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वर्ल्ड नेग्‍लेक्‍टेड ट्रॉपिकल डिजीज डे स्पेशल: कालाज़ार, डेंगू और एलीफेंटिएसिस जैसी बीमारियों से कैसे लड़ रहा है भारत?

भारत आमतौर पर कुछ प्रमुख एनटीडी बीमारियों को दूर करने में सफल रहा है. हालांकि देश में अब भी आए दिन डेंगू जैसी कुछ बीमारियों के मामले बड़ी संख्या में देखने को मिल जाते है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पूर्व महानिदेशक डॉ. एन के गांगुली ने इस दिशा में उठाए जा रहे महत्वपूर्ण कदमों के बारे में चर्चा की.

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World Neglected Tropical Diseases Day Special: How India Is Fighting Diseases Like Kala Azar, Dengue And Elephantiasis?
भारत कुछ प्रमुख ट्रॉपिकल बीमारियों को खत्म करने में सफल रहा है

नई दिल्ली: नेग्‍लेक्‍टेड ट्रॉपिकल डिजीज (एनटीडी) यानी उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग 20 स्थितियों/बीमारियों का एक बड़ा समूह है, जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं. इनमें गिनी वर्म, चिकनगुनिया, डेंगू, काला अजार (विसरल लीशमैनियासिस) और एलीफेंटिएसिस (लिम्फेटिक फाइलेरियासिस) शामिल हैं और भारत में इनमें से करीब लगभग 12 एनटीडी के मामले देखने को मिलते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एनटीडी पर 2023 की ग्लोबल रिपोर्ट के मुताबिक करीब भारत सहित 47 देशों ने कम से कम एक एनटीडी गिनी वर्म को खत्म कर दिया, जिससे इन देशों के लोगों को इस बीमारी से छुटकारा मिल गया. हालांकि 2021 और 2022 में एनटीडी का प्रकोप देखने को मिला, जिसने भारत सहित कई देशों को प्रभावित किया, जहां डेंगू के मामले बड़ी संख्‍या में सामने आए. इसने डब्ल्यूएचओ को इस बात का संकेत दिया कि इन बीमारियों के खात्‍मे के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतरता के साथ एनटीडी 2021-2030 रोडमैप का पालन करना होगा.

30 जनवरी को जब दुनियाभर में विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग दिवस मनाया जा रहा है, ‘एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया’ टीम ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पूर्व महानिदेशक डॉ. एनके गांगुली के साथ एनटीडी में शामिल कुछ बीमारियों को खत्म करने और उनमें से कुछ को खात्मे के करीब लाने में भारत की प्रगति पर गहराई से चर्चा की.

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भारत में उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (एनटीडी) की व्यापकता के बारे में बात करते हुए, डॉ. गांगुली ने कहा,

वर्तमान में भारत में एनटीडी के प्रति अतिसंवेदनशील लोगों की कुल आबादी लगभग 700 मिलियन (70 करोड़) है और दुनिया भर में 1.7 बिलियन (170 करोड़) लोग इन बीमारियों की चपेट में हैं. 20 एनटीडी में से लगभग 11-12 भारत में पाई जाती हैं और देश में सबसे ज्‍यादा तीन एनटीडी काला अजार (लीशमनियासिस), एलीफेंटिएसिस (लिम्फेटिक फाइलेरियासिस) और कुष्ठ रोग हैं.

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के फैलने के मुख्य कारण

डॉ. गांगुली ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जलवायु परिवर्तन एनटीडी के प्रसार के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है. उन्होंने कहा कि तापमान, वर्षा और आर्द्रता जैसे मौसम के पैटर्न में बदलाव के साथ एनटीडी, विशेष रूप से डेंगू के प्रसार पर प्रभाव पड़ता है. उन्होंने इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया,

तापमान में वृद्धि के साथ वेक्टर घनत्व बढ़ता है. तापमान में वृद्धि के कारण, वेक्टर जहां वे सामान्‍य तौर पर पाए जाते हैं, वहां से करीब 1,000 फीट से भी अधिक ऊपर उड़ने में सक्षम हो जाते हैं. इसके अलावा, जलभराव, तेजी से शहरीकरण और बाढ़ जैसी मौसम संबंधी चरम स्थितियां भी बीमारियों, विशेषकर डेंगू को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं. वे मच्छरों के लिए प्रजनन के लिए अनुकूल स्थितियां उत्पन्न करती हैं और गर्म तापमान मच्छरों के शरीर के भीतर बीमारी के वायरस की संख्या को बढ़ाता है.

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों से निपटने में भारत की क्‍या स्थिति है?

डॉ. गांगुली ने कहा, भारत कुछ प्रमुख उष्णकटिबंधीय बीमारियों को खत्म करने में सफल रहा है. देश ने सन 2000 में गिनी वर्म को खत्म कर दिया और 2005 में सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में कुष्ठ रोग से छुटकारा पा लिया. उन्होंने आगे कहा,

2017 में हम संक्रामक ट्रैकोमा को लगभग खत्म करने के चरण में ले आए. काला अजार की बात करें तो, देश के 90 प्रतिशत जिलों ने इस बीमारी के खतरे पर काबू पा लिया है. अब केवल छह जिले बचे हैं, जिनमें चार जिले झारखंड में और दो बिहार में हैं. तो, यह एक बड़ी प्रगति है, जो हमने की है. एलीफेंटिएसिस (लिम्फेटिक फाइलेरियासिस), जो भारत में प्रचलित प्रमुख एनटीडी में से एक है, के लिए अब हमें देश के 133 जिलों में बड़े पैमाने पर दवा देने की आवश्यकता नहीं रह गई है.

क्या हमने भारत से काला अजार को खत्म करने का 2023 का लक्ष्य हासिल कर लिया है?

काला अजार (विसेरल लीशमैनियासिस) लीशमैनिया डोनोवानी नामक परजीवी के कारण होने वाली आंतरिक अंगों (विशेष रूप से यकृत, प्लीहा, अस्थि मज्जा और लिम्फ नोड्स) की एक पुरानी और घातक परजीवी बीमारी है. यह उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में प्रमुख रूप से पाई जाती है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, नवंबर 2023 तक, भारत के किसी भी प्रभावित क्षेत्र में प्रति 10,000 की आबादी पर काला अजार के 1 से अधिक

मामले सामने नहीं आए. डॉ. गांगुली ने कहा कि प्रति 10,000 आबादी पर 1 मामले मिलने की स्थिति में यह माना जा सकता है कि देश ने इस बीमारी को लगभग खत्म कर दिया है.

एनटीडी के उपचार और उन्मूलन रणनीतियों में महत्वपूर्ण प्रगति

डॉ. गांगुली ने अब तक हुई कुछ प्रमुख सफलताओं और इस सिलसिले में हासिल की कुछ उपलब्धियों के बारे में इस प्रकार बताया:

काला अजार के लिए रोगियों को सामान्यतः: दी जाने वाली एक दवा के अलावा एक कॉम्बो दवा पेश की गई है, जिसे लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी के नाम से जाना जाता है. मिल्टेफोसिन और एम्फोटेरिसिन बी जैसी कॉम्बो दवाएं भारत में एक बहुत बड़ी सफलता के रूप में सामने आई हैं.

एलीफेंटिएसिस (लिम्फेटिक फाइलेरियासिस) के लिए एक और दवा शामिल की गई है. पहले डॉक्टर डायथाइलकार्बामाज़िन और एल्बेंडाजोल का उपयोग कर रहे थे, लेकिन अब कुछ मामलों में जहां इन दोनों दवाओं से कोई लाभ होता नहीं दिखा है, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आइवरमेक्टिन को भी इन दवाओं के साथ शामिल किया है. इससे इस बीमारी को खत्म करने की प्रक्रिया में तेजी लाने में मदद भी मिली है.

एलिफेंटियासिस के फैलाव को खत्म करने के लिए कम लागत वाली और प्रभावी रणनीति के रूप में नमक में डायथाइलकार्बामाज़िन (डीईसी) को भी मिलाने का प्रयास किया जा रहा है.

कुष्ठ रोग के उन रोगियों के लिए जिन पर मौजूदा दवाओं का कोई असर नहीं हो रहा है, भारत के पास अतिरिक्त दवाओं के रूप में मीनोसाइक्लिन और क्लिंडामाइसिन मौजूद हैं.

डेंगू के लिए स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र एनआईएच/बुटानटन वैक्सीन का उपयोग करने पर विचार कर रहा है. वैक्सीन का विकास तीन भारतीय कंपनियों – पैनेसिया बायोटेक, बायोलॉजिकल ई और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) द्वारा किया जा रहा है. डॉ. गांगुली ने बताया कि फिलहाल यह तैयारी के एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी हैं और एक या दो साल में वैक्सीन बाजार में आ जाएगी.

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डॉ. गांगुली ने कहा, भारत में एनटीडी परिवार में शामिल डेंगू के प्रमुख प्रभावित क्षेत्रों में बना हुआ है, क्योंकि सितंबर 2023 तक 92,400 मामले सामने आए हैं, जिसमें केरल में सबसे अधिक मामले और मौतें दर्ज की गई हैं.

एनटीडी को खत्म करने के लिए भारत को जिन हस्तक्षेपों की आवश्यकता है, उनके बारे में बिंदुवार जानकारी देते हुए डॉ. गांगुली ने बताया :

  • वेक्टर नियंत्रण के लिए एक इंटिग्रेटेड अप्रोच को अपनाना होगा, क्योंकि प्रत्येक वेक्टर के लिए, हम एक अलग नियंत्रण उपाय डिजाइन नहीं कर सकते हैं.
  •  निवारक या उपचारात्मक दवाओं की पहचान करना और उन्हें बीमारी से प्रभावित को प्रदान करना.
  • कमजोर वर्ग की आबादी के बीच दवाओं की पहुंच सुनिश्चित करना.
  • बीमारियों का एकदम प्रारंभिक चरण में पता लगाना, ताकि समय पर इलाज शुरू किया जा सके और बीमारी को फैलने से को रोका जा सके.
  • इस कार्य में भागीदारी करने वाली संस्थाओं को पर्याप्त धन मुहैया कराने के साथ-साथ कमजोर लोगों के बीच एनटीडी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए जन संचार कार्यक्रमों पर फोकस करना.
  • धन का पूरी तरह सदुपयोग सुनिश्चित करना और कमजोर आबादी तक पहुंचना
  •  देश के दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों तक पहुंचने के लिए सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करना.
  • गरीबों के बीच WASH (धुलाई, स्वच्छता और स्‍वास्‍थ्‍य) सुविधाओं को पहुंचाना.
  • प्रमुख हॉटस्पॉट की पहचान करने के लिए निगरानी को मजबूत करना.

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