों” के बिना 2030 तक एड्स, टीबी और मलेरिया को दुनिया से खत्म करने के लक्ष्य से हम चूक सकते हैं.
ग्लोबल फंड के कार्यकारी निदेशक पीटर सैंड्स ने कहा कि इन बीमारियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों में बढ़ती दिक्कतों के बीच कुछ सकारात्मक बातें भी हैं. उदाहरण के लिए, 2022 में उन देशों में, जहां यह ग्लोबल फंड काम करता है, वहां 6.7 मिलियन लोगों का टीबी का इलाज किया गया, जो पहले से कहीं अधिक है. बीते वर्ष उससे पिछले साल की तुलना में 1.4 मिलियन अधिक लोगों का इलाज किया गया. फंड ने 24.5 मिलियन लोगों को एचआईवी के लिए एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी देने में भी मदद की और 220 मिलियन मच्छरदानियां वितरित कीं.
रिपोर्ट के साथ एक बयान में, फंड निदेशक ने कहा कि महामारी के बाद अभियान के पटरी पर लौटने के बावजूद जलवायु परिवर्तन और परस्पर जुड़े और संकटों के चलते इन बीमारियों पर पार पाना अब पहले से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है.
उदाहरण के लिए, मलेरिया अफ्रीका के हाई लैंड्स वाले हिस्सों में फैल रहा है, जो पहले रोग पैदा करने वाले परजीवी फैलाने वाले मच्छरों के लिहाज से बहुत ठंडे थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि मौसम में बदलाव के कारण आने वाली बाढ़ जैसी समस्याओं के चलते स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं, समुदाय विस्थापित हो रहे हैं, संक्रमण बढ़ रहा है और कई जगहों पर इलाज में बाधा आ रही है. सूडान, यूक्रेन, अफगानिस्तान और म्यांमार सहित देशों में असुरक्षा के माहौल के चलते इन बीमारियों से ग्रस्त लोगों तक पहुंचना भी बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है.
लेकिन सैंड्स ने कहा कि रोकथाम और इलाज के नए तरीकों और उन्नत उपकरणों के चलते कुछ हद तक उम्मीद अब भी बरकरार है. इस सप्ताह, संयुक्त राष्ट्र महासभा में टीबी पर एक उच्च-स्तरीय बैठक है, जिसमें इन बीमारी पर अधिक ध्यान दिए जाने की उम्मीद है.
टीबी उन्मूलन में भारत के प्रयास
क्षय रोग यानी टीबी के खिलाफ भारत की लड़ाई के बारे में बात करते हुए केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में कहा था कि “टीबी मुक्त भारत” (तपेदिक मुक्त भारत) का लक्ष्य हासिल करने के लिए एकीकृत रणनीति के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) जरूरी है. रविवार (17 सितंबर) को श्री माता वैष्णो देवी (एसएमवीडी) नारायण हेल्थकेयर “टीबी-मुक्त एक्सप्रेस” को हरी झंडी दिखाने के बाद सिंह ने कहा कि 2025 तक तपेदिक उन्मूलन के भारत के प्रयास दुनिया के लिए एक आदर्श हैं.
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उन्होंने बताया कि ”चलो, चलें टीबी को हराएं” नारे के साथ एक मोबाइल मेडिकल वैन उनके संसदीय क्षेत्र उधमपुर के विभिन्न गांवों का दौरा करेगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर आयोजित इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ने कहा,
2025 तक टीबी उन्मूलन के भारत के प्रयास दुनिया के लिए एक मिसाल हैं. नागरिकों को जनभागीदारी की सच्ची भावना से टीबी उन्मूलन की दिशा में मिलजुल कर से काम करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि टीबी के कारण होने वाले गहरे सामाजिक और आर्थिक प्रभाव को देखते हुए भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 2025 तक “टीबी मुक्त भारत” को उच्च प्राथमिकता दी है। उन्होंने कहा,
टीबी के उन्मूलन की दिशा में एकीकृत और समग्र स्वास्थ्य देखभाल में बायो टेक्नॉलजी (टेक्नोलॉजी) एक बड़ी भूमिका निभाने जा रही है.
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र को इस पहल में शामिल करना, बीमारी के एक्टिव केसों का पता लगाना, स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के माध्यम से सेवाओं का विकेंद्रीकरण, सामुदायिक जुड़ाव और नि-क्षय पोषण योजना जैसी रणनीतियों ने टीबी के खिलाफ भारत की मुहिम को बदल कर रख दिया है और इसे रोगी केंद्रित (पेसेंट सेंट्रिक) बना दिया है.
सिंह ने इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के टीबी मुक्त भारत के विजन को पूरा करने के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र में उनके द्वारा गोद लिए गए टीबी रोगियों को उनकी दैनिक जरूरतों से जुड़ी किट का वितरण भी किया.
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