नई दिल्ली: सुनीता कई सालों से दिल्ली में ख्याति गुप्ता के घर पर घरेलू सहायिका के रूप में काम कर रही हैं. वह न केवल घर का काम करती है, बल्कि परिवार के अन्य काम भी देखती थी. वह कभी-कभी अपनी बेटी दीपा को काम पर ले आती है.
एक दिन सुनीता अपनी बेटी को ख्याति के घर ले गई. ख्याति और दीपा दोनों अपने-अपने स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले सब्जेक्ट्स पर चर्चा कर रही थीं, तभी ख्याति ने दीपा की ड्रेस पर खून के धब्बे देखे. उसने उससे पूछा कि क्या उसे सैनिटरी पैड बदलने की जरूरत है या उसने पहना है. उसे आश्चर्य तब हुआ जब उसे पता चला कि घरेलू सहयिका की बेटी को यह भी नहीं पता था कि सैनिटरी पैड क्या होता है. उसने अपने पीरियड्स के दिनों में एक कपड़े का टुकड़ा पहना था, जो हाइजीनिक नहीं था.
मैं यह जानकर हैरान रह गई थी कि उसे सैनिटरी पैड के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. यह मेरे लिए कुछ नया था क्योंकि, मुझे लगा कि इसके बारे में जानकारी होना नॉर्मल है. मेरे और जिन लड़कियों के साथ मैं थी, उनके पास इसकी उपलब्धता थी.
इस घटना के बाद, ख्याति ने अपने पिता, अरुण गुप्ता से बताया कि वह यह जानकर कितनी परेशान थी कि सैनिटरी नैपकिन एक ऐसा प्रोडक्ट नहीं है, जिसके बारे में आमतौर पर सभी को पता होता है जैसे उनकी घरेलू सहयिका की बेटी को नहीं पता था.
हमारे घर में हमने इस तरह की बातों पर खुलकर बात की है. मैं शुरू से ही ऐसी बातों को लेकर अपने पिता से खुलकर चर्चा करती हूं. सच कहूं, जब मैं मासिक धर्म में पहुंची, तो उन्होंने ही मुझे अलग-अलग आर्टिकल और वीडियो दिखाकर मासिक धर्म के बारे में शिक्षित किया. जब ऐसा हुआ, तो मैंने सीधे उनके पास गई और डिटेल में बताया कि इस बात ने मुझे कितना परेशान किया.
शुरुआत में, गुप्ता ने ख्याति की परेशानियों को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया और दीपा को पैड देने के लिए कहा. लेकिन ख्याति जानती थी कि यह कोई ऐसा मामला नहीं है, जिसे एक बार या थोड़े समय में खत्म किया जा सके. उसने अपने लेवल पर रिसर्च किया और समझा कि मासिक धर्म के स्वास्थ्य और स्वच्छता एवं सैनिटरी पैड तक पहुंच के बारे में जागरूकता की कमी है और दीपा उनमें से सिर्फ एक थी.
मुझे चौंकाने वाले आंकड़े मिले कि भारत में लगभग 70-80 प्रतिशत लड़कियों और महिलाओं की पहुंच सैनिटरी पैड तक नहीं है या उन्हें प्रोडक्ट्स के बारे में जानकारी नहीं है. मुझे पता चला कि कई महिलाएं अपने मासिक धर्म के दौरान भी गाय के गोबर का इस्तेमाल करती हैं. वे गोबर को ढालकर सूखने के लिए छोड़ देती है, ताकि वो खून को सोख ले.
अपने पिता को इस मुद्दे के लिए तैयार करने में उसे दो-तीन महीने लग गए, जिसके बाद गुप्ता ने दीपा और उसके जैसी कई अन्य लड़कियों और महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड खरीदने पर खर्च करने के लिए ख्याति को मंथली पैसे देने की बात की. ख्याति ने अपने पापा से पूछा,
लेकिन उन सैकड़ों और हजारों लोगों के बारे में क्या जो अभी भी अंधेरे में रहेंगे? मैंने उनसे कहा कि यही कारण है कि मैं अपना जीवन इसमें समर्पित करना चाहती हूं.
गुप्ता ने कहा कि जब पहली बार उनकी बेटी ने उनसे संपर्क किया, तो वह इस मामले को बड़े स्तर पर उठाने से हिचकिचा रहे थे.
मुझे डर था कि मैं, एक पुरुष के रूप में, मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जागरूकता बढ़ाऊंगा और क्या महिलाएं इस पहल में शामिल होंगी. लेकिन मैंने यह महसूस किया कि मेरी बेटी बड़े पैमाने पर इस परेशानी को दूर करने के लिए गंभीर थी. मैंने मासिक धर्म स्वच्छता पर विशेष रूप से ग्रामीण और कम सेवा वाले समुदायों से युवा बच्चियों को शिक्षित करने और मासिक धर्म की गरीबी को समाप्त करने का कोशिश करने की शपथ ली.
उन्होंने पीरियड पॉवर्टी को समाप्त करने और मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक फाउंडेशन शुरू करने का फैसला किया.
चूंकि ख्याति फाउंडेशन चलाने की बारीकियों के बारे में जानने के लिए बहुत छोटी थी, ऐसे में गुप्ता ने पार्टनरशिप के लिए अपनी महिला सहयोगियों और दोस्तों से संपर्क किया, लेकिन उन्हें कोई पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं मिला. कई कोशिशों के बाद, उनकी दोस्त शालिनी गुप्ता, जो पहले से ही कई सामाजिक सोसाइटी से जुड़ी हुई थीं, वो 2017 में फाउंडेशन, ‘पिंकिश’ की को-फाउंडर बनने के लिए तैयार हुईं. शालिनी गुप्ता फाउंडेशन की जनरल सेक्रेटरी हैं.
‘पिंकिश’ नाम के पीछे भी एक कहानी है. पहले पीरियड के ब्लड का रंग सामान्य रूप से ब्राउन या पिंक होता है. उन्होंने इसे थोड़ा यूनिक बनाने के लिए ‘e’ लेटर को Pinkish कलर में जोड़ा.
फाउंडेशन की ओर से अमिताभ बच्चन का मैसेज
फाउंडेशन के उद्देश्य को एक्टर अमिताभ बच्चन ने सपोर्ट और बढ़ावा दियाहै, जिन्होंने फाउंडेशन की पहल की सराहना की और अधिक महिलाओं को इसका हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित किया है.
पिंकिश फाउंडेशन की पहल
फाउंडेशन की भारत के 25 राज्यों में 50 से अधिक शाखाएं हैं. इन शाखाओं में अलग-अलग क्षेत्रों जैसे कॉर्पोरेट, स्कूलों, ग्रामीण समाजों, शहरी समाजों आदि को टारगेट करने वाली कई पहल और प्रोजेक्ट्स हैं शामिल हैं –
पैड बैंक: यह प्रोग्राम मासिक धर्म से जुड़ी शिक्षा और प्रोडक्ट्स को स्कूली छात्राओं एवं आर्थिक रूप से कमजोर बैकग्राउंड के लोगों के लिए सुलभ बनाने की ओर काम करता है. फाउंडेशन के मेंबर और वालंटियर मासिक धर्म स्वच्छता के विषय पर जागरूकता के स्तर को बढ़ाते हुए, सैनिटरी पैड को मैन्युफैक्चर कर जरूरतमंदों को फ्री में बांटते हैं. वे पर्यावरण के अनुकूल, बायोडिग्रेडेबल, रीयूजेबल कपड़े सेनेटरी पैड बनाते हैं और इस प्रोसेस में उन्हें बनाने वाली महिलाएं को आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है.
ख्याति गुप्ता ने अपने घर पर जो देखा उसके ठीक बाद पैड बैंक सामने आया. यही घटना इस प्रोग्राम के शुरुआत के पीछे का कारण थी.
शालिनी गुप्ता ने कहा,
हमने देखा कि स्लम इलाकों में पर्यावरण को देखते हुए पैड्स की जरूरत होती है. मार्जिनलाइज्ड लोगों के पास इन संसाधनों की कितनी कमी है. हम एक ग्रामीण क्षेत्र में स्वयंसेवकों की एक टीम भेजते हैं, जागरूकता बढ़ाते हैं और पैड वितरित करते हैं. हम हर 2 महीने में इलाके का दौरा करते हैं.
कागज के पैड: यह एक यूनिक प्रोग्राम है, जिसका उद्देश्य घरों और ऑफिस से इकट्ठा किए गए पुराने न्यूजपेपर को आगे स्क्रैप डीलरों को बेचा जाता है, जिससे कुछ इकठ्ठा हो जाते हैं. जुटाए गए पैसे का उपयोग मासिक धर्म स्वच्छता कार्यक्रम ‘पैड बैंक’ में मुफ्त सैनिटरी पैड वितरित करने, पैड वेंडिंग मशीन लगाने और जरूरतमंद लड़कियों और महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता जागरूकता देने के लिए किया जाता है.
पिंक टॉक: यह एक वीडियो फीचर प्रोग्राम है. महिला-स्वास्थ्य, सेल्फ डिफेंस, वेलनेस, एजुकेशन, कानूनी सेवाओं, आर्ट, क्राफ्ट आदि के साथ कई क्षेत्रों की महिला विशेषज्ञों का एक पैनल महिलाओं के लाभ के विभिन्न विषयों पर वीडियो बनाता है. वीडियो उनके सोशल मीडिया चैनलों जैसे YouTube, Facebook, Instagram, LinkedIn और Twitter पर रिलीज किए जाते हैं. ये पिंक टॉक विशेषज्ञ खुद को बातचीत, सवालों के जवाब देने और समूह कोचिंग के लिए आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराते हैं.
सखी: यह स्कूलों के लिए एक जीरो-कॉस्ट, परमानेंट मासिक धर्म लिट्रेसी सपोर्ट प्रोग्राम है. सखी को बिना किसी एक्स्ट्रा कॉस्ट के सस्टेनेबल लिट्रेसी सपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए स्कूलों के अंदर बनाया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर लड़की को मासिक धर्म के बारे में उचित, समय पर ज्ञान हो और जरूरत पड़ने पर यह सहायता आसानी से उनके लिए उपलब्ध हो. मासिक धर्म टीचर बनाने के लिए फाउंडेशन स्कूलों के साथ पार्टनर हैं, जिसमें फैकल्टी के मेंबर शामिल हैं. उन्हें प्रमाणित मासिक धर्म टीचर बनने के लिए लर्निंग रिसोर्स और मॉनिटरिंग सपोर्ट दी जाती है. ये CME नौ साल से अधिक उम्र की लड़कियों को मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में शिक्षित करते हैं.
यह प्रोजेक्ट अरुण गुप्ता का विजन है. उन्होंने कहा,
अगर हम मासिक धर्म के स्वास्थ्य और स्वच्छता के मुद्दे को जड़ से खत्म करना चाहते हैं, तो हमें मिनी सोसाइटी – स्कूलों तक पहुंचने की जरूरत है. यह मेरा टारगेट था, छात्रों तक पहुंचना, ताकि वे शुरू से ही शिक्षित हों.
शालिनी गुप्ता ने हर एक कार्यक्रम के लिए बनाई गई रणनीति और इम्प्लीमेंटेशन के बारे में बात करते हुए कहा,
चेन्नई से चंडीगढ़ तक देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हर एक पहल या प्रोग्राम के लिए हमारे पास अलग-अलग हेड्स हैं और वह सभी महिलाएं हैं. इसलिए, हर एक परियोजना का नेतृत्व एक अलग व्यक्ति करता है, और उनके पास कई मेंबर और वालंटियर काम करते हैं. ये सभी अलग-अलग जगहों पर रहते हैं, लेकिन एक टीम के रूप में मिलकर काम करते हैं. हेड्स फील्ड में जाते हैं और सदस्यों के किए जा रहे कार्यों का ओवरव्यू लेते हैं और फिर मैं उनसे फीडबैक लेती हूं.
कोई भी वॉलंटियर या मेंबर जिसे टीम में शामिल किया जाता है, वह एक सेशन से गुजरता है, जिसमें वे मासिक धर्म के स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में सीखते हैं. इस दौरान उन्हें यह भी सिखाया जाता है कि लोगों से उन्हें कैसे बात करनी है. इसके बाद, शालिनी अन्य हेड्स के साथ नए शामिल सदस्यों और वालंटियर के साथ मॉक सेशन आयोजित करती हैं, ताकि यह पता चल सके कि वे रियल टाइम में प्रोजेक्ट्स को कैसे लागू करेंगे.
शालिनी ने कहा,
हम उनसे आगे की प्रतिक्रिया के लिए सेशन रिकॉर्ड करने के लिए भी कहते हैं. इसके अलावा, हम एक लाभार्थी सूची और रिकॉर्ड भी बनाते हैं.
जब टीम अपना सेशन आयोजित करती है, तो वे फॉलो अप के लिए हर दो महीने के बाद इलाके का दौरा करती हैं और यह काम गांव के प्रधान या प्रतिनिधि के साथ मिलकर किया जाता है.
गीता – एक लाभार्थी और फाउंडेशन सदस्य
ईस्ट दिल्ली के हसनपुर गांव की गीता, पिंकिश फाउंडेशन की लाभार्थियों में से एक हैं और अब फाउंडेशन के साथ काम कर रही हैं. मासिक धर्म शुरू होने के बाद से गीता ने हमेशा सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल किया, लेकिन उसे पता नहीं था कि इसे कितनी बार बदलना चाहिए और इसे डिस्पोज कैसे करना है.
मैं सैनिटरी नैपकिन खुले में कचरे के डब्बे में या जहां भी गांव वाले कूड़ा फेंकते थे फेंक देती थी. लेकिन पिंकिश के मासिक धर्म हेल्थ सेशन के बाद, मैंने यह सुनिश्चित किया कि मैं सैनिटरी नैपकिन को अखबार में लपेट कर कूड़ेदान में फेंकू. मैं यह भी सुनिश्चित करती हूं कि मेरे परिवार के सदस्य भी इसे फॉलो करें.
प्रोजेक्ट प्रवीना
पिंकिश फाउंडेशन ‘प्रवीना’ नाम से एक प्रोजेक्ट भी चलाता है, जिसमें वे ग्रामीण महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई सिखाती हैं और दीपा उनमें से एक हैं. वह न केवल पिछले एक साल से सिलाई-कढ़ाई सीख रहीं हैं, बल्कि अब फाउंडेशन के साथ पर्यावरण के अनुकूल कपड़े के पैड बनाने में भी जुटी हैं.
सेशन के बारे में बात करते हुए शालिनी ने समझाया,
वालंटियर्स की एक टीम ग्रामीणों के साथ मिलकर मासिक धर्म स्वच्छता और हेल्थ सेशन आयोजित करती है. सेशन में विभिन्न पहलुओं- शरीर के बायोलॉजिकल फंक्शन, मासिक धर्म होने का महत्व, संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छता बनाए रखना, बाजार में उपलब्ध मासिक धर्म प्रोडक्ट के प्रकार, प्रत्येक प्रोडक्ट के गुण और दोष, उपयोग और डिस्पोज प्रोडक्ट को शामिल किया गया है.
फाउंडेशन द्वारा बनाए जाने वाले छह परत वाले पैड के लिए सीजमेंट क्लॉथ का उपयोग किया जाता है. पैड एक रूमाल के आकार का होता है, जिसके पीछे एक फ्लैप होता है, जिसमें एक स्नैप फास्टनर होता है. इसका उपयोग पैड को अंडर गारमेंट के साथ बांधने के लिए किया जाता है. हर एक पैड का उपयोग दो साल तक किया जा सकता है.
प्रोग्राम को तेज करने में सोशल मीडिया की भूमिका
व्हाट्सएप ने फाउंडेशन और स्केलिंग पीरियड-स्वच्छता जागरूकता अभियान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. प्लेटफॉर्म कम्युनिटी को अपने वॉलंटियर्स से जुड़ने और देश भर में लाभार्थियों तक पहुंचने में सक्षम बनाता है. पिंकिश के पास भारत के राज्यों में हर जिले और शहर में वॉलंटियर्स हैं, और अधिकांश वॉलंटियर्स लैपटॉप और कंप्यूटर के साथ फ्रेंडली नहीं हैं. ऐसे में व्हाट्सएप उन्हें एक आसान डिजिटल माध्यम प्रदान करता है.
प्रभाव
फाउंडेशन 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक पहुंच चुका है. वे अभी तक लद्दाख, दमन और दीव, लक्षद्वीप, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, पांडिचेरी, अंडमान और निकोबार, और दादरा और नगर हवेली तक नहीं जा पाए हैं.
पिछले 6 सालों में, पिंकिश ने मुफ्त में सेनेटरी पैड के 50 लाख से अधिक पैकेट बाटे हैं. वे सीधे 5 लाख से अधिक महिलाओं तक पहुंचे हैं और 2 लाख से अधिक लड़कियों को ग्राउंड एजुकेशन के माध्यम से मासिक धर्म के बारे में शिक्षा दी है.
फाउंडेशन का टारगेट एक लाख मासिक धर्म टीचर्स की एक कम्युनिटी बनाना है, जो हर साल लाखों युवा लड़कियों को मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर ट्रेनिंग देगा.