नई दिल्ली: लंबे समय तक, भारत में नर्सों, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा), हेल्पर नर्स दाई (एएनएम) सहित हेल्थ वर्कर ने रोगियों या परिवारों का रिकॉर्ड रखने के लिए लंबे समय तक रजिस्टर भरने में घंटों बिताए हैं. लेकिन जयपुर स्थित एक नॉन-प्रोफिट ऑर्गेनाइजेशन, खुशी बेबी, डिजिटल लेंस के माध्यम से राजस्थान में अंतिम मील सामुदायिक स्वास्थ्य निगरानी का चेहरा बदल रहा है.
संगठन ने ग्रामीण भारत में कम सेवा वाली आबादी के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा के उत्थान के लिए प्रौद्योगिकी के साथ परंपरा को जोड़ने के उद्देश्य से एक मोबाइल एप्लिकेशन ‘खुशी बेबी’ बनाया है. एप्लीकेशन का यूज हेल्थ वर्कर द्वारा गर्भवती और नई माताओं, अन्य रोगियों और उनके परिवारों के हेल्थ रिकॉर्ड दर्ज करने के लिए किया जाता है. यह प्रभावी रूप से पेपर बेस्ड रजिस्ट्री को बदल रहा है और रोगी की हेल्थ हिस्ट्री तक पहुंच को आसान बना रहा है.
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एक इनोवेशन
एनडीटीवी से बात करते हुए, खुशी बेबी के सीईओ और सह-संस्थापक डॉ. रुचि नागर ने कहा कि संगठन येल यूनिवर्सिटी और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर), जयपुर, ((IHmR IS IN JAIPUR)) में पब्लिक हेल्थ रिसर्चर के एक युवा समूह द्वारा शुरू की गई क्लासरूम प्रोजेक्ट का एक प्रोडक्ट था. जो बाल टीकाकरण की खाई को पाटने की कोशिश कर रहे थे.
टीम ने ‘पेपर-बेस्ड ट्रैकिंग सिस्टम’ की प्रक्रिया को बाधित करने पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें डाटा की जवाबदेही और गुणवत्ता के मुद्दे थे.
टीम एक ऐसे क्षेत्र की तलाश में थी जहां वे उस समाधान का टेस्ट कर सकें जिसके साथ वे आए थे, और उन्होंने राजस्थान पर आईएन को जीरो कर दिया. टीम ने अपने प्रारंभिक कार्यान्वयन भागीदार, सेवा मंदिर, राजस्थान में एक गैर सरकारी संगठन, हाशिए पर रहने वाले समुदायों को मातृ एवं बाल स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हुए पाया.
इसके अतिरिक्त, डॉ. नागर ने भारत के कई विश्वविद्यालयों के 40 प्रोफेसरों से संपर्क किया, जिसके बाद उन्होंने आईआईएचएमआर जयपुर के एक पूर्व पीएचडी छात्र से संपर्क किया, जिनका नाम मोहम्मद शाहनवाज है वह अब मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) और खुशी बेबी के सह-संस्थापक हैं.
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कैसे काम करता है खुशी बेबी ऐप?
एप्लिकेशन में कई सब कैटेगरी और विजेट हैं- जैसे रोगी के इतिहास, हाई रिस्क वाले लाभार्थी, प्रेगनेंसी केस, बच्चे के केस, प्रसवोत्तर केस, फैमिली प्लानिंग के लिए योग्य कपल आदि के रिकॉर्ड. डिवाइस मां के बीपी, ब्लड शूगर, एनीमिया के लेवल का रिकॉर्ड भी रखता है. कोई भी डिवाइस पर अपनी बायोमेट्रिक जानकारी स्टोर कर सकता है.
एक आशा कार्यकर्ता आवश्यक विजेट चुन सकती है और पेशेंट की डिटेल भर सकती है और उसका रिकॉर्ड रख सकती है. किसी भी एएनएम कार्यकर्ता, नर्स और अन्य हेल्थ ऑफिसर द्वारा डैशबोर्ड के जरिए से विशेष रोगी के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
एप्लिकेशन केवल डाटा स्टोर करने तक ही सीमित नहीं है. इसमें ऑटोमेटिक फीमेल व्हॉइस कॉल रिमाइंडर हैं, जहां नई और गर्भवती माताओं के साथ स्थानीय बोली में संचार किया जाता है. इसके जरिए उन्हें याद दिलाया जाता है कि उनके या बच्चे के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट डयू या शेड्यूल हैं. इसके अलावा, यह हेल्थ से जुड़ी एजुकेशनल एडवांस भी देता है.
टीम ने स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए इंस्टेंट मैसेज सर्विस, व्हाट्सएप का भी प्रभावी ढंग से उपयोग किया है, जो अपने डेस्कटॉप पर नहीं बल्कि अपने फोन पर एक्टिव होती हैं. यह हाई रिस्क वाले रोगियों की रिपोर्ट, ऐसे मरीज़ जिन्हें क्विक फॉलो-अप और एक्शन की जरूरत है, पर नज़र रखने के लिए अधिक उपयोगी है.
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‘ख़ुशी बेबी’ ऐप एक आवश्यक ऑफ़लाइन हेल्थ रिकॉर्ड के रूप में भी काम करता है, इसमें व्यक्ति इंटरनेट के बिना डिजिटल रिकॉर्ड तक पहुंच सकता है.
डिवाइस में आशा कार्यकर्ताओं के लिए अपने गांव की डिजिटल हेल्थ गणना करने के लिए एक मॉड्यूल भी है, जो अंतिम मील पर हर लाभार्थी के सामाजिक-जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य कारकों को कैप्चर करता है.
डॉ. नागर ने कहा कि एप्लिकेशन को विकसित करने के लिए संगठन का ध्यान डाटा को एक छोटी-सी जगह में इकठ्ठा करना था.
खुशी बेबी ऐप के साथ हेल्थकेयर वर्कर्स का एक्सपीरियंस
जोधपुर के नंदरी की आशा कार्यकर्ता सीमा कौर ने एप्लीकेशन पर अपने विचार व्यक्त किए और बताया कि इससे उनके काम में कैसे मदद मिली.
हम जो भी काम पहले लिखकर करते थे, उसे करने से अब हम बस एक क्लिक दूर हैं. यदि हम किसी का पर्सनल रिकॉर्ड चाहिए, तो हम व्यक्ति का मोबाइल नंबर भरते हैं, यह व्यक्ति और उसके परिवार की पूरी डिटेल दिखा देता है.
कौर ने कहा कि पहले जब भी उन्हें किसी परिवार से मिलने जाना पड़ता था तो उन्हें भारी रजिस्टर साथ रखना पड़ता था. उनकी हेल्थ हिस्ट्री की खोज करना एक मुश्किल काम था. अब उसके पास एक मोबाइल फोन है और वह पहले से कहीं अधिक परिवारों को आसानी से कवर कर सकती है.
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एक अन्य आशा कार्यकर्ता ने कहा,
सबसे अच्छी बात यह है कि रोगी के इतिहास, हाई रिस्क वाले लाभार्थियों, गर्भावस्था के मामलों, बच्चे के मामलों, प्रसव के बाद के मामलों, फैमिली प्लानिंग के लिए योग्य कपल आदि को रिकॉर्ड करने के लिए एप्लीकेशन में अलग-अलग विजेट हैं. मुझे पन्ने पलटने की जरूरत नहीं है, सिर्फ एक टैप किया और काम हो गया.
एप्लिकेशन का यूज पूरे राजस्थान में हेल्थ वर्करों द्वारा किया जा रहा है, लेकिन उदयपुर में इसका सफल कार्यान्वयन हुआ है, जहां एक महत्वपूर्ण आदिवासी आबादी है जो कुपोषण, एनीमिया से पीड़ित है.
एएनएम कार्यकर्ता भवरी चाहर ने बताया कि जिले में प्राथमिक एवं ग्रामीण स्तर पर मेडिकल इन्टर्वेन्चन के लिए एप्लीकेशन वरदान साबित हुई है.
भले ही मैं एमरजेंसी समय के दौरान आशा कार्यकर्ता या अन्य हेल्थ वर्कर से संपर्क करने में असमर्थ हूं, यह ऐप मुझे पैशेंट की केयर करने में मदद करती है. उदाहरण के लिए, यदि मुझे एक गर्भवती मां की डिलीवरी की नियत तारीख के साथ उपस्थित होना है, और साथ ही मैं एक आशा कार्यकर्ता से संपर्क नहीं कर पा रही हूं, तो गर्भवती महिला की डिटेल पहले से ही एप्लीकेशन में होने के कारण मैं आसानी से उसे ट्रीटमेंट दे सकती हूं.
खुशी बेबी ऐप को कुशलतापूर्वक चलाने में फील्ड मॉनिटर्स की भूमिका
खुशी बेबी के तकनीकी बंडल के अलावा, 13 फील्ड मॉनिटर की एक टीम है, जो सिस्टम को कुशलता से चलाते हैं. वे हाई रिस्क वाले रेफरल की सुविधा में भी मदद करते हैं, अनिच्छुक माता-पिता को अपने बीमार बच्चों को इलाज के लिए क्लीनिक और अस्पतालों में लाने के लिए प्रेरित करते हैं. फील्ड मॉनिटर लोगों और स्वास्थ्य अधिकारियों के बीच का माध्यम हैं.
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यह प्रणाली 2017 से उदयपुर जिला सरकार के साथ काम कर रही है. संगठन ने दो साल के दौरान लगभग 3,200 माताओं का अनुसरण करके एक कंट्रोल ट्रायल में उनके समाधान के प्रभाव का अध्ययन किया.
टीम ने देखा कि खुशी बेबी सिस्टम, फील्ड मॉनिटर की मदद से, बच्चों की टीकाकरण दर में 12 प्रतिशत तक सुधार करने में सक्षम है, और कुपोषण की दर को लगभग 4 प्रतिशत कम करता है.
डॉ. नागर ने कहा,
एक बार जब हमें इन रिजल्ट का पता चला, तो हमने उन्हें राजस्थान के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव और स्वास्थ्य सचिव, रोहित कुमार सिंह को टीम के साथ काम करने और समाधान बढ़ाने की वकालत करने के लिए बुलाया.
इसके बाद, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राजस्थान के लगभग पांच जिलों में खुशी बेबी प्रणाली के पैमाने को समर्थन देने के लिए धन जारी किया.
एक फील्ड वर्कर का दैनिक जीवन
प्रिया कुमावत, जो पिछले दो वर्षों से संगठन के साथ फील्ड कम्युनिकेशन लीड के रूप में काम कर रही हैं, ने NDTV से उनके काम की प्रकृति के बारे में बात की. कुमावत हाई रिस्क वाले लाभार्थियों, बच्चों और माताओं दोनों के साथ फॉलोअप करती हैं, और रेगुलर बेस पर फील्ड मॉनिटर और कॉर्डिनेटर के साथ मिलकर काम करती हैं.
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लाभार्थियों का डाटा एएनएम के माध्यम से रजिस्टर किया जाता है. एक बार डाटा भर जाने और सिंक्रोनाइज़ करने के बाद, टीम को एक ऑनलाइन रिपोर्ट मिलती है, जिसे बाद में फील्ड मॉनिटर को भेज दिया जाता है. इसके बाद, मॉनिटर आशा कार्यकर्ताओं के साथ हाई रिस्क वाले लाभार्थियों का दौरा करते हैं, उन्हें उनके डायग्नोज, उपलब्ध ट्रीटमेंट और नॉर्मल हेल्थ केयर के बारे में सलाह देते हैं और उनकी शंकाओं का हल करते हैं.
वर्तमान में, खुशी बेबी ऑर्गनाइजेशन 60,000 से अधिक हेल्थ वर्कर के साथ काम करता है और 35,000 से अधिक गांवों में 1.8 मिलियन से अधिक लाभार्थियों को एनरोल किया है.
संगठन के बारे में अधिक जानकारी
ख़ुशी बेबी राजस्थान में हेल्थ डिपार्टमेंट के लिए एक नोडल टेक्निकल सपोर्ट के रूप में काम करती है. इसका उद्देश्य एक डिजिटल इंटीग्रेटेड कम्युनिटी हेल्थ मंच का निर्माण करना है जो सभी नेशनल प्रोग्राम को कवर करता है. पांच वर्षों में, संगठन राज्य में स्थित 50-सदस्यीय टीम में विकसित हुआ है, जिसमें डॉक्टर, पब्लिक हेल्थ प्रोफेशनल, टेक्नोलॉजी डेवलपर्स, डिजाइनर, डाटा एनालिस्ट और फिल्ड एक्सपर्ड शामिल हैं.
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संस्थापकों के बारे में
डॉ. रुचि नागर को हेल्थ केयर में फोर्ब्स 30 अंडर 30 लीडर, हेल्थ यंग इनोवेटर में वर्ल्ड इनोवेशन समिट और येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा एक यंग छात्र के रूप में मान्यता दी गई है.
मोहम्मद शवनवाज़ को भारत में पब्लिक हेल्थ का 10 से अधिक वर्षों का एक्सपीरियंस है, जिसमें यूनिसेफ और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) शामिल हैं. शाहनवाज को जॉन्स हॉपकिन्स फ्यूचर हेल्थ सिस्टम्स यंग रिसर्चर ग्रांटी और ग्लोबल ई-हेल्थ ऑब्जर्वेटरी लॉरेट के रूप में मान्यता दी गई है.