नई दिल्ली: भारत सरकार के प्रमुख राष्ट्रीय कार्यक्रम पोषण अभियान के लिए हर साल सितंबर महीने को राष्ट्रीय पोषण माह या न्यूट्रिशन मंथ (Nutrition Month) के तौर पर मनाया जाता है. इसे राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission) के तौर पर भी जाना जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कार्यक्रम 2018 में शुरू किया था जिसका मकसद देश में छह साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के बीच कुपोषण के स्तर को कम करना है. इस साल छठे राष्ट्रीय पोषण माह को सुपोषित भारत, साक्षर भारत, सशक्त भारत थीम के साथ मनाया जा रहा है, जिसका केंद्र बिंदु मानव जीवन के महत्वपूर्ण चरणों: गर्भावस्था, शैशवावस्था, बचपन और किशोरावस्था के बारे में व्यापक जागरूकता पैदा करना है.
पोषण माह मनाए जाने के महत्व को समझने और इस अभियान के जरिए देश में हासिल किए जाने वाले पोषण लक्ष्यों के बारे में ज्यादा जानने के लिए टीम बनेगा स्वस्थ इंडिया ने राष्ट्रीय पोषण संस्थान, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research -ICMR) की निदेशक डॉ. हेमलता आर से बात की. डॉ हेमलता मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में एक जानी-मानी शोधकर्ता और विशेषज्ञ भी हैं.
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NDTV: पूरे महीने को पोषण माह के रूप में मनाना कितनी अहमियत रखता है और यह अभियान देश को अपने पोषण लक्ष्यों को हासिल करने में किस तरह मदद कर सकता है?
डॉ. हेमलता आर: भारत में पोषण माह के दौरान पोषण से संबंधित प्रमुख थीम को ध्यान में रखते हुए लाखों कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इन कार्यक्रमों में लाखों लोग हिस्सा लेते हैं जिससे इस टॉपिक के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी और समझ प्राप्त होती है. फिर उनसे वो जानकारी दूसरे लोगों तक पहुंचती है और इस तरह से इस विषय से जुड़ी जानकारी का लोगों तक विस्तार होता है. इस साल छठे राष्ट्रीय पोषण माह 2023 की थीम सुपोषित भारत, साक्षर भारत, सशक्त भारत है जिसका मकसद एक पोषण-समृद्ध, शिक्षित और सशक्त भारत का निर्माण करना है. इस अभियान का मकसद जीवन के अलग-अलग चरणों में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए पोषण संबंधी समझ को बढ़ावा देना है, जैसे गर्भावस्था, स्तनपान, किशोरावस्था और छह साल से कम उम्र के बच्चों पर इस अभियान के जरिए खास फोकस किया जाता है. इस कैंपेन की मेन थीम के अंदर, कई सारे सब-टॉपिक भी हैं, जिनमें स्तनपान यानी ब्रेस्टफीडिंग पर अभियान, पोषण भी पढ़ाई भी जैसे अभियान शामिल है, जो पोषण यानी न्यूट्रिशन में सुधार के बारे में मार्गदर्शन करते हैं और वहीं इसका मिशन लाइफ अभियान, लोगों को स्वस्थ भोजन की मांग करके देश में खाद्य पदार्थों की मांग (Demand) और आपूर्ति (Supply) में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है. इसके अलावा जनजातीय आबादी पर केंद्रित पोषण अभियान भी हैं क्योंकि जनजातीय आबादी में बाकी आबादी की तुलना में पोषण की कमी के मामले ज्यादा दिखाई देते हैं. सिर्फ इतना ही नहीं इसके अलावा, एनीमिया के लिए भी एक प्रोग्राम है जो टेस्ट, ट्रीटमेंट और बीमारी के बारे में बात करने के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करता है. मुझे पूरा यकीन है कि इन सभी पहलों के माध्यम से पोषण माह निश्चित रूप से भारत के लोगों और नीति निर्माताओं (Policymakers) की इन विषय से जुड़ी समझ को बढ़ाएगा और इन मुद्दों से निपटने में मदद करेगा.
NDTV: आप मां, शिशु और छोटे बच्चों के पोषण से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत के अब तक के प्रदर्शन को किस तरह से देखती हैं?
डॉ. हेमलता आर: अगर हम आंकड़ों की बात करें तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के डेटा के मुताबिक भारत में स्टंटिंग (जो तब होता है जब बच्चा अपनी उम्र के हिसाब से लंबाई में बहुत छोटा होता है) के मामले जो 2006 में 48 प्रतिशत थे वो 2019-2020 में घटकर 35.5 प्रतिशत रह गए हैं. जहां तक वैश्विक बोझ (Global burden) का सवाल है भारत का बोझ भी लगभग 25-30 प्रतिशत कम हो गया है. कम सूचकांक वाले राज्यों में, स्टंटिंग (Stunting) की दर में काफी गिरावट देखने को मिली है, जो लगभग 5-7 प्रतिशत है.
हालांकि पूरे भारत में ज्यादा वजन वाले बच्चों की तादाद काफी बढ़ गई है. केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बच्चों की लंबाई में सुधार हुआ है और ये सुधार हम विकसित देशों में जो सुधार देखते हैं उसके बराबर ही है. आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में भारत में वास्टिंग (wasting – जब बच्चे की लंबाई के मुकाबले उसका वजन बहुत कम होता है) के मामलों में सुधार नहीं हुआ है, बल्कि यह और बदतर हो गया है. लेकिन भारत में जिन बच्चों को कमजोर बच्चों की कैटेगरी में रखा गया है, उनमें से 50 प्रतिशत बच्चे वास्तव में न्यूट्रिशन स्टैंडर्ड के मुताबिक अपनी उम्र के हिसाब से सामान्य हैं. इसका मतलब है कि ये बच्चे लंबे तो हो रहे हैं लेकिन अगर आप लंबाई के हिसाब से उनका वजन मापेंगे तो वे फिर वे वास्टिंग की कैटेगरी में आ सकते हैं. एक बच्चा जो वास्तव में वेस्टिंग (wasting) कैटेगरी में होता है, उसका कद बिल्कुल भी नहीं बढ़ेगा.
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NDTV: जैसा कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 ने हाइलाइट किया है, भारत मोटापे यानी ओबेसिटी के बढ़ते मामलों के रूप में अल्पपोषण (Undernutrition) और अतिपोषण (Overnutrition) की दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है. इन दोहरी चुनौतियों से निपटने के लिए भारत सरकार की क्या रणनीति है?
डॉ. हेमलता आर: वर्तमान में भारत का ध्यान मुख्य रूप से अल्पपोषण स्वास्थ्य यानी अंडर न्यूट्रिशन हेल्थ पर है. अब समय आ गया है कि हम अपना ध्यान ओबेसिटी की ओर फोकस करें और देश में गैर-संचारी रोगों यानी नॉन- कम्युनिकेबल डिजीज के बढ़ते मामलों के पीछे की वजह को समझें. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) 5 डेटा से पता चलता है कि अब हर पांच में से एक व्यक्ति उच्च रक्तचाप यानी हाइपरटेंशन से पीड़ित है. डायबिटीज के मामले अब सिर्फ शहरों तक ही सीमित नहीं रह गए हैं, हम ग्रामीण क्षेत्रों में भी डायबिटीज के मामलों में बढ़ोतरी देख रहे हैं. एक समय फैटी लीवर डिजीज केवल शराब का सेवन करने वाले लोगों में देखी जाती थी. लेकिन अब भारत में लगभग 30-40 प्रतिशत लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. ये सभी समस्याएं हमारी खराब खान-पान की आदतों और चीनी के ज्यादा सेवन के कारण बढ़ रही हैं. सरकार ईट राइट मूवमेंट (Eat Right movement), फिट इंडिया (Fit India), आयुष्मान भारत (Ayushman Bharat) जैसे अपने अभियानों के जरिए मोटापे (Obesity) की चुनौती से निपट रही है, जिसके तहत हमारे पास 1 लाख से ज्यादा स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र हैं, हमारे पास प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना भी है, जो प्राथमिक और तृतीयक देखभाल के लिए प्रति परिवार लगभग 5 लाख रुपये की मदद करती है, ये योजना लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. अगर आप अपनी लाइफस्टाइल बदल ले तो 80 प्रतिशत गैर-संचारी रोगों (Non-communicable diseases) से आप खुद को बचा सकते हैं, बस इसके लिए आपको अच्छी डाइट और हेल्दी एवं एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाने की जरूरत है.
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