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मानसिक स्वास्थ्य

वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे 2023: “मानसिक स्वास्थ्य के बिना कोई स्वास्थ्य नहीं है.”- डॉ. प्रतिमा मूर्ति

वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे 2023: NIMHANS की डायरेक्टर डॉ. प्रतिमा मूर्ति ने भारत में मानसिक स्वास्थ्य, अलग-अलग प्रकार के मानसिक मुद्दों से निपटने और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में बात की

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नई दिल्ली : वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे स्पेशल पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS) में मनोचिकित्सा की डायरेक्टर और वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ प्रतिमा मूर्ति ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य को होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान से सुरक्षित रहने का अधिकार महत्वपूर्ण है.” इस साल की थीम है “मानसिक स्वास्थ्य एक यूनिवर्सल मानव अधिकार“. एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में डॉ. मूर्ति ने भारत में मानसिक स्वास्थ्य, अलग-अलग प्रकार के मानसिक मुद्दों से निपटने और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में बात की.

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डॉ. मूर्ति ने कहा,

मानसिक स्वास्थ्य के बिना कोई स्वास्थ्य नहीं है. इसलिए, हमें यह समझने की जरूरत है कि मानसिक स्वास्थ्य का मतलब केवल मानसिक बीमारी या डिसऑर्डर का अभाव नहीं है. अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य की तरह, हमें अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भी बात करनी चाहिए.

2019 में प्रकाशित द लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 200 मिलियन लोगों में मेंटल डिसऑर्डर थे. मानसिक बीमारी के ‘खतरनाक’ आंकड़ों को शेयर करते हुए, डॉ. मूर्ति ने कहा,

वैश्विक बीमारी का लगभग 15 प्रतिशत बोझ मानसिक बीमारी के कारण है. भारत में कहीं न कहीं 7 में से 1 और 10 में से 1 व्यक्ति के बीच किसी न किसी प्रकार का पहचान करने योग्य मेंटल डिसऑर्डर है. इसमें सबसे आम मेंटल डिसऑर्डर डिप्रेशन और चिंता हैं. गंभीर मेंटल डिसऑर्डर में सिजाफ्रेनिया (Schizophrenia), मनोविकृति (Psychosis) और बाय-पोलर मूड संबंधी डिसऑर्डर शामिल हैं. हालांकि इसकी व्यापकता कम हो सकती है, लेकिन यह बहुत ज्यादा डिसएबिलिटी से जुड़ा है. हम यह भी जानते हैं कि गंभीर मानसिक बीमारी वाले लोगों की सामान्य आबादी की तुलना में 10 से 15 साल पहले मरने की संभावना होती है. निदान योग्य मेंटल डिसऑर्डर वाले हर एक व्यक्ति में, 6 से 7 लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अलग-अलग प्रकार के मनोवैज्ञानिक तनाव होते हैं और उनकी पहचान भी कर ली जाती है. कोविड के दौरान भारत सहित विश्व स्तर पर भी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में भारी बढ़ोतरी हुई है और इसलिए इसे गंभीरता से लेना जरूरी है.

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किशोरों और युवाओं में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं

छात्रों और युवाओं के बीच आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर बात करते हुए, डॉ. मूर्ति ने कहा, “किशोरों में आत्महत्याएं कभी-कभी बहुत आवेगपूर्ण (यानि कि बिना सोचे-समझे) हो सकती हैं. हालांकि, इसके कई कारण हो सकते हैं, जहां आवेग केवल इसका छोटा सा हिस्सा हो सकता है. तनाव, खुद पर संदेह, चिंता, कम आत्म-सम्मान, मूड खराब होना और शिक्षा या रिश्तों में निराशा की भावनाएं, ये सभी किशोरों को आत्महत्या की कगार पर धकेल सकती हैं. शैक्षणिक और वित्तीय दबाव व पारिवारिक झगड़े भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.”

डॉ. मूर्ति ने कहा कि हम किशोरों में अवसाद यानि कि डिप्रेशन को नहीं पहचानते हैं और कभी-कभी यह डिप्रेशन अकेलेपन, चिड़चिड़ापन, बच्चों के नखरे दिखाने, अवज्ञाकारी (Disobedient) और आक्रामक होने के रूप में प्रकट हो सकता है.

किशोरों को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले फैक्टर्स

  • परिवार का इतिहास
  • जीवन की शुरुआत में हिंसा का सामना करना
  • ज्यादा आवेग
  • भावनाओं को मैनेज करने में दिक्कत
  • खुद को नुकसान पहुंचाने के आसान तरीकों तक पहुंच
  • बहुत ही ज्यादा बदमाशी (Bullying) से सामना होना
  • निराशा और असहायता की भावनाएं

डॉ. मूर्ति ने किसी को कब मदद की जरूरत है इसे पहचानने और चेतावनी के संकेतों और लक्षणों पर ध्यान देने की सलाह दी है, जिनमें शामिल हैं:

  • बच्चे का दूसरों से अलग हो जाना
  • अच्छे से खाना नहीं खाना
  • अच्छी नींद नहीं आना
  • पदार्थ का उपयोग
  • बार-बार शारीरिक शिकायतें होना
  • शैक्षणिक प्रदर्शन और पाठ्येतर गतिविधियों (Extracurricular activities) में गिरावट
  • जीने की इच्छा न होने की बात करना

डॉ मूर्ति ने कहा, “यह जरूरी है कि लोगों को इस स्तर तक पहुंचने ही न दिया जाए, जहां उन्हें कोई विकल्प ही नहीं दिखाई देता है.”

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छात्रों पर मानसिक दबाव कम होना चाहिए

स्वास्थ्य विशेषज्ञ का मानना है कि विद्यार्थी बहुत ज्यादा दबाव से गुजरते हैं, खासतौर पर परीक्षाओं से पहले वे असहाय एवं नकारात्मक महसूस करते हैं. इस स्थिति से निपटने के लिए, वह सुझाव देती है:

  • परीक्षाओं को अपने जीवन का अंत न बनने दें. सुनिश्चित करें कि आपने इसके लिए तैयारी कर ली है; न केवल आखिरी मिनट की तैयारी, बल्कि उस पर लगातार काम करें.
  • याद रखें कि पर्याप्त नींद लें, अच्छा खाएं और खुद को आराम देने की दिशा में काम करें ताकि आप शांत मन से अपनी परीक्षा दे सकें.
  • याद रखें, आपकी योग्यता आपके परीक्षा परिणामों के अधीन नहीं है.
  • अपने कार्यों को छोटे-छोटे भागों में बांट लें ताकि वे कठिन न लगें.
  • अपने कामों को प्राथमिकता दें और समय प्रबंधन अपनाएं.

माता-पिता अक्सर बच्चों पर पढ़ाई को लेकर दबाव डालते हैं, जिससे छोटी उम्र से ही तनाव हो सकता है. इस संबंध में, डॉ. मूर्ति सुझाव देती हैं,

माता-पिता को न्यूरो-डाइवर्जेंस को समझना और स्वीकार करना चाहिए, कि हाथ की सभी उंगलियां बिल्कुल एक जैसी नहीं होती हैं. अपने बच्चे की ताकत और कमजोरियों को समझें और उन्हें सपोर्ट कैसे करना है ये तय करें. अक्सर माता-पिता अपनी उम्मीदें बच्चों पर डाल देते हैं कि वे क्या करना चाहते थे और क्या हासिल नहीं कर सके. कृपया ऐसा न करें; इसके बजाय, बच्चे का पालन-पोषण करें और बच्चे को हर तरह से प्रेरित करें. और हां, तुलना न करें.

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छात्रों को मानसिक रोगों से दूर रखने के बारे में आगे बात करते हुए डॉ. मूर्ति सलाह देती हैं:

  • resilience यानि लचीलेपन में सुधार – इसमें भावनाओं को कंट्रोल कैसे करना है, ये सीखा जाता है. ताकि हम अपने रास्ते में आने वाली हर छोटी चीज पर ज्यादा गुस्सा, ज्यादा परेशान महसूस न करें और तनाव को संभालने की क्षमता प्राप्त कर सकें.
  • अच्छी नींद, डाइट और व्यायाम, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के तीन स्तंभ हैं
  • लोगों से जुड़ें, सामाजिक रिश्ते बनाएं और सपोर्ट प्राप्त करें
  • सरल सांस लेने के तरीकों का पता लगाएं जो आपकी चिंता को कम करने में आपकी मदद कर सकते हैं. योग या किसी अन्य प्रकार की सचेतनता (Mindfulness) का अभ्यास करें
  • ज्यादा कैफीन और ऐसे पदार्थों से बचें, जिनकी लत लगने की संभावना ज्यादा रहती है
  • रुचि या शौक विकसित करें

डॉ. मूर्ति ने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि मेंटल डिसऑर्डर के लक्षणों को पहचानना सीखें – चाहे वह डिप्रेशन हो, चिंता हो, या कोई अन्य प्रकार की बीमारी हो क्योंकि सहायता उपलब्ध है.

मानसिक स्वास्थ्य में परेशानी को कलंक न मानें

मानसिक स्वास्थ्य और बीमारियों से जुड़ी चर्चाएं अक्सर कलंक या लांछन से जुड़ी होती हैं. डॉ. मूर्ति ने कहा, कोई यह आसानी से कह सकता है कि उन्हें सिरदर्द या सीने में दर्द है, लेकिन यह कहना कि ‘मैं चिंतित महसूस कर रहा हूं’ मुश्किल है. इसलिए, मनोवैज्ञानिक तनाव के बारे में ज्यादा बात करना महत्वपूर्ण हो जाता है.

डॉ. मूर्ति ने कहा, दूसरा यह विचार कि हमें हर समय अपने दिमाग पर 100 प्रतिशत कंट्रोल रखना है, एक मिथक है. तीसरा, पेशेवर मदद मांगना कमजोरी का संकेत नहीं है.”

हालांकि, मदद लेने में सक्षम होने के लिए यह जानना जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक कहां और कैसे पहुंच प्राप्त करें. डॉ मूर्ति ने आगे कहा,

सहायता उपलब्ध है; दवाएं, शारीरिक उपचार, मनोचिकित्सा और परामर्श हैं जो आपको पीड़ा के समय को कम करने में मदद कर सकते हैं. पेशेवर सेवाएं हमेशा गोपनीय होती हैं.

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मानसिक स्वास्थ्य पर सरकारी कार्यक्रम

भारत सरकार ने भविष्य में सभी के लिए न्यूनतम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता और पहुंच सुनिश्चित करने के लिए 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) शुरू किया; सामान्य स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक विकास में मानसिक स्वास्थ्य ज्ञान के अनुप्रयोग को प्रोत्साहित करना; और मानसिक स्वास्थ्य सेवा विकास में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना. भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 भी है जो डॉ मूर्ति के अनुसार “बहुत व्यापक” और “प्रगतिशील” है. उन्होंने कहा,

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम एक मानवाधिकार नजरिये को अपनाता है. यह एक अधिकार-आधारित और व्यक्ति-केंद्रित अधिनियम है जो मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच को हर व्यक्ति का अधिकार बनाने के लिए प्रयासरत है. यह गंभीर मानसिक बीमारी वाले लोगों को भी सपोर्ट करता है ताकि वे इलाज के निर्णय खुद ले सकें.

डॉ. मूर्ति ने बताया कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम जिलों में मौजूद है, साथ ही 730 से ज्यादा जिलों में एक जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम है, जो मेंटल डिसऑर्डर्स वाले लोगों की पहचान और देखभाल में सुधार करने की कोशिश करता है.

कुछ राज्यों में, ये कार्यक्रम जिलों से आगे बढ़कर तहसीलों और प्रायमरी हेल्थ केयर सेन्टर्स तक गया है. आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में मेंटल हेल्थ केयर भी एक घटक है. इसके अलावा, योग भी किसी के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए एक यूनिवर्सल एप्रोच की तरह है.

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डॉ. मूर्ति के अनुसार, हालांकि कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन उपलब्ध मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या सबसे जरूरी अनुपात यानि कि जितनी जरूरत है, उससे काफी कम है. इसे पाटने के लिए, सुझाई गई रणनीतियों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि हर एक स्वास्थ्य प्रदाता के पास मानसिक स्वास्थ्य देखभाल संबंधी बुनियादी प्रशिक्षण हो ताकि मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान की जा सके और मेंटल डिसऑर्डर्स वाले लोगों की पहचान की जा सके.

एनआईएमएचएएनएस डिजिटल अकादमी के माध्यम से, हम न केवल पेशेवरों को बल्कि स्वयंसेवकों (Volunteers) को भी प्रशिक्षित कर रहे हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सहायता प्रदान करने के इच्छुक हैं ताकि हम एक संपूर्ण नेटवर्क बना सकें. इसके अलावा, डिजिटल तरीकों और टेली मानस (Tele MANAS) का इस्तेमाल करके, हम सबसे वंचित क्षेत्रों से डिजिटल रूप से जुड़ने में सफल हुए हैं.

वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे 2022 पर शुरू किया गया टेली मानस (Tele MANAS) कार्यक्रम, भारत सरकार द्वारा एक व्यापक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवा है. टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर: 14416 या 1-800-891-4416 बहु-भाषा प्रावधान के साथ कॉल करने वालों को परामर्श सेवाओं का लाभ उठाने के लिए अपनी पसंद की भाषा चुनने की अनुमति देता है. किसी भी टोल-फ्री नंबर पर कॉल करके, कोई व्यक्ति प्रशिक्षित परामर्शदाता (Counselor) से बात कर सकता है.

हमें टेली मानस पर तीन लाख से ज्यादा लोगों ने कॉल किया है और नींद में खलल, उदासी और चिंता महसूस करना, शैक्षणिक प्रदर्शन के बारे में चिंता, पारस्परिक संबंधों और निश्चित रूप से, अन्य व्यवहार संबंधी समस्याओं, मादक द्रव्यों के सेवन जैसी समस्याओं पर चर्चा की है. इसने लोगों को बात करने का मौका दिया है और जागरूक होना तथा अपनी समस्याओं के बारे में बात करना पहला कदम है.

डॉ. मूर्ति ने इस तथ्य को दोहराया कि सहायता उपलब्ध है. एक व्यक्ति को पहुंचने के लिए सिर्फ पहला कदम उठाने की जरूरत है और उसे सहायता के लिए अलग-अलग द्वार खुले मिलेंगे.

जीवन के किसी भी मोड़ पर, किसी को यह महसूस नहीं होना चाहिए कि वह किसी दीवार के सामने खड़ा है.

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डिस्क्लेमर : सलाह सहित यह कंटेंट केवल सामान्य जानकारी प्रदान करता है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने डॉक्टर से परामर्श लें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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