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मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे 2023: बेंगलुरु का यह शख्स महिलाओं-पुरुषों के बीच चला रहा मेंस्ट्रुअल हाइजीन अवेयरनेस मिशन

बेंगलुरु की रेवा यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर और रोटरेक्ट क्लब में क्लब मेंटोर श्रीनिधि एस.यू अपने प्रोजेक्ट ‘स्त्री’ के माध्यम से स्कूलों-कॉलेजों में महिलाओं और पुरुषों को मेंस्ट्रुअल हाइजीन और मासिक धर्म से जुड़ी स्वच्छता के बारे में जानकारी दे रहे हैं. अब तक वह 5,000 से अधिक महिलाओं को इस बारे में शिक्षित कर चुके हैं

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मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे 2023: बेंगलुरु का यह शख्स महिलाओं-पुरुषों के बीच चला रहा मेंस्ट्रुअल हाइजीन अवेयरनेस मिशन
श्रीनिधि के प्रयासों से फिलहाल प्रोजेक्ट स्त्री में छह सक्रिय पुरुष सदस्य, और 10-12 सक्रिय महिला सदस्य और वॉलेंटियर हैं. इन सभी की उम्र 18-30 वर्ष के बीच है

नई दिल्ली: ‘अछूत’ के रूप में व्यवहार किए जाने से लेकर स्कूल छोड़ने तक, भारत में मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाओं ने देश की लाखों महिलाओं को वर्षों काफी बुरी तरह प्रभावित किया है. इसके अलावा, मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन यानी मेंस्ट्रुअल हाइजीन मैनेजमेंट (एमएचएम) की कमी व जागरूकता और शिक्षा के अभाव के कारण भारत के कई हिस्सों में महिलाएं आज भी सदियों पुरानी कुप्रथाओं का शिकार हैं. इन प्रथाओं की बेड़ियां स्कूलों और कॉलेजों तक में इनका पीछा नहीं छोड़तीं, जिसके चलते कई बार इन्‍हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ जा रही है.

लेकिन ऐसे कई व्यक्ति हैं, जो शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से मेंस्ट्रुअल हाइजीन मैनेजमेंट को बढ़ावा देने और माहवारी से जुड़ी पुरानी कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए सराहनीय ढंग से काम कर रहे हैं. श्रीनिधि एस.यू.एक ऐसे ही योद्धा हैं.

बेंगलुरु में रेवा विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर और कर्नाटक में स्वर्ण के रोटरेक्ट क्लब के मेंटोर श्रीनिधि बेंगलुरु शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों और दक्षिण कर्नाटक के बागलकोट और रामनगर जिले के सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में हजारों लड़कियों और महिलाओं के बीच मेंस्ट्रुअल हाइजीन यानी मासिक धर्म स्वच्छता को लेकर जागरूकता बढ़ा रहे हैं.

वह 2018 में रोटरेक्ट क्लब के साथ अपनी यात्रा शुरू करने के साथ ही इस दिशा में काम कर रहे हैं. उन्होंने 2018 में एमएचएम सत्र परियोजना के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, जिसे क्लब में उनके वरिष्ठ, अपूर्वा एनएच द्वारा शुरू किया गया था. हालांकि पहले वह इसका हिस्सा बनने के लिए पहले संकोच कर रहे थे. NDTV-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम से बात करते हुए उन्होंने बताया,

‘शुरू में मुझे यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर एक ऐसे क्षेत्र में कैसे प्रवेश किया जाए, जहां मैंने केवल महिलाओं को ही मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में बोलते देखा, लेकिन महिलाओं के स्वास्थ्य में मेरी रुचि ने मुझे आगे कदम बढ़ाने को प्रेरित किया और आखिरकार प्रोजेक्ट स्त्री का निर्माण कर मैंने इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया.

बेहतर ढंग से काम करने के लिए उन्होंने मासिक धर्म और इससे संबंधित अन्य स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में खुद को शिक्षित किया, जिसके लिए उन्होंने कई शोध पत्रों को पढ़ा. साथ ही माहवारी और उससे जुड़ी प्रथाओं, निषेधों व महिलाओं द्वारा इस दौरान बरती जाने वाली सावधानियों और अन्य संबंधित विषयों के बारे में ज्‍यादा से ज्‍यादा जानकारी प्राप्त करने के लिए अपनी महिला सहकर्मियों से बात की.

एमएचएम सत्र परियोजना के अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के बाद, उन्होंने एमएचएम का लाभ उठाने और मासिक धर्म स्वच्छता, थायरॉयड और स्तन कैंसर, और मानव पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) सहित महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए 2019 में ‘प्रोजेक्ट स्त्री’ की शुरुआत की.

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क्‍या है प्रोजेक्ट स्त्री

इस परियोजना का उद्देश्य कर्नाटक के सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाली महिलाओं के बीच मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाना और माहवारी से जुड़ी कुप्रथाओं व निषेधों को खत्म करना है.

मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे 2023: बेंगलुरु का यह शख्स महिलाओं-पुरुषों के बीच चला रहा मेंस्ट्रुअल हाइजीन अवेयरनेस मिशन

इस पहल के तहत श्रीनिधि स्वयंसेवकों की एक टीम के साथ एमएचएम सत्र आयोजित करते हैं, जिसमें महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हाइजीन और स्वच्छता के महत्व के बारे में शिक्षित करना, पौष्टिक भोजन का महत्व समझाना, पीरियड्स के दौरान उन्हें किस तरह का दर्द और डिस्चार्ज हो सकता है, इसके बारे में बताया जाता है. साथ ही उन्हें माहवारी की परेशानियों और दर्द को कम करने के लिए दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं.

श्री श्रीनिधि ने उनसे माहवारी के दौरान गंदे कपड़े के बजाय दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले व टिकाऊ मेंस्ट्रुअल कप और सैनिटरी नैपकिन जैसे स्वच्छ उत्पादों का उपयोग करने का भी आग्रह किया. साथ ही उन्होंने स्कूली छात्रों को ये उत्पाद दिए भी हैं. अधिकांश सत्रों में किसी भी महिलाओं के सवालों का जवाब देने के लिए डॉक्टर भी मौजूद रहे.

‘मेरा मकसद मेंस्ट्रुअल हाइजीन और स्वच्छता के बारे में अधिक से अधिक बातचीत करना है, ताकि छात्राएं माहवारी को जीवन की एक ‘सामान्य’ घटना के रूप में स्वीकार कर सकें. युवावस्था में प्रवेश करने पर होने वाले शारीरिक परिवर्तनों को समझना उनके लिए महत्वपूर्ण है. इससे स्कूलों और कॉलेजों में मासिक धर्म की शिक्षा विषय के बारे में शर्मिंदगी और मिथकों को खत्म करने में मदद मिलेगी. मैं अपने सहयोगियों से मासिक धर्म की प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन करने के लिए कहता हूं, ताकि छात्राओं को पता चले कि यह क्या है और क्यों होता है.’

मेंस्ट्रुअल हाइजीन पर जागरूकता की राह में चुनौतियां

यह परियोजना कॉलेजों में सफल रही है और श्रीनिधि को स्कूलों तक इसे पहुंचाने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. इनमें पहली चुनौती तो यह थी कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक माहवारी और मासिक धर्म के स्वास्थ्य के बारे में छात्राओं से बात करने में हिचक रहे थे. इसलिए कई बार तो उन्हें सत्र आयोजित करने की इजाजत तक नहीं दी गई. श्रीनिधि इससे विचलित नहीं हुए और उन्होंने अपनी महिला सहकर्मियों और स्वयंसेवकों को छात्राओं से बात करने और उन्हें पढ़ाने के लिए इन स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया.

इस घटना ने उन्हें यह भी एहसास कराया कि कई प्रयासों के बावजूद मासिक धर्म के स्वास्थ्य के बारे में झिझक और शर्म की को पूरी तरह से खत्म करने के लिए अभी भी एक चीज की जरूरत है. उन्होंने महसूस किया कि इसके लिए सिर्फ लड़कियों या महिलाओं ही नहीं, बल्कि पुरुषों को भी इस अभियान से जोड़ना होगा. इसलिए वह चाहते थे कि प्रोजेक्ट स्त्री के के तहत पुरुष भी महिलाओं के साथ मासिक धर्म पर चर्चा करें और इससे जुड़े कार्यक्रमों में शामिल हों.

मासिक धर्म एक जैविक प्रक्रिया है और केवल महिलाओं से जुड़ी चीज नहीं है. व्यापक नजरिये से देखा जाए, तो यह केवल किसी एक लिंग या उसके शरीर से जुड़ा मामला नहीं है. इसीलिए उन्होंने कहा कि हम पुरुषों और महिलाओं दोनों को चर्चा में शामिल करके मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियों और निषेधों को मिटा सकते हैं.

रक्षित के. शेट्टी प्रोजेक्ट स्त्री के छह पुरुष सदस्यों में से एक हैं और उन्होंने मेंस्ट्रुअल हाइजीन पर कई सेशन के आयोजन और संचालन में श्रीनिधि का सहयोग किया है. अपनी इस यात्रा के बारे में बात करते हुए, श्री शेट्टी ने कहा,

मेरी रुचि हमेशा से महिला सशक्तिकरण में रही है. इसलिए जब से मैं क्लब में शामिल हुआ, तो इस परियोजना का हिस्सा बनना मेरे लिए एक सपने के सच होने जैसा था. इससे मुझे उस विषय की बारीकियों को समझने में मदद मिली, जिसके बारे में बहुत ही कम बात की जाती है.

श्रीनिधि और अन्य वरिष्ठ सदस्यों के नेतृत्व में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के संबंध में प्रोजेक्ट स्त्री में शामिल होने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को एक प्रशिक्षण सत्र से गुजरना पड़ता है. इससे उन्हें इस प्रोजेक्ट के बारे में अच्छी तरह समझने में मदद मिलती है.

श्रीनिधि के प्रयासों से फिलहाल प्रोजेक्ट स्त्री में छह सक्रिय पुरुष सदस्य, और 10-12 सक्रिय महिला सदस्य और वॉलेंटियर हैं. इन सभी की उम्र 18-30 वर्ष के बीच है.

प्रोजेक्ट स्‍त्री का प्रभाव

प्रोजेक्‍ट स्‍त्री ने अब तक शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 5,000 से अधिक लड़कियों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है. श्री श्रीनिधि ने अपने सत्रों में खानपान के जिन बदलावों की सिफारिश की थी, उन्हें अपनाते हुए महिलाओं ने माहवारी में गंदे कपड़े के बजाय हाइजेनिक और पुन: इस्तेमाल किए जा सकने वाले मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट्स का उपयोग करना शुरू कर दिया है. श्रीनिधि ने बताया कि इसके अलावा लड़कियां अब अपने माता-पिता के साथ माहवारी और उससे जुड़े स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर बातचीत भी करने लगी हैं. साथ ही इस प्रोजेक्‍ट के तहत दी जाने वाली जानकारियों से घरों में माहवारी से जुड़े मिथकों और निषेधों में भी कमी आई है.

शुरू में जो छात्राएं अपनी समस्याओं के बारे में चर्चा करने में हिचकिचा रही थीं, सत्रों के दौरान वह श्रीनिधि के पास अपने सवाल लेकर आने लगीं और पीरियड्स के दौरान आने वाली समस्याओं की भी चर्चा करने लगीं.

उनकी झिझक को दूर करना और मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में चर्चा करने के लिए उन्हें एक सुरक्षित मंच प्रदान करना प्रोजेक्ट स्त्री के हासिल किए गए लक्ष्‍यों में से एक है और यह इस प्रोजेक्‍ट को चलाने वालों के लिए किसी पुरस्कार, इनाम या उपलब्धि से कम नहीं है.

इसमें और तेजी लाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक लड़कियों और महिलाओं तक पहुंचने के लिए श्रीनिधि ने आंगनवाड़ी केंद्रों पर सत्र आयोजित करना शुरू कर दिया है. श्रीनिधि बताते हैं-

मैं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को शिक्षित करना चाहता हूं. मैंने इसके लिए खासतौर पर कई सेशन आयोजित किए हैं, जिसके उत्साहजनक नतीजे देखने को मिले हैं. इसके फलस्‍वरूप अब इन ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की महिलाएं अपने बच्चों को माहवारी और मासिक धर्म से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी मसलों के बारे में बताने लगी हैं. श्रीनिधि इसपर संतोष जताते हुए कहते हैं कि उनके लिए भला इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है?

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