Highlights
- राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी को मनाया जाता है
- कम उम्र में शादी से लड़कियों के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है असर : डॉ. कुमारी
- अपनी बच्ची का ख्याल रखें और उसे आगे बढ़ने में मदद करें: डॉ. एस शांता कुमारी
नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के अनुसार, भारत दुनिया का एकमात्र बड़ा देश है जहां बच्चों में लड़कों की तुलना में ज्यादा मौत बालिकाओं की होती है. भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD)का कहना है कि लड़कियों को अक्सर सर्वोपरि असमानताओं और पितृसत्तात्मक भेदभाव के अधीन किया जाता है और उनके लिए संघर्ष, उनके गर्भ में ठहरने से पहले ही शुरू हो जाता है. इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के प्रयास में, 2008 में, MWCD ने हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना शुरू किया. इस राष्ट्रीय बालिका दिवस पर हमने डॉ. एस शांता कुमारी से बात की. वे फेडरेशन ऑफ ओब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (FOGSI) की अध्यक्ष हैं. वह हमें बता रही हैं कि कैसे बालिकाओं के खिलाफ हिंसा उसके स्वास्थ्य और भलाई को प्रभावित कर सकती है.
इसे भी पढ़ें: राष्ट्रीय बालिका दिवस 2022: यहां जानें इस खास दिन के बारे में सबकुछ
लड़कियों को किस तरह की हिंसा का सामना करना पड़ सकता है, इस बारे में बात करते हुए डॉ कुमारी ने कहा कि कोई भी व्यवहार जो लड़की के मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, उसे उसके खिलाफ हिंसा कहा जाता है. वे आगे कहती हैं,
हिंसा एक लड़की के स्वास्थ्य पर बुरा असर करती है- शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से. दुर्भाग्य से, लड़कियों को जन्म से पहले ही हिंसा का शिकार बना दिया जाता है. यह सेक्स सिलेक्टिव अबॉर्शन, शिशुहत्या या गर्भवती महिला की पिटाई हो क्योंकि उसके पेट में लड़की हो सकती है और यहां तक कि जब बालिका बड़ी हो रही है, तब भी हम बालिका के खिलाफ अनाचार और शारीरिक हिंसा की घटनाएं होते हुए देखते हैं. आजकल हम बहुत सी साइबर हिंसा भी देखते हैं. जब वह बड़ी होकर एक महिला बनती है, तो उसे घरेलू हिंसा, इंटिमेट पार्टनर वॉयलेंस और हर तरह की यौन हिंसा जैसे जबरन गर्भधारण, जबरन गर्भपात का शिकार होना पड़ता है.
डॉ कुमारी ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा, मातृ रुग्णता और मृत्यु दर में योगदान करती है. उन्होंने जोर देकर कहा कि लैंगिक समानता के सतत विकास लक्ष्य और गरीबी को खत्म करने, कुपोषण को समाप्त करने जैसे दूसरे लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए, लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं को कम किया जाना चाहिए।
उन्होंने प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ को संवेदनशील बनाने के मुद्दे पर बात की, क्योंकि वे पहला स्थान है जहां हिंसा से प्रताड़ित महिला संपर्क में आती है. लड़कियों और महिलाओं पर हो रही हिंसा के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए डॉ कुमार ने 2016 में धीरा नामक एक पहल शुरू की.
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कम उम्र में शादी, कम उम्र में गर्भधारण, अस्वस्थ युवा लड़कियों और अस्वस्थ भविष्य के चक्र को तोड़ना अहम है. उन्होंने कहा,
जल्दी शादी और महिलाओं का स्वास्थ्य आपस में जुड़ा हुआ है. हमें यह समझना चाहिए कि आमतौर पर गरीबी और शिक्षा की कमी ही माता-पिता को अपनी लड़कियों की जल्दी शादी करने के लिए मजबूर करती है. दुर्भाग्य से, जब लड़कियां शिक्षित नहीं होती हैं और अपने स्वास्थ्य के बारे में जागरूक नहीं होती हैं, तो उन्हें शादी के बाद कई शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होना पड़ता है. सबसे बड़ा, सबसे प्रमुख उदाहरण यह है कि ज्यादातर लड़कियां जो कम उम्र में शादी कर लेती हैं और जल्दी गर्भधारण कर लेती हैं, उन्हें एनीमिया हो जाता है जो मातृ रुग्णता और मृत्यु दर में योगदान देता है. माता-पिता के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि उनकी बेटियों की शादी उस उम्र में होनी चाहिए जब वह इसके साथ आने वाली शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो.
उन्होंने जोर देकर कहा कि स्वस्थ लड़कियां स्वस्थ महिलाएं बनती हैं और गर्भावस्था के दौरान कम समस्याओं का सामना करती हैं और समाज बड़े पैमाने पर स्वस्थ होता है. अंत में अपनी बात रखते हुए डॉ कुमारी ने कम उम्र से लड़कियों को सशक्त बनाने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा,
भारतीय संस्कृति में, महिलाओं को शक्तिशाली माना जाता है. लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि सिर्फ शब्द ही काफी नहीं हैं. हमें बालिकाओं की देखभाल करने, उन्हें सक्षम वातावरण प्रदान करने और उन्हें कम उम्र से ही सशक्त बनाने की जरूरत है।. बालिकाओं का पालन-पोषण करके आप राष्ट्र के भविष्य का पोषण करेंगे.
इसे भी पढ़ें: National Girl Child Day: कैसी है भारत में बालिकाओं और महिलाओं की स्थिति, पेश हैं 10 तथ्य