नई दिल्ली: हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इसका मकसद है लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक करना. इस मौके पर एक बार फिर से प्लास्टिक पॉल्युशन से होने वाले खतरे की ओर लोगों का ध्यान खींचा गया. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक, सालाना 430 मिलियन टन से ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है. इसमें आगे कहा गया है कि कुल मिलाकर 46 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे को लैंडफिल किया जाता है, जबकि 22 प्रतिशत कूड़ा इधर-उधर पड़ा रहता है. प्लास्टिक के साथ समस्या यह है कि यह आज हर जगह मौजूद है और दूसरे मटेरियल की तरह यह बायोडिग्रेड नहीं होता है. नतीजतन, यह समुद्री वन्यजीवों के लिए खतरा पैदा करता है, मिट्टी को नुकसान पहुंचाता है और ग्राउंड वाटर को जहरीला बनाता है, और हमारे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है.
प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण के सोल्यूशन पर फिर से फोकस करने के लिए, इस साल विश्व पर्यावरण दिवस को #BeatPlasticPollution थीम दी गई है. यह दिन याद दिलाता है कि प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए लोगों की सक्रियता कितनी मायने रखती है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा इसका नेतृत्व किया गया, और 1973 से हर साल 5 जून को इसे आयोजित किया जाता रहा है, यह दिन सबसे बड़ा ग्लोबल एनवायरमेंटल प्रोग्राम बन चुका है, जिसे दुनिया भर में लाखों लोगों द्वारा मनाया जाता है.
इस साल, विश्व पर्यावरण दिवस 2023 को कोटे डी आइवर द्वारा होस्ट किया गया और इसे नीदरलैंड द्वारा सपोर्ट किया गया.
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ये ट्रेंड क्यों है चिंता का कारण
क्या आपको पता है, 1970 के दशक के बाद से, प्लास्टिक उत्पादन की दर किसी भी अन्य मटेरियल की तुलना में तेजी से बढ़ी है? विश्व स्तर पर, दुनिया में सालाना सात अरब टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है और अब तक 10 प्रतिशत से भी कम को रीसायकल किया गया है. UNEP का कहना है कि अगर ग्रोथ का यह ट्रेंड जारी रहा, तो प्लास्टिक का ग्लोबल प्रोडक्शन 2050 तक 1,100 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा.
UNEP यह भी कहा कि ग्लोबल एस्टीमेंट यानी वैश्विक अनुमानों के मुताबिक, वर्तमान में हमारे महासागरों में लगभग 75 से 199 मिलियन टन प्लास्टिक पाया जाता है और यह अनुमान लगाया गया है कि 1,000 नदियां समुद्र में वैश्विक वार्षिक नदीय प्लास्टिक (global annual riverine plastic) उत्सर्जन के लगभग 80% के लिए जिम्मेदार हैं, जो हर साल 0.8 और 2.7 मिलियन टन के बीच है.
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भारत का परिदृश्य
भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) और प्रैक्सिस ग्लोबल एलायंस के सहयोग से प्लास्टिक पर तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक भारत सालाना लगभग 3.4 मिलियन टन (MT) प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है और इसका केवल 30 प्रतिशत ही रिसाइकिल किया जाता है.
बढ़ते प्लास्टिक कचरे पर चिंता जताते हुए और हिमालयी क्षेत्रों में भी यह कैसे खतरा बन रहा है, इस बारे में बात करते हुए पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार अत्री ने ANI को बताया कि प्लास्टिक का कचरा एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है. उन्होंने कहा,
“हिमालय के जंगलों में हमें 200 टन प्लास्टिक मिल रहा है. यदि हिमालयन रीजन को संरक्षित नहीं किया गया तो इससे पूरा निचला क्षेत्र प्रभावित होगा, जिसका मतलब है कि यह 700 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करेगा क्योंकि मिट्टी में प्लास्टिक डंप करने से इसकी फर्टिलिटी कम हो जाती है.”
पिछले साल जुलाई में, भारत ने ‘सिंगल-यूज प्लास्टिक’ आइटम के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया था जैसे बैलून स्टिक, सिगरेट के पैकेट, प्लेट, कप, गिलास, कांटे, चम्मच, चाकू, ट्रे सहित कटलरी आइटम, ईयरबड्स, मिठाई के डिब्बे आदि. लेकिन इस बैन से हकीकत में कोई ज्यादा बदलाव नजर नहीं आया है क्योंकि ये आइटम अभी भी मार्केट में अवेलेबल हैं और बेचे जा रहे हैं. पिछले साल जब बैन लगा था, तो टीम बनेगा स्वस्थ इंडिया ने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट के प्रोग्राम डायरेक्ट अतीन बिस्वास से बात की थी, यह जानने के लिए कि ये बैन देश में प्रभावी क्यों नहीं हैं और अधिकारियों को इसके लिए किस पर ध्यान देना चाहिए, उन्होंने कहा,
“प्लास्टिक पर पहले भी बैन लग चुका है. कम से कम 25 राज्यों ने पहले अपने अधिकार क्षेत्र में राज्य अधिसूचना के किसी न किसी रूप में प्लास्टिक पर बैन लगा दिया था. लेकिन जमीनी तौर पर इन सभी प्रतिबंधों का बहुत सीमित प्रभाव पड़ा है. इस बैन को पिछले साल अगस्त में जारी किया गया था, इसलिए पर्याप्त समय दिया गया है. वर्तमान में भी हमने केवल 10% या 20% प्लास्टिक आइटम पर बैन लगाया है और हमने अभी तक पैकेजिंग मटेरियल को छुआ नहीं है और यही सबसे बड़ी समस्या है.”
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प्लास्टिक- फ्री एक्शन
UNEP का कहना है कि प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए कई छोटी-छोटी ऐसी चीजें हैं जो लोग व्यक्तिगत तौर पर डे-टू-डे बेसिस पर कर सकते हैं. UNEP ने प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने के लिए ये सुझाव दिए हैं:
1. समुद्र तट यानी बीच की सफाई में भाग लें
2. नदियां अपने पानी के साथ प्लास्टिक का मलबा समुद्र में बहा ले जाती हैं. इसलिए नदी की सफाई में योगदान दें और इकोसिस्टम को बेहतर बनाए
3. सस्टेनेबल शॉपिंग करना शुरू करें. बिना प्लास्टिक पैकेजिंग वाले फूड ऑप्शन चुनें, अपने साथ रीयूजेबल बैग ले जाएं, लोकल प्रोडक्ट खरीदें और अपने प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए कंटेनरों को फिर से इस्तेमाल करें.
4. जीरो-वेस्ट लाइफस्टाइल जिएं. सस्टेनेबल, ओशन फ्रेंडली प्रोडक्ट में इन्वेस्ट करें- रीयूजेबल कॉफी मग, पानी की बोतलें और फूड रैप्स. सस्टेनेबल ऑप्शंस पर स्विच करें जैसे menstrual कप, बांस के टूथब्रश और शैम्पू बार.
5. छुट्टियों के दौरान सस्टेनेबल ट्रैवल करें और अपने सिंगल-यूज प्लास्टिक इनटेक पर ध्यान दें. होटल के कमरों में छोटी बोतलों को रखने से मना करें, अपनी रीयूजेबल ड्रिंकिंग बोतल साथ लेकर जाएं और बिना माइक्रोप्लास्टिक्स के रीफ-सेफ सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.
6. बदलाव के हिमायती बनें. अपने लोकल सुपरमार्केट, रेस्टोरेंट और सप्लायर से प्लास्टिक पैकेजिंग को छोड़ने, प्लास्टिक कटलरी और स्ट्रॉ का इस्तेमाल ना करने के लिए कहें. कचरे को मैनेज करने के तरीके में सुधार के लिए अपने स्थानीय अधिकारियों पर दबाव डालें
7. सस्टेनेबल ड्रेस पहने और फास्ट फैशन को कहे बाय-बाय. आंकड़ों के मुताबिक, फैशन इंडस्ट्री ग्लोबल वेस्ट वॉटर का 20 प्रतिशत और ग्लोबल कार्बन एमिशन का 10 प्रतिशत उत्पादन करती है. यह संयुक्त रूप से सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों और समुद्री शिपिंग से कहीं ज्यादा है.
8. प्लास्टिक फ्री पर्सनल केयर प्रोडक्ट को चुनें क्योंकि ये प्रोडक्ट माइक्रोप्लास्टिक्स का एक प्रमुख स्रोत हैं, जो सीधे हमारे बाथरूमों से समुद्र में बह जाते हैं. प्लास्टिक-फ्री फेस वाश, डे क्रीम, मेकअप, डिओडोरेंट, शैम्पू इस्तेमाल करें.