नई दिल्ली: भारत के आयोडीन मैन, डॉ. चंद्रकांत पांडव, एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ भारत के 12 घंटे के टेलीथॉन – लक्ष्य – संपूर्ण स्वास्थ्य का में शामिल हुए. डॉ. पांडव पद्मश्री पाने वाले और आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों को कंट्रोल करने के लिए इंटरनेशनल काउंसिल फॉर कंट्रोल ऑफ आयोडिन डेफिशिएंसी डिसऑर्डर के संस्थापक सदस्य हैं. उन्होंने भारत से घेंघा को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
पैनलिस्टों के साथ बात करते हुए, डॉ. पांडव ने आयोडीन की कमी के खिलाफ भारत की लड़ाई की कहानी सुनाई. यह सब 1948 में शुरू हुआ, जब उनके गुरु, भारतीय पोषण वैज्ञानिक डॉ. वुलिमिरी रामलिंगास्वामी ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का दौरा किया, जहां उन्होंने पाया कि शोधकर्ता गोइटर के स्रोत को खोजने में असमर्थ थे. डॉ. पांडव ने कहा,
मैंने उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और अन्य जगहों पर कद्दू के आकार के घेंघा देखे हैं. इसलिए, शोधकर्ताओं ने डॉ. रामलिंगास्वामी को भारत में इसका कारण खोजने के लिए कहा.
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1951 में, डॉ. रामलिंगास्वामी ने घेंघा होने का मुख्य कारण शरीर में आयोडीन की कमी को माना. यह थायरॉयड का एक एनलार्जमेंट है जो आयोडीन की कमी या थायरॉयड ग्लैंड की सूजन के चलते विकसित होता है.
इसके बाद डॉ. रामलिंगास्वामी ने अपनी टीम के साथ हिमाचल प्रदेश में प्रसिद्ध “कांगड़ा घाटी प्रयोग” शुरु किया. यह स्थानिक गोइटर और क्रेटिनिज्म पर किया गया एक व्यापक कम्युनिटी बेस्ड सर्वे था. प्रयोग के रिजल्ट के आधार पर, यह निर्णय लिया गया कि भारत में नमक को पोटैशियम आयोडेट के साथ फॉर्टफाइड किया जाएगा.
डॉ. पांडव ने कहा कि यह दुनिया का सबसे बड़ा अध्ययन है जो एक दशक से अधिक समय तक जारी रहा और अध्ययन के लिए लगभग एक लाख बच्चों का सर्वे किया गया.
उन्होंने आगे बताया कि कैसे अध्ययन को तीन क्षेत्रों में बांटा गया था: ए, बी, और सी. जोन ए और सी को वितरित नमक क्रमशः पोटेशियम आयोडाइड और आयोडेट के साथ फॉर्टफाइड किया गया था, जबकि जोन बी को अनफॉर्टफाइड नमक दिया गया था.
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एक्सपेरिमेंट के पांच सालों के अंदर, भारत में घेंघा प्रसार 42 प्रतिशत से घटकर 21 प्रतिशत हो गया. डॉ. पांडव ने कहा कि अगले पांच वर्षों में यह घटकर 10 प्रतिशत पर आ गया. जिन क्षेत्रों में आयोडीन नमक नहीं मिला, वे वही रहे.
इसी शोध के आधार पर भारत सरकार ने 1962 में “राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम” शुरू किया था.
आयोडीन की कमी पर सर्वे के साथ डॉ. पांडव की यात्रा 1978 में शुरू हुई जब वे डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एमडी) की डिग्री की पढ़ाई कर रहे थे. उन्होंने इसे अपने थीसिस सब्जेक्ट के रूप में लिया था. बाद में, उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (पीएचडी) की पढ़ाई की.
डॉ. पांडव ने दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश और केरल सहित विभिन्न राज्यों में आयोडीन की कमी के परिणामों / प्रभावों का सर्वे करने के लिए काम किया, जैसे मेंटल रिटार्डेश, ब्रेन डैमेज, आदि. उन्होंने रिजल्ट का डॉक्यूमेंटेशन किया और उन्हें 1984 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिया.
डॉ. पांडव ने प्रधान मंत्री को “सार्वभौमिक आयोडीनीकरण कार्यक्रम” (यूएसआई) शुरू करने और मानव और पशु उपभोग के लिए उपयोग किए जाने वाले नमक के आयोडीनीकरण को अनिवार्य करने का सुझाव दिया था. यूएसआई का उद्देश्य पर्याप्त आयोडीन पोषण सुनिश्चित करना और अपरिवर्तनीय परिवर्तनों को कम करना था.
डॉ. पांडव ने बताया कि आज भारत की 93 प्रतिशत आबादी आयोडीन नमक खाती है.
अपने गुरु डॉ. रामलिंगास्वामी के बारे में बोलते हुए डॉ. पांडव ने कहा,
भारत से घेंघा को कम करने की मेरी जर्नी पर मेरे गुरुओं का बहुत बड़ा असर रहा है. मैं उनका सदा आभारी हूं.
डॉ. पांडव की भक्ति और लंबे वर्षों की सेवाा ने भारत और दक्षिण एशिया में आयोडीन की कमी के विकारों को खत्म करना संभव बना दिया.
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